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आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक क्या है और यह ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों और बाकी को कैसे प्रभावित करेगा

ऑर्डिनेंस फैक्टरियों को निगमित करने के मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ इसके कर्मचारी संघों की तरफ से 26 जुलाई से प्रस्तावित हड़ताल संभवत: यह विधेयक पेश किए जाने की एक बड़ी वजह रही है.

भारत में एक आयुध फैक्ट्री, प्रतीकात्मक तस्वीर | Broadsword

नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने एक नया विधेयक पेश किया है जिसमें ‘आवश्यक रक्षा सेवाओं’ में लगे प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने या ऐसी इकाइयों में तालाबंदी रोकने का प्रावधान किया गया है.

आवश्यक रक्षा सेवाओं का मतलब ऐसे प्रतिष्ठानों से हैं जो ऐसी वस्तुओं या उपकरणों का निर्माण करते हैं जिनका इस्तेमाल रक्षा क्षेत्र से जुड़ा हो.

सरकार के अनुसार, ये ऐसी सेवाएं हैं ‘जिनमें काम बंद होने से रक्षा उपकरणों या सामानों के उत्पादन, या रक्षा से जुड़े किसी भी उद्देश्य के लिए आवश्यक वस्तुओं या उपकरणों के उत्पादन में लगे किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान या इकाई का संचालन या रखरखाव, या रक्षा से जुड़े उत्पादों की मरम्मत या रखरखाव के काम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.’

इस सप्ताह के शुरू में पेश किया गया यह विधेयक सरकार को ऐसे श्रमिकों के आंदोलन या हड़ताल करने पर रोक लगाने का अधिकार देगा. यह सरकार को इन सेवाओं में लगी इकाइयों में तालाबंदी को प्रतिबंधित करने का भी अधिकार देगा.

यह विधेयक विधि एवं न्याय मंत्रालय की तरफ से आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 लाने के एक महीने से भी कम समय में आया है. यह विधेयक अध्यादेश की जगह लेगा और पारित होने पर 30 जून से लागू माना जाएगा.

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अध्यादेश और विधेयक के मूल में संभवत: 26 जुलाई से प्रस्तावित आयुध कारखानों के कर्मचारी संघों की हड़ताल रही है, जो पिछले महीने उन्हें निगमित करने के सरकार के फैसले के खिलाफ आहूत की गई है.


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क्या कहता है मसौदा कानून?

आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021 कहता है कि यह आवश्यक रक्षा सेवाओं के रखरखाव के लिए लाया गया है ‘ताकि राष्ट्र की और बड़े पैमाने पर जनता के जीवन और संपत्ति और इससे जुड़े मामलों और प्रासंगिक घटनाओं में सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.’

यह सरकार को ऐसे प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों की हड़तालों, आंदोलनों को प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है जिसे सरकार की तरफ से आवश्यक रक्षा सेवाओं के रूप में चिह्नित किया गया हो और ऐसे प्रतिष्ठानों के तालाबंदी रोकने का भी अधिकार देगा.

यदि ऐसी सेवाओं से जुड़े किसी प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई व्यक्ति प्रस्तावित कानून के तहत गैरकानूनी मानी जाने वाली हड़ताल शुरू करता है या उसमें हिस्सा लेता है तो उन्हें अनुशासनात्मक कार्रवाई (बर्खास्तगी सहित) का सामना करना पड़ सकता है और एक वर्ष तक कारावास या जुर्माने, जो अधिकतम 10,000 रुपये है या फिर दोनों, की सजा भी हो सकती है.

इस तरह की हड़तालों का आह्वान करने वाले या वित्तीय सहायता देने वालों के लिए ज्यादा दंड का प्रावधान है.

विधेयक इन सेवाओं में लगे औद्योगिक प्रतिष्ठानों के नियोक्ताओं की तरफ से श्रमिकों की छंटनी पर भी रोक लगाता है.

अभी क्यों?

उद्देश्यों और कारणों के संबंध में यह विधेयक स्पष्ट तौर पर भारतीय आयुध कारखानों का हवाला देता है, जो रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाला सबसे पुराना और सबसे बड़ा औद्योगिक सेटअप है, जिसके कर्मचारी संघों ने पिछले महीने इसे निगमित करने के सरकार के फैसले के खिलाफ 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान कर रखा है.

माना जा रहा है कि इस प्रस्तावित अनिश्चितकालीन हड़ताल के कारण ही शायद इतने कम समय में अध्यादेश और विधेयक लाया गया, हालांकि रक्षा सूत्रों ने जोर देकर कहा कि इसकी कवायद लंबे समय से चल रही थी.

हड़ताल का आह्वान सरकार की तरफ से देशभर में 41 आयुध कारखानों को कंपनी अधिनियम 2013 के तहत पंजीकृत सौ फीसदी सरकारी स्वामित्व वाली सात कॉरपोरेट संस्थाओं में निगमित करने का निर्णय लेने के बाद किया गया था. इस फैसले का उद्देश्य आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार करना और कामकाज को सुव्यवस्थित करना है.

इसके बाद कर्मचारियों की सेवा शर्तों का ध्यान रखे जाने के सरकार के आश्वासन के बावजूद संघों ने 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल का ऐलान कर दिया.

विधेयक पेश करने के दौरान सरकार ने कहा कि बहुत जरूरी है कि देश की रक्षा तैयारियों के लिए सशस्त्र बलों को बिना किसी बाधा के आयुध वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी जाए और आयुध कारखाने बिना किसी व्यवधान के काम करते रहें, खासकर देश के उत्तरी मोर्चें पर मौजूदा स्थिति को देखते हुए.

उसका कहना है, ‘…यह आवश्यकता महसूस की गई कि सरकार के पास ऐसे प्रयासों के कारण उत्पन्न आपातकालीन स्थिति से निपटने की शक्ति होनी चाहिए और सार्वजनिक हित या भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में या किसी भी राज्य या मर्यादा या नैतिकता की रक्षा के लिए रक्षा से जुड़े सभी प्रतिष्ठानों में आवश्यक रक्षा सेवाओं का रखरखाव सुनिश्चित करना चाहिए.’

ओएफबी और अन्य पर प्रभाव

यह विधेयक रक्षा क्षेत्र के महत्वपूर्ण संगठनों में शुमार भारतीय आयुध कारखानों में कार्यरत लगभग 80,000 श्रमिकों और ऐसे अन्य प्रतिष्ठानों को प्रभावित करेगा जिन्हें सरकार आवश्यक रक्षा सेवाओं से जुड़े होने के तौर पर टैग कर सकती है.

हालांकि, विधेयक स्पष्ट रूप से यह नहीं बताता है कि महत्वपूर्ण रक्षा सेवाओं से जुड़ी निजी कंपनियों को इसके दायरे में लाया जाएगा या नहीं.

पहले भी आयुध कारखानों के कामकाज को बदलने के प्रयासों को कर्मचारी संघों की तरफ से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है. पिछले साल भी तीन महासंघों ने प्रस्तावित कदम के विरोध में हड़ताल का आह्वान किया था, लेकिन बाद में श्रम और रोजगार मंत्रालय के साथ ‘सुलह बैठक’ के बाद इसे वापस ले लिया था.

विरोध इसके बावजूद हो रहा है जबकि 2000 और 2015 के बीच तीन समितियों ने निगमीकरण की सिफारिश की थी और इसे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों के भीतर लागू किए जाने वाले 167 परिवर्तनकारी विचारों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था.

एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने बताया कि यह अधिनियम लागू होने के बाद जहां आवश्यक रक्षा सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने की अनुमति नहीं मिल सकती है और उन्हें दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है, वहीं मसौदा कानून कर्मचारियों की छंटनी करने के नियोक्ताओं के अधिकार को भी खत्म करता है.

नाम न छापने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘यह एक अच्छा विधेयक है जिसे सार्वजनिक रक्षा उपक्रमों और अन्य की तरफ से पिछली हड़तालों को देखते हुए लाया गया है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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