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शिक्षा के डिजिटलीकरण की नीति कितनी कारगर? क्या ऑफलाइन शिक्षा का रिप्लेसमेंट बन पाएगा ऑनलाइन एजुकेशन

सरकार शिक्षा के डिजिटलीकरण पर काफी जोर दे रही है लेकिन सवाल है कि क्या ऑनलाइन एजुकेशन, ऑफलाइन शिक्षा को पूरी तरह से रिप्लेस कर सकता है.

सरकार ऑनलाइन शिक्षा पर जोर दे रही है.

नई दिल्लीः मंगलवार, एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आम बजट पेश किया. इसमें शिक्षा को लेकर तमाम घोषणाएं की गईं. लेकिन एक बात बिल्कुल साफ थी कि सरकार पूरी तरह से शिक्षा के डिजिटलीकरण के मूड में है. बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक डिजिटल यूनिवर्सिटी बनाने का ऐलान किया. साथ ही पहली से लेकर 12वीं कक्षा के छात्रों को ‘वन क्लास वन चैनल’ के तहत शिक्षा देने की बात भी कही. इसके लिए चैनलों की संख्या को 12 से बढ़ाकर 200 किया जाएगा.

हालांकि, सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा के मामले में कोविड का भी हवाला दिया, कि कोरोना महामारी के दौरान छात्रों की पढ़ाई का जो भी नुकसान हुआ है उसकी इसके जरिए भरपाई हो जाएगी. और, चूंकि अभी कोरोना महामारी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है इसलिए डिजिटल माध्यम को बढ़ावा देना बेहतर होगा.

लेकिन सवाल यह है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा, ऑफलाइन एजुकेशन को प्रतिस्थापित कर सकती है. इन सबमें जो सबसे पहला सवाल उभर कर आता है और जिस पर एक लंबे समय से चर्चा भी होती रही है वह है डिजिटल डिवाइड की.

डिजिटल डिवाइड एक बड़ी समस्या

भारत की एक बड़ी जनसंख्या ग्रामीण है, जहां पर इंटरनेट इत्यादि के साधनों का ठीक से विकास नहीं हो पाया है. इंटरनेट है भी तो स्पीड नहीं आती है. ऐसे में क्या ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे, शहरी बच्चों की तुलना में पीछे नहीं रह जाएंगे?

इस मामले में दिप्रिंट से बात करते हुए ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर और पीजीडीएम प्रोग्राम के डायरेक्टर वीपी सिंह का कहना है कि, ‘डिजिटल डिवाइड आज के भारत का एक सच जरूर है लेकिन आने वाले समय में यह गैप भर जाएगा. सरकार इस पर काम कर रही है.’ उन्होंने कहा कि, ‘हमें इसको लेकर सकारात्मक रवैया रखना होगा जब भी कोई नई चीज़ शुरू होती है तो परेशानियां होती ही हैं लेकिन धीरे-धीरे व्यवस्था सुचारु रूप से चलने लगती है.’

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क्या ऑफलाइन एजुकेशन का पूरी तरह से रिप्लेसमेंट बन सकती है ऑनलाइन शिक्षा

सवाल यह भी है कि  क्या ऑफलाइन शिक्षा को पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है. दिप्रिंट से बात करते हुए शिक्षाविद् प्रोफेसर एमके श्रीधर ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी ऑफलाइन शिक्षा का स्थान नहीं ले सकती है, बल्कि वह सिर्फ और सिर्फ उसे सप्लीमेंट कर सकती है.

यूजीसी के सदस्य और सीईएसएस के प्रेसिडेंट प्रोफेसर श्रीधर का मानना है कि ऑफलाइन शिक्षा में व्यक्तित्व का विकास जिस तरह से होता है, वह ऑनलाइन शिक्षा के ज़रिए नहीं हो सकता. क्योंकि मैन-टू-मैन कनेक्टिविटी, एक दूसरे से मिलना जुलना और साथ में उठने-बैठने व बातचीत के अलावा आमने-सामने शारीरिक उपस्थिति के साथ छात्रों का जिस तरीके से व्यक्तित्व का विकास होता है वह ऑनलाइन शिक्षा के जरिए नहीं हो सकता.

हालांकि, प्रोफेसर वीपी सिंह का मानना है कि चूंकि हम इस सिस्टम में पूरी तरह से सध नहीं पाए हैं इसलिए हमें ऐसा लगता है कि ऑनलाइन शिक्षा, ऑफलाइन शिक्षा जितना बेहतर नहीं है. लेकिन, जब ऑनलाइन सिस्टम पूरी तरह से स्थापित हो जाएगा तो हमें वही सही और आसान लगेगा.


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दोनों को साथ लेकर चलना हो सकता है बेहतर उपाय

ऑनलाइन और ऑफलाइन की बहस में एक बेहतर उपाय यह हो सकता है कि कुछ चीजें ऑफलाइन रहें तो कुछ चीजें ऑनलाइन. यानी कि एक ऐसे सिस्टम का विकास किया जाए जिसमें ऑफलाइन और ऑनलाइन एजुकेशन को एक खास अनुपात में विकसित किया जाए. प्रोफेसर श्रीधर का मानना है कि अगर 60-40 का अनुपात रखा जाए तो बेहतर होगा. उनका कहना है कि 60 फीसदी ऑफलाइन शिक्षा का और 40 फीसदी ऑनलाइन शिक्षा का अनुपात होना चाहिए. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि कुछ कोर्सेज के लिए 80-20 का अनुपात भी किया जा सकता है.

ऑनलाइन शिक्षा का छात्रों के प्लेसमेंट पर कितना असर

प्रोफेसर वीपी सिंह का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा के समय में कॉलेजों में प्लेसमेंट बढ़े हैं न कि घटे हैं. ऐसे में यह कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा के जरिए क्ववालिटी एजुकेशन नहीं दिया जा रहा, यह कहना गलत होगा. उन्होंने कहा कि कोई भी कंपनी प्लेसमेंट के मामले में क्वालिटी से समझौता नहीं करती, ज़ाहिर है कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा पाने के बावजूद छात्रों ने बेहतर प्रदर्शन किया है.

नई शिक्षा नीति से बजट कितना सुसंगत

दिप्रिंट ने जिन एक्सपर्ट्स से बात की उनका मानना है कि सरकार नई शिक्षा नीति, 2020 के प्रावधानों को लागू कर रही है. बजट में शिक्षा को लेकर जो प्रावधान किए जा रहे हैं वह नई शिक्षा नीति से पूरी तरह से सुसंगत है.

क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा कितना कारगर

सरकार की कोशिश है कि छात्रों को उनकी स्थानीय भाषा में शिक्षा दी जाए. लेकिन एक तो मौजूदा परिस्थितियों में स्थानीय भाषाओं में कंटेट की कम उपलब्धता है और दूसरा क्या ये छात्र आगे चलकर ग्लोबली कंपीट कर पाएंगे.

लेकिन, एक्पर्ट्स का मानना है कि स्थानीय भाषा में शिक्षा दिया जाना एक अच्छा कदम है. प्रोफेसर श्रीधर का कहना है कि स्थानीय भाषा में शिक्षा पाने से छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है. साथ ही उनका कहना है कि जब ज्यादा से ज्यादा छात्र स्थानीय भाषा में पढ़ने लगेंगे तो कंटेट की उपलब्धता भी बढ़ जाएगी. प्रोफेसर वीपी सिंह का भी कहना है कि आज काफी लोग इस दिशा में काम कर रहे हैं और धीरे-धीरे स्थानीय भाषा में कंटेट की. उपलब्धता बढ़ रही है.

जहां तक बात ग्लोबल स्तर पर कॉन्पटीशन या प्लेसमेंट की है तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब स्थानीय भाषा में पढ़े छात्र आगे बढ़ेंगे तो उनके लिए ज्यादा से ज्यादा प्लेसमेंट के रास्ते भी खुलने लगेंगे.

शिक्षा को लेकर बजट में क्या कमी है

दिप्रिंट को प्रोफेसर वीपी सिंह ने बताया कि बजट में ऐसे प्रावधान किए जाने चाहिए ताकि प्राइवेट सेक्टर ज्यादा से ज्यादा डिजिटल शिक्षा को प्रोवाइड करने के लिए आगे आ सके. साथ ही उनका कहना है कंटेट प्रोवाइड करने के लिए भी प्राइवेट सेक्टर की ज्यादा से ज्यादा सहायता लेनी चाहिए. वहीं डॉ. श्रीधर का कहना है कि बजट में शिक्षा के लिए और ज्यादा बजट का प्रावधान करना चाहिए था.


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