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लद्दाख में ट्रायल सफल, सेना पहाड़ों पर तैनाती के लिए 40 और K-9 वज्र हॉवित्जर ऑर्डर करने पर विचार कर रही है

रक्षा क्षेत्र की निजी कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने 2017 में सेना की तरफ से दिए गए 100 वज्र के ऑर्डर को फरवरी में सफलतापूर्वक पूरा कर दिया था. ये गन सिस्टम मूलत: रेगिस्तान के लिए खरीदे गए थे.

सेना प्रमुख जनरल एम.एम.नरवाने K9 वज्र हॉवित्जर के साथ। फाइल फोटो | स्रोत: एल एंड टी

नई दिल्ली: भारतीय रक्षा प्रतिष्ठान का पूरा फोकस इस समय चीन पर होने के बीच सेना पहाड़ी इलाकों में तैनाती के लिए 40 और ट्रैक्ड सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्जर के-9 वज्र ऑर्डर करने पर विचार कर रही है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि इस साल के शुरू में लद्दाख में तैनात किए गए तीन के-9 वज्र का ट्रायल सफल रहा है.

अभी 155एमएम/52 कैलिबर हॉवित्जर की कम से कम दो और रेजिमेंट का ऑर्डर देने की योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है जिन्हें पहाड़ों पर तैनात किया जाएगा.

सेना ने शुरू में 2017 में 4,500 करोड़ रुपये के अनुबंध के तहत गन सिस्टम की पांच रेजिमेंट (100 गन) का आदेश दिया था.

शुरुआती 100 तोपों का ऑर्डर, जो मूलत: रेगिस्तान के लिए था, निजी क्षेत्र की प्रमुख रक्षा कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) को दिया गया था. कंपनी ने इस साल फरवरी में सफलतापूर्वक ऑर्डर पूरा कर दिया.

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एलएंडटी ने दक्षिण कोरियाई फर्म हनवा कॉरपोरेशन के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के करार पर हस्ताक्षर किए हैं, जो कि के-9 थंडर नाम से चर्चित गन सिस्टम की मूल निर्माता है.

एक सूत्र ने कहा, ‘वज्र एक शानदार और सशक्त गन सिस्टम है. इसकी रेंज काफी ज्यादा है और अपनी बनावट के कारण इसे पहाड़ों पर चढ़ाना-उतारना भी आसान है. इसकी सीमा और गति क्षमता के साथ इस सिस्टम की रणनीतिक तैनाती की जा सकती है.’

सूत्रों ने बताया कि अगले 40 वज्र के लिए लागत मानदंड तय किए जाने बाकी है लेकिन इसकी प्रक्रिया जारी है.

चीन के साथ तनाव ने और वज्र का रास्ता खोला

हालांकि, अधिक ऑर्डर दिए जाने की कोई प्रारंभिक योजना नहीं थी, लेकिन चीन के साथ तनाव के मद्देनजर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है.

सेना एम-777 लाइटवेट हॉवित्जर के लिए पहले ही ऑर्डर दे चुकी है, जिसकी इस समय डिलीवरी हो रही है.

इन हल्की हॉवित्जर तोपों को हेलीकॉप्टरों से अग्रिम ठिकानों पर पहुंचाया जा सकता है.

इन तोपों में विशेष हथियारों के साथ लगभग 40 किलोमीटर की अधिकतम रेंज होती है. इसकी तुलना में वज्र की मारक क्षमता 50 किलोमीटर से अधिक है, जो इस्तेमाल किए जाने वाले गोला-बारूद पर निर्भर करती है.

एक दूसरे सूत्र ने कहा, ‘दोनों गन सिस्टम की एक-दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती. दोनों की अपनी अनूठी क्षमताएं हैं. एम-777 उन जगहों तक पहुंच सकती है जहां वज्र से काम नहीं चल सकता. इसी तरह वज्र की अपनी अनूठी क्षमताएं हैं. इन दोनों सिस्टम को शामिल करना पहले से ही सेवा में मौजूद और भविष्य में शामिल होने वाले गन सिस्टम के साथ भारत की मारक क्षमता को और बढ़ा देगा.’

एलएंडटी के अनुसार, के-9 वज्र कार्यक्रम स्तर पर 80 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी वर्क पैकेज और 50 प्रतिशत से अधिक स्वदेशीकरण (मूल्य आधार पर) के साथ डिलीवर किए जाते हैं.

एलएंडटी का कहना है कि उसने कार्यक्रम की शुरुआत में ही स्वदेशीकरण शुरू कर दिया था, और यूजर इवैल्युएशन ट्रायल के लिए तैनात की गई ट्रायल गन में ही कोरियाई ‘के-9 थंडर’ की 14 महत्वपूर्ण प्रणालियों को बदलकर उन्हें स्वदेशी रूप से विकसित और उत्पादित किया था.

संयोग से, एलएंडटी और डीआरडीओ एक ‘वज्र टैंक’ पर काम कर रहे हैं, जो एक हल्का टैंक होगा.

इसमें 155 मिमी की भारी तोप को 105 मिमी या 120 मिमी की बंदूक में तब्दील करने पर काम किया जा रहा है.

इसमें चेसिस या ढांचा तो वैसा ही रहेगा लेकिन गन हल्की हो जाने का मतलब होगा कि वजन काफी घट जाएगा क्योंकि इससे ऊपर का डिजाइन भी बदल जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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