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जम्मू ड्रोन हमला- भारत में इस तरह की पहली घटना नई आतंकी चुनौती का संकेत, NIA कर सकती है जांच

दो में से एक आईईडी हेलीकॉप्टर हैंगर के निकट एक प्रशासनिक भवन पर गिरी और इसमें धमाका होने से छत में छेद हो गया. दूसरी आईईडी खुले क्षेत्र में गिरी.

27 जून की सुबह जम्मू वायु सेना स्टेशन पर कम तीव्रता के हुए दो आईईडी धमाकों के बाद विशेष सुरक्षा दस्ते के जवान पहुंचे | फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: भारत के लिए नई आतंकी चुनौतियां खड़े करते हुए रविवार तड़के जम्मू में वायु सेना स्टेशन पर हमले के लिए एक ड्रोन का इस्तेमाल किया गया. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक इसमें इस्तेमाल दो इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) में धमाका ‘हेलीकॉप्टर हैंगर के करीब’ हुआ.

हालांकि विस्फोटों से किसी उपकरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन भारतीय वायुसेना के दो कर्मियों को ‘बहुत मामूली’ से चोटें आई हैं. संयोग से जम्मू स्थित वायु सेना स्टेशन भी भारत के सैन्य ड्रोन ठिकानों में से एक है.

बहरहाल, इन दो में से एक आईईडी हेलीकॉप्टर हैंगर के निकट एक प्रशासनिक भवन पर गिरी और इसमें धमाका होने से छत में छेद हो गया. दूसरी आईईडी खुले क्षेत्र में गिरी.

भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने एक ट्विटर पोस्ट में कहा कि दो ‘कम तीव्रता वाले धमाकों’ की सूचना मिली थी. इसमें बताया गया, ‘एक ने इमारत की छत को मामूली नुकसान पहुंचाया जबकि दूसरा विस्फोट खुले क्षेत्र में हुआ.’

इसमें कहा गया कि ‘किसी भी उपकरण को कोई नुकसान नहीं हुआ है. सिविल एजेंसियां जांच कर रही हैं.’ वायुसेना ने हमले में ड्रोन के इस्तेमाल का उल्लेख नहीं किया, लेकिन बताया कि छत क्षतिग्रस्त हो गई थी.

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यह अभी स्पष्ट नहीं है कि एक ड्रोन का इस्तेमाल किया गया या फिर दो का. ड्रोन कहां से आए इसके बारे में भी कुछ स्पष्ट नहीं है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि एक या दो ड्रोन जम्मू क्षेत्र के भीतर और वायु सेना स्टेशन के आसपास से ही संचालित किए जाने की संभावना है.

नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर जारी संघर्ष विराम के बीच हुए इस आतंकी हमले की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) संभाल सकती है.

एनआईए की एक टीम रविवार को कई सुरक्षा एजेंसियों, पुलिस, बम निरोधक दस्ते और फॉरेंसिक के सदस्यों के साथ वायुसेना स्टेशन का दौरा करने भी पहुंची.

वेस्टर्न एयर कमांड के प्रमुख एयर मार्शल विवेक राम चौधरी, सीनियर एयर स्टाफ ऑफिसर (एसएएसओ) एयर मार्शल विक्रम सिंह भी हालात का जायजा लेने के लिए जम्मू पहुंचे.

तीन दिवसीय दौरे पर लद्दाख पहुंचे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वायुसेना के वाइस चीफ एयर मार्शल एच.एस. अरोड़ा से बात की और रविवार सुबह करीब 1.30 बजे हुए हमले के बाबत जानकारी ली.

हमले के बाद विभिन्न सैन्य स्टेशनों को हाई अलर्ट पर कर दिया गया है.

शुरुआती इनपुट के मुताबिक, भारतीय वायुसेना के गश्ती दल ने आसमान से कुछ गिरते देखा था. और जब तक सैन्य कर्मी वहां पहुंचते इससे पहले ही उसमें धमाका हो गया. सूत्रों ने कहा कि कुछ मिनट बाद दूसरे आईईडी को गिराया गया, जिससे दो कर्मियों को ‘बेहद मामूली’ चोटें आई हैं.

यह तत्काल स्पष्ट नहीं हो पाया कि क्या विस्फोटक ड्रोन से गिरे या फिर उन्हें ड्रोन के जरिये यहां लाया गया और पूर्व निर्धारित जीपीएस सेटिंग्स के साथ निश्चित जगह पर उतारकर धमाका कराया गया.

सूत्रों ने कहा कि मामले की जांच होने के बाद ही इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी मिल पाएगी.

जम्मू-कश्मीर के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह ने संवाददाताओं से कहा कि इस घटना को आतंकवादी हमला माना जा रहा है.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के जुड़े सूत्र हमले को सुरक्षा व्यवस्था के उल्लंघन के तौर पर देख रहे हैं क्योंकि ड्रोन बिना पकड़ में आए उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में उड़ान भरने और हमले को अंजाम देने में सफल रहा है.


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एमआई-17 हेलीकॉप्टर हो सकते थे निशाना

सूत्रों ने बताया कि दोनों विस्फोट कम तीव्रता वाले थे. हालांकि, विस्फोटकों का विमान हैंगर के पास गिरना यह संदेह उत्पन्न करता है कि आईएएफ की संपत्ति निशाने पर थी.

एक सूत्र ने कहा, ‘अगर आईईडी हेलीकॉप्टर हैंगर में गिरे होते तो इससे नुकसान हो सकता था. शुक्र है कि यह उससे थोड़ा दूर गिरे.’

यद्यपि जम्मू टेक्निकल एयरपोर्ट पर कोई फाइटर नहीं है लेकिन उसकी संपत्तियों में एमआई-17 हेलीकॉप्टर और परिवहन विमान शामिल हैं.

हालांकि, हैंगर इस तरह विकसित किए गए हैं कि वे बाहरी दीवार से काफी दूर होते हैं और यदि कोई पत्थर या हथगोला फेंका भी जाए तो उनकी संपत्ति को कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता. यही नहीं, किसी जमीनी हमले की स्थिति में भी हैंगर तक पहुंचने के लिए कई चक्र के सुरक्षा घेरे को तोड़ना होगा.


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पहला ड्रोन हमला

देश में ड्रोन-आधारित हमले की यह पहली घटना है और यह एक ऐसी स्थिति है जिसकी आशंका रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान लंबे समय से जताते आ रहे हैं.

एक सूत्र ने कहा कि आज की घटना मामूली जरूर थी लेकिन ये हमले शुरू करने की आधुनिक क्षमताओं को दिखाती है.

सूत्रों ने बताया कि परस्पर आंतरिक विचार-विमर्श में 2016 के आसपास ही वाहन-आधारित आईईडी हमलों के बारे में आशंकाएं जताई जाने लगी थीं और 2019 में पुलवामा हमले के समय यही तरीका सामने आया था.

2018 में जब पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर कई छोटे ड्रोन तैनात करने शुरू किए थे, सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने हमलों को अंजाम देने के लिए ड्रोन के इस्तेमाल की आशंकाएं जताना शुरू कर दिया था.

पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आतंकी नेटवर्क को हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति के लिए तो पाकिस्तान ड्रोन का इस्तेमाल करता रहा है लेकिन यह पहली बार है जब इस प्रणाली का इस्तेमाल किसी हमले के लिए किया गया है.

सेना अब भी बड़े स्तर पर ड्रोन रोधी तकनीक हासिल करने की प्रक्रिया में है. नौसेना ने हाल ही में इजरायली ड्रोन रोधी प्रणाली ‘स्मैश 2000 प्लस’ की खरीद की है.

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने भी एक ड्रोन रोधी प्रणाली विकसित की है जिसे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के दौरान लाल किले पर तैनात किया गया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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