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Saturday, 20 April, 2024
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क्या बिहार में कमज़ोर पड़ रहा है राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन!

लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में सत्तारूढ़ राजग से जिस तरह पार्टियों का बाहर जाना जारी है, उससे यह माना जा रहा है कि भाजपा की 'गांठ' कमज़ोर हुई है.

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पटना: बिहार की राजनीति भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कभी आसान नहीं रही है. भाजपा अगर वर्ष 2005 के बाद बिहार की सत्ता में आई थी, तब भी वह ‘छोटे भाई’ की भूमिका में रही थी. अगले लोकसभा चुनाव के पूर्व बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से जिस तरह पार्टियों का बाहर जाना जारी है, उससे यह तय माना जा रहा है कि भाजपा की ‘गांठ’ जरूर कमजोर हुई.

यह दीगर बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद उसे एक बड़ा साथी जनता दल (युनाइटेड) के रूप में मिल गया है.

बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) भाजपा का साथ छोड़ चली गई. उसके बाद नीतीश कुमार की जद (यू) भाजपा के साथ तो जरूर आई, लेकिन राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (रालोसपा) की नाराजगी बढ़ गई और अंत में रालोसपा ने राजग से ही किनारा कर लिया.

ऐसे में कमजोर पड़ रही भाजपा को अब बिहार राजग के लिए मजबूत घटक दल माने जाने वाले लोजपा ने भी परोक्ष रूप से राजग छोड़ने की धमकी दे दी है. ऐसे में देखा जाए तो आने वाला समय भाजपा के लिए आसान नहीं है. राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि भाजपा की ‘गांठ’ बिहार में ढीली पड़ी है.

बिहार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि भाजपा ने इतिहास से भी सीख नहीं ली है. उन्होंने कहा, ‘भाजपा एक बार फिर वर्ष 2004 की तरह गड़बड़ा रही है. अपने सहयोगियों से सीट बंटवारे को लेकर बात करने में भाजपा की मजबूरी नहीं थी, पर वह इस ओर ध्यान नहीं दे रही.’

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उनका कहना है कि परिवार से एक भाई के जाने से परिवार कमजोर हो जाता है, इसे नकारा नहीं जा सकता. ऐसे में राजग से रालोसपा का जाने का अगले चुनाव में तो प्रभाव पड़ेगा, लेकिन कितना पड़ेगा, उसका अभी आकलन नहीं किया जा सकता.

उन्होंने भाजपा द्वारा गठबंधन के नेताओं से बात नहीं करने पर बड़े स्पष्ट तरीके से कहा, ‘दूध का जला, मट्ठा भी फूंककर पीता है, मगर भाजपा अपने इतिहास से भी सीख नहीं ले रही है.’

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त इसे ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हाल ही में भाजपा की तीन राज्यों में हार हुई है, ऐसे में लोजपा के नेता भाजपा पर दबाव बनाकर लोकसभा चुनाव में अधिक सीटें चाहते हैं. उन्होंने हालांकि दावे के साथ कहा, ‘लोजपा अभी राजग को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली है, क्योंकि महागठबंधन में जितनी पार्टियों की संख्या हो गई है, उसमें लोजपा को वहां छह-सात सीटें नहीं मिलेंगी.’

दत्त हालांकि यह भी कहते हैं कि राजग के साथ बिहार में जद (यू) जैसी बड़ी पार्टी आ गई है, ऐसे में भाजपा छोटे दलों को तरजीह नहीं दे रही, जिस कारण रालोसपा ने किनारा करना उचित समझा.

भाजपा और जद (यू) के नेता हालांकि राजग में किसी प्रकार के मतभेद से इनकार कर रहे हैं. भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बातें कहने का हक है. सभी पार्टियां अपनी दावेदारी रखती हैं और रख रही हैं, जिसे मतभेद के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए.

बहरहाल, लोकसभा चुनाव तो अगले वर्ष होना है, लेकिन सीट बंटवारे को लेकर पार्टियों के बीच अभी से शह-मात का खेल शुरू हो गया है. अब देखना यही है कि आनेवाले चुनाव में कौन दोस्त दुश्मन और कौन दुश्मन दोस्त नजर आते हैं.

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