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‘महिलानॉमिक्सः उम्मीद, उन्नति और शाह रुख खान’: भारतीय महिलाओं के आर्थिक पिछड़ेपन की वजह बताती है किताब

पिछले 15 सालों से तमाम महिलाओं पर किए गए रिसर्च के जरिए वह दिखाती हैं कि कैसे उन महिलाओं के लिए मुश्किल क्षणों में शाह रुख खान उनकी फैंटेसी होने के साथ साथ उनकी ताकत भी बनते हैं.

फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

परीक्षा के रिजल्ट आते हैं तो अक्सर टॉपर लिस्ट में लड़कियों की संख्या ज्यादा होती है. सरकार भी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देती है. फिर भी जब हम आंकड़ों पर नज़र डालते हैं तो देश की महिलाएं आर्थिक रूप से कहीं बहुत पीछे नज़र आती हैं.

इसका बहुत बड़ा कारण हमारा सामाजिक ताना-बाना है जिसकी वजह से शायद महिलाओं के लिए कार्य के अवसर बहुत नहीं मिलते और मिलते भी हैं तो कई बार पारिवारिक कारणों से उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ती है.

इसी के बारे में हार्पर कॉलिन्स से छपी किताब, ‘महिलानॉमिक्सः उम्मीद, उन्नति और शाह रुख खान’ में जिक्र किया गया है, जिसे लिखा है श्रयना भट्टाचार्य ने. यह किताब अंग्रेजी में ‘डेस्पेरेटली सीकिंग शाह रुख खान’ के नाम से भी उपलब्ध है, जिसका हिंदी में अनुवाद शुचिता मीतल ने किया है.

इस किताब के ज़रिए श्रयना भट्टाचार्य ने दिखाने की कोशिश की है कि हमारे देश में महिलाओं को आर्थिक रूप से सफल होने के लिए किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और कैसे वे प्रोफेशनल लाइफ में बेहतर करने के दबाव के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी निभाने के बीच पिसती रहती हैं.

पिछले 15 सालों से तमाम महिलाओं पर किए गए रिसर्च के जरिए वह दिखाती हैं कि कैसे उन महिलाओं के लिए मुश्किल क्षणों में शाह रुख खान उनकी फैंटेसी होने के साथ साथ उनकी ताकत भी बनते हैं. शाह रुख खान के द्वारा निभाए गए अलग-अलग किरदारों को वे कैसे जीवन में खुश होने के लिए याद करती हैं.

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श्रयना खुद इस किताब के बारे में लिखती हैं कि, यह किताब उन महिलाओं को लिखा एख लव लेटर था जो पारंपरिक आदर्श भारतीय महिला के खाके और खुद को नकार देने वाली पटकथा से उठकर बाहर चली आई थीं. यह किताब शाहरुख खान और समाज-विज्ञान रिसर्च की पावर को लिखा एक लव लैटर था. मुझे आशा है कि इस किताब के जरिये आप समझ सकेंगे कि कैसे हम दुनिया की अर्थव्यवस्था में लैंगिक-असमानता के मामले में पिछड़ गए. इन निराशाजनक
आंकड़ों के पीछे से निकाली गई इन कहानियों के माध्यम से शायद आप इन सबमें परिवार और फिल्मों की भूमिका समझ पाएं. हम सभी इस समस्या का हिस्सा हैं; और हम समाधान भी हो सकते हैं.”

नॉन-फिक्शन लेखन के लिए पेन अमेरिका लिटरेरी अवॉर्ड में नामांकित, और ड्रीमर्स की लेखिका स्निग्धा पूनम का कहना है कि, ‘इन दिलचस्प कहानियों के माध्यम से प्रत्येक वर्थ की भारतीय महिलाओं की प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ साकार हो उठी हैं, और उन्हें बांधे रखने वाली साझा कड़ी है शाहरुख़ खान के प्रति दीवानगी. समकालीन भारत को समझने के लिए इसे जरूर पढ़ा जाना चाहिए.’

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