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Saturday, 20 April, 2024
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होसाबले ने क्या गरीबी, बेरोजगारी पर सरकार को घेरा? BJP ने कहा- मोदी भी इस बारे में बात करते रहे हैं

आरएसएस महासचिव ने रविवार को एक कार्यक्रम में गरीबी, बेरोजगारी और असमानता को लेकर चिंता जताई, जिससे राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई. भाजपा प्रवक्ता का कहना है 'संघ हमेशा सामाजिक चुनौतियों के बारे में सोचता रहा है.'

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नई दिल्ली: रविवार को स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) के एक कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के महासचिव दत्तात्रेय होसाबले की देश में मौजूद गरीबी, बेरोजगारी और असमानता को लेकर की गई टिप्पणियों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मच दी है. एक तरह से इन मुद्दों पर बोलने का मतलब ‘भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को निशाना बनाने’ के तौर पर देखा जाता है.

भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल के मुताबिक, होसाबले ने जो कहा, उस पर पार्टी का कोई विशेष रुख नहीं है. हां, उन्होंने कुछ चुनौतियों को रेखांकित किया है जो आम हैं. उधर कांग्रेस के कुछ नेता जो बढ़ती मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के खिलाफ भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं, ने इस टिप्पणी को अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालात पर बीजेपी सरकार की आलोचना के तौर पर लिया है.

कांग्रेस महासचिव संचार प्रभारी जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव देखिए. जो लोग देश को तोड़ते हैं और समाज में जहर फैलाते हैं, आज वे अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए गरीबी, बेरोजगारी और असमानता का मुद्दा उठा रहे हैं.’

भाजपा के वैचारिक संरक्षक आरएसएस के वरिष्ठ नेता के इस बयान को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों की राय भी बटी हुई है.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो राजनीतिक विश्लेषक राहुल वर्मा इसे बीजेपी सरकार की आलोचना नहीं मानते. उन्होंने कहा, ‘आरएसएस अक्सर भाजपा को सही और गलत के बारे में अपनी राय देता रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान भी आरएसएस और उससे संबद्ध संगठन मसलन भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ भी सरकार की नीतियों के खिलाफ मांग और विरोध किया करते थे.’

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लेकिन एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने बताया, ‘होसाबले ने जो कहा है वह बहुत साफ है. लेकिन यहां एक अनुत्तरित सवाल यह हो सकता है कि क्या आरएसएस या भाजपा नेताओं का एक वर्ग अलग-अलग है.’

होसाबले ने एसजेएम के एक वेबिनार में गरीबी की तुलना एक दानव से की और कहा कि इसे मारा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. लगभग 23 करोड़ लोगों की रोजाना महज 375 रुपये आय है. बेरोजगारी दर भी 7.6 प्रतिशत पर बहुत चिंताजनक है. देश में गरीबी है, बेरोजगारी है लेकिन हमें बढ़ती असमानता पर भी चर्चा करने की जरूरत है.’

आरएसएस महासचिव ने कहा, ‘हालांकि भारत दुनिया की शीर्ष छह अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होने में कामयाब रहा है, लेकिन उसके बावजूद हम यह नहीं कह सकते कि सब ठीक है. भारत में एक फीसदी आबादी के पास देश की 20 फीसदी संपत्ति है, जबकि 50 फीसदी के पास 13 फीसदी संपत्ति है. हमें इस आर्थिक असमानता के बारे में कुछ करना चाहिए.’

जनवरी में संघ से जुड़े एसजेएम ने सात अन्य दक्षिणपंथी संगठनों के साथ, ‘स्वावलंबी भारत अभियान‘ (एसबीए) शुरू किया था. इसका उद्देश्य 2030 तक भारत को बेरोजगारी से मुक्त बनाना है. रविवार का कार्यक्रम, ‘स्वावलंबन का शंखनाद’, एसबीए बैनर के तहत आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों की एक सीरीज का हिस्सा था.

वैसे एसजेएम अक्सर बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों को उठाता रहा है लेकिन इसके लिए उसने हमेशा देश के औपनिवेशिक अतीत और पिछली सरकारों की कथित विफलता को जिम्मेदार ठहराया है.


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‘राजनीतिक संदेश’

गरीबी, असमानता और बेरोजगारी पर होसाबले की टिप्पणियों का जिक्र करते हुए अग्रवाल ने कहा कि ‘इन चुनौतियों को खुद पीएम ने अपने भाषणों में उठाया है.’

आर्थिक मामलों के भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा, ‘एक सामाजिक संगठन के रूप में आरएसएस की यह अपनी विशेष पहल है जिसके दौरान ये टिप्पणियां की गईं. आरएसएस हमेशा सामाजिक चुनौतियों के बारे में सोचता है. लेकिन यह आरएसएस की आलोचना या फिर बीजेपी को लेकर उनके विचारों में बदलाव नहीं है.’

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने यह भी कहा कि होसाबले के भाषण को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि कैसे नागरिकों की भागीदारी से गरीबी को और कम किया जा सकता है क्योंकि अकेले सरकार सब कुछ नहीं कर सकती है.

संघ के पदाधिकारी ने दावा किया, ‘वह सरकार की पहल की प्रशंसा कर रहे थे और उदाहरण दे रहे थे कि सरकारी योजनाएं कितना अच्छा कर रही हैं. लेकिन निश्चित रूप से सीमित समय में गरीबी को कम नहीं किया जा सकता है. उस दिशा में कैसे आगे बढ़ना है, इस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अधिक आत्मनिर्भर और स्वावलंबी भारत अभियान की जरूरत है. विपक्ष तो बेकार में विवाद पैदा कर रहा है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्सर आत्मनिर्भरता की वकालत की है. उन्होंने जोर देकर कहा भी है कि इससे अधिक रोजगार सृजन होगा. अप्रैल में उन्होंने कहा था कि अगर लोग आने वाले 25 साल तक स्थानीय सामानों का इस्तेमाल करते रहेंगे तो देश को बेरोजगारी की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा. भारत इस मोड़ पर स्थिर रहने का जोखिम नहीं उठा सकता है और उसे आत्मनिर्भर बनना होगा.’

वर्मा ने महसूस किया कि होसाबले ने मोदी सरकार की पहल की प्रशंसा की है और साथ ही उन्होंने गरीबी और असमानता के बारे में चिंता भी जताई.

राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘उदाहरण के लिए उन्होंने शिक्षा के खराब स्तर को बेरोजगारी के कारणों में से एक के रूप में इंगित किया और आगे कहा कि इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की शुरुआत की गई है. इस लिहाज से उनकी टिप्पणियों को मौजूदा सरकार की आलोचना के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘इसी तरह (केंद्रीय मंत्री) नितिन गडकरी भी अक्सर पर्याप्त सरकारी नौकरियां न होने की बात करते रहते हैं. उनके मुताबिक, नौकरी ढूंढने की बजाय नौकरी देने वाले अवसर पैदा करने का तरीका खोजने की जरूरत है. जब कोई केंद्रीय मंत्री बेरोजगारी की बात करता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपनी ही सरकार को निशाना बना रहा है. इसके बजाय, यह एक उभरती हुई आम सहमति है कि हमें संभावित समाधानों के बारे में सोचने के लिए सरकार से परे देखना चाहिए.’

किदवई ने कहा कि ‘होसाबले का बयान एक तरह की बेचैनी को दर्शा रहा है और साथ ही यह एक राजनीतिक संदेश भी है.’

उन्होंने समझाया, ‘आरएसएस हमेशा भाजपा की जीत का हिस्सा रहा है और अब जब भाजपा अपने दम पर चुनाव जीत रही है, आरएसएस अभी भी वह स्रोत बनने की कोशिश कर रहा है जिसकी उसे जरूरत है. उदाहरण के लिए भाजपा के पास देश में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. लेकिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत मस्जिदों का दौरा कर रहे हैं और मौलानाओं से मिल रहे हैं. क्योंकि वह जानते हैं कि 16-19 प्रतिशत भारतीय (मुस्लिम) आबादी को बाहर नहीं रखा जा सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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