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Wednesday, 24 April, 2024
होमविदेशदुनिया भर की औरतें सोशल मीडिया पर अंडरवियर की तस्वीरें क्यों लगा रहीं हैं

दुनिया भर की औरतें सोशल मीडिया पर अंडरवियर की तस्वीरें क्यों लगा रहीं हैं

आयरलैंड की संसद में एक महिला सांसद ने अंडरवियर दिखाकर यौन अपराधों के लिए महिलाओं के पहनावे को जिम्मेदार ठहराने पर विरोध जताया.

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दिस इस नो कंसेट (#thisisnoconsent) की गूंज दुनिया भर में है. पर आखिर मामला है क्या. मामला है आयरलैंड का जहां एक 17 साल की लड़की से बलात्कार के आरोप में 27 साल का लड़का बरी हो गया. तो क्या बलात्कार के कई मामलों में आरोपी छूट जाते हैं?

मामला इसलिए गर्मा रहा है क्योंकि अदालत में बचाव पक्ष की वकील, एलीज़ाबेथ ओ कोनलने अदालत में पीड़िता लड़की की चड्ढी दिखाई और ज्यूरी से कहा कि आप निर्णय लेते वक्त इसपर भी ध्यान दें कि वह कैसे कपड़े पहने हुए थी. उसने एक थॉन्ग पहना था जिसके सामने की तरफ लेस था. बचाव पक्ष का कहने का मतलब ये था कि उनके अंडरवियर से स्पष्ट था कि उन्होंने रेप की अनुमति दी.

पीड़िता को शर्मिंदा करने और दोष देने की इस कोशिश ने दुनियाभर में गुस्से और विरोध की आवाज़ को ताकत दी है. आयरलैंड के कॉर्क शहर में उस अदालत के बाहर करीब 200 विरोध प्रदर्शन करने वालों ने अंडरवियर रख दिये.

यहा तक की आयरलैंड की संसद में एक महिला सांसद ने अंडरवियर दिखाई. रूथ कॉपिंगर का कहना था कि जितना अजीब संसद में चड्ढी दिखाना था उतना ही अदालत में भी था. अगर हम इस आशा में संसद में चुपचाप बैठे रहेंगे कि बदलाव आयेगा तो ये कभी नहीं होगा. वे सोच रहीं थी कि अंडरवियर देख कर सदन में शोर मच जाएगा पर उनका सामना हुआ एक मुर्दानी चुप्पी से. हालांकि आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वरडकर ने अंतत: कहा कि कभी पीड़ित का दोष नहीं होता.

विरोध के स्वर अब दुनियाभर के सोशल मीडिया पर तेज़ हो रहे है. हैशटैग दिस इस नॉट कॉन्सेंट के तहत दुनिया भर में अंडरवियर की तस्वीरें लगाई जा रहीं है.

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जो बात हैरान परेशान करती है कि ये विकसित पश्चिमी देश की अदालत है, वह भी 21वीं सदी की. फैसला जिस आधार पर आया या जो सबूत पेश किया गया वो खाप पंचायत सरीखा है. लड़की के पहनावे ने लड़के को उसका बलात्कार करने का न्यौता दिया या फिर जो ऐसे कपड़े पहनती है उनको बलात्कार के लिए तैयार होना चाहिए.

क्या मानसिकता है ये जहां पीड़ित को दोषी माना जाता है. अगर उसने थॉन्ग न पहना होता तो क्या वो बच जाती? ऐसा सोचना भी पागलपन है.
इस कैंपेन को देखकर मुझे श्रीराम सेना के लड़कियों के पब जाने पर पिटाई करने की बात याद आ गई जिसका विरोध पिंक चड्ढी कैंपेन के ज़रिए हुआ था. पितृसत्तात्मक सोच कोई कम विकसित या विकासशील देशों का ट्रेडमार्क नहीं है. यह सोच पश्चिम के प्रगतिशील कहे जाने वाले समाज में भी रह रह कर सिर उठाती है.

इस सोच का नतीजा है कि बलात्कार की घटनाएं कम होने का नाम नहीं लेतीं और लड़कियां यौन अपराधों का शिकार होकर भी अदालत तक नहीं जाना चाहतीं. उन्हें इस बात का डर होता है कि उनका अदालत में फिर बलात्कार होगा- मानसिक बलात्कार, जो कि शायद सहन करना उतना ही मुश्किल हो.

लड़की के पहनावे, उसके आचरण, उसके उठने बैठने पर सवाल उठाने वाला समाज इस बात से विचलित नहीं होता कि वह किस गर्त में जा रहा है. यह कैसी सोच है जो कपड़ों के बहाने कुकर्म करने वाले को बचाने में लग जाती है. परिवार क्या सिखा रहे हैं अपने लड़कों को, समाज क्या बता रहा है अपनी बेटियों को?

जब तक समाज रेप जैसे जधन्य अपराध के लिए लड़कियों को – उनकी आदतों, आचरण, पहनावे, बॉडी लैंगुएज को ज़िम्मेदार ठहराता रहेगा, लड़कियों को चुप रहने पर मजबूर करता रहेगा, तब तक लड़कियां आवाज़ उठाएंगी और कहेंगी #thisisnoconsent.

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