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रूस-यूक्रेन युद्ध एक सबक, तोपखाने की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए हाई-टेक्नोलॉजी की जरूरत: भारतीय सेना

नॉन कॉन्ट्रैक्ट वॉर में लंबी दूरी के वैक्टर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. सेना का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से पता चलता है कि भारत को हथियारों और आयुध दोनों के लिए स्वदेशी हथियार उद्योग की जरूरत है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: ANI

नई दिल्ली: लंबे समय से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध से सबक लेते हुए भारतीय सेना खुद को लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के लिए तैयार करते हुए अपनी तोपखाने की मारक क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम टेक्नोलॉजी लाने पर काम कर रही है. सेना का मानना है कि छोटे युद्ध और लंबे समय तक चलने वाले युद्ध की अवधारणा बिल्कुल अलग है.

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों का कहना है कि यूक्रेन के खिलाफ चल रहे युद्ध में उत्तम टेक्नोलॉजी, जिसमें लोइटर मुनिशन, ग्रुप ड्रोन या काउंटर ड्रोन सिस्टम का प्रभावी उपयोग शामिल किया गया है.

सेना ने स्टारलिंक कम्यूनिकेशन सिस्टम की भी पहचान की है, जो एक अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी स्पेसएक्स द्वारा संचालित एक उपग्रह इंटरनेट ग्रुप है, जिसने विशेष टेक्नोलॉजी के साथ यूक्रेनियन को सटीक हमले करने और लक्ष्य साधने में मदद की है.

सूत्रों ने कहा कि युद्ध में अभी भी सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावी कारण फायर करने वाले हथियार हैं क्योंकि इस युद्ध में लगभग 80 प्रतिशत मौतें तोपखाने की गोलीबारी के कारण हुई हैं.

मारक क्षमता को “युद्ध जीतने वाला” कारक बताते हुए सूत्रों ने कहा कि युद्धाभ्यास “स्थायी परिणाम, और जमीन पर पकड़ बनाए रखने की क्षमता” की गारंटी नहीं दे सकते हैं. जमीनी ताकतें सीमित हैं जब तक कि गोलाबारी द्वारा समर्थित न हो.

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इसके अलावा, उन्होंने कहा कि नॉन कॉन्ट्रैक्ट वॉर में रॉकेट और मिसाइल जैसे लंबी दूरी के वैक्टर की भूमिका काफी बढ़ जाती है.

रूस-यूक्रेन युद्ध के 18 महीने बीत जाने के बाद भी खत्म होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. सूत्रों ने जोर देकर कहा कि इससे यह बात घर कर गई है कि भारतीय सेना को भी ऐसे ऑपरेशनों के लिए तैयार रहने की जरूरत है.

एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, “जबकि रूस के पास स्वदेशी युद्ध उद्योग है, यूक्रेन अपनी सभी आपूर्तियों के लिए काफी हद तक पश्चिम पर निर्भर रहा है. इसलिए, हमें अपने हथियारों और आयुध दोनों के लिए एक स्वदेशी हथियार उद्योग को बढ़ाने की जरूरत है. यह हमारी अपनी क्षमताओं पर आधारित होना चाहिए. भारत को भी हथियारों और आयुध उत्पादन में वृद्धि के लिए तैयार रहने की जरूरत है.”


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भारतीय तोपखाने का विकास जरूरी

सूत्रों ने कहा कि भारतीय तोपखाने को अपनी सूची में रॉकेट और बंदूकों का विवेकपूर्ण मिश्रण रखना आवश्यक है. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अब सवाल रॉकेट और बंदूकों का नहीं है.

युद्धक्षेत्र में पारदर्शिता पर जोर देते हुए सूत्र ने कहा कि यह एक प्रमुख भूमिका निभाता है क्योंकि यह लक्ष्य की पहचान करने और तुरंत हमले में मदद करता है.

सूत्र ने कहा कि चूंकि नए जमाने के हथियारों के इस्तेमाल से केवल एक से दो मिनट में लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलती है, और उन पर तेजी से हमला करने में मदद मिलती है, लेकिन लक्ष्य अगर बदल गया हो तो अधिक प्रभावी हथियारों की जरूरत बढ़ रही है.

ऊपर उद्धृत सूत्र ने कहा, “हमें दुश्मन की जवाबी बमबारी से अपनी सेना की सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपाय करने की आवश्यकता है. यह स्व-चालित बंदूकें, माउंटेड गन सिस्टम और टोड गन जिन्हें सहायक कहा जाता है जैसे अधिक महत्वपूर्ण अधिग्रहणों की ओर इशारा करता है. बिजली इकाइयां जिनमें वे गोली चला सकते हैं और भाग सकते हैं.”

सेना 300 शारंग तोपों को भी शामिल करने की प्रक्रिया में है. ये मौजूदा 130 मिमी बंदूकों का उन्नत संस्करण है. इन्हें 155 मिमी बंदूकों में बदल दिया गया है जो इसे लंबी मारक क्षमता प्रदान करता है.

सेना ने बोफोर्स डिजाइन के आधार पर 114 धनुष तोपों का भी ऑर्डर दिया है, जिनमें से एक रेजिमेंट को पहले ही इन तोपों से लैस किया जा चुका है.

एक सूत्र ने कहा, “2026 तक उन्हें हमें हथियारों की शेष पांच रेजिमेंट (बैच) देनी चाहिए.” उन्होंने कहा कि सेना ने अधिक पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्चर सिस्टम के लिए भी अनुबंध किया है, जिसकी डिलीवरी अगले साल शुरू होगी.

सेना ने एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) गन सिस्टम के लिए पिछले महीने एक अनुरोध प्रस्ताव जारी किया था. भारत ने अमेरिका से 145 अल्ट्रा लाइटवेट हॉवित्जर तोपें भी खरीदी हैं जो उत्तरी सीमाओं पर कार्यरत हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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