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Friday, 29 March, 2024
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TMC और BJP नहीं बल्कि त्रिपुरा निगम चुनावों में असल कहानी कांग्रेस का सफाया होना है

टीएमसी ने अपनी लड़ी गई सीटों में मत प्रतिशत में दूसरा स्थान प्राप्त कर कांग्रेस को राज्य के राजनीतिक पायदान पर और अंक नीचे धकेल दिया है.

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नई दिल्ली: त्रिपुरा में हुए निकाय चुनावों में, जिसके परिणाम पिछले महीने के अंत में घोषित किए गए थे, भले ही तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी छाप छोड़ी हो लेकिन इस चुनाव की अनकही खबर कांग्रेस, जो कि तीन साल पहले तक राज्य की प्रमुख विपक्ष थी- का सफाया हो गया.

पिछले महीने हुए नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो प्रतिशत वोट मिले थे, जो दिसंबर 2015 के निकाय चुनावों में उसे मिले 25 प्रतिशत से काफी कम है. पिछले नगर निकाय चुनाव में पार्टी ने 13 वार्डों में जीत हासिल की थी. इस साल इसके ‘हाथ’ पूरी तरह से खाली रहे.

राज्य के 14 शहरी निकायों में कुल मिलाकर 334 वार्ड हैं, जिनमें से भाजपा ने 112 निर्विरोध जीती और शेष 222 में चुनाव हुआ. इन 222 वार्डों में से भाजपा ने 59 प्रतिशत के मत प्रतिशत (वोट शेयर) के साथ 217 वार्ड्स जीते, सीपीआई (एम) को तीन सीटें मिलीं, जबकि टीएमसी और तिपरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (तिपरा) ने एक-एक सीट साझा की.

2013 के त्रिपुरा विधानसभा चुनावों में, जिसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) अर्थात सीपीआई (एम) ने प्रचंड बहुमत से जीता था, कांग्रेस ने छह सीटें जीती थीं और 36.5 प्रतिशत का वोट शेयर हासिल किया था.

2014 के लोकसभा चुनावों में, पार्टी राज्य की दो सीटों में से कोई भी सीट नहीं जीत सकी थी लेकिन उसका वोट शेयर 15.2 प्रतिशत था- जो इन सीटों में दूसरा सबसे बड़ा था. चुनाव से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि माकपा ने जहां सबसे बड़ी पार्टी के रूप में अपनी स्थिति बरकरार रखी, वहीं भाजपा 5.7 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही थी.

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राज्य में 2015 में संपन्न नगरपालिका चुनावों में कांग्रेस अभी भी 25.3 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ प्रमुख विपक्ष पार्टी बनी रही. जबकि सीपीआई (एम) सीटों और वोट शेयर दोनों के मामले में सबसे बड़ी पार्टी के स्थान पर बनी रही, तब उभार पर चल रही बीजेपी का वोट शेयर खासी बढ़त के साथ 14 प्रतिशत हो गया था.

2018 में यह उस वक्त तीसरे स्थान पर खिसक गयी जब भाजपा ने राज्य में अपनी पहली सरकार बनाने के लिए विधानसभा चुनाव जीता और सीपीआई (एम) को सत्ता से बाहर कर दिया गया.


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कांग्रेस का पतन

त्रिपुरा में कांग्रेस के राजनीतिक गिरावट की प्रवृत्ति 2015 से शुरू हुई और तब से पार्टी ने लगातार कई तगड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं.

2018 के विधानसभा चुनावों में इसका वोट शेयर घटकर 1.79 प्रतिशत रह गया, जिसकी वजह से इसे आत्मनिरीक्षण करने और नई रणनीति बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा. दूसरी तरफ भाजपा ने राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 36 सीटें जीती थी और 43.6 प्रतिशत का वोट शेयर प्राप्त कर यह चुनाव जीता था.

माकपा, जिसने दो दशकों से अधिक समय तक इस राज्य का नेतृत्व किया था, ने 16 सीटें जीती लेकिन 44.35 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ इसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थे. कांग्रेस तीसरे स्थान पर चली गई थी.

2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस ने शाही घराने के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा को अपना राज्य प्रमुख नियुक्त किया. इन लोकसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 25.3 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो 2014 में हासिल किए गए 15.2 प्रतिशत वोट शेयर से काफी अधिक था. इस तरह इसने वोट शेयर के मामले में थोड़े से समय के लिए नंबर दो का स्थान हासिल कर लिया था.

पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह (वोट शेयर में आया उभार) त्रिपुरा में स्वदेशी समुदायों के बीच देबबर्मा के प्रति वफादार वोटों के आधार के कारण हुआ था. देबबर्मा ने अंततः नेतृत्व से संबंधित मतभेदों की वजह से कांग्रेस छोड़ दी और तिपरा मोर्चा की शुरुआत की.

इस साल के नगर निकाय चुनावों में पार्टी की करारी हार के बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं का अब कहना है कि वे अपने कैडर को मजबूत कर रहे हैं, मगर साथ ही उन्होंने भाजपा पर चुनावी धांधली का आरोप भी लगाया.

त्रिपुरा कांग्रेस प्रमुख बिरजीत सिन्हा ने कहा, ‘हमारी पार्टी ने हाल ही में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. बिना किसी राजनीतिक विशेषज्ञता वाले एक व्यक्ति (यहां वे अगस्त 2021 में पार्टी छोड़ने वाले पीयूष विश्वास का जिक्र कर रहे थे) को मेरे पदभार संभालने से पहले अध्यक्ष बना दिया गया था.’

वे कहते हैं, ‘मगर, अब हम अपने कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर प्रशिक्षण दे रहे हैं. भाजपा बड़े पैमाने पर चुनावी धांधली में भी शामिल रही है और लोग अंततः (टीएमसी प्रमुख) ममता बनर्जी का असली चेहरा देखेंगे. हम शानदार वापसी करेंगे.’

पार्टी का एकमात्र गढ़ (यदि इसे यह नाम दिया भी जा सकता है तो) उनाकोटि जिले में स्थित कैलाशहर है, जहां उसे अन्य शहरी निकायों की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक वोट मिला है. फिर भी, यह भाजपा के 53 प्रतिशत और माकपा के 29.2 प्रतिशत से बहुत कम था.


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टीएमसी ने 120 सीटों पर दूसरा स्थान हासिल किया

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 2021 के नगरपालिका चुनावों में अपना अच्छा खासा जोर लगाया था और जैसा कि इस पार्टी की राज्य सभा सांसद सुष्मिता देव का कहना है, यह राजनीतिक दल इस राज्य में- जहां बंगाली भाषी लोगों की बड़ी आबादी है- 2023 के विधानसभा चुनावों में कुछ बड़ा करना चाहती है.

त्रिपुरा के लिए टीएमसी की संचालन समिति की सदस्य देव ने इस चुनाव के प्रचार अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. देव ने इस साल की शुरुआत में कांग्रेस छोड़ दी थी और टीएमसी में शामिल हो गईं थी.

पार्टी के पास अब तक पूर्वोत्तर के राज्यों में कोई विधायक या सांसद तो छोड़ दें, कोई पार्षद तक नहीं था. भले ही उसने त्रिपुरा में 2015 के नगरपालिका चुनाव, 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव लड़े हों, मगर इसका वोट शेयर हमेशा 0.4 फीसदी के आंकड़े को पार करने में विफल रहा.

अब 2021 की बात करें और अगर सभी 222 सीटों, जहां चुनाव हुआ था, पर विचार किया जाए तो टीएमसी ने 16.4 प्रतिशत का कुल वोट शेयर हासिल किया. इन्हीं चुनावी आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा को 59 फीसदी, माकपा को 18.13 फीसदी और कांग्रेस को 2.07 फीसदी मत मिले.

हालांकि टीएमसी ने उन 222 सीटों में से केवल 120 पर ही चुनाव लड़ा था.

उन 120 वार्डों के आंकड़े में तृणमूल 19.9 प्रतिशत के वोट शेयर के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती दिखाई देती है. हालांकि इसका वोट शेयर भाजपा के 57 प्रतिशत से काफी कम है लेकिन यह सीपीआई (एम) के 16.8 प्रतिशत से थोड़ा सा अधिक है. इन्हीं 120 सीटों पर कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 1.74 फीसदी रह गया है.

इनमें से कई सीटों पर कांग्रेस और माकपा ने भी अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे. माकपा ने जहां 192 सीटों पर चुनाव लड़ा, वहीं कांग्रेस ने सिर्फ 92 सीटों पर चुनाव लड़ा.

देव कहती हैं, ‘हम इन नंबरों (आंकड़ों) को बड़े पैमाने पर हुए लाभ के रूप में देखते हैं. हमने तीन महीने में ही राज्य में काफी काम किया है. इससे पहले, हमारी उपस्थिति लगभग नगण्य थी. इसके अलावा, भाजपा द्वारा बड़े पैमाने पर चुनावी हिंसा और चुनाव में धांधली की गई थी. हम अपने कार्यकर्ता बल को मजबूत कर रहे हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव में हम निश्चित तौर पर बड़ी जीत हासिल करेंगे.’

टीएमसी ने जिन 120 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनके आंकड़ों पर करीब से नजर डालने पर पता चलता है कि इस पार्टी ने अलग-अलग पैमानों पर अन्य सभी दलों के मतों के हिस्से पर कब्जा किया है. सभी 222 सीटों के लिए उपलब्ध आंकड़ों की तुलना में 120 सीटों के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि भाजपा के वोट शेयर में लगभग 1.9 प्रतिशत अंक, सीपीआई (एम) के वोट शेयर में 1.32 प्रतिशत अंक और कांग्रेस के वोट शेयर में 0.33 प्रतिशत अंकों की कमी आई है.

इस तरह त्रिपुरा की राजनीति में टीएमसी के प्रवेश करने से कांग्रेस अब इस राज्य में चौथे नंबर पर आ गई है.


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भाजपा का दबदबा

2015 के त्रिपुरा नगरपालिका चुनावों में भाजपा ने 14 प्रतिशत का वोट हासिल किया था. हालांकि वह कांग्रेस को दूसरे स्थान से हटाने में विफल रही थी.

उस चुनाव के आंकड़ों से पता चलता है कि जिन 310 वार्डों में चुनाव हुए थे उनमें से 278 पर सीपीआई (एम) ने जीत हासिल की थी और इसका 60 प्रतिशत से अधिक का वोट शेयर था.

आखिरकार, भाजपा ने भारी लोकप्रियता हासिल करते हुए राज्य में 2018 के विधानसभा चुनावों में 43.6 प्रतिशत वोटों के साथ शानदार जीत हासिल की और 2019 के लोकसभा चुनावों में इसने अपने वोट शेयर में और सुधार कर इसे 49 प्रतिशत कर दिया.

माकपा के प्रदर्शन में भी उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, हालांकि वह इस समय कांग्रेस की तरह दबी-कुचली हालत में नहीं हैं.

चुनावी आंकड़ों से पता चलता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में इस वाम दल को 44.35 प्रतिशत वोट मिले थे और 2019 के लोकसभा चुनावों में इसे 17.3 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जो कि पहली बार कांग्रेस के वोटशेयर से कम था.

त्रिपुरा में माकपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री, पबित्रा कार ने कहा कि 2021 के नगरपालिका चुनावों में पार्टी अपने प्रति वफादार मतों के आधार को बरक़रार रखने में कामयाब रही है और आने वाले समय में, यह इसमें और विस्तार करने की योजना बना रही है. हालांकि उन्होंने भी भाजपा द्वारा चुनाव में धांधली और गुंडागर्दी का आरोप लगाया, जिसके बारे में उन्होंने बताया कि कई वफादार वाम मतदाताओं को वोट देने से रोक दिया गया. उन्होंने टीएमसी के राज्य की रजनीति में प्रवेश के साथ विपक्षी वोटों के और अधिक विभाजित होने पर भी चिंता व्यक्त की.‘

उनकी ये चिंताएं आकंड़ों में भी स्पष्ट दिखाई देती हैं.

टीएमसी, सीपीआई (एम) और कांग्रेस को मिला सामूहिक वोटशेयर राज्य भर के कई वार्डों में, खासकर अगरतला, सोनमुरा नगर और धलाई के अब्बासा में, भाजपा को पीछे छोड़ देता है.

कार ने कहा, ‘एक पार्टी के रूप में, हम त्रिपुरा में अपने वर्तमान हालत से उबरने की भरपुर कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ममता बनर्जी द्वारा कई राज्यों में अपने पांव पसारने की वजह से टीएमसी के बड़े गेम-प्लान की स्पष्ट तस्वीर के बारे में जानने की आवश्यकता है. वे कहते हैं, ‘अगरतला में अगर हम 6-7 वार्ड की बात छोड़ दें, तो हमारा हर वार्ड में टीएमसी के साथ नजदीकी मुकाबला था.’

अगरतला (51 वार्डों के साथ मतदान में जाने वालो सबसे बड़ी नगरपालिका) जो इस बांग्लादेश की सीमा से सटे राज्य का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है, एकमात्र ऐसा स्थान था जहां टीएमसी दूसरे और सीपीआई (एम) तीसरे स्थान पर रही.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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