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Friday, 29 March, 2024
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अलवर हत्याकांड के लिए गौ रक्षकों ने पुलिस को ठहराया दोषी

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रकबर खान की मृत्यु से पहले के कुछ घंटों के घटनाक्रम में गौरक्षक समूहों और स्थानीय पुलिस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर रहा।

अलवरः गाय तस्करी के आरोप में एक और व्यक्ति की नृशंस हत्या ने राजस्थान के अलवर जिले को फिर से हिलाकर रख दिया है। इस मामले में व्यक्ति की मौत से कुछ घंटे पहले पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
शुक्रवार देर रात को अलवर के रामगढ़ कस्बे में गाय तस्करी के आरोप में ग्रामीणों में दो युवा मुस्लिम व्यक्तियों पर हमला कर दिया था। दोनों व्यक्तियों में रकबर खान (28) की कथित तौर पर पिटाई से मौत हो गई थी जबकि दूसरा व्यक्ति असलम बचकर भागने में कामयाब रहा।

जैसा कि अधिकारियों ने बताया, पुलिस ने इस मामले में अभी तक तीन “गौ रक्षकों” को गिरफ्तार किया है। हालांकि स्थानीय गौरक्षा दलों ने आरोप लगाया है कि पीड़ित की पुलिस हिरासत में मौत हुई थी न कि भीड़ द्वारा हिंसा के कारण।

चार आरोपियों में से दो -प्रजीत सिंह और धर्मेंद्र यादव

पुलिस की भूमिका

स्थानीय गौरक्षक दलों और अधिकारियों के आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच, इस मामले में कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं।

अपनी स्वयं की एफ़आईआर के अनुसार, पुलिस को शनिवार को रात 12:40 पर सूचना मिली थी कि गोवध के इरादे से गायों को लेकर जा रहे दो पैदल व्यक्तियों पर ग्रामीणों द्वारा हमला कर दिया गया है। सूचना मिलने के आधे घंटे के भीतर ही पुलिस लल्लावंडी के जंगल में घटना स्थल पर पहुँच गई थी, लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के रिकॉर्ड के अनुसार पीड़ित के शरीर को 3 घंटों के लंबे समय के बाद सुबह 4 बजे अस्पताल लाया गया था। यह अस्पताल रामगढ़ पुलिस स्टेशन से मुश्किल से 1 किलोमीटर ही दूर है। सामुदायिक रामगढ़ के एक स्थानीय गौरक्षक दल के प्रमुख और विश्व हिन्दू परिषद के एक सदस्य नवल किशोर शर्मा ने पूछा है कि “यह कैसे संभव है कि एक मरते हुए आदमी को अस्पताल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए जो कि मुश्किल से 5-6 किलोमीटर ही दूर है?” केन्द्र के रिकॉर्ड की एक प्रतिलिपि दिप्रिंट के पास है।

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गौरक्षक दलों के एक शक्तिशाली संरक्षक माने जाने वाले ज्ञान देव आहूजा से रामगढ़ क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक ने पूछा कि “1-4 के बीच में पुलिस क्या कर रही थी?” उन्होंने बताया कि “ग्रामीणों ने तो उस व्यक्ति की हल्की पिटाई की थी लेकिन पुलिस ने ही उसको पीट-पीटकर मार डाला।”

रामगढ़ के एक स्थानीय गौरक्षक दल के प्रमुख और विश्व हिन्दू परिषद के एक सदस्य नवल किशोर शर्मा ने पूछा है कि “यह कैसे संभव है कि एक मरते हुए आदमी को अस्पताल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए जो कि मुश्किल से 5-6 किलोमीटर ही दूर है?”

नवल किशोर शर्मा , लोकल विहिप नेता

स्थानीय स्तर पर चर्चाओं में रहने वाले शर्मा ने ही शनिवार की सुबह पुलिस को गाय तस्करी के बारे में सूचना दी थी।

शर्मा के अनुसार, रात 12:50 बजे पुलिस की गाड़ी के साथ जब वह घटना स्थल पहुँचा तो रकबर को पीटने वाले कई ग्रामीण भाग गए। हालांकि उनको सूचित करने वाले दो लोग – धर्मेन्द्र यादव (24) और परमजीत सिंह (28) वहीं ठहरे रहे। दोनों को शनिवार को ही गिरफ्तार कर लिया गया जबकि तीसरे आरोपी नरेश चंद (25) को रविवार को गिरफ्तार किया गया था।

शर्मा ने इस हत्या में उनकी भूमिका की किसी भी संभावना से इंकार करते हुए कहा है कि “जिन लड़कों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है उन्होंने ही मुझे इसके बारे में सूचित किया था….अगर उन्होंने उसको मारा होता तो वे पुलिस को देखकर भाग जाते,”

उस समय रकबर पिटाई से घायल था और मिट्टी में लथपथ था लेकिन उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब नहीं थी। उन्होंने बताया कि “दोनों लड़के वहां रूके रहे और कार में उसको बैठाने में पुलिस की मदद की।” कार में बैठे हुए रकबर की ली गई फोटो को दिखाते हुए शर्मा ने बताया, “उसकी हालत खराब नहीं थी, यहाँ तक कि हम लोग चाय पीने के लिए भी रूके थे।”

उन्होंने बताया, “पुलिस ने उसे स्टेशन के भीतर ही मार डाला और अपने आप को बचाने के लिए इन दो लड़कों को गिरफ्तार कर लिया।” उन्होंने आगे बताया कि “हम गायों को छोड़ने के लिए गौशाला गए थे और जब वापस आए तब वह मर चुका था।”

कथित सहयोग

शर्मा द्वारा लगाए गए पुलिस हिंसा के आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी है। पुलिस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है।

हालांकि, पुलिस और कथित हत्यारों के बीच की मिलीभगत और सहयोग की कहानी की सामुदायिक रामगढ़ के एक स्थानीय गौरक्षक दल के प्रमुख और विश्व हिन्दू परिषद के एक सदस्य नवल किशोर शर्मा ने पूछा है कि “यह कैसे संभव है कि एक मरते हुए आदमी को अस्पताल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए जो कि मुश्किल से 5-6 किलोमीटर ही दूर है?” केन्द्र के चिकित्सक द्वारा भी पुष्टि की गई है जिन्होंने पुष्टि की है कि पीड़ित को मृत लाया गया था।

पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने से घंटों पहले यादव और सिंह पुलिस वैन में पुलिस और पीड़ित के साथ अस्पताल गए थे जहाँ वे पुलिस की सहायता कर रहे थे।

अलवर के रामगढ़ गाँव के सामुदायिक रामगढ़ के एक स्थानीय गौरक्षक दल के प्रमुख और विश्व हिन्दू परिषद के एक सदस्य नवल किशोर शर्मा ने पूछा है कि “यह कैसे संभव है कि एक मरते हुए आदमी को अस्पताल ले जाने में पुलिस को तीन घंटे लग गए जो कि मुश्किल से 5-6 किलोमीटर ही दूर है?” केन्द्र के चिकित्सा अधिकारी और प्रभारी डॉ. हसन अली खान ने दिप्रिंट को बताया कि “वे पुलिस के साथ ही वैन में आए थे और स्ट्रेचर पर पीड़ित को लाए थे।” उन्होंने बताया, “उस समय हमें आश्चर्य नहीं हुआ था कि वे कौन थे। हालांकि, गिरफ्तार किए गए लोगों की तस्वीर दिखाए जाने पर खान ने पुष्टि की कि दरअसल वही पुलिस की मदद कर रहे थे।

खान ने पूछा कि “पीड़ित को अस्पताल ले जाने में पुलिस आरोपी की मदद क्यों लेगी?” यह काफी आश्चर्यजनक है।
हालांकि, शर्मा के दावे के विपरीत कि पुलिस स्टेशन पर लाए जाने के बाद रकबर लंबे समय तक जिंदा था, खान ने बताया कि “ऐसा लगता था कि उसकी मौत 2-3 घंटे पहले ही हो गई थी।”

पुलिस की सफाई

जब पूछा गया कि क्या वास्तव में पुलिस आरोपी को अस्पताल ले गई थी तो रामगढ़ पुलिस स्टेशन प्रभारी सुभाष शर्मा ने इस तरह के किसी भी दावे का इंकार कर दिया था। उन्होंने कहा, “अगर डॉक्टर यह सब कह रहे हैं तो हम इसमें कोई मदद नहीं कर सकते?”

रकबर को अस्पताल ले जाने के समय के बारे में पूछने पर शर्मा ने बताया कि “हम उनके दोस्त की तलाश में थे जो यह सुनिश्चित करने के लिए उनके साथ था कि वह ठीक है या नहीं। कोई व्यक्ति दूसरे कामों में भी व्यस्त हो सकता है।”

प्राथमिकी के अनुसार, बेहोश होने से पहले रकबर ने स्वयं को पुलिस के समक्ष प्रमाणित किया और पुलिस को पूरा किस्सा सुनाया।दिप्रिंट को प्राप्त प्राथमिकी की एक प्रतिलिपि के अनुसार रकबर कहता है कि “कुछ लोगो मेरे पास आए, हमें रोका और हमें पीटना शुरू कर दिया क्योंकि उनको लगता था कि हम गाय तस्कर हैं।” प्राथमिकी से पता चलता है कि बेहोश होने से पहले उसने और बताया कि, “इस हालत में मेरा दोस्त असलम तो भागने में कामयाब रहा लेकिन गाँव वालों ने मुझे लाठी डंडों से पीटा जिसकी वजह से मुझे चोटें लगी हैं।”

अलवर के पुलिस अधीक्षक राहुल प्रकाश ने रविवार को मीडिया को बताया है कि “हम सभी पहलुओं से मामले की जाँच करने जा रहे हैं। और अगर पुलिस ने अपना काम सही तरीके से नहीं किया है तो हम तदनुसार कार्यवाई करेंगे।”

बढ़ता खतरा

रकबर मजदूरी करके और गाय का दूध बेचकर अपने परिवार को पालता था। अब उसके परिवार, जिसमें उसकी पत्नी और सात बच्चे शामिल हैं, को अपने एकमात्र कमाने वाले के बिना ही जिंदा रहने के तरीकों पर विचार करना होगा।

यह मामला एक ऐसे समय में सामने आया है जब कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर अपना कड़ा रूख अपनाते हुए राज्य सरकारों को इसके बढ़ते हुए खतरों से निपटने के लिए नए कानूनों को लागू करने पर विचार करने के लिए कहा था।

अलवर मवेशियों पर नजर रखने वाले समूहों के लिए कुख्यात हो गया है जो गाय तस्करी की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए गाँवों और राजमार्गों पर नियमित गश्त करते रहते हैं। पिछले साल 55 वर्षीय पहलू खान को भी संदिग्ध गौरक्षक दल के सदस्यों द्वारा पीट-पीटकर मार डाला गया था जबकि वह केवल गायों को लेकर जा रहे थे।

Read in English : Alwar lynching: Cow protection groups blame police for the murder of Muslim man

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