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रामपुर की धारदार सियासी जंग के बीच ‘चाइनीज़’ से परेशान ‘रामपुरी चाकू’

रामपुर का ज़िक्र जया प्रदा और आज़म खां की जंग को लेकर हो रहा है लेकिन यहां की एक और पहचान है. वो है यहां का रामपुरी चाकू.

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रामपुरी चाकू व्यापारी इन दिनों चीन के चाकू से परेशान हैं/ फोटो-प्रशांत श्रीवास्तव

रामपुर: इन दिनों मीडिया में रामपुर का ज़िक्र जया प्रदा और आज़म खां की जंग को लेकर हो रहा है लेकिन रामपुर की एक और खास पहचान रही है. वो है यहां का रामपुरी चाकू. बटन से खुलने वाला ये आकर्षक चाकू बॉलीवुड की फिल्मों में भी खूब दिखा है लेकिन अब इन चाकुओं को चाइनीज़ चाकुओं से टक्कर मिल रही है जिस कारण यहां के दुकानदार रामपुर की बजाए चाइनीज़ चाकू ज़्यादा बेचने पर मजबूर हैं.

रामपुरी चाकू रही है पहचान

भारत-नेपाल बाॅर्डर के पास स्थित रामपुर देश भर में रामपुरी चाकुओं के लिए जाना जाता है. फिल्मों में इस चाकू का बड़ा बोलबाला रहा है. सबसे ज़्यादा चर्चित अभिनेता राजकुमार का डायलॉग रहा, जिसमें रामपुरी चाकू दिखाया गया है- वक्त फिल्म का एक सीन है जिसमें राजकुमार के सामने रामपुरी चाकू को एक विलेन बटन दबा कर खोलता है, तभी राजकुमार आते हैं और कहते हैं ‘यह चाकू है, हाथ पर लग जाए तो खून निकल आता है’. इसी तरह कई फिल्मों में रामपुरी चाकू को झटके से बटन से खोलते हुए दिखाया गया है.


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विदेश तक छाप छोड़ने वाले रामपुरी ने नए दौर में अपना रूप बदला है.पहले लोहे और लकड़ी से चाकू बनता था, लेकिन अब स्टील से बनाया जा रहा है. साथ ही इसे पिस्टल, बंदूक और रायफल का लुक देकर और आकर्षक भी किया गया है. इसमें चाइनीज़ मटीरियल का इस्तेमाल किया जा रहा है.

चाइनीज़ ने घटाया ओरिजनल का क्रेज़

रामपुर के चाकू बाज़ार में अब दो तरह के चाकू मिलते हैं. एक हैं रामपुरी चाकू जो कि यहां की पहचान हैं. दूसरे हैं चाइनीज़ चाकू जो कि दुकानों पर अब ज़्यादा देखे जा सकते हैं. यहां के चाकू विक्रेता शाहबेज़ खान बताते हैं कि जो रामपुरी चाकू होता है वो हैंडमेड होता है. उसे तैयार करने में दो दिन का समय लग जाता है. वहीं चाइनीज़ चाकू तो मशीन से तैयार किए जाते हैं. ये दो दिन में कई सारे तैयार किए जा सकते हैं. इसके अलावा चाइनीज़ चाकू आकर्षक भी होते हैं जिस कारण जनता की वे पहली पसंद बनते जा रहे हैं.

ब्लैक कमांडो चाकू बाज़ार में नया

चाइनीज़ चाकूओं में यूं तो यहां तमाम वैरायटी के चाकू मिलते हैं लेकिन ब्लैक कमांडो काफी मशहूर है. ब्लैक कमांडो नाम का चाकू हाल ही में बाज़ार में आया है. इसमें पकड़ने के लिए ग्रिप और पंच भी है जो काफी मज़बूत पकड़ देता है. स्टील टार्च नाइफ और ब्लैक टार्च नाइफ नाम के चाकू की भी काफी मांग है. एके-47 नाम का भी चाकू है, इसे सीआरपीएफ के जवान और फौजी ज़्यादा खरीदते हैं. इनमें लॉक सिस्टम भी है. इसमें पुराने चाकुओं के मुकाबले इनकी धार भी तेज़ हुई. जंक भी नहीं लगता. रामपुर के चाकू बाज़ार में छोटे बड़े हर साइज़ के चाकू मिलते हैं.

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चाकू विक्रेता शाहबेज़ बताते हैं कि अब कुछ गिनी चुनी दुकानें ही चाकू बाजार में रह गई हैं जहां ‘रामपुरी चाकू’ मिलता है. उनके दादा अच्छे मियां ने आजादी के दौर के समय से यहां रामपुरी चौकी बनाया करते थे. फिर उनके पिता ने ये काम संभाला और अब वह ये काम संभाल रहे हैं.

नोटबंदी के बाद से घटा कारोबार

शाहबेज़ बताते हैं कि नोटबंदी के दौरान चाकू उद्योग काफी नुकसान में आ गया था. जीएसटी का इस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. स्थानीय लोग कहते हैं इस उद्योग में गिरावट पिछले 15 साल से लगातार हो रही है लेकिन नोटबंदी के दौरान तो ये चौपट ही हो गया था. यहां के चाकू कारीगर यामीन अंसारी का कहना है कि एक दौर था जब हमारे जैसे चार हज़ार से पांच हज़ार कारीगर हुआ करते थे. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. यहां अब लोग चाकू बनाने के बजाए दूसरे व्यवसाय में जा रहे हैं. ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 1990 में साढ़े चार इंच से लम्बी छुरी रखने और बेचने पर पाबंदी लगा दी थी. ये भी उसके पतन का कारण बना. यहां के दुकानदार कहते हैं कि रामपुरी छुरी से कहीं ख़तरनाक औज़ार मार्केट में है लेकिन उस पर पाबंदी नहीं लगी. बाज़ार में जब से चाइनीज़ छुरी आने लगी इससे पूरी तरह से हाथ से बनने वाली रामपुरी छुरी की बिक्री काफी कम हो गई है.

पाॅलिटिकल मुद्दा नहीं बन सका चाकू उद्योग

इन लोकसभा चुनाव में रामपुर में आज़म खान और जया प्रदा के बीच कांटे की लड़ाई है. दोनों एक दूसरे पर तमाम टिप्पणियां कर रहे हैं. जुबानी जंग इतनी बढ़ गई है कि उसमें रामपुर के असली मुद्दे गायब हैं. चाकू उद्योग भी उन्हीं अहम मुद्दों में से है. न किसी नेता को इसकी फिक्र है न ही किसी के भाषणों में इसका ज़िक्र है.

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