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Tuesday, 16 April, 2024
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अयोध्या मामले में देरी: भाजपा को नुकसान या फायदा?

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या ज़मीन विवाद मामले की जनवरी 2019 में सुनवाई के निर्देश के बाद भाजपा के एक धड़े में अपने बेचैन मतदाताओं को लेकर चिंता है तो दूसरे धड़े का मानना है कि चुनावों के करीब सुनवाई पार्टी को लाभान्वित करेगी.

नई दिल्ली: राजनीतिक और चुनावी रूप से संवेदनशील राम मंदिर के मुद्दे में और देरी ने सत्तारूढ़ भाजपा की चिंता बढ़ा दी है. उनका एक बड़ा वोटर समूह इस मामले को लेकर बेचैन है. हालांकि पार्टी के एक धड़े का मानना है कि चुनावों के करीब सुनवाई पार्टी को लाभान्वित करेगी.

गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्देश दिया कि राम जन्मभूमि विवाद मामले को जनवरी 2019 में सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए. प्रभावी रूप से, इसका मतलब है कि मामला अब जनवरी के बाद ही सुना जाएगा.

भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा

राम मंदिर मुद्दा 1990 के दशक की शुरुआत से ही भाजपा के लिए महत्ववूर्ण चुनावी मुद्दा रहा, यहां तक की उस दशक में पार्टी के तेज वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार भी रहा है. पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में और लोकसभा चुनाव अगले वर्ष के लिए निर्धारित किए गए हैं, ऐसे में यह मामला पार्टी के लिए और महत्वपूर्ण हो जाता है वह भी ऐसे वक्त में जब वह केंद्र और कई राज्यों में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का सामना कर रही है.

आपको बता दे सोमवार को अदालत के फैसले के कुछ घंटों के भीतर #Ordinance4RamMandir ट्विटर पर नंबर दो पर ट्रेंड कर रहा था. भाजपा से जुड़े एक शीर्ष सूत्र ने बताया कि अदालत के फैसले ने नेतृत्व के साथ-साथ कैडरों में चिंता पैदा कर दी थी. इसका कारण राममंदिर को लेकर बेचैन और अधीर मतदाता समूह का होना है.

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नाम न छापने की शर्त पर भाजपा से जुड़े सूत्र ने कहा,‘हम जानते है कि हमारा मूल मतदाता आधार अब बेचैन हो रहा है. यह हमारे लिए अच्छा नहीं है.’

पार्टी के सूत्र ने कहा, ‘वे भाजपा सरकार द्वारा कानून या अध्यादेश लाए जाने की मांग करेंगे, जिसे हम नहीं करेंगे. इससे उनके बीच और भी नाराज़गी हो जाएगी और वे इस मुद्दे पर हमारी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाएंगे.’

गौरतलब है कि हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार को एक कानून लाना चाहिए.

यूपी बीजेपी में चिंताएं

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में इस चिंता को लेकर फुसफुसाहट शुरू हो गई है. खासतौर से उत्तर प्रदेश में जहां पार्टी ने 2014 में 80 सीटों में से 71 सीटें जीती थीं. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा ने यहां उपचुनावों में खराब प्रदर्शन किया है. यहां तक कि उसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह ज़िले गोरखपुर में भी हार का सामना करना पड़ा.

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा,‘मैं टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है. हालांकि, सुनवाई टलने से कोई अच्छा संदेश नहीं गया है.’

सवर्ण जातियों का गुस्सा बढ़ा सकती है देरी

पार्टी के सूत्रों ने कहा कि एक बड़ी चिंता पहले से ही सवर्ण जातियों का खिलाफ़ होना है. सवर्ण जातियां भाजपा की पारंपरिक वोट बैंक रही हैं. हालांकि वो पिछड़े समुदायों, विशेष रूप से दलितों को लेकर पार्टी के स्टैंड से नाराज़ हैं. पार्टी को उम्मीद थी कि राम मंदिर के मुद्दे में एक सकारात्मक कदम ऐसे नाराज़ मतदाताओं को शांत करने का काम करेगा.

एक अन्य पार्टी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘सवर्ण जातियां निश्चित रूप से मांग करेंगी कि हम कानून या अध्यादेश लाएंगे. जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति रोकथाम अधिनियम को कमज़ोर किया तो हमारी सरकार ने मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए कानून लाया.’

भाजपा नेता ने कहा, ‘सवर्ण जातियां इस प्रकार कहेंगी कि हम इसे दलितों के लिए कर सकते हैं, हम सभी हिंदुओं के लिए कानून/अध्यादेश क्यों नहीं ला सकते हैं?’

दूसरा विचार

लेकिन पार्टी में एक वर्ग है जो इस मुद्दे पर अधिक आशावादी दिखाई देता है.

सूत्रों के मुताबिक, एक ऐसा विचार है कि 2019 के चुनावों के करीब सुनवाई से भाजपा को फायदा हो सकता है.

सूत्रों ने कहा कि इस धड़े का मानना है कि जब मामले की सुनवाई अंतिम दौर में होगी तो पार्टी इस मुद्दे पर आगे बढ़ सकती है और मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकती है.

एक और पार्टी नेता ने कहा, ‘यदि सुनवाई, फरवरी, मार्च या अप्रैल में होती है, तो यह लोकसभा चुनावों के दरम्यान हर रोज़ खबरों में होगी.’

भाजपा नेता ने कहा, ‘इससे मतदाता की भावनाओं को अपने पक्ष में लाया जा सकता है. वास्तव में बात यह है कि हम कितनी अच्छी तरह से रणनीति बनाते हैं और इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.’

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