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मोदी सरकार ने इलेक्शन कमीशन को एक साथ चुनाव कराने की संभावना के प्लान पर अध्ययन करने को कहा

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भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्यालय की फाइल फोटो | इसीआई

आगे की कार्यवाही 17 अप्रैल को लॉ कमीशन की बैठक में होगी, जिसमें एक साथ होने वाले चुनाव पर चर्चा की जाएगी।

नई दिल्लीः दिप्रिंट को पता चला है कि कानून मंत्रालय ने मोदी सरकार के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विचार के साथ नीति आयोग के एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को लागू करने की “व्यवहार्यता” की जाँच के लिए भारत के चुनाव आयोग से पूछा है।

यह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले एक साथ चुनावों की ओर बढ़ने के बारे में, बीजेपी की अगुवई वाली सरकार द्वारा भारत निर्वाचन आयोग के पहले आधिकारिक संकेतों में से एक है।

सूत्रों ने दिप्रिन्ट से कहा कि मोदी सरकार ने इस हफ्ते भारत निर्वाचन आयोग से नीति आयोग के 2017 के वर्किंग पेपर ‘एक साथ चुनाव कराने का विश्लेषण: क्या, क्यों और कैसे’ का परीक्षण करने को कहा है – यदि यह कार्यान्वयन के लिए संभव है तो मूल्यांकन करें।

सूत्रों ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग अगले कुछ दिनों के भीतर अपना आँकलन प्रस्तुत करेगा।

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कानून मंत्रालय की नवीनतम आयोग ने आगे का फैसला 17 अप्रैल को आगामी लॉ कमीशन की बैठक के साथ रणनीतिक तौर पर होगा, जो एक साथ चुनावों पर एक प्रस्ताव पर चर्चा करेगा। आयोग के आंतरिक कामकाजी कागजात संयोगवश अनुशंसित है

2019 और 2024 में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के लिए समान दो चरण के मॉडल की सिफारिश की है।

नीति आयोग ने क्या सुझाव दिया

नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय और सार्वजनिक नीति विश्लेषक किशोर देसाई द्वारा तैयार किए एक नीति आयोग के पत्र में, सबसे व्यवहार्य समाधान के रूप में दो चरण की चुनावी प्रक्रिया का समर्थन किया है। इस पत्र के अनुसार पहले चरण में, अप्रैल-मई 2019 के बीच 14 राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जा सकते हैं।

द्वितीय चरण में लगभग मध्य मार्ग का सुझाव दिया है, पहले चरण के 30 महीने बाद अक्टूबर-नवंबर 2021 के आसपास। इसके बाद, एक बार लोकसभा के पूरे चुनावी चक्र और सभी राज्य विधानसभाओं को दिसंबर 2021 तक समकालिक किए जाने के बाद देश में हर 2.5 सालों (30 महिनों) में चुनाव कराने का विचार किया जाता है।

इस मॉडल के तहत आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और तेलंगाना के 16 वीं लोकसभा के कार्यकाल के साथ खत्म होने और लोकसभा के साथ चुनाव होने की संभावना है, जबकि असम राज्य की विधानसभा का कार्यकाल जून 2021 के आस-पास समाप्त होगा, इसे छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है और चुनाव के दूसरे चरण अक्टूबर-नवंबर 2021 में शामिल किया जा सकता है।

अब तक की स्थिति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ चुनावों के लिए कई बार कहा है, चुनावी प्रक्रिया में अमूल चूल परिवर्तन के लिए सरकार के मजबूत समर्थन को बल देने के लिए भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों ने भी इस विचार को दोहराया। भाजपा शासित मध्यप्रदेश ने भी पिछले महीने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति की स्थापना की दिशा में पहला कदम उठाया है।

भारतीय चुनाव आयोग एक साथ चुनाव तंत्र का विस्तृत रूप से समर्थन करता है, बशर्ते संबंधित प्रचलन-तन्त्र की व्यवस्था की जा सके। चुनाव आयोग द्वारा एक साथ चुनाव परिदृश्य को संभालने के लिए पर्याप्त ईवीएम की व्यवस्था करने में सक्षम करने के लिए, दिसंबर 2016 में केंद्र सरकार ने 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की मंजूरी दी थी।

सरकार ने तर्क दिया है कि एक साथ चुनाव की प्रक्रिया राज्यों और केंद्र के कोष पर पड़ने वाले बोझ को कम करेगी और शासन एवं वितरण तंत्र को आसान बनाएगी जोकि वर्तमान समय में कई चुनावों की प्रक्रिया से अव्यवस्थित है।

प्रजातंत्रवादी विचार के साथ सर्वसम्मति वाली राजनीति का निर्माण करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी जैसा कि पहले ही कई राजनीतिक दलों द्वारा इसका विरोध किया जा चुका है। इस तरह के एक विचार के प्रचलन की संभावना पर सवाल करने के अतरिक्त, कई लोगों ने तर्क दिया कि यह राज्य के विधानसभा स्तर पर राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट देने के लिए मतदाताओं को प्रभावित करने हेतु एक राजनीतिक रूप से प्रेरणा देने वाली चाल है।

इसमें आशंका यह है कि किसी एक विशेष पार्टी के समर्थन में ‘लहर’ के मामले में, समकालिक चुनावों के आयोजन में चुनावी परिणाम सभी राज्यों पर प्रतिकूल और अनावश्यक प्रभाव डाल सकते हैं।

एक साथ दोनों चुनाव कराने की तरफ की पहल को राजनितिक समर्थन की आवश्यकता होगी जिसमें कुछ राज्यों के कार्यकाल को कम और कुछ की अवधि को बढ़ाने के लिए इस अध्याधेश को दो तिहाई बहुमत से संसद में पारित कराना पड़ेगा जिससे की सभी एक चुनावी कैलेन्डर में शामिल हो सकें।

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