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अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय मुसलमानों को बदनाम करने का अभियान चलाया गया: नूंह हिंसा पर उर्दू प्रेस

पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.

चित्रण: मनीषा यादव | दिप्रिंट

नई दिल्ली: इस सप्ताह उर्दू प्रेस के पहले पन्ने और संपादकीय में सांप्रदायिक घटनाएं हावी रहीं. अखबारों में हरियाणा हिंसा के साथ-साथ महाराष्ट्र में चलती ट्रेन में रेलवे पुलिस बल के एक अधिकारी और तीन मुस्लिम यात्रियों की गोली मारकर हत्या की निंदा की गई.

कुछ संपादकीय में सांप्रदायिक घटनाओं की जिम्मेदारी सीधे तौर पर मुख्यधारा की मीडिया और राजनीतिक प्रतिष्ठान पर डाल दिया गया. उर्दू अखबार सियासत ने समाचार मीडिया के एक वर्ग को “पाखंडी, लापरवाह और उत्तेजक” बताया. रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा ने आरोप लगाया कि कुछ राजनेता पिछले “10 वर्षों से देश में जहर घोल रहे हैं”.

नूंह हिंसा के खिलाफ हिंदुत्व संगठन विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और इसकी युवा शाखा बजरंग दल द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन को तीन प्रमुख उर्दू अखबारों- इंकलाब, सियासत और सहारा में व्यापक कवरेज मिला.

कवर किए गए अन्य विषयों में संसद का चल रहा मानसून सत्र और मणिपुर में जातीय हिंसा के खिलाफ विपक्ष का विरोध प्रदर्शन और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ नए विपक्षी INDIA, जो कि भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन का संक्षिप्त रूप है, शामिल हैं.

दिप्रिंट इस सप्ताह उर्दू प्रेस में पहले पन्ने की सुर्खियों और संपादकीय का एक सारांश लेकर आया है.

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हरियाणा हिंसा और महाराष्ट्र ट्रेन गोलीबारी

नूंह में विहिप और उसकी सहयोगी मातृ शक्ति दुर्गा वाहिनी द्वारा आयोजित एक धार्मिक जुलूस सोमवार को हिंसक हो गया, जिससे पथराव और आगजनी हुई. अंततः हिंसा गुरुग्राम तक फैल गई, जहां एक मस्जिद को जला दिया गया.

भड़की हिंसा में दो होम गार्ड और गुरुग्राम में जली मस्जिद के एक इमाम सहित कुल छह लोग मारे गए. इस बीच, महाराष्ट्र में, रेलवे पुलिस बल के एक कांस्टेबल चेतन सिंह ने सोमवार तड़के जयपुर-मुंबई सेंट्रल सुपरफास्ट एक्सप्रेस में अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी और तीन मुस्लिम यात्रियों को कथित तौर पर गोली मार दी.

ये दोनों घटनाएं उर्दू प्रकाशनों में प्रमुखता से छपीं.

इंकलाब, सहारा और सियासत, सभी ने अपने पहले पन्ने पर हरियाणा हिंसा को जगह दी. इसमें यह संकेत दिया गया कि यह चुनाव से ठीक पहले देखी गई सांप्रदायिक घटनाओं के एक बड़े पैटर्न का हिस्सा था.

कई राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. और लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में होने वाले हैं.

2 अगस्त को एक संपादकीय में, सियासत ने लिखा कि महाराष्ट्र में, आरपीएफ कांस्टेबल चेतन सिंह ने संयोगवश लगभग उसी समय चलती ट्रेन में गोली चला दी. संपादकीय में कहा गया है कि घटना को “सामान्य” रूप में चित्रित किया गया है, और कहा गया है कि संदिग्ध मानसिक परेशानी से पीड़ित है. संपादकीय में आरोप लगाया गया कि उसे दंडित करने के बजाय संदिग्ध को बचाने और जांच को प्रभावित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.

नूंह हिंसा के बारे में संपादकीय में लिखा गया कि अपराधियों को सजा दिलाने के बजाय अब मुसलमानों के खिलाफ बदनामी का अभियान चलाया जा रहा है. लेख में इसके लिए भारत के मुख्यधारा समाचार मीडिया को दोषी ठहराया गया और कहा गया कि इस प्रवृत्ति के लिए राजनीतिक संकेतों को जिम्मेदार ठहराते हुए जांच शुरू होने से पहले ही प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है


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उसी दिन अपने संपादकीय में सहारा ने गोलीबारी को राजनेताओं के नफरत भरे भाषणों का नतीजा बताया और कहा कि माहौल खराब करने वालों में संसदीय और संवैधानिक शासक भी शामिल हैं.

संपादकीय में सुझाव दिया गया है कि कुछ लोग लोगों को उनके कपड़ों से पहचानते हैं, जबकि कुछ खुलेआम मुसलमानों को “मई और जून की गर्मी में भी शिमला की ठंड का एहसास कराने” की धमकी देते हैं. यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा हापुड़ में दिए गए एक भाषण पर निशाना साधा गया था जिसे 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी ने दिया था.

संपादकीय में आगे कहा गया है कि देश को बचाने के लिए नफरत के बढ़ते माहौल के खिलाफ बोलना और जहर को खत्म करना जरूरी है.

3 अगस्त को अपने संपादकीय में इंकलाब ने कहा कि महाराष्ट्र में गोलीबारी की घटना, हरियाणा में हिंसा और यहां तक ​​कि अन्य सांप्रदायिक घटनाओं को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए. इसमें कहा गया है कि ऐसी सभी घटनाएं नफरत के माहौल का परिणाम हैं, जहां लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जाता है और जहां दोषियों को बचाने, उन्हें पुरस्कृत करने और उन्हें घृणा अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है. साथ ही इसमें आरोप लगाया गया है कि उनकी सजा कम करने का हर संभव प्रयास भी किया जाता है.

संसद और मणिपुर हिंसा

मणिपुर में जातीय संघर्ष को लेकर बीजेपी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार और विपक्ष के बीच संसद में चल रहे गतिरोध पर उर्दू प्रेस ने जगह दी है.

मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने के विरोध में निकाले गए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद 3 मई को मणिपुर के आदिवासी कुकी और गैर-आदिवासी मैतेई समुदायों के बीच जातीय झड़पें शुरू हो गईं. मणिपुर तब से उबल रहा है और मरने वालों की संख्या 150 से अधिक हो गई है.

1 अगस्त को अपने संपादकीय में, सहारा ने आश्चर्य जताया कि हिंसा अभी भी लगभग तीन महीने तक बेरोकटोक क्यों जारी रही. संपादकीय में कहा गया है कि यह आश्चर्यजनक है कि हिंसा को इतने लंबे समय तक जारी रहने दिया गया और आश्चर्य है कि मणिपुर सरकार इसे रोक क्यों नहीं सकी. हालांकि, इसने इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि मणिपुर और मणिपुर के लोगों को करुणा और सहानुभूति की जरूरत है.

हालांकि, अखबारों ने मणिपुर पर विपक्ष के विरोध को व्यापक रूप से कवर किया. संसद में अन्य मुद्दे, जैसे कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर विवाद, भी रिपोर्ट किए गए. विपक्ष के बायकॉट के बीच गुरुवार को लोकसभा में पारित विधेयक, दिल्ली की सेवाओं पर विवादास्पद अध्यादेश को कानून बनाएगा और भारत के संघवाद को नष्ट करने के लिए इसकी आलोचना की गई है.

1 अगस्त को अपने संपादकीय में, सियासत के संपादकीय ने विपक्ष के I.N.D.I.A गठबंधन पर टिप्पणी करते हुए दावा किया कि इससे बीजेपी और एनडीए की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

जुलाई में एनडीए की बैठक का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वशक्तिमान होने की छवि खोखली साबित हुई है. यही वजह है कि बीजेपी को उन पार्टियों को भी बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा जो बीजेपी गठबंधन को छोड़कर चले गए थे.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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