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पंजाब में हुए पर्यावरण नाश के जल्द ठीक होने के नहीं दिख रहे आसार

प्रतीकात्मक तस्वीर : दिप्रिंट

गुरदासपुर जिले में व्यास नदी में बुधवार को एक चीनी मिल से लगभग 10,000 लीटर शीरे के व्यापक बहाव में सरकार का हाथ हो सकता है।

चंडीगढ़: पंजाब सरकार चिंतित है क्योंकि राज्य हाल के वर्षों में अपनी सबसे ख़राब पारिस्थितिक आपदा के दौर से गुजर रहा है जो कि गन्ने की भरमार का इस्तेमाल करने के इसके खुद के आदेश का परिणाम हो सकता है।

पिछले बुधवार गुरदासपुर जिले में एक चीनी मिल से लगभग 10,000 लीटर शीरे की एक विशाल मात्रा एक साथ नदी में छोड़ी गयी जिसने एक बड़े पैमाने पर जलीय जीव-जंतुओं की जानें लीं और सिंचाई नहर प्रणाली के माध्यम से राजस्थान तक अपना प्रभाव डाला। राज्य प्राधिकरण अपने क्षेत्र में प्रवेश करने वाले पानी की पीने योग्य गुणवत्ता जानने के लिए इसका परीक्षण करना शुरू कर रहे हैं जबकि साथ ही साथ अपने भंडारित पेयजल की आपूर्ति का नियंत्रित वितरण कर रहे हैं।

नुकसान का आकलन करने और जिम्मेदारी तय करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक टीम को नियुक्त किया गया है। सोमवार को नदी के कच्चे पानी के नमूने का पहला संग्रह परीक्षण में पास नहीं हुआ जबकि पेयजल का परीक्षण परिणाम ‘अस्वास्थ्यकर श्रेणी’ में पाया गया है जिससे भय उत्पन्न हो रहा है कि कहीं प्रदूषित जल पहले से ही पेयजल के जलाशयों में जाकर तो नहीं मिल रहा।

‘यह एक दुर्घटना थी’

जहाँ एक तरफ राज्यपाल विजेन्द्रपाल सिँह बदनौर ने सोमवार को मुख्यमंत्री कार्यालय से एक रिपोर्ट मांगी है वहीं दूसरी तरफ पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के चेयरमैन कहान सिंह पन्नू चड्ढा चीनी मिल, जहाँ से शीरा बहाया गया था, के प्रबंधन की संभावित लापरवाही के अलावा सरकार की संभावित भूमिका की तरफ भी इशारा करते हैं।

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पन्नू ने कहा कि “गन्ने की पेराई करते हुए प्राप्त होने वाला शीरा एक उप-उत्पाद है। चीनी मिलों के पास विशेष टैंकों में शीरे का भण्डारण करने की एक निश्चित क्षमता होती है। हालाँकि, इस सीजन में गन्ने की भरमार के कारण सरकार ने पंजाब में कई चीनी मीलों (चड्ढा चीनी मिल सहित) को 30 अप्रैल तक पेराई जारी रखने का आदेश दिया था।”

पन्नू ने कहा, “चूंकि मिलें एक अतिरिक्त माह तक संचालित हुईं अतः इन्होने फालतू शीरे के भण्डारण के लिए भूमिगत टैंकों का निर्माण किया। चड्ढा मिल में भूमिगत टैंक के अन्दर एक ऊष्माक्षेपी प्रतिक्रिया हुई और संग्रहीत शीरे का हवा में ज्वालामुखी के लावा की तरह विस्फोट हुआ। विस्फोट ने बाउंड्री की दीवार को क्षतिग्रस्त कर दिया और भाप निकलता हुआ लावा मिल के बगल वाले नाले में बहने लगा। यह नाला मुश्किल से एक किलोमीटर की दूरी पर बहने वाली व्यास नदी में जाकर गिरता है। हमारा अनुमान है कि वृहस्पतिवार तक लगभग 10000 लीटर शीरा नदी में बह चुका था।
चड्ढा चीनी मिल के गन्ना प्रबंधक राकेश शर्मा ने कहा कि उन्हें, प्रदान की गयी मिल की पेराई क्षमता से अधिक पेराई करने के लिए मजबूर किया गया।

उन्होंने आगे कहा, “हमने इस सीजन में 1.2 करोड़ क्विंटल गन्ने की पेराई की है। हम 21 अप्रैल के बाद पेराई जारी रखना नहीं चाहते थे लेकिन हमने 30 अप्रैल तक इसे जारी रखा क्योंकि सरकार का दबाव था। हमारे पास दिखाने के लिए प्रमाण है कि गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर ने हमें अतिरिक्त गन्ने की पेराई के लिए कहा था। हमने अतिरिक्त शीरे के भण्डारण की व्यवस्था की थी। भण्डारण क्षेत्र में जो हुआ वह प्राकृतिक प्रतिक्रिया का परिणाम था। इससे लगभग 8 से 9 करोड़ रुपये के शीरे का नुकसान हुआ है।” उन्होंने कहा कि “शीरा अन्य उद्योगों के लिए एक कीमती कच्चा माल है। हम इसे पानी में क्यों बहायेंगे?”

विलंबित कार्यवाही

जैसे ही मोटा लसलसा काला तरल शीरा नदी में बहा इसने पानी को काला कर दिया और लगभग तुरंत ही जलीय जीवन को ख़त्म कर दिया। विभिन्न आकारों की मछलियों के मृत शरीरों को बहाव स्थान के नीचे नदी के किनारों की सम्पूर्ण लम्बाई पर यहाँ से वहाँ तक इकठ्ठे या तैरते हुए देखा गया था। यह नदी सिन्धु नदी की डॉलफिन, जो दुनिया के सबसे दुर्लभ स्तनधारियों में से एक है, और घड़ियाल का घर है, जिनमें से दोनों इस बहाव से बच गये हैं लेकिन उनका शिकार क्षेत्र काफी कम हो गया है।

बदले हुए रंग वाले पानी पर पहली बार वृहस्पतिवार दोपहर को ध्यान दिया गया तब ग्रामीणों ने व्यास शहर के वन अधिकारियों से संपर्क किया, जिन्होंने वन्यजीवन को नुकसान पहुंचाने के लिए अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने यह कहते हुए जांच से इंकार कर दिया कि मामला “उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर’ है।

हालाँकि, अगले दिन राज्य तंत्र ने त्वरित कार्यवाही की। शीरे को बाहर निकालने के लिए रंजीत सागर बाँध से लगभग 2000 क्यूसेक पानी नदी में पम्प किया गया। पर्यावरण मंत्री ओ.पी. सोनी ने मिल को सील करने और 25 लाख रुपये के सिक्यूरिटी डिपाजिट को जब्त करने का आदेश दिया। हालांकि मिल मालिकों / प्रबंधन के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की गयी।

मंत्री ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए, कि क्या यह रिसाव लापरवाही की वज़ह से था या यह एक दुर्घटना थी, एक जांच समिति का गठन किया। रिपोर्ट मंगलवार को एक मुहरबंद कवर में जमा की गई। पन्नू ने कहा, “अभी तक मैंने रिपोर्ट नहीं देखी है क्योंकि मैं यात्रा कर रहा हूँ। आगे यदि मिल प्रबंधन/मालिकों के खिलाफ कोई कार्यवाही होगी तो वह केवल जांच समिति के परिणामों को देखने के बाद ही होगी।”

विपक्षी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने मिल मालिकों, जो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी हैं, को बचाने के लिए और राज्य में ‘एक पर्यावरणीय कत्लेआम को संरक्षण देने’ के लिए सरकार पर तेज हमला बोला। एसएडी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने केंद्र से हस्तक्षेप करने को कहा है।

यह एक लापरवाही थी: स्थानीय लोग

प्रभावित गांवों में रहने वाले स्थानीय लोगों ने लापरवाही के कारण नदी को जहरीला करने के लिए मिल पर ही आरोप लगाते हुए कई जगहों पर विरोध किया।

गुरदासपुर जिले के किरी अफगाना गाँव, जहाँ मिल स्थित है, के एक निवासी ने कहा कि “मिल मालिकों ने उनके लिए निर्धारित की गयी सीमा से अधिक गन्ने की पेराई की और शीरे की विशाल मात्रा को खतरनाक रूप से संग्रहित किया। एक बार शीरे का बहाव शुरू होने के बाद प्रबंधन ने इसे रोकने के लिए कुछ भी करने से इनकार दिया जब तक कि ग्रामीण इसका विरोध करने के लिए मिल के बाहर इकट्ठे नहीं हो गए। उसके बाद मिल प्रबंधन एक जेसीबी लेकर आया और बहाव को रोक दिया जो वे पहले भी कर सकते थे।”

अन्य लोगों ने बताया कि पीपीसीबी ने चीनी मिल को सील कर दिया था जो एक ढकोसला था क्योंकि मिल ने अपना कार्य 20 दिन पहले ही समाप्त कर दिया था। एक अन्य निवासी ने कहा कि “मिल मालिकों के ही स्वामित्व वाले शराब के कारखाने इसके बगल में ही चल रहे हैं। इन्हें बंद नहीं किया गया है।”
मिल का मालिक कौन?

कंपनी रजिस्ट्रार के रिकॉर्ड के अनुसार चीनी मिल का स्वामित्व कुछ अन्य लोगों के साथ-साथ पंजाब की एक प्रमुख शराब ठेकेदार जसदीप कौर चड्ढा के पास है। वह हरदीप सिंह चड्ढा की विधवा हैं। हरदीप सिंह चड्ढा अपने बड़े भाई और शराब व भूमाफिया पोंटी चड्ढा के साथ 2012 में नई दिल्ली में एक संपत्ति विवाद पर आपस में आमने सामने की गोलीबारी में मारे गये थे।

उनके पति की मृत्यु के बाद जसदीप ने शराब कारोबार का पदभार संभाल लिया और इसे अधिक सफलतापूर्वक चला रही हैं। वह दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के पूर्व अध्यक्ष हरविंदर सरना की बेटी हैं। सरना और उनके भाई परमजीत सरना के बारे में कहा जाता है कि उनके कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ घनिष्ट सम्बन्ध हैं। चीनी मिल के अलावा, यही मालिक गाँव के परिसर में बियर और शराब बनाने वाली इकाइयाँ चला रहे हैं।

प्रदूषित पानी नहर में गिरता है-

बहाव स्थल से अनुप्रवाह के बाद दूषित पानी ने फिरोजपुर जिले के हरिके बैराज की सिंचाई नहर प्रणाली में प्रवेश किया। यह बैराज व्यास और सतलज नदी के संगम के पर बनाया गया है। काले पड़ चुके पानी ने यहाँ चार नहरों में प्रवेश किया: राजस्थान जाने वाली नहर, सरहिंद नहर, गंग नहर और पूर्वी नहर। इनमें से दो नहरें व्यास के पानी को राजस्थान में श्री गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर तक ले जाती हैं।

चूँकि पानी को नहरों में और आगे इसकी छोटी और लघु वितरिकाओं में बहने से रोकने का कोई तरीका नहीं था इसलिए फरीदकोट, मुक्तसर और फजिलका जिलों में सिंचाई के पानी की गुणवत्ता गंभीर रूप से प्रभावित हुई। किसानों को झटका लगा क्योंकि अत्यधिक प्रदूषित जल मरी हुई मछलियों और इनकी भयानक दुर्गन्ध के साथ शनिवार को उनके खेतों में घुस गया था।

हालांकि, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा कि दूषित पानी फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। पन्नू ने कहा, “हमारा मानना है कि “प्रदूषक जैविक प्रकृति के हैं, इसलिए ये फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।”

पीने का पानी

पहले नहर का पानी पेय जल प्रणाली में ले जाया जाता था जिसे जल आपूर्ति और स्वच्छता विभाग द्वारा इन नहरों पर स्थापित किया गया था। नहर की पेयजल प्रणालियाँ क्षेत्र में पेयजल की आपूर्ति को ट्यूबवेल्स और हैण्ड पंप के माध्यम से पूरा करती हैं। नदी का पानी सिंचाई वाली नहरों से अन्दर लिया जाता है, उपचारित किया जाता है, शुद्ध किया जाता है और मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में रहने वाले निवासियों के लिए आपूर्ति हेतु भंडारित किया जाता है।
जल आपूर्ति और स्वच्छता सचिव जसप्रीत तलवार ने कहा कि, “हमने शनिवार सुबह 6 बजे के बाद व्यास नदी के पानी वाली नहरों से पानी लेना बंद कर दिया था। हम लोग पानी की गुणवत्ता के लिये इसकी जांच कर रहे हैं और इसके नमूने ले रहे हैं। उपचारित और शुद्ध किये जा चुके पानी सहित तीस से अधिक पानी के नमूनों को परीक्षण के लिये लिया गया है। उपचारित किए गए पानी की कुछ रिपोर्टें आई हैं। केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) परीक्षणों से पता चला है कि यह लगभग 8 से 11 तक है जो मानक सीमा से थोड़ा अधिक है लेकिन यह नदी के प्रदूषित होने के पहले के आंकड़े हो सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि “बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) परीक्षण के परिणाम अभी आने बाकी हैं। हमने प्रभावित जिलों (अबोहर, फिरोजपुर, फजिलका, फरीदकोट और मुक्तसर) के निवासियों को सलाह दी है कि वे केवल क्षेत्र में स्थापित रिवर्स ऑस्मोसिस सिस्टम का ही पानी पियें। हम हैण्ड पंप के माध्यम से प्राप्त भूमिगत पानी के भी नमूने ले रहे हैं।”

मात्र एक ही सप्ताह के संग्रहीत पानी की अहमियत यह है कि प्रभावित शहरों के लिए पेयजल आपूर्ति सीमित कर दी गयी है या गंभीर रूप से कम कर दी गयी है।

पर्यावरणविद् बलबीर सिंह सीचेवाल ने कहा कि शीरे के अलावा, पानी अब मृत मछलियों से भी भरा है और पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

जलीय जीवन

प्रदूषण का सबसे ज्यादा गोचर प्रभाव नदी के ताजे पानी में रहने वाले जीवों के जीवन पर पड़ा है। मछलियों की कई प्रजातियां जो ‘लगभग संकट में’ या ‘असुरक्षित’ श्रेणियों में आती हैं, मारी गई हैं। इनमें ड्वार्फ रीवर मॉन्स्टर, माल्ही, चीतल और सामान्य स्नो ट्राउट शामिल हैं। रिवर कैट फिश जैसी अन्य विशालकाय मछलियां भी बड़ी संख्या में मारी गई हैं।
हमारी समझ से, पानी में प्रवेश करने वाला शीरा घुलनशील ऑक्सीजन की तत्काल कमी उत्पन्न करके घुलनशील ऑक्सीजन पर जीवित रहने वाली मछलियों का दम घोटकर उनकी मौत का कारण बना। नुकसान के आकलन के लिए टीम के साथ नदी का दौरा करने वाले पंजाब के मुख्य वन्यजीव संरक्षक कुलदीप कुमार ने कहा कि “घड़ियाल जीवित बच गये हैं, शायद वे नदी के किनारों या नदी के बीच में रेत के टापुओं पर चले गए होंगे।”

घटना के बाद से कुछ दिनों तक सिन्धु नदी की डॉलफिन मछलियों को देखा नहीं जा सका है जो चिंता का विषय है। हालाँकि, तीन मछलियों के एक समूह को सोमवार को देखा गया था।

वन्यजीव अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन करते हुए विभाग ने मछलियों के शिकार क्षेत्र को कम करने और बड़े पैमाने पर मछलियों की मृत्यु के लिए मिल के विरुद्ध एक स्थानीय कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई है। पन्नू ने कहा कि शुरुआत में स्थानीय लोग खाने के लिए मरी हुई मछलियों को उठाकर ले गये लेकिन बाद में उन्हें सलाह दी गयी है कि ऐसा न करें क्योंकि ये मछलियाँ जहरीली और संक्रमित हो सकती हैं।

हरिके की जलमय भूमि और पक्षी अभयारण्य को होने वाली संभावित क्षति का आकलन अभी भी किया जाना बाकी है।

Read in English: Punjab’s worst ecological crisis in years cannot be cleaned up anytime soon

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