scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमराजनीतिटीएमसी ने त्रिपुरा में ‘मिशन 2023’ आगे बढ़ाया, उपचुनाव में हार के बावजूद खोलेगी अपना मुख्यालय

टीएमसी ने त्रिपुरा में ‘मिशन 2023’ आगे बढ़ाया, उपचुनाव में हार के बावजूद खोलेगी अपना मुख्यालय

त्रिपुरा में बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान के बावजूद रविवार को घोषित विधानसभा उपचुनावों टीएमसी के सभी चार उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. हालांकि, टीएमसी के राज्य प्रमुख इसे किसी ‘झटके’ के तौर पर नहीं देखते हैं.

Text Size:

कोलकाता: मैदान में उतरे 27 स्टार प्रचारक, अभिषेक बनर्जी जैसे धुरंधर नेता का एक मेगा रोड शो और राज्य चुनाव आयोग में दर्ज कराई गई तमाम शिकायतें भी त्रिपुरा उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस की किस्मत नहीं बदल सकीं. फिर भी, पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में अपना संगठन मजबूत करने और राज्य में मुख्यालय खोलने की अपनी योजना पर आगे बढ़ रही है.

23 जून को चार विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में सभी चार टीएमसी उम्मीदवारों—मृणाल कांति देबनाथ (जुबराजनगर), अर्जुन नामसुद्र (सूरमा), संहिता बनर्जी (टाउन बोरदोवाली) और पन्ना देब (अगरतला)—की जमानत जब्त हो गई.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चार में से तीन सीटें जीतीं, जबकि एक, अगरतला, कांग्रेस के खाते में गई. उपचुनाव के नतीजे रविवार को घोषित किए गए थे.

तृणमूल कांग्रेस के त्रिपुरा अध्यक्ष सुबल भौमिक इन नतीजों को पार्टी के लिए कोई ‘झटका’ नहीं मान रहे हैं. उनकी पार्टी अगले साल विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रही है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम यहां त्रिपुरा में केवल 11 महीने से हैं, हमारी समितियों में कुछ कमजोरियां है और निरंतर सक्रियता की भी कमी है. लेकिन आने वाले दिनों में हम इन पर काबू पा लेंगे.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने बताया, ‘हम अपनी ब्लॉक-स्तरीय और जिला-स्तरीय समितियां गठित करने की प्रक्रिया में लगे हैं, जो 2023 का चुनाव जीतने में हमारे लिए मददगार साबित होगी.’ साथ ही जोड़ा कि टीएमसी अगले सप्ताह अगरतला में अपने राज्य मुख्यालय का उद्घाटन करने जा रही है.

भौमिक, जो एक पूर्व कांग्रेस नेता भी हैं, ने तर्क दिया, ‘उपचुनावों में त्रिपुरा के लोगों को पता था कि वे सरकार नहीं बदल सकते. इसलिए उन्होंने भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस को वोट दिया. दो सशक्त नेता मैदान में थे—माणिक साहा (त्रिपुरा के सीएम, जो टाउन बोरदोवाली से जीते) और सुदीप रॉय बर्मन (जो टीएमसी और भाजपा में रहने के बाद फिर से कांग्रेस में शामिल हुए, और अगरतला से जीते).

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन 2023 में लोगों के पास सरकार बदलने की शक्ति होगी. 2013 (विधानसभा चुनाव) में भाजपा को सिर्फ 1.5 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन फिर उसने (2018 में) यहां सरकार बना ली. लोग तृणमूल को भी इसी तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं और अभिषेक बनर्जी हमारा हौसला बढ़ाते रहते हैं. हम 2023 में जीत के प्रति आश्वस्त हैं.’

कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी, जो पश्चिम बंगाल इकाई के प्रमुख और लोकसभा में पार्टी के नेता है, ने सोमवार को अगरतला में मीडिया को संबोधित करते हुए टीएमसी पर कटाक्ष किया, ‘अगर तृणमूल ये दावा करती है कि वे त्रिपुरा में 2023 का चुनाव जीतेंगे, तो अगरतला में तो गधे भी हंसने लगेंगे. त्रिपुरा में तो तृणमूल की मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा या माकपा या कांग्रेस जैसी पार्टियां नहीं हैं, बल्कि उनकी मुख्य चुनौती तो नोटा है.’

पिछले हफ्ते मतदान के दिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कोलकाता में एक प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था कि त्रिपुरा में लोगों को वोट डालने के लिए बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है. उन्होंने कहा था, ‘त्रिपुरा ने आज के उपचुनावों ने लोकतंत्र की हत्या होते देखी है. लोगों को प्रताड़ित किया गया और उन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी गई.’

टीएमसी की ‘असफल कोशिश’

पश्चिम बंगाल में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतने के बाद टीएमसी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने विस्तार के लिए अभियान चलाया है. लेकिन इसे अभी तक गोवा, त्रिपुरा, असम और मेघालय जैसे राज्यों में ज्यादा चुनावी सफलता नहीं मिली है, जहां इसने सुष्मिता देव, मुकुल संगमा और लुइज़िन्हो फलेरियो जैसे लोकप्रिय नेताओं को शामिल करके कांग्रेस के साथ अपने संबंधों को तोड़ दिया था.

राजनीतिक विश्लेषक और ममता: बियॉन्ड 2021 के लेखक जयंत घोषाल ने दिप्रिंट को बताया कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल के बाहर सफलता की इबारत लिखने में नाकाम रही है, लेकिन ममता बनर्जी ने अभी भी अपने राज्य पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रखा है.

उन्होंने कहा, ‘अंतत: तो टीएमसी पश्चिम बंगाल की एक क्षेत्रीय पार्टी है. फिलहाल तो ममता पश्चिम का लक्ष्य बंगाल में खुद को मजबूत करना और 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य में भाजपा की जीती 18 सीटों को वापस पाना है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘गोवा हो या त्रिपुरा, कांग्रेस अभी भी महत्वपूर्ण पार्टी है और तृणमूल ने एक नाकाम कोशिश जरूर की है. दीर्घकालिक लक्ष्य पर अभिषेक बनर्जी पहले ही कह चुके हैं, भले ही 10 साल लग जाएं, पार्टी दूसरे राज्यों में लड़ेगी और खुद को वहां खड़ा करेगी. लेकिन बंगाल की तरह त्रिपुरा या गोवा कभी भी ममता के लिए करो या मरो वाली स्थिति वाले राज्य नहीं होंगे.

टीएमसी के सियासी भविष्य पर राजनीतिक विश्लेषक और गैंगस्टर स्टेट: द राइज एंड फॉल ऑफ द सीपीआई (एम) इन वेस्ट बंगाल के लेखक शौर्य भौमिक ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल के बाहर जीतने के लिए आपको एक ऐसे नेता की जरूरत है जो देशभर में लोकप्रिय हो. राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी काफी अहमियत रखती हैं लेकिन उनका कद जयप्रकाश नारायण या इंदिरा गांधी जैसा नहीं है. तृणमूल राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां भले ही बटोर ले, लेकिन यह राजनीति को लेकर गंभीर नजर नहीं आती है. गोवा में, उन्होंने कहा कि हर महीने प्रति परिवार 5,000 रुपये देंगे, लेकिन ये पैसा कहां से आएगा?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : नूपुर शर्मा, जिंदल से आगे बढ़ BJP को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी भूलों को सुधारना होगा


share & View comments