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Wednesday, 24 April, 2024
होममत-विमततेजी और मंदी शेयर बाजार का चरित्र है, क्या ये फिर गिरेगा

तेजी और मंदी शेयर बाजार का चरित्र है, क्या ये फिर गिरेगा

शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है.

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पिछले दिनों भारतीय शेयर बाजार ने चमक बिखेर दी और सेंसेक्स 60,000 के पार तो हो गया लेकिन उसने यह सवाल भी खड़ा किया कि क्या इन बुलंदियों पर जाने के बाद यह अब धराशायी हो जाएगा? उसके इस रिकॉर्ड ऊंचाई पर जाने के बाद तरह-तरह की आशंकाएं खड़ी हो गईं हैं. हालांकि पिछले हफ्ते इसमें पांच हफ्तों के बाद गिरावट आई और यह 1282 अंक गिरकर 58,766 पर चला गया. निफ्टी में भी 321 अंकों की गिरावट आई और 17,532 अंकों पर था.

इससे पहले कि यह बहस तेज हो कि क्या यह गिरावट स्थायी है, सोमवार को सेंसेक्स में 625 अंकों की बढ़ोत्तरी हो गई.
लेकिन विशेषज्ञ यहां मानते हैं कि शेयर बाज़ार के इन ऊंचाइयों पर जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. यह या तो अति उत्साह में की गई खरीदारी है या सटोरियों का खेल. अगर हम ध्यान से देखें तो इस समय निवेश के सारे रास्ते बंद हो गये हैं. रियल एस्टेट मंदी के भीषण दौर से गुजर रहा है, सोना नई ऊंचाइयों पर जाने के बाद नीचे तो आया है लेकिन इतना भी नहीं कि खरीदारी हो सके, सरकारी बांडों और ऋण बाजारों में भी खास रिटर्न नहीं है. फिक्स्ड डिपॉजिट में ब्याज दरें इतनी कम हो गईं हैं कि यह निरर्थक हो गया है. सच तो है कि महंगाई की दर इतनी ज्यादा हो गई है कि उसके कारण डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज निगेटिव में चला गया है. इसका मतलब हुआ कि अब फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे डालने का कोई फायदा नहीं है. तो फिर सेविंग के जरिये कमाने का क्या जरिया बचता है? शेयर बाजार और उस पर आधारित म्यूचुअल फंड. यही कारण है कि निवेशक इनमें बड़े पैमाने पर धन लगा रहे हैं. इन दोनों ने निवेशकों को निराश नहीं किया और अच्छा रिटर्न भी दिया है. सिर्फ इस साल ही सेंसेक्स 13,000 अंकों से भी ज्यादा बढ़ गया है. उधर म्यूचुअल फंडों में कई तो ऐसे हैं जिन्होंने 50 प्रतिशत से भी ज्यादा रिटर्न दे दिया है.


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उभरती अर्थव्यवस्था, भारत और एफडीआई

लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या सिर्फ इस कारण से ही शेयर बाजार इतना ऊपर चला गया? इसके कई उत्तर हैं. सबसे बड़ा फैक्टर है, सारी दुनिया में ब्याज दरों का गिरना. इस समय अमेरिका और पश्चिमी देशों और जापान वगैरह में ब्याज दरें शून्य पर हैं. भारत में भी यह अपने न्यूनतम पर हैं. ऐसे में निवेशक बैंकों से पैसा लेकर या वहां जमा न कर भारतीय शेयर बाजारों में लगा रहे हैं. विदेशी वित्तीय संस्थान और एनआरआई ने भी निवेश किया. इस बात का अंदाजा इसी से मिलता है कि 2021-22 (जून) में यहां के वित्तीय बाजारों में उन्होंने 4433 करोड़ रुपए का निवेश किया है. यह राशि बाजार में आग लगाने का काम कर रही है.

दरअसल, इस समय उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश के लिए उपयुक्त स्थानों में भारत ऊंचे स्थान पर है. इस समय यहां निवेश करना विदेशी निवेशकों के लिए फायदे का सौदा है. यहां की तमाम परिस्थितियां उनके अनुकूल हैं. ऐसे में निवेशक आश्वस्त भाव से निवेश कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि लगातार तीसरे साल भी विदेशी निवेशकों ने भारत में कुल कुल 9 अरब डॉलर निवेश कर दिया है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ विदेशी निवेशकों ने ही यहां पैसा लगाया है. देसी निवेशक भी शेयर बाजार की बहती गंगा में हाथ धोने के लिए बड़ी तादात में उतर गये हैं. आज म्यूचुअल फंडों और सिप के माध्यम से निवेशक बड़े पैमाने पर इसमें पैसे लगा रहे हैं और उनमें लगभग 70 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिन्होंने शेयर बाजार में कभी पैसा नहीं लगाया था.

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उधर, डीमैट अकाउंट खोलना आसान बनाकर सेबी ने भी लोगों को इस ओर आकर्षित किया है. इस साल ही नहीं पिछले साल भी लाखों नए डीमैट अकाउंट खुले हैं. सेबी के ही आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अप्रैल से इस साल जनवरी तक एक करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकाउंट खुले हैं. इस समय देश में सात करोड़ से भी ज्यादा डीमैट अकांउट खोले जा चुके हैं. नई टेक्नोलॉजी और ऐप ने पैसे लगाना एकदम आसान कर दिया है. अब नए निवेशक लगातार पैसे लगा रहे हैं सीधे भी और म्यूचुअल फंडों के जरिये भी.

म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अपने स्लोगन ‘म्यूचुअल फंड सही है’ से लोगों को इस ओर आकर्षित करने में सफल हो रही है. आंकड़े बताते हैं कि शेयर बाजारों में बड़े पैमाने पर निवेश इनके जरिये ही हो रहा है. नए लोग जो बाजार के उतार-चढाव से घबराते हैं, शेयर बाजारों में ही निवेश कर रहे हैं. एक तरह से तो यह अच्छी बात है क्योंकि बाजार के धराशायी होने पर उन्हें जोर का झटका धीरे से लगेगा. इसके अलवा सेबी और सरकार ने म्यूचुअल फंडों पर भी लगाम कस दी है और वे अब उतनी मनमानी नहीं कर सकते हैं.

बाजार की इस जबर्दस्त तेजी ने बहुत सी धारणाओं को झुठलाया है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था का आइना होता है. आज स्थिति दूसरी है. जीडीपी में जितनी तेजी आई है उससे कहीं ज्यादा शेयर बाजारों में तेजी आई है. दरअसल, इन दोनों के बीच एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए. कंपनियों के तिमाही या सालाना परिणाम कहीं से देश की अर्थव्यवस्था की हालत को बयान नहीं कर रहे हैं, अतिशयोक्ति से काम ले रहे हैं.

दूसरी बात है जो और भी खतरनाक है, वह है कि चूंकि शेयर बाजार का सीधा संबंध कंपनियों से हैं, उनके परिणाम चाहे वे सालाना हों या तिमाही इस मानदंड पर खरे नहीं उतर रहे हैं. इन दिनों कंपनियों के परिणाम बेशक अब अच्छे आ रहे हैं लेकिन उनके शेयर बहुत गर्म हो गए हैं. इनमें से कई तो अपने पीई रेशियो से कई गुना ज्यादा हो गए हैं. इस समय मार्केट कैप और जीडीपी का अनुपात 130 प्रतिशत को पार कर गया है. बाजार इकोनॉमी से कहीं आगे निकल गया है और यह चिंता का विषय है क्योंकि यह बता रहा है कि सेंसेक्स और निफ्टी अब ठोस जमीन पर नहीं खड़े हैं. ये कंपनियों के तीन साल आगे होने वाली कमाई को मानकर अभी से चल रहे हैं. ऊंचे वैल्यूएशन के अपने खतरे हैं और ऐसे में बाजार के धारशायी होने की संभावना बढ़ जाती है. अब हमारा शेयर बाजार उस ओर इशारा कर रहा है.


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राजनीतिक अर्थव्यवस्था और अर्थव्यवस्था

मतलब साफ है कि तेजी से भागते बाजार को कभी भी ब्रेक लग सकता है और यह कभी भी औंधे मुंह गिर सकता है. कुछ एनालिस्ट मानते हैं कि अब बाजार के 10 से 25 प्रतिशत तक गिरने की संभावना बनती जा रही है क्योंकि यह ठोस जमीन पर खड़ा नहीं है.

एक बात और जो याद रखनी चाहिए कि शेयर बाजार अवधारणाओं या सेंटिमेंट पर चलते हैं. ये काफी आगे तक के फैक्टर को डिस्काउंट कर लेते हैं. इस बार भी ऐसा हो रहा है. देश में राजनीतिक स्थिरता है और अर्थव्यवस्था ‘वी’ शेप में ऊपर की ओर जा रही है. इसलिये भी निवेशक यहां पैसे लगा रहे हैं.

एक बात जो देखने की है और वह यह कि इस समय बीएसई या निफ्टी में बड़े पैमाने पर शेयर ऐसे हैं जो बढ़े ही नहीं, बढ़े तो नाम भर के ही जबकि उनकी कंपनियां काम अच्छा ही कर रही हैं. दूसरी ओर कुछ शेयर ऐसे हैं जो अपने अधिकतम पर हैं या फिर दोगुनी कीमत के हो गये हैं. यानी यह एक बड़ा विरोधाभास है.

बाजार अगर धराशायी होता है तो निवेशकों को भारी चोट पहुंचेगी और खलबली मच जाएगी, लेकिन समझदार निवेशकों के लिए एक सलाह है कि उस समय बाजार का दामन छोड़कर आप घाटा ही उठाएंगे. शेयर बाजार का इतिहास गवाह है कि जब यह बुरी तरह गिरता है तो उस समय ही बाद में आने वाली तेजी की नींव भी रखी जाती है. तब शायद थोड़ा यानी एकाध साल तक प्रतीक्षा करनी हो सकती हो सकती है. तेजी और उसके बाद मंदी, यह शेयर बाजार की नियति है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)


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