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Friday, 29 March, 2024
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‘मेघालय की और मेघालय के लिए’- सहयोगियों के अलग होने से अकेले चुनाव लड़ रही UDP बन सकती है किंगमेकर

एनपीपी के 20 विधायकों की संख्या के बाद 8 विधायकों वाली क्षेत्रीय पार्टी यूडीपी मेघालय की मौजूदा गठबंधन सरकार का दूसरा सबसे बड़ा घटक है.

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गुवाहाटी: यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), एक ऐसा क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन है जो अपनी पहचान ‘मेघालय राष्ट्रवाद’ के साथ जुड़े होने का दावा करता है, इस पहाड़ी राज्य – जहां 27 फरवरी को चुनाव होने हैं – में दलबदलुओं के लिए एक पसंदीदा जगह बनता जा रहा है.

इस महीने कुछ समय पहले, राज्य के पांच मौजूदा विधायकों ने यूडीपी में शामिल होने के लिए अपनी-अपनी पार्टियों से इस्तीफा दे दिया. इनमें एचएसपीडीपी के कोटे से मंत्री बने रेनिक्टन लिंगदोह तोंगखर, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के विधायक शीतलांग पाले, कांग्रेस के मायरालबॉर्न सिएम और पीटी सॉकमी तथा निर्दलीय विधायक लम्बोर मालनगियांग शामिल हैं. सियाम और सॉकमी द्वारा यूडीपी में शामिल होने के लिए कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिए जाने के साथ ही मेघालय में कांग्रेस विधायक दल की ताकत शून्य हो गई है.

बता दें कि साल 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 21 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. राज्य की गठबंधन सरकार को समर्थन देने के अपने फैसले के कारण पार्टी द्वारा निलंबित किए गए कांग्रेस विधायक, हाल ही में दूसरे दलों में शामिल होने के लिए इस्तीफा देने तक पार्टी में ही बने रहे थे.

क्षेत्रीय दल यूडीपी, जिसमें ये दलबदलू विधायक शामिल हुए हैं, को उस चुनाव में केवल छह सीटें मिलीं थी.

यूडीपी कॉनराड संगमा के नेतृत्व वाली उस मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) सरकार का हिस्सा है जिसमें संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) भी शामिल हैं.

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सत्तारूढ़ एमडीए में 20 एनपीपी विधायक, दो भाजपा विधायक, आठ यूडीपी विधायक और दो पीडीएफ विधायक शामिल हैं. इसमें अगर टीएमसी के आठ, और एक निर्दलीय विधायक को जोड़ दे तो विधानसभा में इसकी ताकत 41 तक पहुंच जाती है. साल 2018 में, भाजपा – जिसने उस समय बमुश्किल से राज्य में पैर जमाए ही थे– ने 60 में से 47 सीटों पर चुनाव लड़ा था, और दो सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, ये सभी दल सरकार का हिस्सा बने हुए हैं, मगर गठबंधन बिखर चुका है और सभी घटक आने वाले चुनावों में अलग-अलग लड़ने जा रहे हैं.

महत्वपूर्ण बात यह है कि यूडीपी मेघालय की उस गठबंधन सरकार का दूसरा सबसे बड़ा घटक है, जिसका नेतृत्व साल 2019 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली एनपीपी कर रही है. एनपीपी, भाजपा के नेतृत्व वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का भी हिस्सा है.

नवंबर 2021 के बाद से अब तक 19 विधायकों ने मेघालय में अपनी- अपनी पार्टियां छोड़ दी है, और इस मामले में कांग्रेस विधायक शीर्ष पर हैं. इसके 21 में से तीन विधायकों के निधन और एक अन्य के एनपीपी में शामिल होने के बाद, शेष 17 विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी है. यह सिलसिला नवंबर 2021 में तब शुरू हुआ जब उनमें से 12 विधायकों के एक गुट ने पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के नेतृत्व में टीएमसी के साथ ‘विलय’ कर लिया, जिससे ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी लगभग रातोंरात राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बन गई. कांग्रेस के दर्जन भर के शामिल होने के साथ ही टीएमसी अंततः इस ईसाई-बहुल राज्य में अपनी पैठ बना सकी.

हालांकि, समय के साथ, इनमें से चार विधायकों ने अन्य दलों में शामिल होने के लिए टीएमसी से इस्तीफा दे दिया. एनपीपी सहित कुछ अन्य दलों ने भी अपने विधायकों को भाजपा सहित अन्य दलों को खो दिया.

एनपीपी के दो विधायकों सहित कुल चार मौजूदा विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं. इस बीच, 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के एकमात्र विधायक सालेन संगमा पिछले सप्ताह ही कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे .

यूडीपी के प्रति आकर्षण के पीछे क्या वजह है?

राजनीतिक विश्लेषक और नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू) के प्रोफेसर प्रसेनजीत बिस्वास ने दिप्रिंट को बताया कि राज्य की जमीनी हकीकत एक तरह से ‘कांग्रेस, टीएमसी और एनपीपी के बीच पारस्परिक रूप से एक दूसरे के प्रभाव को काटने वाली प्रतियोगिता का संकेत देती है, लेकिन इसे यह संकेत नहीं मिलता है कि यूडीपी राज्य के चुनावी परिदृश्य पर हावी हो सकती है.’

उन्होंने कहा, ‘यूडीपी मानती है कि पिछले चुनाव के इसके वोट आधार के संदर्भ में इसके पास एकमुश्त वोट है, और एक खास तरह के ‘खासी राष्ट्रवाद’ के प्रति पार्टी के लगाव के कारण, यह अन्य पार्टियों के प्रभाव के खिलाफ एक निश्चित वोट बैंक को अपने पास बनाए रख सकती है. संविधान की छठी अनुसूची से संबंधित अन्य मांगों के साथ-साथ इनर लाइन परमिट (आईएलपी) और जिला परिषदों की स्वायत्तता के अधिकारों के विस्तार के लिए की जा रही यूडीपी की मांग जैसे कारकों ने इस विचार को जन्म दिया है कि इसका वोट बैंक बरकरार है. लेकिन यह धारणा खुद यूडीपी द्वारा बनाई गई है, जो पूरी तरह से सच नहीं भी हो सकती है.’

बिस्वास का कहना है कि विधायकों के यूडीपी में शामिल होने की एक और वजह ‘स्थानीय रूप से निहित जड़ों वाली पार्टी’ के रूप में इसकी छवि हो सकती है. उन्होंने कहा, ‘कुछ दलबदलू नेताओं ने अपना समर्थन आधार खो दिया है और अब वे इसके लिए यूडीपी पर निर्भर हैं. उन्होंने अंतिम उपाय के रूप में ही यूडीपी की ओर रुख किया है.‘

दूसरी ओर, यूडीपी के उपाध्यक्ष एलांट्री एफ. दखार ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के प्रति बढ़ता आकर्षण इस तथ्य में निहित है कि इसकी जड़ें उस हिल्स स्टेट मूवमेंट से जुड़ी हैं जो मेघालय के लोगों के लिए गर्व की बात है, खासकर तब जब इस राज्य ने पिछले ही साल इस आंदोलन के पचासवें वर्ष को पूरा किया है.

यह कहते हुए कि पार्टी ने तब से ही अपने ‘साफ-सुथरे रिकॉर्ड’ को बनाए रखा है, एलांट्री ने कहा, ‘अब से पचास साल बाद के लिए आइए हम एक नई शुरुआत करें. आइए हम राष्ट्रीय राजनीतिक ताकतों का साथ छोड़ें और अपनी ताकत, अपनी प्रतिभा का निर्माण करें. हमारा कैप्शन है: यूडीपी — मेघालय का, मेघालय द्वारा, मेघालय के लिए.’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘गठबंधन वाली कई सरकारों का हिस्सा होने के नाते हमारा पिछले इतिहास (ट्रैक रिकॉर्ड) बहुत अच्छा रहा है. दूसरी अन्य पार्टियों की तरह हम पर शायद ही कभी कोई दाग लगे हों. अगर हमारे पास पर्याप्त संख्या है तो हम इनमें से किसी भी राष्ट्रीय दल से बेहतर सरकार दे सकते हैं.‘

हालांकि, पिछले साल अक्टूबर में ही कांग्रेस पार्टी ने यूडीपी पर मेघालय में ड्रग्स, कोयला, शराब और जमीन की अवैध खरीद-बिक्री से पैसा बनाने का आरोप लगाया था.


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हिल्स स्टेट मूवमेंट में निहित हैं इसकी जड़ें

यूडीपी 6 जुलाई 1960 को गठित हिल्स स्टेट मूवमेंट के मुख्य नायक, ऑल पार्टी हिल लीडर्स कॉन्फ्रेंस (एपीएचएलसी) की एक उप-शाखा है. इसका मकसद तत्कालीन अविभाजित असम प्रांत से अलग एक राज्य के लिए संघर्ष करना था.

खासी तथा जयंतिया पहाड़ियों और गारो पहाड़ियों में ‘नो हिल स्टेट, नो रेस्ट’ के नारों के गूंजते रहने के साथ, मेघालय को साल 1970 में असम से अलग एक स्वायत्त राज्य बनाया गया और फिर अन्ततः 21 जनवरी 1972 को यह एक पूर्ण राज्य बन गया. एपीएचएलसी यहां लगभग 6-7 वर्षों से सत्ता में थी और इसके चार सदस्य राज्य के मुख्यमंत्री भी बने.

साल 1984 में क्षेत्रीय राजनीतिक ताकतों को एकजुट करने के उद्देश्य से एपीएचएलसी को भंग कर दिए जाने के बाद, कई समान विचारधारा वाले दलों ने साथ मिलकर हिल पीपल्स यूनियन (एचपीयू) का गठन किया. बाद में, सितंबर 1997 में, तीन क्षेत्रीय दलों –  स्वर्गीय ई. के. मावलोंग के नेतृत्व वाली एचएसपीडीपी, एचपीयू और पब्लिक डिमांड इम्प्लीमेंटेशन कन्वेंशन – ने साथ मिलकर यूडीपी का गठन किया. इस तरह यह राज्य की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बन गई और क्षेत्रीय एकता के अपने मुद्दे के आधार पर बेहतर चुनावी परिणाम प्राप्त करने की आशा रखती थी .

लेकिन उसके बाद से हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी के राजनीतिक भाग्य में उतार-चढ़ाव आता रहा है.

इसने अपना पहला विधानसभा चुनाव फरवरी 1998 में लड़ा और 20 सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन 2003 के चुनाव में इसकी ताकत घटकर नौ सीटों पर आ गई. इसने 2008 में आठवें विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत को 11 सीटों तक बढ़ा लिया, लेकिन 2013 में यह फिर घटकर आठ सीटों पर आ गई. इसके बाद इसने राज्य विधानमंडल में विपक्ष की भूमिका निभाई.

एलांट्री ने इस बात पर जोर दिया कि  हालांकि यूडीपी कई गठबंधन सरकारों में थोड़े समय के लिए ही सत्ता में रही है, लेकिन निस्संदेह रूप से इसने राज्य के विकास में योगदान देने में अपनी भूमिका निभाई है.

मेघालय में यूडीपी द्वारा समर्थित मुद्दे

पार्टी नेतृत्व का कहना है कि यह 1998 की यूडीपी के नेतृत्व वाली सरकार ही थी जिसने अंतरराज्यीय सीमा विवाद, नगर निगम के सफाई कर्मचारियों के लिए आवासीय क्वार्टर और किसानों पर ध्यान केंद्रित करने जैसे जटिल मुद्दों को उठाया.

एलांट्री ने कहा, ‘अपने असमी समकक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत के साथ मिलकर स्वर्गीय ई.के. मावलोंग ने ही दिसंबर 2000 में ब्लॉक I और II में खासी- और जयंतिया लोगों से बसे हुए गांवों की मेघालय में वापसी हेतु एक समझौता किया था. उसी सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान किसानों का एक वर्ष भी घोषित किया था.’

हालांकि, मावलोंग का कार्यकाल अल्पकालिक ही रहा था. उन्हें साल 2001 में तब अपना पद छोड़ना पड़ा था जब उनकी सरकार पर कोलकाता स्थित ‘मेघालय हाउस’ के पुनर्निर्माण के लिए हुए एक संदिग्ध सौदे में शामिल होने का आरोप लगा था.

फिर, साल 2008 में, जब यूडीपी एनसीपी के साथ सत्तारूढ़ मेघालय प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा थी, तब इसने डॉ डोनकुपर रॉय को मुख्यमंत्री नामित किया था. लेकिन उनका कार्यकाल भी इसी तरह से थोड़े ही समय वाला रहा था.

यह पूछे जाने पर कि साल 2018 के विधानसभा चुनावों में यूडीपी केवल छह सीटें हो क्यों हासिल कर सकी, एलेंट्री ने कहा कि यह अप्रत्याशित था. उन्होंने कहा, ‘साल ‘2018 में, हमारी यह धारणा थी कि चूंकि हम अपने सिद्धांतों पर खरे रहे हैं और पांच साल तक विपक्ष में बने रहे हैं, इसलिए जनता हमें इसका इनाम जरूर देगी.’

वे कहते हैं, ‘कई अन्य कारक भी काम कर रहे थे, पैसा इसका एक प्रमुख हिस्सा था. इसने सभी सिद्धांतों को कमजोर कर दिया और हमें केवल छह सीटें ही मिल सकीं. बाद में, उसी साल, हम रानीकोर और मावफलांग में हुए उपचुनाव के माध्यम से दो और सीटें हासिल करने में कामयाब रहे.’


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खासी राष्ट्रवाद नहींमेघालय राष्ट्रवाद

राजनीति के माध्यम से खासी-गारो विभाजन को उभारने की कोशिश करने के आरोपों के संबंध में यूडीपी नेतृत्व का कहना है कि उनकी पार्टी राज्य में क्षेत्रीय जातीय एकीकरण को गहरा करने और  मेघालय में लोगों को एकजुट करने वाले साझा तत्वों, पहचान और सोच के तरीकों का पता लगाने में  विश्वास करती है.

एलेंट्री ने कहा कि यह पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा थे जिन्होंने उस समय  पार्टी को ‘खासी टैग’ दिया था जब वह गारो हिल्स में एक मजबूत आधार का आनंद उठा रही थी. उन्होंने कहा कि पार्टी सिर्फ खासी राष्ट्रवाद के नहीं, बल्कि मेघालय राष्ट्रवाद के पक्ष में खड़ी है.

उन्होंने कहा, ‘यूडीपी मेघालय राष्ट्रवाद पर आधारित है, सिर्फ खासी राष्ट्रवाद पर नहीं. एपीएचएलसी के संस्थापक अध्यक्ष कोई और नहीं बल्कि कैप्टन विलियमसन अम्पांग संगमा हीथे, जो एक गारो नेता और मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री भी थे. एचपीयू के अध्यक्ष मोड़ी मारक थे, जो एक अन्य गारो नेता थे.‘

एलेंट्री ने कहा,  ‘खासी पार्टी वाला तमगा हमें किसी और ने नहीं बल्कि दिवंगत पी.ए. संगमा दिया था, जो कांग्रेस से नाता तोड़ने के बाद, यूडीपी द्वारा कब्जा कर ली गई राजनैतिक जगह को हड़पना चाहते थे, और उन्होंने ही लोगों से कहा कि हम एक ‘खासी पार्टी’ हैं.’

उन्होंने कहा, ‘इस बार हमारे पास दक्षिण तुरा से जॉन लेस्ली और उत्तरी तुरा से डॉ पिल्ने ए. संगमा जैसे सक्षम उम्मीदवार हैं.’

यूडीपी ने गारो हिल्स से 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है और इस सूची के और बढ़ने की संभावना है.

पार्टी-केंद्रित या व्यक्तित्व-उन्मुख?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था में व्यक्तित्व उतना ही मायने रखता है जितना कि विचारधारा और घोषणा पत्र, और इसी वजह से राजनीतिक दलों के लिए उम्मीदवार का चयन एक महत्वपूर्ण कदम हो जाता है.

एलेंट्री को लगता है कि इस मामले में उनकी पार्टी को दूसरों पर बढ़त प्राप्त है. क्योंकि यूडीपी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व विधायक पॉल लिंगदोह सहित उनके कुछ सबसे मजबूत नेताओं की जड़ें छात्र राजनीति से जुडी हैं, जो राज्य के मुद्दों से संबंधित अभियानों को प्रभावित करते हैं.

यूडीपी के महासचिव डॉ जेमिनो मावथोह अपने छात्र जीवन से ही एक सामाजिक नेता रहे हैं, जबकि यूडीपी पूर्वी खासी हिल्स के जिला अध्यक्ष टिटोस्टारवेल च्यने भी छात्र राजनीति में शामिल थे.

बिस्वास ने कहा, ‘मतदान अधिकतर चुनाव प्रचार -आधारित होता है. चुनाव प्रचार में शामिल मुद्दों को थोड़ा विकृत किया जा रहा है क्योंकि कुछ चीजें और कुछ समूहों के खिलाफ या उनके पक्ष में बातें बोली जाती हैं. राजनेताओं ने अपनी बुद्धि के अनुसार स्थितियों का इसी तरह से सामना किया है. मेघालय की राजनीति में ये चुनाव अभियान दबाव समूह की राजनीति जैसे विभिन्न कारकों के माध्यम से उत्पन्न होते हैं. यूडीपी के कुछ सदस्यों की पृष्ठभूमि छात्र राजनीति वाली है और वे अन्य राजनीतिक ताकतों की तुलना में चुनाव प्रचार में सूक्ष्म तरीके से भाग लेने में सक्षम हैं.’

बिस्वास ने कहा कि चुनाव प्रचार का काम बड़ी तेजी से एक तरह का ‘सूक्ष्म-राजनीतिक प्रबंधन’ बनता जा रहा है और जो पार्टी अपने समर्थन आधार को मैनेज कर सकती है, वह इसके लिए सबसे उपयुक्त है.

बिस्वास ने कहा, ‘चुनावी संदर्भ में, यह व्यक्तित्व-आधारित है. ऐसा व्यक्तित्व जो इसके लिए पैसे दे सकता है, इसके लिए लामबंदी कर सकता है और एक उज्जवल भविष्य की संभावनाएं दिखा सकता है. यहां राजनीति इसी तरह घूमती है. ‘

एलेंट्री उनसे सहमत थे, लेकिन उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि उनकी पार्टी का प्रभाव फिर से बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में, पूर्वोत्तर में दलगत राजनीति पीछे रह गई है और यह उम्मीदवार केंद्रित अधिक हो गई है. पार्टी का प्रभाव एक तरह से फीका सा पड़ गया है, लेकिन आने वाले चुनावों के साथ यह फिर से बढ़ रहा है. यह अपना चक्र पूरा कर चुका है. हम पार्टी को और अधिक आकर्षक बनाने का इरादा रखते हैं ताकि मतदाताओं द्वारा सही उम्मीदवारों को चुना जा सके.’

इस बार, यूडीपी अपना सारा ध्यान ग्रामीण विकास पर केंद्रित करना चाहता है. एलेंट्री के अनुसार, ‘हम मानते हैं कि चूंकि हमारी 79.25 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, इसलिए अगर उस प्रतिशत को विकसित किया जा सकता है, तो मेघालय भी विकसित हो सकता है.’

यूडीपी ने अकेले लड़ने और 30 से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद में किसी भी पार्टी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं किया है. पार्टी सभी 60 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की कोशिश कर रही है और यह 34 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा पहले ही कर चुकी है. यह जल्द ही उम्मीदवारों की तीसरी सूची जारी करेगी. पांचों मौजूदा विधायकों (जो पिछले सप्ताह पार्टी में शामिल हुए थे) को पहले जारी दो सूचियों में ही शामिल कर लिया गया था.

एलेंट्री ने कहा, ‘हम सरकार का नेतृत्व करने की दिशा में काम कर रहे हैं, और अगर वे हमें किंगमेकर भी बनाते हैं, तो हम इससे भी खुश रहेंगें.’

(अनुवाद: राम लाल खन्ना | संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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