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Saturday, 20 April, 2024
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राहुल गांधी के पास नहीं थी लंदन जाने के लिए राजनीतिक मंजूरी – सूत्र

मंगलवार को, गांधी ने यूके लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन के साथ एक तस्वीर खिंचवाई जिससे कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग छिड़ गई.

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नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की हालिया लंदन यात्रा, खासतौर से ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता और लंदन में सांसद जेरेमी कॉर्बिन के साथ उनकी मुलाकात उनके विवादास्पद बयानों के बाद सवालों के घेरे में आ गई.

सरकार के शीर्ष सूत्रों ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि कांग्रेस सांसद ने प्रक्रिया को पूरा नहीं किया और अपनी यात्रा के लिए पॉलिटिकल क्लीयरेंस नहीं लिया.

सूत्रों ने बताया कि हालांकि राष्ट्रीय जनता दल के प्रोफेसर मनोज झा के पास हर प्रक्रिया की अनुमति थी जिसमें राजनीतिक मंजूरी भी शामिल है. गौरतलब है राहुल, मनोज समेत अन्य पार्टियों के नेता भी लंदन गए थे. राहुल और मनोज ने एक ही समारोह में हिस्सा लिया था.

मंगलवार को, गांधी ने यूके लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन के साथ एक तस्वीर खिंचवाई जिससे कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग छिड़ गई.

राहुल ने लंदन दौर पर ‘आइडिया फॉर इंडिया’ कॉन्क्लेव पर बात की थी इस दौरान उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है और भारत के संविधान पर हमला हो रहा है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हर मुद्दे पर ‘जानबूझकर’ चुप रहने का भी आरोप लगाया.

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ट्विटर पर राहुल गांधी और भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बीच भी बहस हुई है.

भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में ‘पूर्ण परिवर्तन’ के संबंध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की टिप्पणी पर हमला करते हुए, जयशंकर ने कहा कि परिवर्तन को ‘अहंकार’ नहीं बल्कि ‘विश्वास और राष्ट्रीय हित की रक्षा’ कहा जाता है.

जयशंकर ने एक ट्वीट में कहा कि आईएफएस अधिकारी सरकार के आदेशों का पालन करते हैं और दूसरों की दलीलों का मुकाबला करते हुए राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हैं.

जयशंकर ने लिखा ‘हां, भारतीय विदेश सेवा बदल गई है. हां, वह सरकार के आदेशों का पालन करते हैं. हां, वह दूसरों के तर्कों का विरोध करते हैं. नहीं, इसे अहंकार नहीं कहा जाता है. इसे कॉन्फिडेंस कहते हैं और इसे राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना कहते हैं.’

उन्होंने राहुल गांधी की टिप्पणी की एक क्लिप भी अटैच किया.

लंदन में ‘आइडिया फॉर इंडिया’ में राहुल ने कहा कि उन्हें बताया गया था कि आईएफएस अधिकारी कुछ भी नहीं सुनते हैं, उन्हें सिर्फ सरकार से आदेश मिल रहे हैं और कोई बातचीत नहीं हो रही है.


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