scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमराजनीतिराज्यों की आपत्ति के बाद जाति के आधार पर अलग-अलग MNAREGA भुगतान करने का विवादित आदेश वापस

राज्यों की आपत्ति के बाद जाति के आधार पर अलग-अलग MNAREGA भुगतान करने का विवादित आदेश वापस

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जमीनी आधार पर तैयार अपनी रिपोर्ट में पाया कि एससी, एसटी और अन्य में बांटे जाने से ग्रामीण समुदायों के बीच जाति विभाजन गहराने लगा था.

Text Size:

नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत किए जाने वाले भुगतान को जाति के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में बांटने के मोदी सरकार के विवादास्पद फैसले को वापस ले लिया गया है और एकल खाते से भुगतान की पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी गई है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

इस साल की शुरू में लागू किए गए इस कदम की तमिलनाडु और कर्नाटक सहित कई राज्यों ने आलोचना की थी.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जमीनी आधार पर तैयार अपनी रिपोर्ट में यह भी पाया कि इस कदम से ग्रामीण समुदायों के बीच जाति विभाजन गहराने लगा था क्योंकि इसके तहत श्रमिकों को तीन समूहों—अनूसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य—में बांटा गया था.

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस साल 2 मार्च को सभी राज्य सरकारों को भेजी एक एडवाइजरी में वर्ष 2021-22 से मनरेगा के तहत वेतन भुगतान बांटने के लिए एससी, एसटी और अन्य की तीन अलग-अलग श्रेणियां बनाने का निर्देश दिया था.

एक सूत्र के मुताबिक, हालांकि इस सप्ताह ग्रामीण विकास मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और सामाजिक न्याय मंत्रालय के अधिकारियों की एक बैठक के बाद सामूहिक रूप से इस आदेश को वापस लेने का फैसला किया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इसके साथ ही एकल खाते से भुगतान की पुरानी व्यवस्था को बहाल कर दिया गया है.

अपना नाम न देने की शर्त पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘वित्त वर्ष 2020-21 तक एक ही मस्टर रोल के तहत काम करने वाले श्रमिकों की सभी श्रेणियों (एससी, एसटी और अन्य) को एकल फंड ट्रांसफर ऑर्डर के माध्यम से भुगतान किया जाता था.’

अधिकारी ने आगे बताया, ‘ग्रामीण एवं सामाजिक मंत्रालय को राज्य सरकारों (तमिलनाडु, कर्नाटक) की तरफ से मिले अनुरोधों और सामाजिक न्याय मंत्रालय को अपनी फील्ड रिपोर्ट में यह जानकारी मिली कि बिना किसी वर्गीकरण के भुगतान की पिछली प्रणाली को बहाल किया जाना जरूरी है.’


यह भी पढ़ें: आधार, मनरेगा, डीबीटी, ग्रामीण आवास– कांग्रेस की विरासत को मोदी ने कैसे हड़पा


राज्यों का क्या कहना है

एक बार जाति-आधारित व्यवस्था शुरू हो जाने पर केंद्र की तरफ से तीनों खातों में से प्रत्येक में गैर-समान भुगतान वितरण ने श्रमिकों के बीच समस्याएं उत्पन्न करना शुरू कर दिया.

तमिलनाडु सरकार ने पिछले महीने केंद्र को बताया था कि श्रेणियों के आधार पर भुगतान करने से राज्य में कमजोर वर्ग के लोगों में डर उत्पन्न हो गया है. राज्य ने आगे कहा कि यह मनरेगा अधिनियम के तहत जाति पूर्वाग्रह के बिना सभी को समान काम, समान मजदूरी और अन्य तरह की भागीदारी में समानता का अधिकार देने के कानून के भी खिलाफ है.

कर्नाटक सरकार ने भी केंद्र से वेतन खाते को अलग-अलग तीन श्रेणियों में बांटने के फैसले पुनर्विचार करने और योजना पर सुविधाजनक ढंग से अमल के लिए पहले की तरह एकल खाता व्यवस्था फिर से लागू करने को कहा था.

ऊपर उद्धृत स्रोत के अनुसार, सरकार को राज्य सरकारों के अलावा अन्य विभिन्न वर्गों की तरफ से ऐसे आग्रह मिले और मंत्रालय की फील्ड रिपोर्ट से भी यह पता चला कि इस कदम से न केवल सुपरवाइजर के स्तर पर काम बहुत ज्यादा बढ़ गया है, बल्कि ‘ग्रामीण समुदायों के भीतर जाति विभाजन और गहराने लगा’ है.

फील्ड रिपोर्ट का सूत्र ने हवाला देते हुए यह भी कहा, ‘कुछ अनुसूचित जाति संगठनों की तरफ से ऐसी शिकायत की गई थी क एससी मस्टर रोल के तहत आने वाले श्रमिकों को भुगतान नहीं किया गया है जबकि अन्य समुदायों के मस्टर रोल पर भुगतान किया गया.’

सामाजिक न्याय मंत्रालय ने तब सुझाया था कि रियल टाइम डेटाबेस का इस्तेमाल करके एससी और एसटी पर किए जाने वाले खर्च की निगरानी और हिसाब-किताब करना बेहतर होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढें: लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के लिए मददगार बनी मनरेगा के लिए बजट 2021 के आवंटन की क्यों है अहमियत


 

share & View comments