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Monday, 9 December, 2024
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उत्तराखंड यूसीसी परामर्श में भाजपा और एआईएमआईएम के एक जैसे विचार — लिव-इन संबंधों का विरोध

शुक्रवार को सार्वजनिक की गई हितधारक परामर्श पर एक रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा ने कहा कि “एलजीबीटीक्यूआईए: संबंध सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुरूप नहीं हैं”.

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नई दिल्ली: लिव-इन संबंधों को कोई कानूनी मान्यता नहीं दी जानी चाहिए और उन पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक (जो अब एक अधिनियम है) का मसौदा तैयार करने वाली समिति को सुझाव दिया था. यह तब सामने आया जब उत्तराखंड की नियम निर्माण और कार्यान्वयन समिति द्वारा शुक्रवार को हितधारक परामर्श पर एक रिपोर्ट सार्वजनिक की गई.

बाद में भाजपा के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार ने लिव-इन संबंधों के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बना दिया और महिला को उसके लिव-इन पार्टनर द्वारा छोड़े जाने की स्थिति में गुज़ारे भत्ते का प्रावधान किया.

अपने सुझावों में भाजपा ने कहा कि शादी का “अनिवार्य रजिस्ट्रेशन” होना चाहिए और “एलजीबीटीक्यूआईए: संबंध हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुरूप नहीं हैं; ऐसे संबंधों को वैधानिक प्रावधानों के माध्यम से सक्रिय रूप से हतोत्साहित किया जाना चाहिए”.

मई 2022 में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राज्य में कार्यान्वयन के लिए यूसीसी तैयार करने के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया.

समिति में सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल भी शामिल थीं.

फरवरी में उत्तराखंड विधानसभा ने यूसीसी पारित किया, जिसे बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली. राज्य सरकार अक्टूबर तक कानून को लागू करने के लिए पूरी तरह तैयार है.

रिपोर्ट, जिसे अब सार्वजनिक किया गया है, में जनता, राजनीतिक दलों और विभिन्न अन्य हितधारकों से प्राप्त सुझाव शामिल हैं.

यूसीसी के अनुसार, राज्य के भीतर लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए चाहे वे उत्तराखंड के निवासी हों या नहीं उन्हें रजिस्ट्रार को लिव-इन रिलेशनशिप की जानकारी देना ज़रूरी है, जिसके अधिकार क्षेत्र में वे रह पाएंगे.

इसमें कहा गया है कि “ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए”.

रिपोर्ट में कहा गया कि रजिस्ट्रेशन केवल रिकॉर्ड रखने के लिए है, साथ ही कहा कि “यूसीसी का स्पष्ट रूप से समर्थन किया जाता है क्योंकि यह संवैधानिक है और यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट भी इसका समर्थन करता है. हालांकि, किसी भी परिणामी सामाजिक वैमनस्य से बचने के लिए सावधानी बरती जानी चाहिए”.

इसमें कहा गया है, “जहां सामाजिक बुराइयों को मिटाया जाना चाहिए, वहीं हमारी राष्ट्रीय विरासत को संरक्षित करने का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. आमतौर पर, धर्म परिवर्तन पर रोक लगाई जानी चाहिए. धर्म परिवर्तन के लिए एक प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ऐसे कार्य स्वैच्छिक हों और किसी प्रलोभन या जबरदस्ती के अधीन न हों.”

अगर, महिला को उसका साथी त्याग देता है तो उसे गुज़ारा भत्ता देना अनिवार्य बनाने के अलावा, अधिनियम में यह भी कहा गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए किसी भी बच्चे को दंपति की वैध संतान माना जाना चाहिए.

लिव-इन रिलेशनशिप पर अन्य पार्टियों के विचार

बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप को नियमित किया जाना चाहिए और “दोनों पक्षों के अधिकारों” की रक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन किया जाना चाहिए, साथ ही कहा कि LGBTQIA रिलेशनशिप को भी पंजीकृत किया जाना चाहिए.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (CPI(ML)L) ने कहा कि “लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बरकरार रखा जाना चाहिए. हालांकि, उनके हितों की रक्षा की जानी चाहिए”.

बीजेपी की तरह ही, असदुद्दीन ओवैसी की अध्यक्षता वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने भी लिव-इन रिलेशनशिप का विरोध किया है.

इसने बताया कि “प्रस्तावित यूसीसी व्यक्तिगत नागरिक मामलों पर मौजूदा कानूनों के साथ टकराव में होगी”, साथ ही कहा कि यह प्रथागत प्रथाओं और अनुष्ठानों में मौजूदा विविधता को भी प्रभावित करेगी”.

एआईएमआईएम ने कहा, “लिव-इन रिलेशनशिप का कड़ा विरोध किया जाता है. ऐसे रिश्तों में बहुत अनिश्चितता होती है और गर्भावस्था जैसी जटिलताएं भी होती हैं. ऐसे रिश्तों को सकारात्मक रूप से हतोत्साहित किया जाना चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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