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Wednesday, 24 April, 2024
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क्या है आजम खान के खिलाफ वह 88वां मामला? सीतापुर जेल से निकलने की राह अभी आसान नहीं

सुप्रीम कोर्ट 11 मई को यूपी पुलिस द्वारा आजम खान के खिलाफ दायर 87 मामलों में से आखिरी के सिलसिले में उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार है.

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लखनऊ: भले ही समाजवादी पार्टी के 73 वर्षीय विधायक आजम खान को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज किए गए 87वें मामले में जमानत दे दी जाए, मगर उनके जल्द ही जेल से बाहर निकलने की संभावना नहीं के बराबर है.

पिछले 26 महीनों से सीतापुर जेल में बंद सपा के इस वरिष्ठ नेता को अब रामपुर पब्लिक स्कूल, जिसके वे अध्यक्ष हैं, की मान्यता प्राप्त करने के लिए जाली भवन प्रमाण पत्र जमा करने के नए आरोपों का सामना करना पड़ रहा है.

रामपुर कोतवाली पुलिस स्टेशन के थाना अध्यक्ष (एसएचओ) गजेंद्र त्यागी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जांच के दौरान, आजम का नाम सामने आया था और उनका नाम प्राथमिकी में एक आरोपी के रूप में जोड़ा गया है. इस मामले में और धाराएं जोड़ी गई हैं और उनके खिलाफ शुक्रवार को एक एमपी-एमएलए अदालत ने वारंट जारी किया है.’

त्यागी ने आगे कहा, ‘उन्हें जेल में ही वारंट दिया गया है. अब हाई कोर्ट में सुनवाई हो रहे मामले में जमानत मिलने पर भी उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा. उन्हें रिहा करने के लिए इस मामले में भी उनकी जमानत की आवश्यकता होगी.’

खान के जनसंपर्क अधिकारी (पीआर) फसाहत अली खान ने दिप्रिंट को इस बात की पुष्टि की कि इस मामले में दस बार के विधायक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है लेकिन वे आगे कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद आजम खान ने इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. शीर्ष अदालत अब 11 मई को उनकी याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई है.


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क्या है आजम खान के खिलाफ ताजातरीन मामला?

इस मामले में, मार्च 2020 में रामपुर के सैदनगर ब्लॉक के प्रखंड शिक्षा अधिकारी द्वारा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ 2015 में स्थापित रामपुर पब्लिक स्कूल की मान्यता प्राप्त करने के लिए जाली दस्तावेजों का उपयोग किये जाने की शिकायत दर्ज की गई थी.

मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट, जिसके चांसलर स्वयं आजम खान हैं, द्वारा संचालित यह स्कूल यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के मालिकाना हक वाली जमीन पर रामपुर के एक पॉश (संभ्रांत) इलाके में स्थित है.

रामपुर के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और आप नेता फैसल लाला ने दिप्रिंट को बताया कि स्कूल के लिए इस जमीन- जो एक यतीमखाना (अनाथालय) के निर्माण के लिए निर्दिष्ट है- को 2016 में यूपी वक्फ मंत्री के रूप में आजम खान के कार्यकाल के दौरान मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट को ट्रांसफर (स्थानांतरित) कर दिया गया था. लाला ने यह भी कहा कि वहां रहने वाले परिवारों को जबरदस्ती बेदखल किया गया था.

खबरों के अनुसार, यहां के निवासियों के उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा जारी किए गए बेदखली नोटिस का पालन करने में विफल रहने के बाद स्कूल निर्माण का रास्ता साफ करने के लिए लगभग 50 घरों को ध्वस्त कर दिया गया था. खान के विरोधियों का कहना है कि इन घरों का मालिकाना हक घोसी मुसलमानों के पास था, जिनमें ज्यादातर चरवाहे थे और जिन्होंने 2015 तक यूपी वक्फ बोर्ड को किराए का भुगतान कर दिया था.

इसके बाद साल 2020 में जाकर योगी आदित्यनाथ सरकार के राज्य शिक्षा विभाग ने इस वर्तमान में निर्माणाधीन स्कूल की मान्यता प्रक्रिया की जांच शुरू की. पहले आजम खान की पत्नी तंजीम फातमा को इस मामले में आरोपी बनाया गया था और अब स्वयं आजम खान का नाम जोड़ा गया है.

इस मामले में, आजम खान पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 467 (मूल्यवान प्रतिभूति, वसीयत, आदि की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के मकसद से जालसाजी), 471 (जो कोई भी धोखाधड़ी से बने किसी भी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करता है) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मामला दर्ज किया गया है.


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सुप्रीम कोर्ट करेगी आजम खान की जमानत याचिका पर सुनवाई

खान फिलहाल 2015 में एनिमी प्रॉपर्टी (शत्रु संपत्ति) के तहत आने वाली 86 बीघा और 2 बिस्वा भूमि हथियाने से संबंधित मामले में सीतापुर जेल में बंद है.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2019 में खान के खिलाफ दर्ज इस मामले में उनकी जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.

इस मामले में शिकायतकर्ता ज़मीर नकवी के वकील फरमान अहमद नकवी ने दिप्रिंट को बताया कि उच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनने की प्रक्रिया को एक ‘जटिल कार्य’ करार दिया था.

नकवी ने कहा, ‘अदालत मामले को स्थगित करने के मूड में नहीं लग रही थी. उम्मीद है कि फैसला जल्द ही सुनाया जायेगा.’

इस मामले में आजम खान की जमानत अर्जी पर 6 मई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने आदेश देने में इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से इस देरी को ‘न्याय का उपहास’ करार दिया.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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