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बजट 2023: इंडिया इंक की इच्छा कैपेक्स पर हो फोकस, टैक्स घटे और व्यापार में महिलाओं को मिले सपोर्ट

आम बजट 2023-24 से पहले दिप्रिंट ने इस पर एक नजर डाली कि प्रमुख उद्योग संगठनों के अहम सुझाव और अपेक्षाएं क्या-क्या हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो: ANI

नई दिल्ली: अब जबकि केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को 2023-24 का आम बजट पेश करने की तैयारियों में जुटी है, इंडिया इंक ने अपनी उम्मीदों का पिटारा खुलने की उम्मीदें लगा रखी हैं. इसमें व्यक्तिगत कर को घटाने और बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश जारी रखने से लेकर महिला उद्यमियों को प्रोत्साहन देने और उपभोक्ता वस्तुओं पर जीएसटी घटाने तक की अपेक्षाएं शामिल हैं.

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई), एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम), नैसकॉम जैसे कई उद्योग संगठनों ने सरकार को भेजी अपनी सिफारिशों में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए व्यापार कानूनों से जुड़े कुछ प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, ईंधन पर उत्पाद शुल्क घटाने समेत कई मांगें की हैं.

दिप्रिंट ने इस पर एक नजर डाली कि आम बजट से पहले इंडिया इंक के कुछ प्रमुख सुझाव और अपेक्षाएं क्या हैं.

व्यक्तिगत आयकर स्लैब

सीआईआई के मुताबिक, व्यक्तिगत स्तर पर आयकर स्लैब और दरों को तर्कसंगत बनाना भारतीय उद्योग की शीर्ष मांगों में से एक है, इसके पीछे तर्क यह है कि टैक्स घटने से उपभोक्ताओं की जेब में अधिक पैसे होंगे और यह स्थिति अर्थव्यवस्था में खपत को बढ़ाएगी, जिससे अंतत: निवेश और नौकरियों के लिए जगह बनेगी.

उद्योग निकाय ने वित्त मंत्रालय को भेजे प्रेजेंटेशन में कहा है, ‘व्यक्तिगत आयकर स्लैब को युक्तिसंगत बनाकर और दरों में कमी लाकर बजट में खपत के लिहाज से निचले स्तर पर मांग में सुधार की दिशा में जारी सुस्ती को दूर करना चाहिए. यह खर्च योग्य आय को बढ़ाने में मददगार होगा और मुद्रास्फीति से भी सीमित राहत दिलाएगा.’

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इसमें कहा गया है कि इस कदम से व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट आयकर के बीच का अंतर भी घटेगा और यह इक्विटी के नजरिए से उचित होगा.

इसी तरह, एसोचैम ने सिफारिश की है कि घटी कॉर्पोरेट कर दरों और व्यक्तिगत करदाताओं पर बढ़े अधिभार को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत स्तर पर कर की दरों पर पुनर्विचार/कमी लाई जा सकती है. इसके मुताबिक, ‘वित्त (संख्या 2) अधिनियम, 2019 ने व्यक्तिगत करदाताओं पर अधिभार बढ़ा दिया है. सरचार्ज बढ़ने के साथ व्यक्तियगत स्तर पर प्रभावी कर की दर 43 प्रतिशत (कुछ मामलों में) तक हो गई है.’

उद्योग निकाय ने आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कटौती की सीमा को 1,50,000 रुपये से बढ़ाकर 3,00,000 रुपये करने पर भी जोर दिया है. इसका कहना है, ‘समय बीतने के साथ मौजूदा सीमा को संशोधित करने की आवश्यकता है. एक उच्च सीमा बचत और पूंजी निर्माण को बढ़ावा देगी.’


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कैपेक्स आउटले पर अधिक फोकस हो

उपभोग मांग में सुधार के लिए सीआईआई की तरफ से सुझाए गए अन्य उपायों में निर्माण जैसे श्रम-आधारित क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय पर फोकस करना, ईंधन पर उत्पाद शुल्क और न बढ़ाना और इसके बजाये कटौती पर विचार करना, ग्रामीण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में तेजी लाना और कारों, दोपहिया वाहनों, वाशिंग मशीन और एसी जैसे सामानों पर लगने वाले 28 फीसदी जीएसटी को ‘कुछ स्तर पर’ घटाना आदि शामिल हैं.

सीआईआई ने बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश बढ़ाने की नीति जारी रखने की भी वकालत की है, जिससे ग्रोथ फिर बढ़ी है. उसके मुताबिक, ‘यह महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक आर्थिक वातावरण अनिश्चित बना हुआ है, और निजी निवेश को प्रभावित कर रहा है. हालांकि इसमें तेजी आनी शुरू हुई है.’

सीआईआई ने अपने सुझावों में कहा है कि बजट वित्तीय वर्ष 2023-24 में पूंजीगत व्यय के लिए आवंटन को मौजूदा 2.9 फीसदी से बढ़ा सकल घरेलू उत्पाद के 3.3 से 3.4 फीसदी तक कर सकता है, वित्त वर्ष 2024-25 तक इसे 3.8 से 3.9 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य है (3.9 प्रतिशत पिछली शीर्ष स्थिति थी जिसे वित्त वर्ष 2004 में हासिल किया गया था.’

उद्योग निकाय ने जोर देकर कहा कि बुनियादी ढांचा, विनिर्माण और पर्यटन जैसे रोजगार पैदा करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा देने पर ध्यान देने की जरूरत है, साथ ही कहा कि बजट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग स्पेशलिस्ट, बिग डेटा एनालिटिक्स, बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम इंजीनियर जैसी नौकरियों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

कोविड के कारण व्यापार में घाटा

उद्योग संगठन ने यह भी कहा है कि अनएब्जार्व्ड व्यावसायिक घाटे को आठ साल के मूल्यांकन वर्षों की मौजूदा सीमा के विपरीत अनिश्चितकाल तक आगे बढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसके मुताबिक, ‘हालांकि, यह सिफारिश सभी क्षेत्रों के लिए की जा रही है. लेकिन यदि यह संभव न हो तो कम से कम इसे (ए) स्टार्ट-अप और (बी) नए जमाने के व्यवसायों जैसे ई-कॉमर्स क्षेत्र में तो लागू किया ही जाना चाहिए.’

इसने कहा कि कोविड के कारण मौजूदा समय में उद्योगों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और स्थिति बदलने में कम से कम 4-5 साल लगेंगे. इसके अलावा, महामारी के पहले भी औद्योगिक गतिविधियों में एक स्पष्ट मंदी नजर आने लगी थी.

इसने कहा है, ‘…किसी भी नुकसान की समयसीमा बीतने पर किसी वास्तविक और आर्थिक लाभ के अभाव में ही कर का भुगतान करना होगा.’ साथ ही जोड़ा कि जर्मनी, फ्रांस, यूके, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, रूस, सिंगापुर, और नार्वे जैसे तमाम देशों ने व्यापार घाटे से उबरने के लिए असीमित समयसीमा दे रहे हैं.’

यह देखते हुए कि कई कंपनियां अब एक हाइब्रिड वर्किंग अरेंजमेंट अपना रही हैं, जिसमें कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की अनुमति दी जाती है, एसोचैम की मांग है कि कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए दी जाने वाले सुविधाओं जैसे रिफ्रेशमेंट के निजी प्रकृति के होने के बावजूद इसे कर योग्य अनुलाभ नहीं माना जाना चाहिए.


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दूरसंचार, पर्यटन और खाद्य प्रसंस्करण

कुछ खास-सेक्टर्स की विशलिस्ट की बात करें तो दूरसंचार क्षेत्र ने नियामक लेवी को तर्कसंगत बनाने की मांग की है. देश में सभी प्रमुख निजी ऑपरेटरों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने कहा है कि समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) के 5 प्रतिशत यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन (यूएसओ) योगदान को मौजूदा यूएसओ कॉर्पस खत्म होने तक निलंबित रखा जा सकता है और डीओटी/सरकार की प्रशासनिक लागत को कवर करने के लिए लाइसेंस शुल्क को जल्द से जल्द 3 प्रतिशत से घटाकर 1 प्रतिशत किया जाना चाहिए.

सीओएआई के महानिदेशक एसपी कोचर ने कहा, ‘दूरसंचार देश में अत्यधिक विनियमित क्षेत्रों में से एक है. दूरसंचार ऑपरेटरों पर करों और विनियामक लेवी के भारी बोझ और डिजिटल इंडिया अभियान में इस सेवा की अहमियत को देखते हुए उन्हें लाइसेंस शुल्क/स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और नीलामी के तहत आवंटित स्पेक्ट्रम के नियामक भुगतान पर जीएसटी में छूट के तौर पर कुछ खास लाभ प्रदान किए जा सकते हैं.’

कोचर ने आगे कहा कि दूरसंचार कंपनियों के लिए बुनियादी ढांचा लगातार अपग्रेड करना जरूरी है और वे उपकरणों के आयात पर निर्भर होते हैं क्योंकि अभी तक भारत में उपकरण बनाने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. 5जी सेवाओं का रोल आउट जारी होने के बीच उद्योग की वित्तीय स्थिति को रेखांकित करते हुए उद्योग निकाय ने आयात शुल्क में छूट की भी मांग की है.

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए लिमिटेड में कॉर्पोरेट रेटिंग के वाइस-प्रेसीडेंट और सेक्टर हेड अंकित जैन कहते हैं कि भारतीय दूरसंचार उद्योग ने लो टैरिफ और निरंतर पूंजीगत जरूरत के बीच ऊंचे कर्ज स्तर के मद्देनजर एक उथल-पुथल भरा समय देखा है.

एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) संबंधी फैसले से इसमें और भी वृद्धि हुई, जिसने टेलीकॉम की भुगतान देनदारियों को बढ़ा दिया. इस क्षेत्र को संकट से उबारने के लिए सरकार ने सितंबर 2021 में एक राहत पैकेज की पेशकश की, जिसमें सुधारों से जुड़े कई कदम उठाए गए. इसमें बकाया भुगतान के लिए 4 साल की मोहलत देना भी शामिल है.

अपनी बजट अपेक्षाओं पर एक नोट में जैन ने कहा, ‘यद्यपि सरकार ने खासा प्रभाव डालने वाले कई मसले सुलझाने की दिशा में कदम उठाए हैं और सुधारों के एक और दौर का संकेत भी दिया है, लेकिन उद्योग इस सेक्टर पर वित्तीय बोझ घटाने के लिए लेवी (मुख्य रूप से लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क) में कमी चाहता है.’

एसोचैम ने कहा कि विदेशी मुद्रा प्राप्त होने पर विदेशी पर्यटकों को प्रदान की जाने वाली पर्यटन उद्योग सेवाओं को ‘डीम्ड एक्सपोर्ट’ माना जाना चाहिए और इनपुट क्रेडिट के प्रवाह को रोके बिना जीएसटी से छूट दी जानी चाहिए.

एसोचैम ने मानव उपभोग के लिए शराब को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए एक उपयुक्त ढांचा विकसित करने और उस पर अमल सुनिश्चित करने की भी वकालत की है. इसका कहना है कि इससे होटलों के लिए कर ढांचा सरल बनाने और नकली शराब और किसी तरह की धांधली पर नकेल कसने में भी मदद मिलेगी.

सीआईआई का कहना है कि यात्रा और पर्यटन क्षेत्र के खुलने और भारत के जी-20 की अध्यक्षता संभालने के साथ देश में पर्यटन को बढ़ाना देने के उद्देश्य से एक टूरिज्म जार या नेता नियुक्त किया जाना चाहिए, जो संबंधित मंत्रालयों, राज्य सरकारों और उद्योगों के साथ मिलकर काम कर सके. इसके मुताबिक, ‘टूरिज्म ज़ार भारत को वैश्विक पर्यटन केंद्र बनाने के लिए पर्यटन कौशल विकास, विदेशी ब्रांडिंग अभियान, बुनियादी ढांचे के विकास और अन्य मुद्दों पर काम कर सकता है. इससे सेवा क्षेत्र में बड़ी मात्रा में रोजगार सृजित होंगे और भारत को वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज्म रैंकिंग में टॉप-5 में पहुंचने में मदद मिलेगी.’

मेक माई ट्रिप के सह-संस्थापक और ग्रुप सीईओ राजेश मागो ने इस क्षेत्र को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा देने की लंबे समय से जारी उद्योग की मांग को दोहराया, ताकि संस्थागत कर्ज आसानी से उपलब्ध हो सके. मागो ने यह भी कहा कि अलग-अलग नियमों की समीक्षा की जानी चाहिए जो विदेशी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाते हैं जिससे भारतीय कंपनियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है.

उन्होंने इस संदर्भ में एक उदाहरण देते हुए बताया कि प्रत्यक्ष कर संबंधी प्रावधान किसी ऑनलाइन ई-कॉमर्स कंपनी के लिए विदेशी यात्रा पैकेज के ग्राहक से पैन के साथ 5 प्रतिशत टैक्स कलेक्टेड एट सोर्स (टीसीएस) और बिना पैन 10 प्रतिशत टीसीएस वसूलने को अनिवार्य बनाता है. उन्होंने आगे जोड़ा कि विदेश स्थित ओटीए (ऑनलाइन ट्रैवल एजेंट) को जीएसटी या प्रत्यक्ष कर का प्रावधान लागू न होने के कारण भारतीयों को सस्ते पैकेज की पेशकश करने की छूट मिल जाती है.

एसोचैम के मुताबिक, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ने रेडी-टू-ईट मिक्स, मसालों, फ्रोजन स्नैक्स, बाजरा-आधारित उत्पादों और डेयरी उत्पादों पर 5 प्रतिशत जीएसटी के साथ इसे तर्कसंगत बनाने की मांग की है.

सीआईआई ने ग्रीनफील्ड निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए स्टार्टअप्स के लिए एक समर्पित उद्यम पूंजी कोष बनाकर उद्योग को उचित दरों पर कर्ज की सुविधा मुहैया कराने की वकालत की है. इसमें आगे कहा गया है कि नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने खासतौर पर फूड पार्कों में नई इकाइयों की स्थापना या मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के आधुनिकीकरण के लिए सस्ता कर्ज प्रदान करने के लिए 200 करोड़ रुपये का कोष बनाया है.

सभी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को इसकी पात्रता के दायरे में लाया जाना चाहिए, जिसमें खाद्य पार्कों के बाहर स्थित इकाइयां भी शामिल हों.

स्टार्टअप्स ने भी मांगी छूट

स्टार्ट-अप सेक्टर ने एक संशोधन (वित्त अधिनियम 2022 के तहत आईटी अधिनियम की धारा 68 में) वापस लेने की मांग की है, जिसके तहत किसी स्टार्ट-अप के लिए उसमें निवेश करने वाले निवेशक की आय के स्रोत का खुलासा करना आवश्यक है.

नैसकॉम ने बजट संबंधी अपनी सिफारिशों में कहा है, ‘यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्री-सीड स्टेज में स्टार्ट-अप आमतौर पर संस्थापकों के मित्रों/परिवार से ही पैसा उधार लेते हैं. इस संशोधन के तहत स्टार्ट-अप कंपनियों के लिए लेनदार की आय के स्रोत का खुलासा करना आवश्यक होगा. इस तरह का प्रावधान मित्रों/परिवार को स्टार्ट-अप संस्थापकों को पैसा उधार देने से दूर कर सकता है और फंड जुटाने के प्रयास प्रभावित हो सकते हैं.’

नैसकॉम ने स्टार्ट-अप के लिए उपयुक्त माहौल बनाने के उद्देश्य से आईटी अधिनियम की धारा 80-आईएसी के तहत पात्र स्टार्ट-अप के लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर (एमएटी) को 15 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत करने का आग्रह भी किया है. इसका यह भी कहना है कि डीपीआईआईटी मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप के असूचीबद्ध शेयरों की बिक्री से रेजिडेंट इंवेस्टर्स द्वारा अर्जित दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर नॉन-रेजिडेंट इंवेस्टर्स के बराबर यानी 10 प्रतिशत टैक्स लगाने की आवश्यकता है.

नैसकॉम ने अधिक स्टार्ट-अप के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध कर्मचारी स्टॉक ऑप्शन प्लान (ईएसओपी) पर टैक्स भुगतान की समयसीमा बढ़ाने की भी वकालत की है.

2020 में, सरकार ने उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईआईटी) से मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स, जिनके पास अंतर-मंत्रालयी बोर्ड (आईएमबी) प्रमाणपत्र है, के लिए ईएसओपी पर कर भुगतान का समय बढ़ाने का प्रावधान किया था. इसके पीछे उद्देश्य उस मुश्किल को दूर करना था, जिसमें स्टार्ट-अप के कर्मचारी बिना कोई लाभ पाए ही ईएसओपी के तहत प्राप्त शेयरों पर संभावित रूप से भारी कर भुगतान के उत्तरदायी हो गए थे.

नैसकॉम ने तर्क दिया कि आज 82,000 डीपीआईआईटी मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप में से 0.8 प्रतिशत से भी कम समय बढ़ने का लाभ उठा सकते हैं. इसके मुताबिक, ‘स्टार्ट-अप क्षेत्र में टैलेंट को आकृष्ट करने और उसे बनाए रखने में ईएसओपी के महत्व को देखते हुए…चूंकि कर्मचारी को पूर्ण कर का भुगतान करना होता है और उसे भुगतान का समय आगे बढ़ाने की ही सुविधा मिलती है, स्थगन की ये सुविधा डीपीआईआईटी मान्यता प्राप्त सभी स्टार्ट-अप को मुहैया कराई जानी चाहिए (यानी, यह उन 635 पात्र स्टार्ट-अप्स तक सीमित नहीं होनी चाहिए जिन्होंने आईटी एक्ट के 80-आईएसी के तहत आईएमबी प्रमाणपत्र प्राप्त किया है).’

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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