होम समाज-संस्कृति ‘कौम के गफ़लत में आते ही आज़ादी खतरे में आ जाती है’

‘कौम के गफ़लत में आते ही आज़ादी खतरे में आ जाती है’

सबसे बड़े रंज की बात यह हुई कि आजादी आई, सियासी आजादी आई लेकिन जो आजादी का फायदा कौम को मिलना चाहिए था, कुछ मिला जरुर, इसमें शक नहीं, पूरे तौर से नहीं मिला और आप लोगों को काफी परेशानियां रहीं.

जवाहरलाल नेहरु. फोटो : दिप्रिंट

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी यह गुलिस्तां हमारा

मशहूर शायर मोहम्मद इक़बाल की लिखी ये पंक्तियां जब भी हम पढ़ते हैं तो शरीर में एक प्रकार की सिहरन पैदा हो जाती है. प्रेम का संबंध सिर्फ व्यक्तिगत नहीं होता. प्रेम का संबंध देश और समाज से भी होता और उस आजादी से भी जिसके लिए भारतवर्ष के कई सपूतों ने अपनी जान तक दे दी.

लंबे संघर्ष और अनेक बलिदानों के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया. आजादी मिल जाने के बाद भी देश के सामने कई चुनौतिायां थी. जिस मकसद से भारत आजादी की मांग कर रहा था उसे अब जन-जन तक पहुंचाना था.

पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे. इस नाते उनकी जिम्मेदारी थी कि वो एक ऐसे देश की नींव रखें जहां लोग आजादी के असल मायने को महसूस कर सकें. इस बाबत पंडित नेहरू लगातार प्रयत्न करते रहें और समय-समय पर देश को आजादी का मतलब समझाते रहें और सांप्रदायिक ताकतों से आगाह करते रहें.

पंडित नेहरू पर लिखी किताब नेहरू – मिथक और सत्य के लेखक पीयूष बबेले ने अपनी किताब में आजादी के बारे में नेहरु के विचारों को विस्तार से लिखा है.

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नियति से मिलन

15 अगस्त 1947 को रेडियो पर प्रसारित राष्ट्र के नाम संबोधन में नेहरु आजादी का मतलब समझाते हैं. वो कहते हैं, ‘ हमारा मुल्क आजाद हुआ, सियासी तौर पर एक बोझा जो बाहरी हुकूमत का था, वह हटा. लेकिन आजादी भी अजीब-अजीब जिम्मेदारियां लाती हैं और बोझे लाती हैं. अब उन जिम्मेदारियों का सामना हमें करना है और एक आजाद हैसियत से हमें आगे बढ़ना है और अपने बड़े-बड़े सवालों को हल करना है. सवाल हमारी जनता का उद्धार करने का है, हमें गुरबत को दूर करना है, बीमारी दूर करनी है. आजादी महज एक सियासी चीज नहीं है. आजादी तभी तक ठीक पोशाक पहनती है,जब जनता को फायदा हो.’

15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भाषण की परंपरा पंडित नेहरू ने 1948 से शुरु की. अपने पहले ही भाषण में उन्होंने आजादी को लेकर कई सवाल खड़े किए. नेहरू कहते हैं, ‘जो लोग आजादी चाहते हैं, उनको हमेशा अपनी आजादी की हिफाजत करने के लिए, अपनी आजादी को बचाने के लिए और रखने के लिए, अपने को न्योछावर करने को तैयार रहना चाहिए. जहां कौम गफलत खाती है, वह कमजोर होती है और गिर जाती है.’

लाल किले से दिए भाषणों में नेहरू लगातार आजादी को गरीबी, बेरोजगारी से जोड़ रहे थे और इन सबसे छुटकारा पाने को ही असल आजादी बता रहे थे.

15 अगस्त 1949 को लाल किले की प्राचीर से नेहरू कहते हैं,’ इश देश की आजादी के साथ सारे देश के करोड़ों आदमियों की, जनता की आजादी, उनका दुख और गरीबी से छुटकारा पाना, यह इस देश के लिए बड़ा भारी सवाल था. खैर हमने देश को राजनीतिक रुप से आजाद किया, लेकिन एक बड़ा भारी सवाल और बाकी रह गया कि सारी जनता उस आजादी से पूरी तौर से फायदा उठाएं.’

पंडित नेहरू लगातार आजादी के मायनों को विस्तार दे रहे थे. वो मानते थे कि देश का प्रथम सेवक होने के नाते सभी को बराबर अवसर मिले इसकी जिम्मेदारी उनपर हैं. इसलिए वह आजादी को जिम्मेदारी के साथ जोड़ते हैं.

आजादी का जो फायदा कौम को मिलना चाहिए वो नहीं मिला

15 अगस्त यानी आजादी के 4 साल बाद भी नेहरू लाल किले से आजादी की अलख जगाते हैं और अपनी चिंताओं को व्यक्त करते हैं. नेहरू कहते हैं, ‘बाज लोग समझते हैं कि हम आजाद हो गए तो यह काम पूरा हुआ और फिर आपस में अब हम जो चाहे करें. यह गलत बात है. याद रखिए कि आजादी एक ऐसी चीज है कि जिस वक्त आप गफलत में पड़ेंगे, वह फिसल जाएगी. सबसे बड़े रंज की बात यह हुई कि आजादी आई, सियासी आजादी आई लेकिन जो आजादी का फायदा कौम को मिलना चाहिए था, कुछ मिला जरुर, इसमें शक नहीं, पूरे तौर से नहीं मिला और आप लोगों को काफी परेशानियां रहीं.’

आजादी के पांच बरस पूरे होने के साथ-साथ पंडित नेहरू देश के प्रथम निर्वाचित प्रधानमंत्री भी बनते हैं. 15 अगस्त 1952 को नेहरु आजादी को काम के साथ जोड़ते हुए कहते हैं, ‘आपको आज का दिन मुबारक हो. लेकिन मुबारक तभी हो, जब हम इस बड़े काम को उठाएं और इस आने वाले साल में जोरों से काम करें.’

जातियों की बेड़ी पार करने के बाद ही हम आजाद होंगे

पंडित नेहरू अपनी आजादी के विचार को विस्तार देते हुए उसमें दलितों, हरिजनों, हिंदुस्तान के गांवों को शामिल करते हैं. इस बात को नेहरू 15 अगस्त 1954 को लाल किले से कहते हैं, ‘अगर हिंदुस्तान के किसी गांव के किसी हिंदुस्तानी को चाहे वह किसी भी जाति का है या अगर उसको हम चमार कहें, हरिजन कहें, अगर उसको खाने-पीने में, रहने-चलने में वहां कोई रुकावट है, तो वह गांव कभी आजाद नहीं है, गिरा हुआ है.’

क्या ये आजादी सिर्फ जवाहरलाल के लिए आई 

आजादी के प्रति नेहरू इतने सतर्क और सावधान थे कि उन्हें लगता था कि अगर देश की नई पीढ़ियां इसके असल मायने को नहीं समझेगी तो आजादी खतरे में आ जाएगी.

आजादी के 13 साल बाद यानी 15 अगस्त 1960 को लाल किले से नेहरू कहते हैं, ‘आजादी आई, इंडिपेंडेंस आई, किसके लिए आजादी आई, किसके लिए इंडिपेंडेंस आई? क्या वह चंद लोगों के लिए आई? जवाहरलाल के लिए आई? जवाहरलाल आएंगे और जाएंगे और लोग भी आते-जाते हैं, लेकिन हिंदुस्तान तो आता ही है, जाता नहीं है और रहेगा. तो फिर हिंदुस्तान के 40 करोड़ लोग जो आजादी के हिस्सेदार हैं, वारिस हैं,उनको इससे पूरा फायदा मिलना चाहिए.’

आज जब आजादी मिले हुए 72 बरस बीत चुके हैं तो क्या हम अभी भी आजादी के असल मतलब को समझ पाए हैं. जिन चुनौतियों का जिक्र नेहरू कर रहे थे और देश को लगातार सावधान कर रहे थे क्या हम उससे पार पा चुके हैं? क्या हम समतामूलक समाज बना पाएं हैं, सभी को बराबरी का अवसर उपलब्ध करा पाएं हैं, बेकारी मिटा पाएं हैं, गरीबी खत्म कर पाएं हैं? अगर हम इन चुनौतियों से अभी तक निपट नहीं पाएं हैं तो हम आजाद नहीं हुए हैं. हम अभी भी आजाद भारत के गुलाम नागरिक हैं.

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