नीतीश कुमार की 65 फीसदी आरक्षण की मांग से साफ पता चलता है कि विपक्षी दलों की जातीय जनगणना की मांग किस राह पर जा सकती है. यह सिर्फ डेटा के बारे में नहीं है. आलसी राजनीतिक कल्पना इसे आरक्षण का रूप देती रहेगी. सरकारी नौकरियां तेजी से कम हो रही हैं. 65 या 100 प्रतिशत यह सिर्फ बयानबाजी तक ही सीमित है.
नीतीश कुमार की 65% आरक्षण की मांग से कोई फर्क नहीं पड़ता, सरकारी नौकरियां सिर्फ बयानबाजी तक ही सीमित
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