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प्रसार भारती ख़त्म कर दूरदर्शन और आकाशवाणी को पब्लिक कंपनी में तब्दील करना चाहती है मोदी सरकार

दूरदर्शन और आकाशवाणी
दूरदर्शन और आकाशवाणी | दिप्रिंट

इस कदम से राज्य सरकार के हस्तक्षेप की चिंताएं बढ़ गई हैं। केन्द्र ने प्रसार भारतीय की ‘अक्षमता’ को बताया इसकी समाप्ति का कारण।

नई दिल्लीः नरेन्द्र मोदी सरकार 2019 के बाद प्रसार भारती के अंतर्गत संचालित दो कंपनियों दूरदर्शन (डीडी) और आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में परिवर्तित करने सहित प्रसार भारती को समाप्त करने पर सक्रिय रूप से विचार कर रही है। प्रसार भारती के अंतर्गत संचालित दोनों निकायों को जारी रखने के लिए इनको सार्वजनिक क्षेत्र में रखने पर विचार किया गया है।

सरकार के इस कदम से चिंताएं बढ़ गई हैं कि दूरदर्शन और आकाशवाणी भविष्य में अपनी स्वायत्तता खो सकते हैं। इन दोनों निकायों को सार्वजनिक क्षेत्र में परिवर्तित करने से सरकार को उसकी वर्तमान स्थिति की अपेक्षा अधिक नियंत्रण प्राप्त होगा। प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) अधिनियम 1990 के तहत ये दोनों तकनीकि रूप से स्वायत्त निकाय हैं।
इस संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अभी तक दूरदर्शन और आकाशवाणी के अधिकारियों के साथ कम से कम तीन बैठकें की हैं।

मंत्रालय के उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय इन निकायों को सार्वजनिक क्षेत्र में परिवर्तित करने की संभावना की तलाश कर रहा है। राज्यों को इसमें कुछ हद तक नियंत्रण प्रदान किया जाएगा जबकि केन्द्र सरकार के पास इसके एक प्रमुख हिस्से का नियंत्रण होगा।

सरकार का यह प्रस्ताव सचिवों के एक पैनल की सिफारिशों के अनुरूप है जिन्होंने पिछले साल प्रसार भारती के परिचालन को समाप्त करने और दूरदर्शन तथा आकाशवाणी को निगम में परिवर्तित करने की सिफारिश की थी।

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सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने विभिन्न अवसरों पर कहा है कि वह 2019 के बाद प्रसार भारती को फंड नहीं देगा। अभी तक, मंत्रालय के वार्षिक बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रसार भारती को आवंटित किया गया है।
दूरदर्शन वर्तमान में 23 टीवी चैनलों का संचालन करता है जबकि आकाशवाणी के 416 रेडियो चैनल हैं।

प्रसार भारती की ज्यादती

सरकार इस आधार पर अपने फैसले को औचित्य देने की संभावना रखती है कि प्रसार भारती अब सार्वजनिक सेवा प्रसारक के रूप में अपनी भूमिका नहीं निभा रहा है।

मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, “यह प्रसार भारती सचिवालय के वेतन और सभी पूंजीगत व्यय सहित सरकारी अनुदान पर निर्भरता के कारण कई वर्षों में व्यर्थ की खर्चीली वस्तु बन गई है। अगर इसे सरकारी निधियों पर निर्भर रहना है तो यह सार्वजनिक सेवा प्रसारक के रूप में पूर्णरूपेण कैसे कार्य कर सकती है?”

सूत्रों ने यह भी कहा है कि मंत्रालय और प्रसार भारती के अधिकारियों के बीच चर्चा के दौरान, यह सामने आया कि प्रसारण नीतियों और अन्य वित्तीय साधनों और मानव संसाधन से संबंधित मसलों को सूत्रबद्ध करने के लिए प्रसार भारती को डीडी और एआईआर के लिए एक अति महत्वपूर्ण निकाय/संस्था के रूप में माना गया था जो कि देखा जाए तो वास्तव में दो निकायों के महानिदेशक की तरह काम कर रहा है।

ऐसी संभावना है कि सरकार प्रसार भारती के खिलाफ अपने अस्तित्व के 20 से अधिक वर्षों में पुराने बुनियादी ढाँचे को संभालने में अक्षमता, कार्यक्रमों के लिए फंड में कमी, स्थिर और सुस्त कर्मचारियों, प्रमुख कार्यक्रम उत्पादन करने वाले पदों की देश भर में रिक्तियों तथा विशेष रूप से शिष्टमंडल और सलाहकारों के पद पर गैर-पेशेवरों की नियुक्ति का हवाला देगी।

एक अधिकारी ने कहा, “यहां तक कि सरकार एआईआर और डीडी के निगमकरण के लिए मॉडल की तलाश कर रही है, यह ध्यान में रखना होगा कि वे सार्वजनिक सेवा प्रसारणकर्ता हैं और लाभ कमाना उनका प्राथमिक उद्देश्य नहीं है।
सूत्रों ने कहा कि बैठक में अधिकारियों ने ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) मॉडल आयात करने पर विचार-विमर्श किया, जिसमें हर संबंधित व्यक्ति से लाइसेंस शुल्क वसूल करना शामिल है।

हालांकि, आकाशवाणी और दूरदर्शन के श्रोतागणों तथा दर्शकों से लाइसेंस शुल्क वसूल करने में केंद्र की कोई दिलचस्पी नहीं है और इसलिए केंद्र ने इशारा किया है कि यह मॉडल सही नहीं रहेगा। जापान और जर्मनी जैसे देश अपने सार्वजनिक सेवा प्रसारण के लिए ऐसे ही मॉडल का अनुसरण करते हैं।

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