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भारत के मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर्स का होगा आईटीकरण, 3D प्रिंटिंग और ड्रोन्स किए जाएंगे शामिल

एआईसीटीई द्वारा नियुक्त की गई समिति, आईआईटी, आईआईआईटी और एनआईटी जैसे केंद्र द्वारा वित्त-पोषित संस्थानों को छोड़कर, सभी दूसरे कॉलेजों के लिए मैकेनिकल इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में बदलाव पर काम कर रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | वीकीमीडिया कॉमन्स

नई दिल्ली: भारत के इंजीनियरिंग कॉलेजों के मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर्स में 21वीं सदी का बदलाव होने जा रहा है, जिसके तहत 3-डी प्रिंटिंग, ड्रोन निर्माण तथा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के और अधिक विषय पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने जा रहे हैं.

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई), जिससे आईआईटीज़, आईआईआईटीज़ और एनआइटीज़ जैसे केंद्र द्वारा वित्त-पोषित संस्थानों को छोड़कर, देश के सभी इंजीनियरिंग कॉलेज संबद्ध हैं, कोर्स को ज्यादा तकनीक-केंद्रित बनाने के लिए एक बड़े बदलाव पर काम कर रही है. दिप्रिंट को पता चला है कि मंजूरी मिल जाने के बाद 2022 के शैक्षणिक सत्र से इन कोर्स को छात्रों को पेश किया जाएगा.

इंजीनियरिंग की दो और शाखाओं- कंप्यूटर साइंस और इलेक्ट्रॉनिक्स व कम्यूनिकेशंस के पाठ्यक्रमों में भी एक नियमित बदलाव किया जा रहा है.

घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि विचार ये है कि तकनीक, अर्थव्यवस्था और समाज में तेजी से हो रहे बदलावों को देखते हुए इंजीनियरिंग छात्रों के लिए विषयों को ज्यादा रोजगार-उन्मुख बनाया जाए.

सूत्रों ने आगे कहा कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स या तो निर्माण उद्योग में बढ़ते ऑटोमेशन के हाथों अपनी नौकरियां गंवा रहे हैं या फिर कंप्यूटर्स अथवा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी अलग ब्रांच में काम करना पसंद कर रहे हैं और इसी कारण से कोर्स को अपडेट करना जरूरी था.

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घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए एआईसीटीई अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि परिषद को फीडबैक मिला था कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम पुराना हो रहा है और उसे अपडेट करने की आवश्यकता है. इसलिए उसमें बदलाव करने के लिए एक कमेटी नियुक्त की गई.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘कमेटी ने अपनी रिपोर्ट लगभग पूरी कर ली है और जैसे ही उसे मंजूरी मिलती है, हम उसे एआईसीटीई-संबद्ध कॉलेजों का हिस्सा बना सकते हैं और अगले शैक्षणिक सत्र से उसे पेश किया जा सकता है’.

सहस्रबुद्धे ने आगे कहा कि ये बदलाव हर चार वर्ष पर होते हैं. पाठ्यक्रम में बदलाव पर काम कर रहीं कमेटियों में आईआईटीज़, एनआईटीज़, तकनीकी विश्वविद्यालयों के शिक्षक और प्रोफेसर तथा उद्योग के प्रतिनिधि शामिल होते हैं.


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‘मैकेनिकल डिग्री का आईटीकरण’

प्रो. बी रवि के अनुसार, जो आईआईटी बॉम्बे के फैकल्टी सदस्य हैं और मैकेनिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम कमेटी के अध्यक्ष हैं, इस कवायद का उद्देश्य कोर्स का ‘आईटीकरण’ करना और उसे ‘सबसे मेधावी छात्रों के लिए ज्यादा आकर्षक बनाना है’.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘बदले हुए पाठ्यक्रम में कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग, सिमुलेशन और मिकेट्रॉनिक्स जैसे विषयों को और मजबूत किया जाएगा. 3-डी प्रिंटिंग और ड्रोन्स जैसे टॉपिक्स शुरू किए जाएंगे, जिनमें डिज़ाइन, मैटीरियल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेयर का मिश्रण होता है.

रवि ने आगे कहा कि कमेटी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के लिए नौकरियों की मौजूदा और विकसित होती संभावनाओं का अध्ययन किया.

प्रोफेसर ने कहा, ‘हम एक लचीला लेकिन संतुलित पाठ्यक्रम तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और प्रैक्टिस (स्टेप) के कोर्स शामिल होंगे. इससे छात्र अपने रुझान के आधार पर अपने करियर की योजना बना सकते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में पारंपरिक जॉब तलाश सकते हैं या लैबोरेट्रीज़ में रिसर्च कर सकते हैं या फिर टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप कंपनियां शुरू कर सकते हैं. युवा पीढ़ी तेजी के साथ ‘सीखो-कमाओ-उड़ाओ-दोहराओ’ के दर्शन को अपना रही है और ‘गिग-वर्क’ कर रही है- घर या छुट्टी की जगहों से काम करना’.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स के ऑटोमेशन के हाथों नौकरियां गंवाने पर बात करते हुए कमेटी से जुड़े एक सूत्र ने समझाया, ‘मसलन, ऑटोमोबाइल उद्योग में ग्रेजुएट्स को उन कंपनियों में नौकरियां मिलेंगी जहां निर्माण की जरूरत है, लेकिन ऐसी बहुत सी कंपनियां अब ऑटोमेशन में जा रही हैं और जो थोड़ा बहुत हाथ का काम बचता है, उसे कोई भी डिप्लोमा धारक या जिसके पास आईटीआई की योग्यता है, वो कर सकता है. उस काम को करने के लिए कंपनियों को इंजीनियर नहीं चाहिए. इसलिए बहुत जरूरी है कि मैकेनिकल इंजीनियरों को नए जमाने के कौशल से लैस किया जाए’.


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कम छात्र चुन रहे मैकेनिकल इंजीनियरिंग का विकल्प

एआईसीटीई को ये फीडबैक भी मिला था कि इन दिनों पहले से कम छात्र मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर्स में आ रहे हैं, इसलिए पाठ्यक्रम को बदलने का एक कारण ये भी है कि इसे इच्छुक इंजीनियरों के लिए अधिक आकर्षक बनाया जाए.

सूत्रों ने बताया कि पाठ्यक्रम बदलाव पर काम करने वाली कमेटी ने ये बात भी दिमाग में रखी कि इसे देश के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेजों के लिए मान्य होना चाहिए, उद्योग के तेजी से बदलते परिदृश्य से निपटना चाहिए, नई नौकरियों के लिए मान्य होना चाहिए और विषयों के चयन के मामले में छात्रों को ज्यादा लचीलापन देना चाहिए.

सूत्रों ने आगे कहा कि ‘मिकेनिकल इंजीनियरिंग मनोवृत्ति’ का मतलब होता है सही ज्ञान, कौशल, मनोवृत्ति और जीवन भर सीखने की क्षमता. इसे खुद के अनुभव, लैबोरेट्रीज़ और टीम प्रोजेक्ट्स के जरिए प्रायोगिक ज्ञान को बढ़ावा देकर हासिल किया जा सकता है.

कमेटी के दूसरे सदस्य हैं आईआईटी दिल्ली से प्रो. पीवीएम राव, आईआईएससी बेंगलौर से प्रो. जीके अनंतसुरेश, सीएमटीआई बेंगलौर से डॉ नागाहनुमैया, वालचंदनगर इंजीनियरिंग कॉलेज सांगली से डॉ बाजीराव गवाली और विप्रो3डी से डॉ यू चंद्रशेखर.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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