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गलवान से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक, कैसे चीन की कुटिल नीति लगातार भारत के लिए चुनौती बनी हुई है

चीन की कैबिनेट स्टेट काउंसिल द्वारा चीनी और तिब्बती भाषा में जारी किया गया, इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश में स्थित पांच पहाड़ी चोटियों ,दो नदियों और 2 रिहायशी क्षेत्रों की भी भौगोलिक वस्तु स्थिति को भी बताया गया.

चीन में शी जिनपिंग के साथ नरेंद्र मोदी|पीटीआई

भारत और चीन के बीच लगातार गहराते जा रहे सीमा विवाद के बीच दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की दिशा में कोई भी सकारात्मक स्थिति बनती दिखाई नहीं दे रही है. इस बीच चीन में लगातार जारी अपनी आक्रामक विदेश नीति और अतिक्रमण कारी सोच का परिचय देते हुए अरुणाचल प्रदेश के संबंध में एक नए विवाद को जन्म देने का प्रयास किया है. याद हो कि गलवान सैन्य विवाद (2020) के बाद हुई लगभग 18 राउंड की बॉर्डर वार्ता में दोनों देश किसी ठोस सहमति पर पहुंचने में असफल रहे हैं. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक 2023 से पहले हुई दोनों देशों के रक्षा मंत्री स्तर की वार्ता में भी राजनाथ सिंह ने लगातार बने हुए ‘बॉर्डर विवाद’ को आपसी संबंधों में बड़ी चुनौती माना.

लेकिन चीनी रक्षा मंत्री का ज़ोर इस विवाद को दूरदर्शी परिपेक्ष्या में देखने पर था इसके अलावा एलएसी से सटे हुए देपसांग वैली और चारडिग नाला क्षेत्र में अभी भी भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर चीन का विरोध है, जो कि गलवान से पहले भारत परंपरागत रूप में करता रहा है.

चीन लगातार भारत के साथ नए विवादों को हवा दे रहा है

लगभग एक लाख से अधिक सैन्य बलों की दोनों तरफ से बॉर्डर पर तैनाती है. जाहिर तौर पर दोनों देशों के बीच और बॉर्डर पर स्थितियां बहुत ही असामान्य और चुनौतीपूर्ण है. इन सब के बीच चीन लगातार भारत के साथ नए विवादों को हवा दे रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही उत्तराखंड में चीन बॉर्डर के नजदीक बाराहोती क्षेत्र में अतिक्रमण का प्रयास हुआ था, साथ ही प्रदेश के कालापानी क्षेत्र के नजदीक सांगपो नदी पर चीन ने बड़े डैम निर्माण के माध्यम से भारत की ओर जाने वाले जल प्रवाह को बाधित करने का प्रयास शुरू किया है. भारत और चीन के बीच किसी भी प्रकार के जल समझौते के आभाव में चीन इस प्रकार की चुनौतियां खड़ी करता रहता है. इसका प्रभाव साउथ एशिया के निचले नदी तटीय (Lower Riparian States) देशों पर भी पड़ता है.

जिसके प्रति चीन का रवैया अक्सर आक्रामक होता है. इसी कड़ी में एक नए विवाद को जन्म देते हुए चीन ने भारत के अरुणाचल प्रदेश प्रांत के अंतर्गत 11 जगहों को नया नाम दिया. इन्हे चीन की कैबिनेट स्टेट काउंसिल द्वारा चीनी और तिब्बती भाषा में जारी किया गया, इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश में स्थित पांच पहाड़ी चोटियों ,दो नदियों और 2 रिहायशी क्षेत्रों की भी भौगोलिक वस्तु स्थिति को भी बताया गया. ज्ञात हो की इसी प्रकार से चीन ने सबसे पहले 2017 में भारत के अरुणाचल क्षेत्र को दक्षिण तिब्बत के नाम से प्रयोग करना शुरू किया था. चीन लगातार अरुणाचल के सम्बन्ध में भारत के प्रति आक्रामक रुख अपनाता रहा है. भारतीय नेताओं की अरुणाचल यात्रा पर भी वो अपनी प्रतिक्रिया देता रहा है.


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पहला: यह पहली बार नहीं है जो चीन ने ऐसा नामकरण किया है. अगर न्यूज़ रिपोर्ट को देखें तो इससे पहले अरुणाचल के संबंध में 2017 में 6 जगहों को और 2021 में 15 जगहों का उसने नया नामकरण किया था. यहां तक कि हाल ही में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रूस यात्रा 2023 के दौरान चीन ने रूस के प्रमुख शहर व्लादिवोस्तोक और साइबेरिया के एक शहर का भी नया नामकरण कर दिया. जाहिर है यूकैन संकट से घिरे रूस और पुतिन के नेतृत्व ने इस पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जो कहीं ना कहीं चीन की बढ़ती आक्रामक विदेश नीति की तस्वीर दिखाता है. इसके पूर्व चीन ने कजाकिस्तान के एक शहर के संबंध में भी ऐसा नामकरण किया था. लेकिन तब अस्ताना में चीन के दूतावास को इसके संबंध में कजाक सरकार को स्पष्टीकरण देना पड़ा था. चीन की इस प्रवृत्ति के प्रति कड़ा रुख आवश्यक है.

दूसरा: दूसरा विषय चीन की विदेश नीति किस प्रवृत्ति के एक पद्धति के रूप में विकसित होने से लेकर है. चीन के इतिहास में मिडिल किंगडम की अवधारणा के आधार पर चीन इस तरह के प्रयासों को ऐतिहासिक आधार देने का प्रयास करता रहा है. हाल के वर्षों में चीनी नेतृत्व और कम्युनिस्ट पार्टी ने वैश्विक स्तर पर वैधानिक , मनोविज्ञान और मीडिया युद्ध के रूप में चीन को तैयार कहने की बात की है. ऐसा लगता है चीन के ये सारे प्रयास एक “धारणा युद्ध या पर्सेप्शन वार” में अपने को आगे करने की दृष्टि से किए गए हैं. विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने और अपनी बढ़ती सैन्य शक्ति के आधार पर पर चीन इन विषयों पर आने वाले वर्षों में और आक्रामक हो सकता है.

तीसरा: तीसरा पहलू अरुणाचल के संबंध में है यहां तिब्बत के नजदीक चीन लगातार अपना इंफ्रास्ट्रक्चर और मिलिट्री तैयारी मजबूत कर रहा है. हालिया जारी पंचवर्षीय योजना प्लान में चीन ने अरुणाचल के नजदीक तिब्बत क्षेत्र में 30 बिलीयन डॉलर का निवेश घोषित किया है. हाल में हुए संशोधन के द्वारा हिमाचल से सटे तिब्बत के सोना काउंटी क्षेत्र को नगर का दर्जा देते हुए सीधे सीसीपी के केंद्रीय नियंत्रण में किया गया.

चीन की कुटिल नीति लगातार भारत के लिए चुनौती बनी हुई है

निसंदेह पिछले वर्षों में भारत ने अरुणाचल क्षेत्र में रोड , रेलवे , वायुसेना और सैन्य तैयारी के मामले में बड़ी प्रगति की है. लेकिन चीन की कुटिल नीति लगातार चुनौती बनी हुई है. हाल ही में संपन्न SCO डिफेन्स मिनिस्टर मीट (2023) में भी भारत ने बॉर्डर विवाद पर अपना कड़ा रुख जाहिर किया , वहीं चीनी रक्षा मंत्री ने इसे एक “सामान्य स्थिति” के रूप समझने पर ज़ोर दिया. इसके उलट चीनी सरकार के नज़दीकी थींक-टैंक चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल (CICIR) के निदेशक हू-शिशेंग ने लिखा, “चीन के विचार में, गलवान घाटी की घटना 1993, 1996 और पहले के बॉर्डर समझौतों के भारत के दीर्घकालिक उल्लंघन का अपरिहार्य परिणाम है”.जाहिर है, चीन लगातार द्विपक्षीय संबंधों में आरोप लगाने का काम करता रहा है, और ‘ऐतिहासिक तथ्यों’ के गलत सन्दर्भों का हवाला देता रहता है. जाहिर है भारत की चिंता के प्रति चीन लगातार संवेदनशील बना हुआ है और आपसी संबंधों में सुधार की दिशा में कोई सकारात्मक प्रयास नहीं दिख रहा है. आवश्यकता है कि हमें चीन के प्रति अपना कड़ा रुख, निगरानी और सैनिक तैयारी में लगातार सजग रहना होगा.

*लेखक चीन अध्ययन में जेएनयू (JNU) से पीएचडी और देशबंधु कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर हैं*

(संपादन- आशा शाह)


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