होम 2019 लोकसभा चुनाव आखिर क्यों बिहार की चुनावी रैलियों से गायब हैं महिलाएं

आखिर क्यों बिहार की चुनावी रैलियों से गायब हैं महिलाएं

एक तरफ महिलाएं संसद में 33 फीसदी आरक्षण की मांग कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक रैलियों और मंच पर उनकी भागीदारी न के बराबर बनी हुई है.

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फोटो : सोशल मीडिया

बेगूसराय/कटिहार/पटना: बिहार के चुनावी सफर में दो ज़िलों में दिप्रिंट को एक जैसी असमान्य सी समानता नज़र आई. बेगूसराय और कटिहार जैसे ज़िलों में चुनाव प्रचार चरम पर था. कहीं रैलियां तो कहीं रोड शो हो रहे थे. लेकिन इन रैलियों और रोड शोज़ से महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी ग़ायब थीं. यानी सीपीआई के कन्हैया कुमार और विकाशील इंसान पार्टी की दो रैलियों और दो रोड शोज़ में शामिल लोगों में महिलाओं की संख्या एक से पांच प्रतिशत भी नहीं थी.

इसे रैलियों में उमड़ी भीड़ से न जोड़ा जाए, बल्कि यहां बात नेताओं के उन समर्थकों की हो रही है, जो इन रैलियों और रोड शोज़ में इनके मंच या काफिले में नज़र आ रहे थे. जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू) को नारीवाद का झंडाबदर भी माना जाता है. लेकिन 19 अप्रैल सुबह लगभग 10.30 बजे शुरू हुए कन्हैया के रोड शो में एक भी लड़की या महिला नहीं थी. ये इसके बावजूद इस रोड शो में लगभग 200-250 के करीब कन्हैया समर्थक डटे हुए थे. वहीं साहनी की दो रैलियों और दिन में रुक-रुक कर हुए रोड शो से भी महिलाएं ग़ायब थीं. हालांकि, साहनी की दो सभाओं में मंच पर चंद महिलाएं मौजूद थीं. लेकिन उनकी कोई ख़ासी भूमिका नज़र नहीं आई. साहनी की खगड़िया ज़िले की अलौली की रैली में एक महिला नेता ने ठीक ठाक बोला लेकिन वो भी दिल्ली से आई थीं. दिल्ली से आईं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की जबीन शम्स निजामी ने दिप्रिंट से कहा कि वो महागठबंधन के ऐसे कार्यक्रमों में आती-जाती रहती हैं.


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राजद की महिला प्रकोष्ठा की दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष जबीन कि यहां आने का उनका लक्ष्य ये था कि जितनी ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को हो सके (घऱ से) बाहर निकाला जाए. यहां दिए गए अपने भाषण में निजामी ने रैली में आई भीड़ में मौजूद मर्दों से अपील की कि वो ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को वोटिंग के दिन बाहर लेकर आएं. ऐसे में जब उनसे पूछा गया कि महिलाओं की रैलियों से राजनीतिक भागीदारी की अपील क्यों नहीं होती तो निजामी ने कहा, ‘ये अपील वोटिंग के माहौल से जुड़ी थी.’ वो कहती हैं कि पुरुषों के दिमाग़ में जब महिलाओं को वोट देने के अधिकार के लिए उन्हें बाहर निकालने की बात बैठेगी तो वो बाकी की एक्टिविटी के लिए भी महिलाओं को बाहर निकालेंगे. फिर वो हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या कम होने की बात कहती हैं और ये भी कहती हैं कि टक्कर देने वाले (राजनीति जैसे) मामलों में महिलाएं और कम हैं. जबीन से जब पूछा गया कि क्या रैलियों और रोड शोज़ में महिलाओं के नदारद होने का ये आलम इसी रैली का है या बाकी रैलियों में भी ऐसा ही होता है तो उन्होंने कहा कि हर जगह का यही हाल है.

वो अपने मुसलमानों होने का हवाला देते हुए कहती हैं कि वो जिस समाज से आती हैं वहां तो वैसे भी लड़कियों को बाहर कम ही निकाला जाता है. ऐसे में उन्होंने बिहार के कई ज़िलों में जाकर महिलाओं को बाहर निकलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया है. जब उनसे पूछा गया कि वो जिस पार्टी से जुड़ी हैं उसके सुप्रीमो लालू यादव के पास भी जब राज्य के नेतृत्व को अगली पीढ़ी के हाथों में सौंपने का मौका आया तो उन्होंने सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती की जगह तेजस्वी को चुना तो इसके जवाब में वो हिचकिचाते हुए कहती हैं कि मीसा को भी राज्यसभा भेजा गया.

राजनीति में महिलाओं की स्थिति पर वो कहती हैं कि महिलाएं अभी इसमें आने से झिझकती हैं क्योंकि वो इसे नकारात्मक तरीके से लेती हैं. इसके विपक्ष में बोलते हुए वो कहती हैं, ‘मेरा अनुभव अलग रहा और मुझ राजनीति में मर्दों का समर्थन मिला है.’ लेकिन दिप्रिंट का अनुभव निजामी के कहे से बिल्कुल अलग था. ऐसा इसलिए था कि इस रैली से वापसी के दौरान निजामी एक रोज शो से जुड़ी एक ख़ुली जीप में सवार हो गईं और इसके पीछे की रैली की एक और गाड़ी में दिप्रिंट के सवांददाता मौजूद थे. खुली जीप में निजामी चौतरफा पुरुष नेताओं से घिरी थीं और जिस गाड़ी में दिप्रिंट के संवाददाता मौजूद थे उसमें मौजूद लोगों द्वारा निजामी के ओपन जीप में चढ़ने के फैसले के ख़िलाफ़ बेहद भद्दी बातें कही जा रही थीं. जब ऐसी बातें करने वालों को टोका गया तो उन्होंने टॉपिक बदल दिया. ये एक ऐसा अनुभव था जिससे स्थिति साफ होती है कि रोड शोज़ और रैलियों में महिलाएं क्यों नहीं आती होंगी.

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जब उसने पूछा गया कि महिलाएं रैलियों या रोड शोज़ में शौचालय नहीं होने से लेकर पीने के पानी की कमी से कैसे जूझती हैं तो उन्होंने कहा, ‘थोड़ी दिक्क़त तो होती है.’ जिस जगह ये रैली थी वहां पीने का पानी भी मौजूद नहीं था. बावजूद इसे निजामी बेहतर स्थिति बात रही थीं. इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इन परिस्थितियों में महिलाओं को किन-किन चीज़ों का सामना करना पड़ता होगा.

क्या पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत के तहत किए गए वादों वाला शौचालय हर जगह पहुंचा है तो उन्होंने कहा, ‘मैं भागलपुर और बांका से होकर आई हूं और वहां के गावों में ना तो शौचायल मिला ना ही मूलभूत सुविधाएं ही नज़र आईं.’ इसके बाद उन्होंने मोदी सरकार पर सिलसिलेवार हमले किए. आधी आबादी की आधी हिस्सेदारी कब होगी के सवाल पर वो कहती हैं कि ये तो होना ही चाहिए और इसके लिए महिलाओं को आगे आना होगा.

इस दौरान दिप्रिंट ने वहां रैली की भीड़ में मौजूद महिलाओं और महिला पुलिसकर्मियों से बात करने की कोशिश की. लेकिन, कोई बात करने को तैयार नहीं थी. यही हाल तब था जब बेगूसराय से महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन कैमरे पर एक साक्षात्कार के लिए दिप्रिंट से मिले. उनके साथ अधेड़ और बुज़ुर्ग मर्द थे जिनकी संख्या एक दर्ज़न से ज़्यादा थी. लेकिन दूर-दूर तक कोई महिला नहीं थी.

बिहार की राजधानी पटना में जब इसी पर दिप्रिंट के बात पाटलिपुत्र से महागठबंधन उम्मीदवार और लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती से हुई तो उन्होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी राजद ने 10 महिलाओं को टिकट दिया था और सारी की सारी जीतकर आईं. वो ये भी बताती हैं कि राजद 19 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है जिसमें से तीन सीटें महिलाओं को दी गई हैं और महागठबंधन ने पांच सीटें दी हैं. वो इस पर ज़ोर देती हैं कि पार्टी लाइन से ऊपर उठकर महिलाओं को हिस्सादारी मिलनी चाहिए.

इन तमाम बातों और हालातों के बाद एक बात साफ थी कि चाहे जेएनयू और सीपीआई वाले कन्हैया हों या महागठबंधन के हसन या वीआईपी के साहनी, इन सबकी रैलियों, रोड शोज़ और राजनीतिक गतिविधियों में महिलाओं की उपस्थिति या तो प्रतीकात्मक रही या नग्णय.

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