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Friday, 19 April, 2024
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रणनीति में बदलाव? MP स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा के 92 मुस्लिम उम्मीदवार पार्षद चुने गए

भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए 380 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था और मुस्लिम भाजपा उम्मीदवारों ने कम से कम 25 वार्डों में कांग्रेस के हिंदू उम्मीदवारों को हराया.

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नई दिल्ली: पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश में स्थानीय निकायों के लिए चुने गए 6,671 पार्षदों में से 92 मुस्लिम पार्षदों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर चुनाव लड़ा था. पार्टी नेताओं के अनुसार, यह पहली बार था जब भाजपा ने मप्र में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए 380 मुसलमानों को टिकट बांटे. 2014 के पिछले चुनावों में बीजेपी ने 50 के आस-पास उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले वार्डों में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत से कई लोग हैरान है. कम से कम 25 वार्डों में कांग्रेस के हिंदू उम्मीदवारों को हराकर भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार 209 वार्डों में दूसरे स्थान पर रहे.

साल 2014 में कांग्रेस उम्मीदवारों की संख्या 400 थी. लेकिन इस बार पार्टी ने 450 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से 344 ने जीत हासिल की है.

2011 की जनगणना के अनुसार, मध्य प्रदेश की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 6.57 फीसदी है.

अनूपपुर में बीजेपी के अब्दुल कलाम ने कांग्रेस के अशोक त्रिपाठी को शिकस्त दी. कटनी में भाजपा के मोहम्मद अयाज ने कांग्रेस उम्मीदवार मोहनलाल को हराया, जबकि उज्जैन में कांग्रेस की वैशाली को भाजपा की आबिदा बी ने हराया.

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दिप्रिंट से बात करने वाले पार्टी नेताओं के अनुसार, यह मुस्लिम-बहुल वार्डों में जीत हासिल करने के लिए मुस्लिम वोटों को विभाजित करने की रणनीति का नतीजा था, जहां भाजपा पहले से ही हिंदू वोटों पर भरोसा कर सकती थी.

जहां भाजपा ने छोटे शहरों में मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा किया था. वहीं पार्टी ने भोपाल, इंदौर और जबलपुर सहित कई शहरों में एक अलग रास्ता अपनाया. यहां किसी भी मुसलमान उम्मीदवार को कोई टिकट नहीं दिया गया.

राज्य भाजपा प्रवक्ता हितेश वाजपेयी ने दिप्रिंट को बताया, यह ‘भारत की विकास यात्रा में सभी समुदायों को शामिल करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास की जीत है.0’

उन्होंने आगे कहा, ‘(बीजेपी के लिए मुसलमानों के) वोटों ने सबका साथ, सबका विकास की हमारी नीति में विश्वास दिखाया है. कांग्रेस के हिंदू उम्मीदवारों को हराने वाले हमारे मुस्लिम उम्मीदवारों ने राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया है.’

स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने 40 नगर पालिका परिषदों में से 24 और 169 टाउन काउंसिल में से 123 पर जीत हासिल की. पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को पहले बताया था कि राज्य के लगभग 80 प्रतिशत नगर निगम और काउंसिल में उसका बहुमत है.


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‘नतीजे दिखाते हैं कि मुसलमान बीजेपी को वोट देने के लिए तैयार हैं’

ग्वालियर, खंडवा और बुरहानपुर के चार-चार वार्डों में भाजपा द्वारा उतारे गए मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. इसी तरह छतरपुर, टीकमगढ़, देवास, नर्मदापुरम और नरसिंहपुर में बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवारों ने दो-दो वार्ड जीते.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राज्य प्रमुख रफत वारसी के अनुसार, स्थानीय निकाय चुनावों में यह ‘मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए एक रणनीतिक कदम’ था.

‘यह पहली बार है जब भाजपा ने इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. चूंकि स्थानीय चुनावों की प्रकृति विधानसभा चुनावों से अलग होती है, इसलिए हमारी रणनीति मुस्लिम और हिंदू दोनों वोट हासिल करने में कारगर साबित हुई.’

वारसी ने दावा किया कि स्थानीय निकाय चुनावों के परिणाम से पता चलता है कि ‘मुसलमान भाजपा को वोट देने के इच्छुक हैं’, यह कहते हुए कि पार्टी को केवल अपनी ‘सबका साथ, सबका विकास’ नीति के बारे में समुदाय के बीच जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा ‘चूंकि अधिकांश वार्डों में लगभग 2,000-3,000 मतदाता हैं. हम जानते थे कि ज्यादातर हिंदू वोट हमे मिलेंगे और अगर हमने मुसलमानों के कुछ वोटों को बांट दिया तो जीत निश्चित है. हमने मुस्लिम बहुल वार्डों में इस रणनीति का पालन किया और सफल रहे.

उदाहरण के लिए, खंडवा में भाजपा की रणनीति मुस्लिम बहुल वार्डों में मुस्लिम वोटों के बंटवारे पर भरोसा करना था. यहां उसके मुस्लिम उम्मीदवारों ने चार वार्डों में जीत हासिल की है.

खंडवा भाजपा जिलाध्यक्ष सेवा दास पटेल ने कहा, ‘हमने नौ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से चार जीते. इनमें दो महिलाएं थीं. चारों वार्डों में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार भी मुस्लिम थे, लेकिन हमारे मुस्लिम उम्मीदवार से हार गए. इन सभी वार्डों में जहां भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे, वे मुस्लिम बहुल थे.’

मध्य प्रदेश में भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मुस्लिम बहुल वार्डों में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारना एक ‘स्मार्ट रणनीति’ थी, इसे विधानसभा चुनावों में दोहराया नहीं जा सकता, क्योंकि एक विधानसभा क्षेत्र काफी बड़ा होता है.

नेता ने कहा, ‘वार्ड के चुनावों के विपरीत, बड़े निर्वाचन क्षेत्रों में जहां मतदाताओं की संख्या पांच लाख से ज्यादा है, मुस्लिम वोटों को विभाजित करके जीतना बहुत मुश्किल है.’

लेकिन भाजपा के मुस्लिम नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह की रणनीति अपनाएगी.

वारसी ने कहा, ‘स्थानीय निकाय चुनावों में इस जीत ने पार्टी के लिए उम्मीद की एक किरण दी है. हम विधानसभा चुनाव में और सीटों की मांग करेंगे. स्थानीय निकाय चुनावों में यह साबित हो गया है कि मुस्लिम समुदाय भाजपा को वोट देने को तैयार है.’

2018 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने मुस्लिम बहुल भोपाल उत्तर निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार फातिमा रसूल सिद्दीकी को मैदान में उतारा था. कांग्रेस नेता रसूल अहमद सिद्दीकी की बेटी फातिमा चुनाव हार गईं. इससे पहले सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार – दिवंगत आरिफ बेग – 2013 के एमपी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की सूची में शामिल थे.

उधर कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनावों में केवल तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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