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Friday, 29 March, 2024
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बीएल संतोष होंगे बीजेपी के नए संगठन मंत्री, क्यों महत्वपूर्ण है बीजेपी में संगठन मंत्री का पद?

बीएल संतोष की संगठन मंत्री के रूप में नियुक्ति का एक मतलब बीजेपी के दक्षिण भारत में अपनी जड़ें ज़माने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है.

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नई दिल्लीः दक्षिण भारत में बीजेपी संगठन का काम देख रहे बी एल संतोष बीजेपी के नए संगठन मंत्री होगें .रामलाल की आरएसएस कैडर में वापसी के बाद संगठन महासचिव के पद पर चार सह-संगठन मंत्रियों में शामिल संतोष को बीजेपी अध्यक्ष शाह ने इस पद पर नियुक्ति के लिए चुना है. संतोष की नियुक्ति का एक मतलब बीजेपी के दक्षिण भारत में अपनी जड़ें ज़माने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है और 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी तेलंगाना आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनाव में राज्य के मुख्य विपक्षी दल के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहती है.

बीजेपी संगठन में अध्यक्ष के बाद सबसे ताक़तवर पद संगठन महासचिव का माना जाता है. जिसके लिए आरएसएस अपने कैडर से किसी प्रचारक को डेप्युटेशन पर एक समय सीमा के लिए बीजेपी भेजता है. जिसकी ज़िम्मेदारी दोनों संगठनों के बीच समन्वय का काम देखना होता है. संगठन महासचिव का यह पद बीजेपी संगठन के पावर श्रृंखला में महासचिव और उपाध्यक्ष के पद से महत्वपूर्ण माना जाता है .

कौन है बी एल संतोष

कन्नड़ तमिल हिन्दी अंग्रेज़ी तेलुगु जैसी पांच भाषाओं के जानकार बी एल संतोष बीजेपी संगठन में अब तक रामलाल के नीचे सह-संगठन मंत्री का काम देख रहे थे. कर्नाटक से संबंध रखने वाले संतोष को दक्षिण भारत में बनी पहली बीजेपी सरकार के पीछे रणनीतिकार माना जाता है. पेशे से इंजीनियर संतोष को लोकसभा चुनाव के दौरान ढेर सारे प्रोफ़ेशनल को में जोड़ने के लिए याद किया जाता है.

बी एल संतोष को संगठन मंत्री बनाये जाने के बाद सह संगठन मंत्री वी सतीश, शिव प्रकाश और सौदान सिंह उनके साथ काम करेंगे.

कौन हैं वी सतीश ?

आरएसएस के गढ़ नागपुर ज़िले में जन्मे वी सतीश इस समय बीजेपी संगठन में सह संगठन मंत्री का दायित्व निभा रहे है और आमतौर पर मीडिया से दूर रहने वाले सतीश के ज़िम्मे पश्चिमी भारत के बड़े राज्य है जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और आंघ्र प्रदेश शामिल हैं. गुजरात में संगठन मंत्री के रूप में काम करने के कारण वी सतीश प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के क़रीबी माने जातें है .उत्तर पूर्व के राज्य ख़ासकर असम में काम करने वाले वी सतीश का प्रचारक जीवन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ है

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पश्चिम बंगाल में भाजपा को मज़बूत करने वाले- शिव प्रकाश

पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बूथ लेवल से राज्य स्तर तक संगठन की नींव बनाने वाले शिव प्रकाश बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ तारतम्य बिठाकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखा चुके हैं. चार सह संगठन मंत्री में शामिल शिव प्रकाश के पास उत्तराखंड का भी दायित्व है. 2014 लोकसभा चुनाव में शिव प्रकाश की संगठनात्मक क्षमताओं से वाक़िफ़ हुए अमित शाह ने 2015 में लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल की ज़िम्मेदारी शिव प्रकाश के हवाले कर दी थी. शिव प्रकाश ने बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और अरविन्द मेनन के साथ मिलकर 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का मत प्रतिशत 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 11 प्रतिशत तक पंहुचा दिया और पंचायत चुनावों में यह 40 प्रतिशत तक पहुंच गया.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 18 सीटें दिलाकर शिव प्रकाश ने अपनी संगठनात्मक क्षमता का लोहा मनवाया. निर्णय लेने की प्रक्रिया में ठसक दिखाने वाले शिवप्रकाश को कई बार बीजेपी के जनाधार वाले नेताओं से मुठभेड़ भी करनी पडी है. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले उत्तराखंड बीजेपी की कोर कमेटी की एक बैठक में एक उम्मीदवार विशेष की तरफ़दारी करने पर पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने शिवप्रकाश को जमकर लताड़ा था.

क्यों है महत्वपूर्ण बीजेपी संगठन मंत्री का पद?

बीजेपी संगठन मंत्री की नियुक्ति के लिए संघ की तरफ से प्रचारक डेप्युटेशन पर भेजें जाते हैं जो मुख्य रूप से आरएसएस सुप्रीमो के निर्देशों को बीजेपी में लागू कराने का काम देखते है. आरएसएस और बीजेपी के बीच समन्वय का काम देखना संगठन मंत्री का मुख्य काम है. रोज़मर्रा के कामों के साथ संघ की विचारधारा के मुताबिक बीजेपी चले, इसकी निगरानी करना और संघ सुप्रीमों तक इसकी रिपोर्ट देना भी संगठन महासचिव के ज़िम्मे ही है. चूंकि, इस पद पर नियुक्ति के लिए संघ बीजेपी में प्रचारक भेजता है, तो उनकी पहली प्राथमिकता संघ से जुड़ी होती है. बैक रूम ब्वॉय बनकर संगठन के विस्तार करने की योजनाओं को देखना, प्रचारकों के देशव्यापी कार्यक्रमों को चुनाव के समय बीजेपी की ज़रूरतों के मुताबिक अमलीजामा पहनाना, संगठन की कमियों की पहचान करना, आरएसएस का फ़ीडबैक बीजेपी को देना और बीजेपी हाईकमान की राय संघ तक पहुंचाने का काम भी संगठन मंत्री के ज़िम्मे ही है.

जब आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष से हटाने का मसौदा संजय जोशी ने तैयार किया था

इस पद के महत्व को आप सिर्फ इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि 2004 में जब बीजेपी अध्यक्ष और बीजेपी के लौहपुरूष आडवाणी पाकिस्तान में जिन्ना की मज़ार पर उनकी तारीफ़ की थी, तो संघ के निर्देश पर बुलाई गई बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में अपने ही अध्यक्ष आडवाणी के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने की हिम्मत न ताक़तवर बीजेपी महासचिव प्रमोद महाजन में थी और न ही सुषमा स्वराज वअरूण जेटली में. लेकिन संगठन महासचिव संजय जोशी ने न केवल आडवाणी की आलोचना का प्रस्ताव डाफ्ट कराया, बल्कि बीजेपी संसदीय बोर्ड ने उसे पारित किया. दिल्ली आने के बाद नाराज आडवाणी को संघ के दबाब में अपने त्यागपत्र की घोषणा करनी पड़ी.

अपने समय में रामलाल से ताक़तवर समझे जाने वाले संगठन मंत्री संजय जोशी को हटाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तब के बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के सामने शर्त रख दी थी कि वे मुंबई की कार्यसमिति में तभी आएंगे जब संघ की दखल के बाद दोबारा बीजेपी में शामिल हुए संजय जोशी का इस्तीफा नहीं होता. संजय जोशी के इस्तीफे के ऐलान के बाद ही मोदी 2012 में मुंबई की बीजेपी कार्यसमिति में भाग लेने पहुंचे थे. लेकिन, रामलाल ताक़तवर संजय जोशी के मुक़ाबले ज्यादा लो प्रोफ़ाइल रहकर और बिना अड़ियल रवैया अपनाते हुए तीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, गडकरी और अमित शाह के साथ काम करते हुए राजनैतिक टकराहट से हमेशा दूर रहें .

संघ अपने प्रचारकों को मूल कैडर में वापस बुलाता रहा है

ऐसा नहीं है कि संघ ने अपने प्रचारकों को डेप्युटेशन से हटाकर मूल कैडर में पहली बार वापस बुलाया हो लेकिन पिछले तीस सालों में यह पहला मौका है, जब राष्ट्रीय संगठन मंत्री को संघ ने राजनैतिक संगठन बीजेपी से हटाकर मूल कैडर में वापसी कराई हो. राज्यों की बात करें, तो 2015 में यूपी के बीजेपी संगठन मंत्री राकेश जैन को हटाकर संघ ने अपने कैडर सेवा भारती का काम देखने को दिया था. अब नए फेरबदल में उन्हें संघ की राष्ट्रीय पर्यावरण ईकाई का इंचार्ज बनाया गया है.

2008 में राजस्थान ईकाई में संगठन मंत्री रहे प्रकाश जी को बीजेपी से हटाकर संघ ने अपनी ईकाई लघु भारती का काम सौंपा था. राज्यों में ऐसे बदलाव अक्सर संघ तब करता है जब वहां के मुख्यमंत्री और संगठन मंत्री दोनों में छत्तीस के आंकड़े रहतें है या उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक रामलाल के मामले में ये दोनों कारण नहीं दिखते. आरएसएस के एक प्रचारक के मुताबिक रामलाल की पिछले दो साल से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से उन्हें निवृत करने का अनुरोध ही एक सामने दिखने वाला कारण है.

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