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क्या आप अपने बच्चे को ‘मेधावी’ कह सकते हैं? देखिये क्या कहते हैं AICTE के मानदंड

तकनीकी शिक्षा के इस नियामक ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह संस्थानों को 'मेधावी बच्चों' की श्रेणी के तहत दो सीटों का प्रावधान करने की अनुमति देगा. यहां पेश हैं वे मानदंड हैं जो उसने इस बारे में जारी किए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर। ANI

नई दिल्ली: क्या आपके बच्चे के पास अपना खुद का बनाया कोई ऐप या हासिल किया गया पेटेंट है? क्या उसने कोई राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती है? यदि हां, तो अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (आल इंडिया कौंसिल ऑफ़ टेक्नीकल एजुकेशन -एआईसीटीई) के अनुसार, आपका बच्चा ‘मेधावी अथवा प्रतिभाशाली’ के रूप में योग्य होगा.

इस तकनीकी शिक्षा नियामक ने पिछले महीने घोषणा की थी कि वह शिक्षण संस्थानों को ‘मेधावी बच्चे’ की श्रेणी, जिसके लिए उसने इस सप्ताह की शुरुआत में मानदंड जारी किए थे, के तहत दो अतिरिक्त सीटों के लिए प्रावधान करने की अनुमति देगा.

एआईसीटीई द्वारा जारी किये गए दस्तावेज में कहा गया है, ‘इस योजना के तहत छात्रों को प्रवेश देने वाले संस्थान प्रवेश दिए गए इन छात्रों को पूरी तरह से ट्यूशन फी (शिक्षण षुल्क) से छूट देने के लिए प्रतिबद्ध होंगें. हालांकि, ये संस्थान मौजूदा मानदंडों के अनुसार इन छात्रों से परीक्षा, छात्रावास, पुस्तकालय, परिवहन, प्रयोगशाला और अन्य गतिविधियों के लिए शुल्क ले सकते हैं.’

परिषद की परिभाषा के अनुसार, ‘एक मेधावी बच्चा’ वह है जो ‘अध्ययन के प्रति उत्सुक है और प्रश्न के दायरे से परे जाकर इसके उत्तर पर विस्तार से चर्चा करता है’, ‘बार-बार दोहराए जाने वाले कार्यों में लापरवाह भरी गलतियां करता है, ‘सीखने की नई गतिविधियों पर उत्सुकता भरी नजर रखता है, गैर-संरचित और गैर-नियमित समस्याओं का आनंद लेता है और अपने मन की बात कहता है.

दस्तावेज़ यह भी कहता है कि ‘तेज़ बच्चे’ और ‘मेधावी बच्चे’ के बीच अंतर होता है. एक ‘तेज़ बच्चा’ वह है जो कक्षा में अधिक ईमानदार है और अपने पाठ्यक्रम से अच्छी तरह वाकिफ है, ‘अच्छी तरह से अभ्यास किए गए कार्यों में ऊंचे अंक लाता है‘, और ‘कक्षा के अनुरूप’ होता है.

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लेकिन एक बच्चे द्वारा ‘मेधावी’ के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, उसके पास निम्न गुण होने चाहिए:

• सरकारी अथवा किसी मान्यता प्राप्त निजी संस्था द्वारा आयोजित कम-से-कम एक राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का पुरस्कार विजेता हो;
· नवीन परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए एक सरकारी एजेंसी से धन प्राप्त किया हो;
• एक ऐसा उम्मीदवार हो जिसके पास पहले से लेखक के रूप में पिर-रिव्यूड (सहकर्मियों द्वारा समीक्षित) पत्रिकाओं में उच्च गुणवत्ता वाले मूल शोध से सम्बंधित लेख के प्रकाशन हों;
· किसी भारतीय अथवा अंतरराष्ट्रीय पेटेंट कार्यालय द्वारा जारी किये गए पेटेंट का प्राथमिक धारक हो,
· गूगल /एप्पल /विंडोज स्टोर पर लिस्टेड (10,000 से अधिक डाउनलोड के साथ) किसी ऐसे ऐप का मालिक हो या इसे लॉन्च किया हो या बाजार में एक प्रौद्योगिकी आधारित अभिनव उत्पाद लॉन्च करने की प्रक्रिया में हो.


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जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता

एआईसीटीई के दस्तावेज में आगे कहा गया है कि इन ‘मेधावी बच्चों’ को पहचानना कोई आसान काम नहीं है और इसलिए स्कूलों और शिक्षकों को इस बारे में संवेदनशील बनाने और ऐसे बच्चों को संजोने/ विकसित करने की आवश्यकता है.

नीतिगत दस्तावेज़ (पॉलिसी डॉक्यूमेंट) में कहा गया है, ‘कई सारे मेधावी छात्रों की पहचान ‘उच्च उपलब्धि प्राप्त करने वालों (हाई अचीवर्स) के रूप में नहीं की जाती है क्योंकि वे शांतचित्त स्वभाव के होते हैं. उन्हें शायद स्कूल में उनके खराब स्कोर के कारण किसी गिनती में नहीं रखा जाता है, लेकिन वे संभावित रूप से ऊंची उपलब्धि हासिल करने वाले हो सकते हैं. एआईसीटीई-अनुमोदित संस्थानों में प्रतिभाशाली और मेधावी छात्रों को सशक्त बनाने के लिए दो अतिरिक्त सीटों के सृजन का उद्देश्य ऐसे छात्रों की जन्मजात क्षमता को पूरी तरह से आगे बढ़ाना है, जिन्होंने या तो कम अंक प्राप्त किए हैं या फिर प्रवेश परीक्षा में उपस्थित ही नहीं हुए थे.‘

शिक्षा विशेषज्ञों द्वारा भी इसी तरह के विचार को साझा किया गया, जिन्होंने एआईसीटीई की इस पहल की सराहना करते हुए दिप्रिंट को बताया कि भारत में ‘मेधावी बच्चों’ के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

उन्होंने यह भी कहा कि स्कूलों को एक ऐसा कार्यक्रम विकसित करना चाहिए जो विशेष रूप से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करे.

पुणे के कावेरी गिफ्टेड एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में नर्चरिंग डोमेन की प्रभारी डॉ समीना मनासावाला ने कहा, ‘भारत में, हमारे पास कोई औपचारिक नीति नहीं है कि कौन एक मेधावी बच्चे के रूप में माने जाने के योग्य है और हम उन्हें पहचानने के लिए क्या कर सकते हैं. नयी शिक्षा नीति (न्यू एजुकेशन पालिसी -एनईपी) ने इसके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं और अब यह एआईसीटीई दस्तावेज उस दिशा में एक अगला कदम है. यह लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम करेगा.’

एआईसीटीई ने अपने दस्तावेज़ में, इस ‘सामान्य धारणा या मिथक’ का भी खंडन किया कि अकादमिक रूप से प्रतिभाशाली बच्चे सफल होंगे ही, चाहे उन्हें किसी भी शैक्षिक वातावरण में रखा जाए.

यह दस्तावेज कहता है, ‘भारतीय समाज में यह धारणा प्रचलित है कि रचनात्मकता, उच्च क्षमता और प्रतिभा किसी भी बच्चे के लिए अतिरिक्त निधि के सामान है. वे पहले से ही ‘भाग्यशाली’ होते हैं और यह उम्मीद करता है कि ऐसे छात्र न्यूनतम अतिरिक्त समर्थन के साथ ही अपने दम पर उत्कृष्टता हासिल कर लेंगे.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में स्वदेशी प्रतिभाएं ज्यादातर अज्ञात रह जाती हैं और दूसरी ओर, गहन जिज्ञासा, उर्वर कल्पनाशक्ति और प्रश्नात्मक दृष्टिकोण प्रदर्शित करने वाले छात्रों को एक ऐसे समाज में रचनात्मक अभिव्यक्ति का मार्ग (आउटलेट) नहीं मिल पाता है, जहां अभी भी परीक्षा में हासिल किये गए अंक ही उनकी क्षमता का एक प्रमुख संकेतक हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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