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ठंड के मौसम में कपड़ो के आयात को लेकर सेना की निर्भरता दूर करने में यह डिफेंस स्टार्ट-अप कर रहा मदद

जहां एआरओओ उत्पाद पर शोध करता है, वहीँ इनके निर्माण का काम एक दूसरी कंपनी द्वारा किया जाता है जिसके साथ उसका गठजोड़ है. एआरओओ गियर के पहले सेट की आपूर्ति 2021 की दूसरी छमाही में की गयी थी .

तस्वीर- विशेष व्यवस्था द्वारा

नई दिल्ली: कड़ाके की ठंड के मौसम में पहने जाने वाले कपड़ों की प्रणाली (एक्सट्रीम कोल्ड-वेदर क्लोथिंग सिस्टम्स – ईसीडब्ल्यूसीएस) के लिए भारत की आयात पर निर्भरता अब इतिहास की बात है. यह वह प्रणाली है जो सैनिकों को सियाचिन जैसे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अत्यधिक ठंड का सामना करने के लिए तैयार करती है.

रक्षा परिधान (डिफेंस क्लोथिंग) में विशेषज्ञता रखने वाले भारत के पहले रक्षा स्टार्ट-अप एआरओओ की बदौलत सैनिकों को अब स्वदेशी कपड़ों की प्रणालियों से लैस किया जा रहा है.

ईसीडब्ल्यूसीएस  एक तीन-परतों वाली मॉड्यूलर कपड़ों की प्रणाली है, जिन्हें एक साथ पहना जाता है और जो शरीर को शून्य से -50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में गर्म रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

सियाचिन ग्लेशियर जैसे दुनिया के सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र कहे जाने वाले अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों इसे पहनते हैं.

एआरओओ के दो संस्थापकों में से एक, मुनीश हिंदुजा ने दिप्रिंट को बताया, ‘अपने स्वदेशी समाधानों के माध्यम से भारतीय सैनिकों की सेवा करना हमारे लिए सम्मान की बात है.’

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लगभग 41,000 ईसीडब्ल्यूसीएस का पहला सेट 2021 की दूसरी छमाही में सेना को सौपा गया था.

सेना के इस उत्पाद के बारे में आश्वस्त होने के बाद उसने पहले की तरह स्विटजरलैंड, वियतनाम – या यहां तक कि श्रीलंका से भी – इसे आयात करने के बजाय स्वदेशी ईसीडब्ल्यूसीएस के लिए फिर से ऑर्डर किया है.

जहां एआरओओ उत्पाद पर शोध करता है, इनके निर्माण का काम एक दूसरी कंपनी द्वारा किया जाता है जिसके साथ उसका गठजोड़ (टाई-अप) है. एआरओओ ने अपने बेंगलुरु स्थित मैन्युफैक्चरिंग पार्टनर (विनिर्माण सहयोगी) के माध्यम से पिछले सप्ताह ईसीडब्ल्यूसीएस  के नवीनतम सेट की डिलीवरी शुरू की – यह 2017 में फील्ड ट्रायल पास करने के बाद से इन कपड़ों का तीसरा सेट है.

हिंदुजा ने आगे कहा, ‘हम गर्व के साथ यह टिप्पणी कर सकते हैं कि एआरओओ का ईसीडब्ल्यूसीएस  भारतीय सेना को अब तक प्रदान किए गए आयातित कपड़ों के सिस्टम से बेहतर प्रदर्शन करता है. यह कम लागत पर भी आता है, और इस प्रकार भारत सरकार को पैसों की बचत कराता है. इसके अलावा, भारतीय सेना अब इस जीवन रक्षक परिधान के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं है.’

उन्होंने कहा कि एआरओओ अत्यधिक ठण्ड में पहने वाले जाने वाले कपडे (एक्सट्रीम कोल्ड क्लोथिंग) की पतलून – जो शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में सुरक्षा प्रदान करता है –  के लिए भी भारतीय सेना के साथ एडवांस्ड फील्ड टेस्टिंग में शामिल है.

विनिर्माण के लिए गठजोड़बौद्धिक संपदा अधिकारों से कमाई

इस बारे में बताते हुए कि यह कंपनी कैसे काम करती है, हिंदुजा ने कहा कि एआरओओ उत्पाद का निर्माता है और इसे अपने स्वयं के अनुसंधान और विकास के माध्यम से विकसित करता है. इसके बाद यह एक मूल उपकरण निर्माता (ओरिजिनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर –ओइएम) के साथ गठजोड़ करता है, जो सेना के निविदा (टेंडर) के लिए बोली लगाता है.

हिंदुजा ने कहा कि एआरओओ  को उसके उत्पाद पर हासिल अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों को साझा करने के लिए शुल्क के माध्यम से पैसा मिलता है.

हिंदुजा ने बताया, ‘एआरओओ  द्वारा डिजाइन की गई निर्माण प्रक्रिया एक दोष मुक्त उत्पाद बनाने पर केंद्रित है. हमारे ओईएम की इकाई में लगीं मैन्युफैक्चरिंग लाइनें हमारे गुणवत्ता मानकों और हमारे ओईएम के इन-हाउस परीक्षण केंद्र में कच्चे माल पर किए गए कठोर परीक्षण के साथ संयुक्त रूप से हमें वास्तविक समय में उत्पाद के प्रदर्शन, सीएलओ वैल्यू (गर्मी के स्तर) और परिधान की जलरोधकता पर नजर रखने की सुविधा प्रदान करती हैं.’

उनका कहना था, ‘हमारी उत्पादन आपूर्ति प्रणाली प्रमुख प्रदर्शन मापदंडों के मामले में विदेशी विनिर्देश (स्पेसिफिकेशन्स) से 20 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक बेहतर प्रदर्शन करती है.’

हिंदुजा के अनुसार, एआरओओ पहले से ही सेना के लिए इस तरह के कपड़ों की अगली पीढ़ी पर काम कर रहा है और इस बार उन्होंने इस परियोजना के लिए बोली लगाने के लिए एक और कंपनी के साथ करार किया है.

हिंदुजा ने बताया कि कई विदेशी कंपनियों ने भी विभिन्न प्रकार के कपड़ों के लिए पारस्परिक सहयोग हेतु उनसे संपर्क किया है.

साल 2019 के अंत में रक्षा मामलों पर संसदीय स्थायी समिति के सामने पेश होते हुए, सेना के एक अधिकारी ने स्वीकार किया था कि थर्मल इन्सुलेशन (तापीय ऊष्मा रोधन) और सैनिकों के लिए आवश्यक अन्य वस्तुओं के साथ तीन-परत वाले विशेष कपड़ों की आवश्यकता का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा आयात किया जाना जारी है.

उन्होंने कहा था कि इस तरह की किट को घरेलू स्तर पर हासिल करने के प्रयास ‘सेना के स्वीकार्य मानकों’ के अनुरूप नहीं थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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