होम शासन राजनीतिक अपराधीकरण को जड़ से हटाने के लिए संसद बनाए कानून: सर्वोच्च...

राजनीतिक अपराधीकरण को जड़ से हटाने के लिए संसद बनाए कानून: सर्वोच्च न्यायालय

News on Parliament
संसद, फाइल फोटो । पीटीआई

सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार दोहराते हुए कहा कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को अपने आपराधिक रिकॉर्ड सौंपने चाहिए.

नई दिल्ली: दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र राजनीति के आपराधिकरण से “परेशान” है. इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दोहराया कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से पहले भारत के निर्वाचन आयोग को अपने आपराधिक रिकॉर्ड साफ साफ बताना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि नागरिकों को अपने उम्मीदवारों के पुराने रिकॉर्ड के बारे में जानने का अधिकार है और उन्होंने संसद से राजनीति के अपराधीकरण को ख़त्म करने के लिए कानून बनाने पर विचार करने के लिए कहा.

https://youtu.be/6xREo1F_TQM

1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार, एक सांसद को अगर किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और जेल में दो साल से अधिक की सज़ा सुनाई जाती है तो उसे छह साल तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है. अयोग्यता की छः वर्ष की अवधि उस समय से शुरू होती है जब उसकी सज़ा पूरी करने के बाद नेता को जेल से रिहा कर दिया जाता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “मतदाता अपने सूचना रखने के अधिकार से वंचित रहते है. “वर्तमान परिदृश्य में उम्मीदवारों द्वारा दी गई जानकारी निर्वाचन क्षेत्र में व्यापक रूप से ज्ञात नहीं होती है और … मतदाताओं को वास्तव में अपने उम्मीदवार के बारे में पता नहीं चल पता है.

खंडपीठ ने कहा, “आपराधिक पृष्ट्भूमि के लोगों को प्रतिबंधित करके राजनीति की प्रदूषित धारा को शुद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रयास किए जाने चाहिए ताकि वे राजनीति में प्रवेश करने की सोच भी न सके.”

खंडपीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन, ए.एम. खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल थे. अदालत ने इस पर फैसले को रिज़र्व कर दिया है कि अगर किसी सांसद पर आपराधिक मामलें दर्ज हो तो तभी उन्हे अयोग्य घोषित किया जाए या तब, जब उन्हें दोषी पाया जाये.

“……संविधान द्वारा इतने अधिकार दिए है, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को, फिर भी भारत का लोकतंत्र अपराधिकरण का बढ़ता स्तर देख रहा है,” अदालत ने कहा.
गैर-सरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन द्वारा पहली याचिका दायर करने के लगभग सात साल बाद फैसला आया है.

“ऐसा समय आ गया है जब संसद को ऐसा कानून बनाना चाहिए ताकि गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे लोग राजनीति में न आएं,” सर्वेच्च न्यायालय ने दुख व्यक्त करते हुए कहा.


यह भी पढ़ें : For three years, only 5% of unrecognised parties filed donation reports: ADR


अदालत ने क्या कहा

शीर्ष अदालत ने 9 अगस्त को मामले की सुनवाई शुरू करने के दौरान कहा था, “अपराधियों को बाहर रखने और उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कुछ करना होगा.”
“क्या हम ऐसे क़ानून बना सकते हैं जो ऐसे उम्मीदवारों को अयोग्य धोषित करें जिनपर अदालत ने गंभीर अपराधों के आरोप तय किये है. या हम संसद को बताए कि ऐसे कानून न बना कर आप असल में अपराधियों को आशा दे रहे हो, प्रोत्साहित कर रहे हों? यह सवाल हमें परेशान कर रहा है. ”

29 अगस्त को अपने फैसले को रिज़र्व रखते हुए अदालत ने अटॉर्नी जनरल के.के.वेणुगोपाल से पूछा कि क्या भारत के निर्वाचन आयोग (ईसी) को उन मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों जिन्होंने आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवार को उतारा हो, आवंटित चुनाव प्रतीकों को वापस लेने की अनुमति दी जा सकती है.

अटॉर्नी जनरल का तर्क था कि आरोप लगने से आरोप सिद्ध होने के दौरान उन्हें बेगुनाह माना जाता है इसलिए महज़ आरोप लगने को दोष नहीं माना जा सकता है, नरिमन ने कहा.

सरकार ने क्या कहा

वेणुगोपाल ने कहां कि हालाँकि इरादा प्रशंसनीय था, शीर्ष अदालत संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता, जो न्यायपालिका के लिए वर्जित है. उन्होंने कहा था कि किसी राजनीतिक दल को अपने आवंटित चुनाव चिन्ह पर किसी भी उम्मीदवार को मैदान में उतारने का अधिकार है और अदालत इस अधिकार से इनकार नहीं कर सकती है.

 


यह भी पढ़ें : The death penalty ordinance is yet another example of ‘lawlipop politics’


सुनवाई के दौरान, वेणुगोपाल ने कहा कि राजनेताओं के मामलों की सुनवाईं फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो यही “एकमात्र समाधान” है.

चंद्रचूड़ के इस सवाल पर कि बलात्कारी और हत्यारे, विधायक कैसे बन सकते हैं, उच्च कानून अधिकारी ने जवाब देते हुए कहा कि दोषी साबित होने तक सभी को निर्दोष माना जाता है.

‘सांसदों के रूप में निर्वाचित वकील अदालतों में प्रैक्टिस कर सकते हैं’

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सांसदों के रूप में प्रैक्टिस करने से सांसदों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि अदालतों में प्रैक्टिस करने के लिए उनके खिलाफ कानूनन कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर और डी.वाई.चंद्रचूड़ की एक खंडपीठ ने कहा कि सांसद और विधायक बनने पर वकालत की प्रैक्टिस को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम उन्हें प्रतिबंधित नहीं करते हैं.

पीटीआई इनपुट के साथ

Read in English : Supreme Court asks Parliament to frame law to weed out crime from politics

Exit mobile version