scorecardresearch
Thursday, 28 March, 2024
होमदेशबिहार के पूर्व MP आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ SC पहुंची IAS कृष्णैया की पत्नी, यहां से मिला समर्थन

बिहार के पूर्व MP आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ SC पहुंची IAS कृष्णैया की पत्नी, यहां से मिला समर्थन

1985 बैच के आईएएस अधिकारी कृष्णैया, जो वर्तमान तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे, को लगभग तीन दशक पहले 5 दिसंबर, 1994 को एक भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था.

Text Size:

नई दिल्ली: 1994 में हुई हत्या के लिए दोषी ठहराए गए बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देते हुए गोपालगंज के मारे गए मजिस्ट्रेट जी कृष्णैया की पत्नी ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

उमा कृष्णैया ने पहले कहा था कि आनंद मोहन को रिहा करने का बिहार सरकार का फैसला “अच्छा फैसला नहीं था.”

याचिका में कहा गया है, “यह प्रस्तुत किया गया है कि यह कानून का सुस्थापित सिद्धांत है कि जीवन के लिए कारावास का अर्थ जीवन का पूर्ण प्राकृतिक पाठ्यक्रम है और यांत्रिक रूप से 14 वर्ष की व्याख्या नहीं की जा सकती है. इसका मतलब है कि आजीवन कारावास आखिरी सांस तक रहता है.”

“यह स्थापित कानून है कि मौत की सजा के विकल्प के रूप में एक दोषी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को अलग तरह से देखा जाना चाहिए और पहली पसंद की सजा के रूप में दिए गए सामान्य आजीवन कारावास से अलग किया जाना चाहिए.”

इसमें आगे कहा गया, “आजीवन कारावास, जब मौत की सजा के विकल्प के रूप में दिया जाता है, तो उसे अदालत द्वारा निर्देशित सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और यह छूट के आवेदन से परे होगा.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

1985 बैच के आईएएस अधिकारी कृष्णैया, जो वर्तमान तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे, को लगभग तीन दशक पहले 5 दिसंबर, 1994 को एक भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था.

2007 में, एक अदालत ने सात लोगों को दोषी ठहराया था और शेष 29 को बरी कर दिया गया था. आनंद मोहन को बाद में मृत्युदंड दिया गया था, लेकिन अगले साल पटना उच्च न्यायालय ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था.

इस मामले पर एक कानूनी सलाहकार आतिश माथुर ने दिप्रिंट से कहा, “सिविल सेवक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अथक रूप से काम करते हैं और उनके काम का सम्मान करते हुए इस तरह के अपवाद को तुरंत बाहर करना न केवल स्टील फ्रेम के लिए अपकार है बल्कि कानून में भी संदिग्ध है.”

एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तान्या श्री ने कहा, “श्रीमती. कृष्णैया अपने पति की हत्या के दोषी आनंद मोहन को छूट देने के राज्य सरकार के आदेश का विरोध करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटा रही हैं, इस आधार पर कि यह शीर्ष अदालत के फैसलों के खिलाफ है और बाहरी विचारों पर आधारित है.”

इसी बैच के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी संजीव चोपड़ा ने उमा कृष्णैया के फैसले का स्वागत किया है. “1985 बैच की ओर से, हम उम्मीद कर रहे हैं कि हमें न्याय मिलेगा. हमें सुप्रीम कोर्ट में भरोसा है.’

चोपड़ा ने कहा, “बहुत से लोगों ने दान के आह्वान पर अनुकूल प्रतिक्रिया दी है. हमारे समूह के अलावा, हमें एआईएस और केंद्रीय सेवाओं में कई राज्य संघों और व्यक्तिगत सदस्यों से फंडिग प्राप्त हुआ है.”

1985 बैच के एक और रिटायर्ड आईएएस अधिकारी संजीव गुप्ता का मानना ​​है कि यह लड़ाई लंबी होगी. उन्होंने कहा, ‘लड़ाई बहुत लंबी होगी क्योंकि वह अभी बाहर हैं लेकिन हमें अपने साहस पर भरोसा है. हम सब इसमें एक साथ हैं.”

आनंद मोहन के जेल से रिहा होने की खबर आने के बाद गुप्ता ने इससे पहले ट्वीट्स की एक श्रृंखला पोस्ट की थी.

नीतीश सरकार की निंदा

उमा कृष्णैया के लिए आंध्र प्रदेश सहित विभिन्न आईएएस संघों से समर्थन आया था, जो उस समय उनके पति का गृह राज्य था.

एसोसिएशन ने ट्वीट कर कहा, “कैदियों के वर्गीकरण नियमों में बदलाव करके गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी स्वर्गीय श्री जी कृष्णैया, आईएएस की नृशंस हत्या के दोषियों को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन गहरी निराशा व्यक्त करता है.”

“ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के आरोप में एक दोषी को कम जघन्य श्रेणी में फिर से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है. एक मौजूदा वर्गीकरण में संशोधन जो रिलीज की ओर ले जाता है.ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक के सजायाफ्ता हत्यारे की हत्या न्याय से इंकार करने के समान है.”

आंध्र प्रदेश के आईएएस एसोसिएशन ने भी बिहार सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई.

उन्होंने ट्विटर पर एक प्रेस नोट पोस्ट करते हए कहा, “अगर ऐसे अधिकारी पर हमला किया जाता है, तो यह संविधान और राज्य की अवधारणा और कार्यप्रणाली के लिए एक खुली चुनौती है. यदि चुनौती का उपयुक्त, सुसंगत और निरंतर प्रतिक्रिया के साथ सामना नहीं किया जाता है, तो यह संविधान की नींव को नष्ट कर देगी. इस संदर्भ में, राज्य सरकार के आदेश अनुचित हैं और इसने भविष्य के लिए खतरनाक मिसाल कायम की है.”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के अध्यक्ष रामदास अठावले और कई अन्य, जिनमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लोग भी शामिल थे. उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विवादित फैसले की आलोचना की.

मायावती ने एक प्रेस वार्ता में कहा था, “आनंद मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम श्री कृष्णैया की हत्या के मामले में नीतीश सरकार के दलित विरोधी और अपराध-समर्थक कार्य ने पूरे दलित समाज में बहुत रोष पैदा किया है.”

“अगर कोई मजबूरी है, तो भी बिहार सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ेंः गैंगस्टर्स एक्ट: मुख्तार अंसारी पर योगी सरकार की कार्रवाई के पीछे का क्या है विवादास्पद कानून


share & View comments