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भाटी माइंस: संजय गांधी द्वारा बसाई गई इस कॉलोनी में पाकिस्तानी हिंदुओं का हाल क्या है

दक्षिणी दिल्ली के भाटी माइंस के लोगों के पास मूलभूत सुविधाओं का अभाव भले हो लेकिन भारत की नागरिकता उनके लिए अहम मुद्दा है.

भाटी माइंस का बस स्टैंड| शुभम सिंह

नई दिल्ली: वैसे तो दिल्ली के कई इलाकों में पाकिस्तानी शरणार्थी रह रहे हैं, यह कितनी संख्या में है, यह आंकड़े तो शायद सरकार के पास ही ठीक-ठीक हो लेकिन ये शरणार्थी बुरे हालातों में जीवन बिताने को मजबूर हैं. कुछ के हालात तो इतने खराब हैं कि वो फुटओवर ब्रिज के नीचे जीवन यापन करने को लाचार हैं. लेकिन इस चुनावी मौसम में क्या है इनलोगों के हाल, इसे जानने के लिए दिप्रिंट पहुंचा भाटी माइंस (संजय कॉलोनी), जहां करीब 3000 से 4000 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी रह रहे हैं.

भाटी माइंस में पहुंचते ही 19 साल की आभा मिलीं जिन्होंने हाथों का इशारा करते हुए कहा,

हाल तो आपकी आंखों के सामने हैं. जगह-जगह कूड़े का ढेर लगा है, सूअर घूम रहे हैं जिनसे यहां रह रहे लोगों में अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर आक्रांत व्याप्त है. नालियां खुली हैं जिनमें मच्छर- मक्खियां भनभना रहे हैं. बारिश में यहां का हाल और बुरा हो जाता है..पानी से नालियां भरती हैं और फिर सारा पानी सड़क पर जमा हो जाता है.’

अभी साफ-सफाई की समस्या सुन और देख ही रहे थे कि वहां लोग अपनी समस्याओं के साथ एकत्रित होने लगे. आभा के पड़ोसी अमन ने कहा, ‘यहां इनसब के साथ और बड़ी समस्या है पानी की. हमारे इलाके में महज़ 20 मिनट के लिए पानी आता है और इसके लिए मोहल्ले वालों की लंबी लाइन लगती है. पानी भरने के दौरान अच्छे पड़ोसी भी दुश्मन बन जाते हैं. लेकिन फिर भी हिंदुस्तान में हम खुश हैं. यहां की सारी परेशानियां खत्म हो जाएंगी लेकिन वहां की जलालत हमें सिहरा जाती है.’

वैसे 1947 के बाद से पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों का भारत दोनों हाथों से स्वागत करता रहा है. पाकिस्तान से ज्यादातार यहां आने वाले सिंध प्रांत के लोग हैं. देर से ही सही उन्हें नागरिकता भी मिल ही जाती है.

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इस क्षेत्र को 1976 में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी द्वारा बसाया गया था. वहीं से इसका नाम संजय कॉलोनी पड़ा. तब लगभग 200 घर बने थे. पहले ये केवल एक गांव था. यहां के लोग गांव सभा के मतदाता थे. फिर 1991 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर एक नोटिस जारी कर इसे रिज़र्व्ड फॉरेस्ट एक्ट के तहत वन विभाग के अधीन कर दिया गया.

भाटी माइंस संजय कॉलोनी | शुभम सिंह

गांव के प्रधान श्रीचंद्र खामरा दिप्रिंट को बताते हैं, ‘जब से हमारे इस गांव को वन विभाग के अधीन किया गया है तभी से हमारी मुश्किलें बढ़ गई हैं. वन विभाग और स्थानीय विधायक और सांसद के बीच टकराव के कारण क्षेत्र का विकास नहीं हो पा रहा है.’

नागरिकता है अहम मुद्दा

भाटी माइंस इलाके में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी करीब तीन हज़ार हैं. आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान में भेदभाव का दंश झेल रहे हिंदू शरणार्थी इस इलाके में पनाह ले रहे हैं. मोदी सरकार के आने के बाद से पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को एलटीवी यानी लांग टर्म वीजा में छूट देने के कारण भारत की नागरिकता मिलने में आसानी हो गई है.

20 साल पहले पाकिस्तान के पंजाब के रहिम यार खान से आए अमर चंद बताते हैं, ‘ अगस्त 2016 में वीज़ा के नियमों में रियायत देने के बाद से पिछले 1.5 साल में हमारे गांव के 250 लोगों को भारत की नागरिकता मिल गई है. इसमें कुछ ऐसे हैं जो काफी भाग-दौड़ करने के बाद 20-25 साल से इससे वंचित थे.’

सरकार ने किस तरह से बदलाव किया

1999 में पाकिस्तान छोड़ भारत आए अमर चंद ने 2006 में भारत की नागरिकता के लिए आवेदन किया था. लेकिन उन्हें नागरिकता 2015 में जाकर मिली.

वे बताते हैं, ‘पहले हमें नागरिकता शुल्क भरने के बाद अलग-अलग विभाग में ओरिजिनल बैंक का चालान भरना पड़ता था. जिसमें काफी मशक्कत होती थी. इसका शुल्क पहले 500 रुपये था लेकिन सरकार ने इसे अब 100 रुपया कर दिया. अब चालान का प्रिंटआउट निकाल कर हम अलग-अलग विभाग में बड़ी आसानी से जमा कर देते हैं. सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए अप्लाई करने के 90 दिनों में नागरिकता देने का प्रावधान बनाया है. इसके अलावा पहले एक दिन भी लेट होने पर हमें 30 डॉलर यानी 1965 रुपया देने पड़ता था, जिसे सरकार ने अब घटा कर 100 रुपया कर दिया है.’

बता दें, भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए दूसरे देश से आए शरणार्थी को यहां सात साल गुज़ारना अनिवार्य है. उसके बाद ही वो इसके लिए अप्लाई कर सकता है.

भेद-भाव झेले लोगों को है सरकार से उम्मीद

नोमिता पाकिस्तान के सिंध प्रांत के एक स्कूल से क्लास 4 तक पढ़ाई की हैं. अपने अनुभवों को साझा करते हुए वो बताती हैं, ‘मेरे क्लास में कुल 35 लोग पढ़ते थे. वहां मैं और मेरे चाचा का लड़का ही हिंदू थे बाकी सब मुसलमान. क्लास के बच्चे मेरे साथ टिफिन शेयर नहीं करते थे. हम बर्थडे भी नहीं मनाते थे.’

उनके पिता प्रेमचंद्र बताते हैं, ‘पाकिस्तान में हमें कई तरह का दुर्व्यवहार झेलना पड़ता था. हमारी कोई नहीं सुनता था. पुलिस प्रशासन भी धर्म के चश्मे से सबको देखते थी. हमारे बच्चे को वहां के स्कूलों में अपने टीचर और अन्य बच्चों के साथ भेद-भाव झेलना पड़ता था. हम ईद मनाते थे, लेकिन वो हमारे साथ दीवाली नहीं मनाते थे. होली तो हमने वहां कभी खेली ही नहीं.’

वे आगे कहते हैं, ‘लेकिन अब यहां स्थिति ठीक है. अपने लोगों के बीच में हैं. हमारा आधार कार्ड बनना शुरू हो गया है. हमें यहां शरण मिल गया है अब केवल नागरिकता चाहिए जोकि उम्मीद है आने वाले समय में मिल ही जाएगी.’

मूलभूत सुविधाओं का अभाव

इस क्षेत्र के लोगों का हाल जानने के लिए हम छत्तरपुर मेट्रो स्टेशन से बस से निकलते हैं. 14 किलोमीटर के सफर के बाद बस जब हमें भाटी माइंस बस स्टैंड पर उतारती है तो वहीं से सड़क की दुर्दशा दिखनी शुरू हो जाती है. लगभग 150 एकड़ में फैले इस क्षेत्र में रास्ते तो हैं, लेकिन सड़कें नहीं. रोड के नाम पर केवल ईंटों को बिछाकर सड़कें बनाई गई है.

पानी भरने के लिए लाइन लगाए लोग | शुभम सिंह

शाम का समय था और लोग पानी भरने के लिए कतार लगाए हैं. उन्हीं में से एक पाकिस्तान से करीब 8 साल पहले आए अमन बताते हैं, ‘जब हम पाकिस्तान में थे तो कम से कम हमें पानी और बिजली की दिक्कत नहीं थी. पानी के लिए कोई लाइन नहीं लगाना पड़ता था लेकिन यहां रोज़-रोज़ अपना सारा काम छोड़ कर पानी भरने के लिए लाइन लगाना पड़ता है.’

बंदरों और सुअरों की समस्या

जंगल के किनारे बसाई गई संजय कॉलोनी में यहां के नागरिकों को बंदरों और सुअरों के उत्पात का आए दिन सामना करना पड़ रहा है. हम अभी कॉलोनी में लगभग एक किलोमीटर ही अंदर गए होंगे कि आसपास सुअर नज़र आने लगें.
पाकिस्तान से 7 साल पहले आए जवाहर कहते हैं, ‘यहां पर गंदगी बहुत रहती है. कूड़ा उठाने के लिए एमसीडी की गाड़िया अंदर तक नहीं आती हैं. जिससे उसका ढेर लग जाता है. और सुअर और उनके बच्चे उन्हीं कूड़ों के आसपास दिखाई देंगे. सूअरों का उत्पात इतना है कि लगभग डेढ़ साल पहले एक सुअर एक बच्ची को खींचकर ले गया था. जिससे उसकी मौत हो गई थी.’

सुअरों की समस्या से परेशान भाटी माइंस के लोग | शुभम सिंह

बता दें, नवंबर 2017 में एक मां के गोद में दूध पी रही 18 दिनों की बच्ची को एक सुअर ने हमला बोला था और बच्ची को अस्पताल ले जाते वक्त उसकी मौत हो गई थी. इसके बाद रेजिडेंट वेलफेयर एसोशिएसन(आरडबलूए) और एनजीओ ने मिलकर ऑपरेशन सुअर शुरू किया था. लेकिन उसके बाद भी उनकी स्थिति में कोई खास फर्क नहीं आया. स्थानीय नागरिक 35 वर्षीय प्रेमचंद्र बताते हैं, ‘सुअरों की संख्या में भले कमी आई है लेकिन उनसे निजात अभी भी नहीं मिल पाया है.

क्षेत्र का विकास नहीं होने में सांसद-विधायक जिम्मेवार

भाटी माइंस संजय कॉलोनी दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है. यहां के सांसद हैं भाजपा के रमेश बिदुड़ी और विधायक हैं करतार सिंह. कॉलोनी के लोगों ने ‘आप’ और भाजपा के बीच चल रही टकराव को क्षेत्र के विकास न होने का कारण बताया.

परचून(जनरल स्टोर्स) की दुकान चलाने वाले अमन बताते हैं, ‘ पानी की दिक्कत को देखते हुए दो बोरिंग लगने थे. केजरीवाल सरकार ने यहां एक बोरिंग लगवाया था लेकिन दूसरे के समय यहां भाजपा और ‘आप’ के नेताओं में अनबन होने से वो लग नहीं पाया.’

शाम के 6 बज रहे थे. हमें क्षेत्र में एक निर्माणाधिन स्कूल दिखा. उसके आगे एक बोर्ड है. जिसपर गवर्नमेंट स्कूल लिखा है. लेकिन अंदर हमें गाय बंधी हुई दिखती है.

स्कूल के बगल में दुकान लगाने वाले प्रेमचंद्र के अनुसार, ‘लंबे समय से इस स्कूल का काम बीच में रोक दिया गया है. अब शाम होते ही इस स्कूल के मैदान में सब नशा करने वाले लोग इकठ्ठा हो जाते हैं. ऐसी आशंका है कि ये दोनों सरकारों के आपसी तालमेल न होने के वजह से हुआ हो. ’

चुनावी समीकरण

यह इलाका दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र में आता है. यहां से भाजपा से वर्तमान सांसद रमेश बिधूड़ी एक बार फिर से मैदान में हैं. वहीं कांग्रेस से विजेंद्र सिंह और आम आदमी पार्टी से राघव चड्ढा चुनाव लड़ रहे हैं.

गांव के प्रधान श्री चंद्र खामरा के मुताबिक इस इलाके में कुल 14 हज़ार के आसपास मतदाता हैं. जिनमें यहां के स्थानीय लोग और पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी शामिल हैं. नागिरकता मिलने से, आधार कार्ड बनने से, बैंकों में खाता खुलने से लोगों में उम्मीद जगी है.

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