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Thursday, 25 April, 2024
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हरियाणा और पंजाब में बाबाओं का राज क्यों है?

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अगर संदर्भ इतना मज़बूत नहीं होता तो हम इस सवाल को और अधिक कठिन पाते: हमारे देश के किस हिस्से में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे अधिक स्वयंभू बाबा हैं?

वास्तव में निसंदेह इसका जवाब पंजाब और हरियाणा है. यह क्षेत्र हमारे देश में और भी बहुत कुछ के लिए जाना जाता है लेकिन धर्म, आध्यात्मिकता और स्वयंभू बाबाओं की बहुलता के वास्तव में नहीं जाना जाता है.

इसमें से सभी धोखेबाज़ नहीं हैं. कुछ ने अपने आध्यात्मिक दर्शन विकसित किए हैं, कानून के भीतर रहे हैं और परोपकार व जनसेवा भी की है. हालांकि बाकी ज़्यादातर वास्तव में ज़मीन हथियाने वाले राजनीतिक बिचौलिए, सत्ता की दलाली और गोरखधंधे में संलिप्त हैं.

इन्हें आप फैंसी ड्रेस में गब्बर सिंह कह सकते हैं, जिनकी शक्तिशाली अदालतों में स्थानीय राजनेता कर्तव्यपूर्वक ‘अरे ओह, सांभा …’ के आह्वान का जवाब देते हैं.

आपको ऐसे लोगों को बारे में समझाने के लिए शोले से इमेजरी का उपयोग करने के लिए सावधान रहना होगा. और हालिया मामले में, लाखों भक्त अनुयायियों से. लेकिन हमें यह आज़ादी लेनी होगी. हमारा इलाका उस बलात्कार के दोषी व्यक्ति गुरमीत राम रहीम के अनुयायियों द्वारा बंधक बना लिया गया जो दो लोगों की हत्या के दोषी हैं जिसमें एक बहादुर स्थानीय पत्रकार भी शामिल हैं जिसने बलात्कार मामले का खुलासा किया था. इसके अलावा उस पर यह भी आरोप है कि उसने मुक्ति दिलाने के नाम पर 400 अनुयायियों को नपुंसक बना दिया है.

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जेल में बंद

सबसे पहले चर्चा सबसे ज़्यादा अनुयायियों वाले बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसान की, जिन्होंने सिरसा में हाई सिक्योरिटी वाला डेरा बना रखा है. कुछ ऐसा ही व्यवस्था हिसार में स्वयंभू बाबा संत रामपाल की है. निश्चित रूप से, वह भी जेल में हैं, अब उसे अपने बाकी के जीवन के लिए वहां रखने के लिए पर्याप्त गंभीर आरोपों पर दोषी पाया गया है.

चूंकि उनका मामला हाल ही का है. इसलिए आपको याद होगा कि नवंबर 2014 में हरियाणा पुलिस से उनके अनुयायियों ने लंबी लड़ाई लड़ी थी और रामपाल के गिरफ्तार किए जाने से पहले कई मारे गए थे. उस समय तत्कालीन हरियाणा के महानिदेशक एसएन वशिष्ठ ने यहां तक कहा था कि उनकी पुलिस को रामपाल के कमांडो की लड़ाका सेना से निपटना पड़ा था.

एक बात यह है कि सभी डेरा या संप्रदायों में आम बात पर्सनैलिटी कल्ट है. हरियाणा के हिसार और सिरसा से पश्चिम की ओर अपनी आंखें दौड़ाएं और आप पाएंगे कि पंजाब के आसपास के आठ ज़िलों में इन दो बाबाओं के लाखों अनुयायी हैं.

सभी विवादित नहीं

पंजाब में पुराने राधास्वामी और निरंकारी संप्रदाय भी हैं. दोनों बड़े हैं. ये उत्तर भारत के बड़े हिस्सों (दिल्ली समेत) और उससे आगे फैले हुए हैं. राधास्वामी कभी विवादित नहीं रहा है. उसके वर्तमान मुखिया या बाबाजी बीमार हैं.

कृपया ध्यान दें कि हम बाबाजी या आध्यात्मिक प्रमुख के लिए गुरु का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन पंजाब में यह सिखों के लिए निंदाजनक है. सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने खुद को आखिरी गुरु घोषित किया था और सिख धर्म की पवित्र पुस्तक ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को हमेशा के लिए गुरु घोषित किया था.

राधास्वामी संप्रदाय का मुख्यालय ब्यास नदी के पास है, जो ग्रैंड ट्रंक रोड के साथ जालंधर और अमृतसर के बीच है. अब वहां वंशानुगत उत्तराधिकार नहीं है लेकिन योजनाबद्ध उत्तराधिकारी अभी काम कर रहे हैं.

राधास्वामी का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति भाई शिविंदर मोहन सिंह है, जिन्हें हममें से ज्यादातर रैनबैक्सी/रेलिगेयर/फोर्टिस भाइयों में से एक के रूप में जानते हैं. दूसरे मालविंदर मोहन सिंह को कभी-कभी एमएमएस कहा जाता है और लुटियंस सर्किल में एसएमएस.

निरंकारियों का इतिहास थोड़ा घटनापूर्ण रहा है. उनके सबसे लंबे समय तक मुखिया रहे बाबा गुरबचन सिंह की हत्या जरनैल सिंह भिंडरानवाले समर्थकों द्वारा कर दी गई थी. उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने गुरु होने का दावा किया था.

वास्तव में यह टकराव तब बढ़ा जब बैशाखी (13 अप्रैल) 1978, भिंडरावाले के समर्थक विरोध करने के लिए निरंकारी समागम गए और उनकी बाबा के समर्थकों के साथ मुठभेड़ हो गई जिसके चलते 16 लोगों की मौत हो गई.

जिसके बाद स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त में सिख धर्मगुरुओं ने एक हुक्मनामा जारी किया, जो निरंकारियों के साथ किसी भी सामाजिक संपर्क को प्रतिबंधित करता है. या जैसा कि पंजाबी के रूप में सीधे भाषा में कहा गया है, रोटी-बेटी का संबंध हो सकता है. एक रिश्ता जहां आप एक साथ खाते हैं और शादी करते हैं.

इसके बाद नामधारी जो सफेद पगड़ी पहनने वाले सौम्य सिख हैं. इसके आखिरी प्रमुख जगजीत सिंह के पास बेटा नहीं था और उन्होंने अपने दो भतीजों में से एक उदय सिंह को अपना उत्तराधिकारी बनाया.

उन्होंने संप्रदाय को नेतृत्व अपनी बहुत ही सम्मानित मां ‘बाबा’ चंद कौर के साथ किया जिनकी 4 अप्रैल 2016 को लुधियाना में मोटरसाइकिल सवार बंदूकधारियों ने हत्या कर दी थी और जिसके लिए दोनों चचेरे भाई एक दूसरे को दोष देते थे.

पंजाब के रुपनगर ज़िले के नूरपुर बेदी में भानारा बाबा का पंथ भी कुछ हद तक इसी तरह है.

उनके अनुयायियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह भी शामिल हैं जिनका मानना था कि बाबा के जादू से उनकी पत्नी ठीक हुई. लेकिन 2001 में प्रकाशित एक पुस्तक, भावसागर ग्रंथ ने अपने स्वयं के चमत्कारों को सूचीबद्ध करते हुए वह सिख भक्तों से दूर हो गए.

उन्हें ईशनिंदक और धर्मत्यागी घोषित किया गया और हरियाणा के एक अदालत में पेशी के दौरान उनकी हत्या बब्बर खालसा के एक हत्यारे ने कर दी.

फ्रीज़र बाबा

और अंत में इस आकर्षक स्टारकास्ट में फ्रीज़र बाबा हैं.

आशुतोष बिहार से आए और लाखों पंजाबियों को अपना अनुयायी बनाया. जनवरी 2014 में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन उनके अनुयायियों का मानना है कि वह समाधि में चले गए हैं और वापस आ जाएंगे. इसलिए उन्होंने उनके शरीर को फ्रीज़र में डाल दिया है और उसका अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया है.

हाईकोर्ट में यह मामला तीन सालों से चल रहा है. एक सदस्यीय पीठ ने उनके अंतिम संस्कार का आदेश दिया लेकिन खंडपीठ ने इस पर रोक लगा दी. इस बीच भक्तों ने उन्हें फ्रीजर में ही रखा है और ‘आशु बाबा आएंगें…’ का जाप करते हुए उनके जागने का इंतजार कर रहे हैं.

यह क्षेत्र इतने बाबाओं के चपेट में क्यों है यह समाजशास्त्रियों के लिए एक सवाल है. मैंने कई स्पष्टीकरण सुने हैं, लेकिन मैं गंभीरता से यह लेता हूं कि सिख धर्म दुनिया का सबसे नया प्रमुख धर्म है (केवल 500 वर्ष से अधिक पुराना) और अभी भी विकसित हो रहा है.

पंथ से रियायतों की तलाश?

ये धर्म के साथ मांग सिद्धांत पर काम करते हैं. इसके लिए बाबा तीन चीजें करते हैं. एक, वे कुछ जीवनशैली प्रतिबंधों के साथ अपने अभ्यास को सरल बनाते हैं. दूसरा वे सिख और हिंदू अभ्यासों को ओवरलैप करते हैं. बाबा दोनों से आरक्षित होते हैं और बाज़ार के अनुकूल हाइब्रिड उत्पाद की पेशकश करते हैं. और तीसरा, एक पवित्र पुस्तक में बहुत ज्ञान है. लेकिन परेशानी के समय में आप चाहते हैं कि कोई ऐसा हो जिसके ज़रिये इससे अलग राय रखी जाय खासकर यदि उसके पास ईश्वरीय प्रतिष्ठा है.

हम सभी राम रहीम की फिल्मों, गीतों, मोटरसाइकिलों के बारे में जानते हैं. सभी बाबाओं में वह सबसे लोकप्रिय हो गये. यही कारण है कि निरंकारियों के खिलाफ अपने हुक्मनामे के 35 साल बाद अकाल तख्त ने एक और हुक्मनामा जारी किया और सिखों को राम रहीम के अनुयायियों के साथ रोटी-बेटी संबंध रखने से मना कर दिया.

हालांकि उनके वोटों के लिए बेताब अकाली-भाजपा सरकार ने उनकी वीडियो माफी को स्वीकार कर लिया और उसे माफ कर दिया. लेकिन इसे लेकर भक्तों ने विरोध प्रदर्शन किया. माफी वापस ले ली गई थी. लेकिन यह व्यापक रूप से माना जाता है उन्हें अपने खिलाफ सीबीआई के मामलों में सरकार से मदद की उम्मीद थी इसलिए उन्होंने अपने समर्थकों से राज्य चुनावों में अकाली-बीजेपी को वोट देने के लिए कहा. हालांकि ऐसे ही एक मामले का समापन उनकी सज़ा के बाद हुआ है.

यह बाबाओं का वोट बैंक और राजनेताओं का एकमुश्त वोटों का लालच पंजाब और हरियाणा का अभिशाप है. कांग्रेस इसकी पुरानी खिलाड़ी रही है. भाजपा ने अब यह खेल सीखा है और अकालियों ने अपने रूढ़िवादी पंथिक निर्वाचन क्षेत्र में ऐसे डेरों के संरक्षण का काम किया है.

यदि एक बहादुर पत्रकार बलात्कार के आरोप को आगे बढ़ाने की हिम्मत करता है तो वह अपनी छाती में गोली खाकर मर जाता है, जैसा सिरसा में पूरा सच अखबार के ज़रिए रामचंद्र छत्रपति ने किया था. परिणामस्वरूप, बाबा सोचते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं, हालांकि एक बहादुर सीबीआई अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने स्क्रिप्ट को बदल दिया था.

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