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Friday, 11 October, 2024
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तिपरा सुप्रीमो प्रद्योत देबबर्मा बोले- ‘अपने लोगों की सेवा के लिए चुनावी राजनीति की जरूरत नहीं’

त्रिपुरा में 16 फरवरी को होने वाले चुनाव से पहले प्रचार के अंतिम दिन, तिपरा मोथा के देबबर्मा ने कहा कि वह ग्रेटर तिप्रालैंड की मांग के संवैधानिक समाधान को अंतिम रूप देने तक 'यहीं' रहेंगे.

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नई दिल्ली: चुनाव प्रचार के अंतिम दिन तिपराहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (तिपरा मोथा) के सुप्रीमो प्रद्योत देबबर्मा ने चारिलम में एक चुनावी रैली में घोषणा की कि वह अब से किसी भी राजनीतिक मंच पर दिखाई नहीं देंगे.

देबबर्मा ने बुधवार को आरक्षित कृष्णापुर विधानसभा सीट के लिए अपनी पार्टी के उम्मीदवार महेंद्र देबबर्मा के लिए प्रचार करते हुए कहा, “…बुबागरा (राजा) को किसी राजनीतिक मंच पर नहीं देखा जाएगा. राजनीति में बुबागरा ऐसे नहीं दिखेंगे. अब आप बुबागरा को नहीं देख पाएंगे. आप सभी के लिए यह मेरा आखिरी संदेश है.”

लेकिन जैसे ही त्रिपुरा स्थित समाचार चैनल राजनीति से उनके संन्यास की खबरे दिखाने लगे, त्रिपुरा के पूर्व शाही परिवार के 44-वर्षीय सदस्य ने अपने समर्थकों के लिए ट्विटर पर एक ऑडियो संदेश के रूप में स्पष्टीकरण जारी किया.

उन्होंने वीडियो में कहा, “मैंने कहा कि मैंने अपनी राजनीतिक यात्रा चारिलम में शुरू की और चारिलम में मंच पर अपना अंतिम राजनीतिक भाषण दे रहा हूं. मैंने यह भी कहा कि मैं तब तक वहां रहूंगा जब तक हमें (ग्रेटर तिप्रालैंड की मांग के लिए) कोई संवैधानिक समाधान नहीं मिल जाता जिस पर हम बातचीत करेंगे. मैं अपने लोगों से प्यार करता हूं और अपने लोगों की सेवा के लिए मुझे चुनावी राजनीति में आने की जरूरत नहीं है.”

देबबर्मा ने कहा, “मैंने यह चुनाव अकेले अपने लोगों- महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों के साथ लड़ा है. मुझे यकीन है कि हम जीतेंगे. मेरे संन्यास का मतलब यह नहीं है कि मैं जनता के दिलों से गायब हो जाऊंगा. मैं तब तक यहीं रहूंगा जब तक मैं हमारी मांग के संवैधानिक समाधान को अंतिम रूप नहीं दे देता. निश्चित रूप से कोई राजनीतिक भाषा (भाषण) या कोई राजनीतिक पद नहीं मांग रहा हूं.”

तिपरा मोथा की प्राथमिक मांग ग्रेटर तिपरालैंड के निर्माण के लिए है – त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातियों के लिए एक नया राज्य.

2021 में स्वायत्त जिला परिषद चुनाव जीतने के बाद, तिपरा मोथा का राज्य के आदिवासी मतदाताओं के बीच बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है. राज्य में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित 20 विधानसभा सीटों पर इसकी एक उत्साही लड़ाई देने की उम्मीद है. उन सीटों पर जो कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करती थीं, देबबर्मा की पार्टी सत्ता-विरोधी वोटों में कटौती कर सकती थी और इस तरह वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन द्वारा माणिक साहा के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को बेदखल करने के प्रयास को नाकाम कर सकती थी.

16 फरवरी को होने वाले चुनाव में तिपरा मोथा 60 में से 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. हालांकि, माना तो यह जा रहा है कि दोनों पक्षों ने पार्टी को लुभाने के साथ त्रिपुरा में किंगमेकर के रूप में उभरी पार्टी से- जैसा कि पहले हुआ था जब वाम-कांग्रेस गठबंधन और भाजपा दोनों ने चुनाव के बाद गठबंधन के लिए मोथा के साथ बातचीत की थी, के बारे में सोचा है.

हालांकि, त्रिशंकु विधानसभा की अटकलों के साथ दो मार्च को परिणाम घोषित होने के बाद अपने झुंड को एक साथ रखना मोथा के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक हो सकता है.

चारिलम से देबबर्मा के दावे को संभावित दलबदल के खिलाफ बीमा के रूप में भी देखा जा रहा है.

घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “उन्होंने (देबबर्मा) ने चारिलम में जो किया उसका प्रभावी अर्थ यह है कि उन्होंने संभावित दलबदलुओं को नोटिस में डाल दिया है. वे लोगों के प्रति जवाबदेह हैं और अगर उन्होंने ऐसा कदम उठाया तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे.”

(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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