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Thursday, 28 March, 2024
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अमरीका संग गोपनायिता पैक्ट पर सेना को ऐतराज़, पाकिस्तान तक डेटा लीक होने का जताया डर

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पेंटागन का मानना यह है कि यदि अमेरिका किसी देश को संवेदनशील सैन्य हथियार निर्यात करता है तो कानून द्वारा अनुबंध की आवश्यकता होती है।

नई दिल्लीः भारतीय सेना ने इस सितंबर में  दिल्ली में दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की पहली ‘2+2’वार्ता से पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सैन्य गोपनीयता संधि पर आपत्ति जताई है।

प्रस्तावित संचार संगतता और सुरक्षा समझौते पर बोलते हुए एक आधिकारिक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि “हम अपने कूट संचार से समझौता और पाकिस्तान को सूचनाओं का रिसाव करने का जोखिम उठा रहे हैं।”

एक नोट के माध्यम से सेना ने सरकार से पूछा है कि क्या संचार संगतता और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करना बुद्धिमानी होगी। सरकार अभी इसके बारे में विचार कर रही है।

नोट में दो बातों का जिक्र किया गया हैः

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1. अमेरिका से पूछा गया था कि क्या संचार संगतता और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने का यह मतलब हो सकता है कि यह भारतीय सेना के कूट संचार को सुन या देख सकता है।
अमेरिका ने जवाब दिया था कि हाँ ऐसा हो सकता है लेकिन आगे कहा था कि यह इसकी नीति नहीं है।

2. अमेरिका से पूछा गया था कि क्या यह जानकारी दूसरों के साथ साझा की जा सकती है, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ।

अमेरिका ने जवाब दिया था कि इसमें सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था है।

COMCASA एक समझौते का पुनः नामित संस्करण है जिसे पहली बार करीब 10 साल से अधिक समय पहले प्रस्तावित किया गया था –दि कम्यूनिकेशन्स इण्टरऑपरेबिलिटी एण्ड सीक्रेसी मेमोरेण्डम ऑफ एग्रीमेंट (CISMOA).
पेंटागन की स्थिति यह है कि अगर अमेरिका किसी देश को संवेदनशील सैन्य हथियार निर्यात करता है तो कानूनन संचार संगतता और सुरक्षा समझौते की आवश्यकता होती है। इसे दो सेनाओं के बीच का “फ़ाउंडेशन अग्रीमेंट” कहा जाता है।

टिप्पणी में सेना ने कहा कि भारत अमेरिका से संवेदनशील उपकरण खरीदने की तैयारी में था।

इसमें दो प्रमुख चीज़ें शामिल हैं:एम777 अल्ट्रा लाइट होइटसर (जिनमें से पहला भारत पहुँच गया है) और अपाचे एएच 64ई हमलावर हेलीकॉप्टर,जिसके लिए एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गएहैं।

एम777 भारी तोपखाना है जो सहजता से ले जाया जा सकता है। इसे पहाड़ों पर सड़क और हवाई जहाज से ले जाया जा सकता है। परंपरागत सैन्य भावना यह है कि भारत इन तोपों/बन्दूकों को चीन सीमा पर उपयोग के लिए खरीद रहा है।

अपाचे मलावर हेलीकॉप्टर, जिन्हें सेना द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है क्योंकि यह एक आकाशीय हथियार हैं जिनकी मांग भारतीय वायु सेना ने की थी,यह थल सेना का समर्थन करने के साथ-साथ दुर्गम इलाकों में शत्रुओं को खदेड़ने में सक्षम है। यह मुख्य रूप से पश्चिमी (पाकिस्तान) सीमा के लिए है।

अमेरिका के साथ अन्य “बुनियादी समझौते” हैं जिन पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। ये हैं:

1 एक अंत उपयोगकर्ता सत्यापन समझ,जिसके द्वारा अमेरिकी निरीक्षक प्रमाणित करते हैं कि“नियत उद्देश्य के लिए ही सैन्य प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है”।

2 एक सैन्य तंत्र समर्थन समझौता, भारत को विशिष्ट बनाने के लिए जिसका नाम बदलकर लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमो) रखा गया। यह दोनों देशों की सेनाओं को लागत के नकद भुगतान के बिना संयुक्त रूप से संचालित करने की अनुमति देता है लेकिन सुविधाओं को बाधित करने में सक्षम है।

दोनों समझौते 10 साल के लिए मान्य हैं, जिसके बाद उन्हें नवीनीकृत किया जाना है।

अमेरिका के साथ भारत का एक और सैन्य गोपनीयता समझौता है:सैन्य सूचना की सामान्य गोपनीयता समझौता (जीएसओएमआईए)। भारत, हालांकि, भारत संचार संगतता और सुरक्षा समझौता(COMCASA)की तुलना में जीएसओएमआईए को “हस्तक्षेप ना करने वाला” समझौता मानता है

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