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शिक्षा को सुधारने में सरकार के मददगार IIT, NIT के 1500 ग्रेजुएट्स के सामने नौकरी जाने का खतरा क्यों है

1,500 स्नातकों को 18 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में 2018 में विश्व बैंक की तरफ से वित्त पोषित केंद्र सरकार की योजना के तहत बतौर फैकल्टी भर्ती किया गया था.

प्रतीकात्मक तस्वीर | ANI

नई दिल्ली: कुछ चुनिंदा राज्यों में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की जिम्मेदारी संभालने वाले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के करीब 1,500 ग्रेजुएट करीब तीन साल के कार्यकाल के बाद आगामी मार्च में अपनी नौकरी जाने की कगार पर खड़े हैं.

ये स्नातक 2018 में विश्व बैंक की तरफ से वित्त पोषित केंद्र सरकार की योजना के तहत 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (टीईक्यूआईपी) के लिए बतौर फैकल्टी भर्ती किए गए थे. राज्यों का चुनाव तीन श्रेणियों के आधार पर हुआ था—पूर्वोत्तर, पर्वतीय और निम्न-आय.

इस विशेष प्रायोजन टीईक्यूआईपी-3 के तहत शिक्षा मंत्रालय ने अन्य राज्यों के साथ-साथ राजस्थान, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के साथ भी एमओयू साइन किए थे.

इसके पीछे विचार यह था कि भारत के शीर्ष संस्थानों से स्नातक करने वाले युवाओं को फैकल्टी मेंबर के तौर पर नियुक्त करके संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया जाए. इसके लिए 72 ग्रामीण कालेजों और यूनिवर्सिटी में आईआईटी और एनआईटी के 1,500 ग्रेजुएट बतौर फैकल्टी नियुक्त किए गए.

टीईक्यूआईपी-3 के लिए शुरुआती विज्ञापन प्रोजेक्ट आधारित भर्ती के संबंध में ही था लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने इसमें शामिल राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से फैकल्टी सदस्यों को लंबे समय तक सेवारत रखने और उनकी प्रतिभा का पूरा इस्तेमाल करने के लिए एक ‘सस्टेनेबिलिटी प्लान’ तैयार करने को कहा था. हालांकि, इनकी नौकरी के स्थायित्व के लिए कोई कार्रवाई होती नहीं दिखी.

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टीईक्यूआईपी भर्तियों का भविष्य क्या होगा, इस पर शिक्षा मंत्रालय को भेजे गए एक विस्तृत ईमेल पर यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई जवाब नहीं आया था.

केंद्र सरकार के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता क्योंकि भर्ती एक खास प्रोजेक्ट के तहत सीमित अवधि के लिए की गई थी. यदि राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारें इन्हें अपने यहां कालेजों में होने वाली रिक्तियों के तहत समाहित नहीं करती, इन ग्रेजुएट के पास दूसरे विकल्प तलाशने के अलावा कोई चारा नहीं होगा.

टीईक्यूआईपी के केंद्रीय परियोजना सलाहकार पी.एम. खोडके ने दिप्रिट को बताया, ‘भर्ती किए गए फैकल्टी सदस्य इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि उनकी नियुक्ति प्रोजेक्ट तक ही सीमित है.’

उन्होंने कहा, ‘ये नियुक्तियां राज्य के सरकारी कालेजों में निर्धारित पद क्षमता से इतर की गई थी और स्थायी भर्ती नहीं थी. यहां तक कि यदि राज्य इन्हें समाहित करना चाहेंगे तो उसके लिए भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम-कायदे हैं.’

दिप्रिंट ने प्रोजेक्ट में शामिल राज्यों में से दो के अधिकारियों से इस पर टिप्पणी के लिए संपर्क साधा. हालांकि, राजस्थान राज्य तकनीकी शिक्षा सचिव सुचि शर्मा और उत्तर प्रदेश के शिक्षा राज्य मंत्री संदीप सिंह की तरफ से कोई जवाब नहीं आया.

यूपी के उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि केवल तभी लोगों की नियुक्ति की जा सकती है जब रिक्तियां हों. उन्होंने कहा, ‘अगर हमारे पास एक वैकेंसी होगी तो हम लोगों को काम पर रख सकते हैं. लेकिन नियमों के खिलाफ नहीं जा सकते.’


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‘जबर्दस्त मानसिक दबाव झेल रहे’

टीईक्यूआईपी-3 के तहत भर्ती किए गए युवाओं ने इस माह के शुरू में मीडिया को एक संयुक्त बयान जारी करके अपनी चिंताओं को लेकर आवाज उठाई थी.

बयान में कहा गया था, ‘हमारा प्रोजेक्ट 31 मार्च 2021 को पूरा हो रहा है (पहले सितंबर 2020 में पूरा होना था लेकिन इसमें 6 महीने का विस्तार कर दिया गया था, इसलिए अब समयसीमा 31 मार्च 2021 है) और किसी भी पक्ष ने हमें बहाल रखने या कहीं और समाहित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है…नतीजतन हम 31 मार्च के बाद बेरोजगारी की कगार पर खड़े होने की स्थिति में आ गए हैं.’

इसके मुताबिक, ‘हमने ग्रामीण भारत में शिक्षा का स्तर सुधारा है, हम सभी आईआईटी और एनआईटी से हैं और हमने गेट भी क्लीयर किया था जो कि टीईक्यूआईपी फैकल्टी के तौर पर चयन के लिए एक शर्त थी…’

इंजीनियरिंग में गेट या ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट वो लोग क्लीयर करते हैं जो इंजीनियरिंग में अपने पोस्ट-ग्रेजुएशन को आगे बढ़ाने और कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में भर्ती की कोशिश कर रहे होते हैं.

बयान में आगे कहा गया था, ‘हम सबने पिछले साढ़े तीन साल के दौरान बेहद योग्य फैकल्टी सदस्य के नाते ग्रामीण भारत की इंजीनियरिंग शिक्षा के मानक को सुधारा है, लेकिन हमारा अपना करिअर खत्म होने के कगार पर है. इन कालेजों में साढ़े तीन साल लगाने के बाद हम कहां जाएंगे? हम बहुत ज्यादा मानसिक दबाव की स्थिति में हैं क्योंकि हमेशा ही केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से हमारी सेवाओं को बहाल और जारी रखने का वादा किया जाता रहा है. लेकिन अब आईआईटी और एनआईटी की डिग्री होने के बावजूद हम बेरोजगारी की कगार पर हैं.

प्रोजेक्ट की समयसीमा पूरी होने के बाद भी अच्छा प्रदर्शन करने वाले ग्रेजुएट को बहाल रखा जाना एक ऐसा विचार है जिस पर केंद्र सरकार के स्तर पर मंथन चलता रहा है.

पी.एम. खोडके की तरफ से राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश को इन फैकल्टी की ‘बहाली योजना’ तैयार करने को लिखा भी गया था. दिप्रिंट के पास मौजूद अगस्त 2019 के एक ऐसे ही पत्र के मुताबिक उन्होंने लिखा था, ‘एमएचआरडी सचिव (पिछले साल तक शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के रूप में जाना जाता था) ने राज्य सचिवों के साथ विभिन्न बैठकों के दौरान इन बेहद योग्य फैकल्टी सदस्यों की स्थायी तौर पर बहाली की योजना बनाने का सुझाव दिया है. ताकि राष्ट्रीय स्तर पर बेहद कड़ी चयन प्रक्रिया के माध्यम से चुने गए इन फैकल्टी को राज्य में नियमित भर्तियां पूरी होने तक बरकरार रखा जा सके.

उन्होंने आगे लिखा था, ‘इसे देखते हुए आपसे अनुरोध है कि आप अपने राज्यों में इन प्रोजेक्ट-आधारित अस्थायी फैकल्टी की स्थिर बहाली के लिए योजना पेश करें.’

खोडके ने कहा कि प्रोजेक्ट के लिए राज्य सरकारों को फंडिंग इस परस्पर समझ के आधार पर मिलेगी कि प्रोजेक्ट फंड का इस्तेमाल करके भर्ती किए जाने के बाद बेहतर काम करने पर फैकल्टी को प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद भी बहाल रखा जाएगा, इस सबमें बस एक बदलाव यही होगा कि यदि किसी फैकल्टी को बहाल किया जाता है तो उसके लिए भुगतान विशेष रूप से राज्य निधि से किया जाएगा.’

पिछले महीने टीईक्यूआईपी-3 संचालन समिति की बैठक में सिफारिश की गई थी कि मंत्रालय ये सुनिश्चित करे कि फैकल्टी प्रोजेक्ट की समयसीमा से आगे भी काम करते रहेंगे, खासकर कोविड महामारी के मद्देनजर.

बैठक के मिनट्स, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, के मुताबिक अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे ने यह मामला उठाया था.

उन्होंने कहा, ‘प्रोजेक्ट के बाद भी उनकी नौकरी जारी रहने के लिए कोई उपयुक्त समाधान निकाले जाने की जरूरत है. यदि राज्य के संस्थानों ने उन्हें समाहित नहीं किया तो वे बेरोजगार हो जाएंगे और महामारी के कारण निजी संस्थान किसी भी फैकल्टी को रख नहीं रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि स्नातक ‘संस्थानों में समाहित किए जाने के बाबत एआईसीटीई को भी लिख रहे हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘शिक्षा मंत्रालय को राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहिए कि वे तात्कालिक जरूरत के आधार पर अपने सरकारी संस्थानों में बतौर तदर्थ नियुक्ति इन्हें काम करने अवसर दें.’

उसी बैठक में मौजूद रहे उच्च शिक्षण संस्थानों को मान्यता देने वाले संस्थान नेशनल एक्रीडिशन बोर्ड (एनएबी) के अध्यक्ष के.के. अग्रवाल ने भी इस विचार का समर्थन किया.

उन्होंने कहा, ‘एक बार टीईक्यूआईपी फैकल्टी ने संस्थान छोड़ दिए तो संस्थान उस प्रोजेक्ट से मिले फायदों को गंवा देंगे.’ साथ ही जोड़ा कि ऐसी संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए कि क्या एआईसीटीई, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इन फैकल्टी सदस्यों को समाहित करने की कोई व्यवस्था विकसित कर सकते हैं.

बैठक में तय किया गया कि इस मुद्दे पर आगे भी चर्चा की जाएगी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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