scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमरिपोर्ट'20 रुपये के लिए लड़ाई' - AAP और BJP शासित MCD के बीच के झगड़ों ने गौ माता को अधर में छोड़ रखा है

’20 रुपये के लिए लड़ाई’ – AAP और BJP शासित MCD के बीच के झगड़ों ने गौ माता को अधर में छोड़ रखा है

दिल्ली में पशु आश्रयों, जिन्हें प्रति गाय 40 रुपये प्रति दिन मिलना चाहिए था, उन्हें साल 2018 के बाद से केवल 20 रुपये ही मिल रहे हैं. भाजपा के नेतृत्व वाली एमसीडी ने आरोप लगाया कि यह उनकी जिम्मेदारी नहीं है और इसे आप सरकार को उठाना चाहिए.

Text Size:

नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में कहा था कि अगर आप गुजरात में सत्ता में आती है, तो वे सभी पशु पालकों को हर गाय के लिए 40 रुपये प्रति दिन का भरण-पोषण भत्ता देंगे, जैसा कि वे दिल्ली में करते हैं. लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में आप और भाजपा के बीच की तनातनी ने तमाम गौशालाओं को परित्यक्त महसूस करा रखा है.

आप के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार और भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के बीच लंबित सरकारी बकाया, अपर्याप्त धनराशि, गौशालाओं के रखरखाव आदि की बढ़ती लागत के लिए लगातार चलने वाले झगड़ों का अर्थ यह है कि अधिकांश गौशाला संचालकों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वे निर्धारित क्षमता से अधिक पशुओं के साथ इन गौशालाओं को चलाने के लिए अधिक से अधिक कर्ज ले रहे हैं.

इनके हालात का जायजा लेने के लिए दिप्रिंट ने उत्तर पश्चिमी दिल्ली के बवाना स्थित श्री कृष्ण गौशाला और दक्षिण पश्चिम दिल्ली की सुरहेरा बनी डाबर हरे कृष्ण गौशाला का दौरा किया.

ये दोनों शहर के कुल चार सरकार से संबद्ध पशु आश्रयों में शामिल हैं. अन्य दो शहर के उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम भागों में क्रमशः हरेवाली स्थित गोपाल गौसदन और रेवला खानपुर में संचालित मानव गौसदन हैं.

वे सभी दिल्ली सरकार से प्रतिदिन प्रत्येक गाय के लिए 20 रुपये प्राप्त कर रहे हैं, जबकि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) से मिलने वाली इतनी ही राशि का भुगतान साल 2018 से लंबित है. प्रावधानों के अनुसार हरेक गाय के रख-रखाव के लिए गौशाला मालिकों को कुल मिलाकर, 40 रुपये की सरकारी सहायता प्रतिदिन प्रदान की जानी चाहिए.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जैसे-जैसे आप बवाना आश्रय स्थल का दौरा करते हैं आप देख सकते हैं कि गायों का एक बड़ा सा झुंड एक कतार में खड़ा होकर पूंछ हिला रहा है, उनके मुंह से लार टपक रही है क्योंकि वे खाना खाने के लिए तैयार दिखती हैं.

इन गायों, जो घायल, परित्यक्त, या जन्म से दोषयुक्त पाई गईं थी, को एमसीडी ने शहर के पशु आश्रयों में रख रखा है और यहां उनका पुनर्वास किया गया है. हालांकि, जब आश्रय मालिकों को आर्थिक रूप से मुआवजा देने का समय आया, तो इन जानवरों के प्रति उनकी जिम्मेदारी थम सी गई .

श्री कृष्ण गौशाला में 7,600 मवेशियों की निर्धारित क्षमता के मुकाबले फिलहाल लगभग 8,500 गायें हैं.

यहां के जेनरल मैनेजर विजयेंद्र ध्यानी कहते हैं, ‘एक गाय का प्रतिदिन का खर्च लगभग 103 रुपये है, जो यहां की सभी गायों के लिए कुल 8 लाख रूपये प्रतिदिन का खर्च बनता है. फिर कर्मचारियोंके वेतन, अस्पताल के बिलों, दवाओं और बिजली के लिए अतिरिक्त खर्च होते हैं. आने वाली गायों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. उनका रखरखाव 300 लोगों की एक टीम द्वारा किया जा रहा है जो उनकी सेवा करते हैं. दिल्ली सरकार हमें उसके हिस्से का पैसा भेज रही है, लेकिन पिछले 3-4 साल से एमसीडी का फंड नहीं आया है. हमारी सारी निर्भरता अब दान पर है.’

लंबित भुगतान के बारे में पूछे जाने पर, एमसीडी के पशु चिकित्सा विभाग के निदेशक डॉ वीके सिंह ने कहा कि वह गौ आश्रयों के विषय पर टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि यह पशुपालन विभाग के अंतर्गत आता है, जो दिल्ली सरकार के अधीन काम करता है.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह (गोशाला) दिल्ली सरकार के सीधे प्रशासनिक नियंत्रण में आता है. उनका आवंटन उनके ही द्वारा किया जाता है. यह मामला फिलहाल न्यायालय में विचाराधीन है, जहां गौशाला प्रशासन ने भुगतान को लेकर मामला दर्ज करा रखा है. अधिनियम के अनुसार, शेड बनाने से लेकर उनकी देखभाल करने तक का पूरा भुगतान दिल्ली सरकार द्वारा किया जाना है – यह सब उनका ही दायित्व माना जाता है.’

इन दावों का खंडन करते हुए, दिल्ली सरकार के पशुपालन निदेशक, डॉ राकेश सिंह ने कहा कि गौसदन उनके हो सकते हैं, लेकिन यह एमसीडी ही है जो आवारा मवेशियों को वहां रख रही है, इसलिए उनकी जिम्मेदारियों को साझा किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘हम नियमित आधार पर (अपने हिस्से के) शुल्कों का भुगतान कर रहे हैं. हमने पिछले चार-पांच साल में करीब 80 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और एमसीडी को तरफ से करीब 25 करोड़ रुपये का भुगतान लंबित हैं. इन गौशालाओं द्वारा उत्तरी दिल्ली नगर निगम (नार्थ एमसीडी) के खिलाफ उसकी तरफ से भुगतान न किये जाने को लेकर अदालत में मुकदमा किया गया है, लेकिन हमें भी इस मुकदमे का हिस्सा बनाया गया है. हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं है. वे आरोप लगा रहे हैं कि यह हमारी जिम्मेदारी है लेकिन यह सच नहीं है. अदालत के पहले के आदेश के अनुसार एमसीडी को पैसे देने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अब वे अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहे हैं.‘

ऋण और दान से चल रहा है काम

केजरीवाल द्वारा दिल्ली में गौ आश्रय के लिए सरकारी योजना के लिए अपनी पीठ ठोकने के विपरीत, जमीन पर हालात बिलकुल अलग है, क्योंकि सुरक्षित बचाई गई गायों के ये आश्रय स्थल भारी कर्ज में डूबे हुए हैं.

ध्यानी ने कहा, ‘हम पर कुछ किसानों और ग्रामीणों का करीब 5 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है, जिनसे हमने गायों के लिए चारा खरीदा है. हमें उन्हें पैसा चुकाना है. हम गायों के स्वास्थ्य और उनके कल्याण से भी समझौता नहीं कर सकते. हालांकि, आज के समय में, आप 40 रुपये में दो कप चाय भी नहीं खरीद सकते हैं, फिर भी यह थोड़ी बहुत सहायता तो है जो अपनी क्षमता अनुसार हमें हमारा खर्च चलाने में मदद करती है. अभी के लिए, हमारे ट्रस्टी चंदा मांगते हैं, आम जनता से पैसे इकट्ठा करते हैं और उसके माध्यम से ही हम इस आश्रय को चला रहे हैं.’

सुरहेरा स्थित डाबर हरे कृष्ण गौशाला की वित्तीय स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. यह गौशाला 4000 मवेशियों की उसकी निर्धारित क्षमता से परे चली गई है और अब 5000 गायों की देखभाल कर रही है, जिनमें से हरेक पशु पर प्रति दिन 100 रुपये से अधिक का खर्च होता है.

यहां के अध्यक्ष कृष्ण यादव ने कहा, ‘चारा/घास जो 70-100 रुपये प्रति क्विंटल हुआ करता था, अब 1600-1800 रुपये प्रति क्विंटल का है. यदि हमारे पास पर्याप्त धन नहीं होता है, तो हम पशुधन के रखरखाव के लिए आवश्यक सामग्री उधार लेते हैं. उधार लेने से सामग्री की लागत कहीं अधिक पड़ती है.’

वह सवाल उठाते हैं कि आखिर कब तक वे कर्ज लेकर काम करते रह सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमने पैसे के कारण गायों को कभी कष्ट नहीं होने दिया. हमारा उद्देश्य/विजन गायों को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करने देना है. हम उन्हें कभी ऐसी स्थिति में नहीं डालेंगे, जहां उन्हें सड़कों पर भटकना पड़े या प्लास्टिक खाना पड़े. हम समाज के सदस्यों, अपने दोस्तों आदि से चंदा लेने की कोशिश करते हैं, और कभी-कभी मैं अपने निजी व्यवसाय से भी योगदान देता हूं.‘


यह भी पढ़ें- ‘प्राउड ऑफ यू माई लॉर्ड’: HC जजों को लोगों के बीच मशहूर करते कोर्ट कार्यवाही के वीडियो


 

मवेशियों का खतरा

इन चार सरकारी सहायता प्राप्त गौ आश्रयों के अलावा, शहर में कई अन्य ऐसी आश्रय स्थल भी हैं जो सार्वजनिक धनराशि पर चलते हैं. ऐसी ही एक जगह है नजफगढ़ की 150 साल पुरानी दिल्ली गेट गौशाला.

यह पूरी तरह से इससे जुड़े 130 गांवों के निवासियों द्वारा दान किए गए धन पर चलता है. उनका मानना है कि वे गायों के कल्याण के लिए ‘सरकारी’ आश्रयों के बराबर ही काम करते हैं. और अपने 80 कामगारों के वेतन भुगतान, माल ढोने लिए ट्रैक्टरों पर आने वाले खर्च और पानी, बिजली के बिलों का भुगतान करने के लिए पैसों की कमी का सामना करने के बावजूद, उन्होंने सरकार से किसी भी ‘सहायता’ की इच्छा व्यक्त नहीं की.

Cows at the 150-year old Delhi Gate Gaushala in Najafgarh. | ThePrint / Sukriti Vats
नजफगढ़ में 150 साल पुरानी दिल्ली गेट गौशाला में गायें। | दिप्रिंट / सुकृति वत्स

इस आश्रय स्थल के प्रबंधक नरेश ने कहा, ‘हमने एक बार एक बैठक की थी, जहां सभी गांवों के प्रमुख सिफारिशें करने के लिए एकत्र हुए थे. वहां यह निष्कर्ष निकला कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे सभी आश्रय स्थल भी बहुत कामयाब नहीं हैं. वे गाय का पालन-पोषण उस तरह नहीं करते जैसा उन्हें करना चाहिए. उन्हें केवल 40 रुपये मिलते हैं, जबकि एक गाय का खर्च सैकड़ों में आता है.’

नरेश ने यह भी बताया कि कैसे गाय का दूध, जो वैसे तो राजस्व का एक अच्छा स्रोत हो सकता था, आश्रय स्थलों के मामले में काम नहीं करता क्योंकि वे आम तौर पर नर बछड़ों, बूढ़ी गायों या दूध न देने के कारण बेसहारा छोड़े गए गायों को रखते हैं. दिल्ली गेट गौशाला के कुल 12,000 से 13,000 गोधन में से 200 गायें ही दूध देने वाली हैं, जबकि श्री कृष्ण गौशाला में 8,000 से अधिक गोधन में 6,000 नर हैं.

डाबर हरे कृष्ण गौशाला के कृष्ण यादव ने कहा, ‘आम जनता कब तक पैसा देते रह सकती है? सड़कों पर अवांछित गायों की सांख्य बढ़ती जा रही है, और इसी तरह से सामान की कीमतें भी तेज होती जा रही है. इस स्थिति में जो किया जा सकता है वह यह है कि शहरों के बीचों-बीच सरकारी जमीनों, पार्कों पर स्थापित होने वाली अवैध डेयरियों को नियंत्रित किया जाए. गायों का सारा दूध निचोड़ लेने के बाद जब वे उनके (डेयरी के मालिकों के) लिए आर्थिक रूप से सही नहीं रह जाती है, तो वे उन्हें सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ देते हैं.’

इसे लेकर आप और भाजपा के बीच भी झड़पें हुईं है, जिनके तहत आप ने भाजपा पदाधिकारियों पर उन अवैध डेयरियों को नियंत्रित करने में विफल रहने का आरोप लगाया है जो अपने मवेशियों को त्याग देती हैं या उन्हें कचरे के ढेरों से खाना खाने के लिए खुला छोड़ देती हैं.

दूसरी ओर, भाजपा ने इन दावों को ‘सस्ती राजनीति’ कहकर खारिज कर दिया था.

लापता आश्रय स्थल

यादव ने दावा किया कि शुरू में पांच से छह सरकारी आश्रय स्थल हुआ करते थे, लेकिन ‘कुप्रबंधन’ और ‘सरकारी समर्थन की कमी’ के कारण उनकी संख्या को घटाकर चार कर दिया गया था .

दिल्ली योजना विभाग के अनुसार, दिल्ली के विभिन्न इलाकों में गैर सरकारी संगठनों द्वारा 10 गौसदन स्थापित किए जाने थे, लेकिन केवल सात ही स्थापित किए जा सके, क्योंकि शेष ‘ग्राम सभा की भूमि के आवंटन के खिलाफ दायर कानूनी मामलों / ग्रामीणों द्वारा विरोध में फंस गए’ थे.

इन सात में से, ‘सुल्तानपुर डबास में सुरभि गौसदन, मलिकपुर में कृष्ण कन्हैया गौसदन और घुम्मनहेड़ा में आचार्य सुशील मुनि गौसदन’ फ़िलहाल कार्यरत नहीं कर रहे हैं.

हालांकि, एमसीडी के पशु चिकित्सा विभाग ने इस बात की पुष्टि की कि वर्तमान में केवल चार गौशालाएं ही काम कर रही हैं, मगर वे इस स्थिति के कारणों के बारे में स्पष्ट नहीं थे. दूसरी ओर, दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग ने कहा कि इसके लिए वे जवाबदेह नहीं हैं.

राकेश सिंह ने कहा, ‘हमने (दिल्ली सरकार ने) ये मवेशी शेड नहीं बनाये हैं. उन सभी गौशालाओं को गैर सरकारी संगठनों द्वारा विकसित किया गया है. हम उन्हें केवल रखरखाव शुल्क दे रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें-उंधेला के मुस्लिम निवासी बोले-नए सरपंच ने गांव में गरबा शुरू कराने की कसम खाई, इसीलिए भड़का विवाद


share & View comments