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भारतीय सेना की क्लोज क्वार्टर बैटल कार्बाइन खरीदने की कवायद तेज, क्या हो सकते हैं विकल्प

सेना लंबे समय से इस्तेमाल हो रहीं और पुरानी पड़ चुकीं 9एमएम ब्रिटिश स्टर्लिंग 1ए1 सबमशीन गन बदलने के लिए 2008 से ही सीबीक्यू कार्बाइन हासिल करने की कोशिश कर रही है. रक्षा मंत्रालय ने इस सप्ताह नए हथियार को शामिल करने को अपनी मंजूरी दी है.

भारतीय सेना, सेना की प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

नई दिल्ली: सेना की क्लोज क्वार्टर बैटल (सीबीक्यू) कार्बाइन की तलाश— 2008 में शुरू एक प्रोजेक्ट— को इस सप्ताह गति मिली जब रक्षा मंत्रालय ने लगभग ऐसे चार लाख हथियारों को सेना में शामिल करने की योजना को अपनी मंजूरी दे दी.

रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को जारी एक बयान में कहा कि यह प्रोजेक्ट भारत में छोटे हथियार निर्माण उद्योग को एक बड़ा प्रोत्साहन देगा और छोटे हथियारों के मामले में ‘आत्मनिर्भरता’ को बढ़ाएगा.

इसमें कहा गया है कि ‘सीमाओं पर पारंपरिक और हाइब्रिड जंग और आतंकवाद के मुकाबले के लिहाज से मौजूदा जटिल स्थितियों’ का मुकाबला करने के लिए इस प्रोजेक्ट की आवश्यकता को स्वीकृति (एओएन) दी गई है.

एओएन किसी भी रक्षा खरीद प्रक्रिया में पहला कदम होता है.

यद्यपि रक्षा मंत्री ने इस पर चुप्पी साध रखी है कि ये खरीद ‘भारतीय खरीदें’ श्रेणी के तहत होगी या स्वदेशी स्तर पर डिजाइन, विकसित और निर्मित (आईडीडीएम) रूट से होगी. लेकिन रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान के जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इनकी खरीद भारतीय उपकरण खरीदें श्रेणी के तहत होगी.

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भारतीय खरीदें श्रेणी के माध्यम से खरीद का मतलब यह होगा कि कई विदेशी कंपनियां जिनके भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम हैं या होंगे, वे इसमें भाग ले सकेंगी.

आईडीडीएम के तहत प्रतिस्पर्द्धा केवल तीन कंपनियों के बीच होती है, जिनमें केवल एक निजी फर्म होती है.

सूत्रों ने यह भी बताया कि संभवत: 5.56×56 नाटो कैलिबर की आवश्यकता होगी, न कि 5.56×56 इंसास की. इसमें 5.56×56 नाटो कैलिबर विश्व स्तर पर उपयोग किया जाता है जबकि 5.56×56 इंसास का इस्तेमाल भारत अपनी राइफलों की इंसास सीरिज में इस्तेमाल करता है और यह थोड़ा अलग कैलिबर है, जिसे एके 203 से बदला जाएगा.

यह भी पता चला है कि कार्बाइन का वजन अधिकतम 3.2 किलोग्राम होने की संभावना है.


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कौन-सी कंपनियां हिस्सा लेंगी

रक्षा सूत्रों ने कहा कि प्रोजेक्ट में कौन-सी कंपनियां हिस्सा ले पाएंगी, यह तभी स्पष्ट हो पाएगा जब रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) या निविदा जारी की जाएगी.

सूत्रों ने कहा कि बारीक ब्योरे पर काम किया जाना बाकी है और यह अभी अज्ञात है कि क्या भाग लेने वाली कंपनियों को ट्रायल के दौरान भारत निर्मित किसी हथियार को प्रदर्शित करना होगा.

रक्षा उद्योग से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘यह अनुचित होगा कि भारत में निवेश न करने वाली किसी विदेशी कंपनी को अपने पास मौजूद हथियारों को प्रदर्शित करने में सक्षम बनाया जाए. ऐसी कई विदेशी कंपनियां हैं जो पहले ही भारत में निवेश कर चुकी हैं और या तो स्थानीय स्तर पर निर्माण कर रही हैं या इसकी प्रक्रिया में हैं.

रक्षा सूत्रों ने कहा कि प्रतिस्पर्द्धा में मुख्य तौर पर जिन कंपनियों को मौका मिल सकता है, उनमें बेंगलुरू स्थित निजी रक्षा फर्म एसएसएस डिफेंस, अडानी समूह की पीएलआर, आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी), कल्याणी समूह— जिसने फ्रांसीसी फर्म थेल्स के साथ टाई-अप किया है लेकिन रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ भी बातचीत जारी है— जिंदल समूह, जिसका टॉरस नामक एक ब्राजीलियाई फर्म के साथ करार है और भारतीय और अमेरिकी कंपनियों के बीच एक संयुक्त उद्यम नेको डेजर्ट टेक आदि शामिल हैं.

हालांकि, अगर सौदे में गैर-स्थानीय रूप से निर्मित कार्बाइन को शामिल किया जाता है तो अधिक कंपनियां इस शर्त के साथ भाग ले सकेंगी कि यदि उन्हें अनुबंध हासिल हुआ तो तो भारत में एक विनिर्माण इकाई स्थापित करेंगी.

सूत्रों ने कहा कि एसएसएस डिफेंस अपने स्वदेश निर्मित एम-72 कार्बाइन की पेशकश करेगा जबकि पीएलआर की तरफ से गैलिल ऐस पेश किए जाने की संभावना है.

पीएलआर ने इजरायली वेपन इंडस्ट्रीज (आईडब्ल्यूआई) के साथ करार किया है और पहले से ही भारत में विभिन्न छोटे हथियारों का निर्माण कर रही है.

सूत्रों ने कहा कि कल्याणी समूह प्रोजेक्ट के लिए डीआरडीओ के साथ गठजोड़ कर सकता है, जबकि ओएफबी अपने उत्पाद की पेशकश करेगा.

यदि प्रतिस्पर्धा खुलती है तो संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी स्वामित्व वाली फर्म काराकल, जो फास्ट-ट्रैक प्रोक्योरमेंट (एफटीपी) के लिए सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी के तौर पर उभरी थी, भी अपनी किस्मत आजमा सकती है. सूत्रों के मुताबिक, फर्म शुरू में रिलायंस डिफेंस के साथ टाई-अप के लिए बातचीत कर रही थी लेकिन डील नहीं हो पाई.


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सेना की कार्बाइन गाथा

सेना अभी भी इस्तेमाल में आ रही और अब काफी पुरानी पड़ चुकीं अपनी 9एमएम ब्रिटिश स्टर्लिंग 1ए1 सबमशीन गनों को बदलने के लिए 2008 से सीक्यूबी कार्बाइन हासिल करने की कोशिश कर रही है.

सरकारी स्वामित्व वाले डीआरडीओ और ओएफबी दोनों तब सेना की जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रहे हैं और 2011 में 44,618 सीक्यूबी कार्बाइन की खरीद के लिए एक वैश्विक निविदा भी जारी की गई थी.

इसमें चार कंपनियों— इजरायल की आईडब्ल्यूआई, इतालवी कंपनी बेरेटा और अमेरिकी फर्म कोल्ट और सिग सॉर— ने हिस्सा लिया लेकिन केवल आईडब्ल्यूआई ही इसमें योग्य पाई गई और अन्य दावेदार कंपनियां नाइट विजन माउंटिंग सिस्टम से संबंधित गुणात्मक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं पाई गईं.

लेकिन रक्षा मंत्रालय ने आईडब्ल्यूआई के प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया क्योंकि इसमें सिंगल वेंडर वाली स्थिति बन गई थी जिसे सरकारी खरीद नियमावली के मुताबिक अनुमति नहीं दी जा सकती.

2017 में 2 लाख कार्बाइन की खरीद के लिए वैश्विक स्तर पर एक रिक्वेस्ट फॉर इंफॉर्मेशन (आरएफआई)— बाजार में उपलब्ध चीजों के बारे में जानकारी जुटाने की एक प्रक्रिया जारी की गई, जबकि एफटीपी के तहत 93,895 कार्बाइन की खरीद के लिए एक अलग प्रक्रिया शुरू की गई.

अनुमान है कि सशस्त्र बलों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और राज्य पुलिस बलों को ध्यान में रखते हुए कुल मांग पांच लाख से अधिक होगी.

काराकल सबसे कम बोली लगाने वाले के तौर पर उभरी थी लेकिन इसके सीएआर 816 की अनुबंध लागत और अन्य बोलीदाताओं की शिकायतों सहित कई मुद्दों के कारण इस पर बात नहीं बनी.

2020 में दिप्रिंट ने बताया था कि सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह रद्द करने का फैसला किया है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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