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Thursday, 3 October, 2024
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बलात्कार सिर्फ बंगाल की समस्या नहीं; सरकार, समाज, पुलिस, कोर्ट सबके लिए खतरे की घंटी

आगे का रास्ता मसले की गंभीरता के एहसास, सार्थक सुधारों को लागू करने और सभी भेदभाव से उठकर सबको सम्मान और न्याय देने की संस्कृति को बढ़ावा देकर ही निकल सकता है.

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हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल में बलात्कार के लगातार ऐसे बड़े मामले हुए हैं जिन्होंने व्यापक सदमे और आक्रोश के साथ-साथ उनके खिलाफ तुरंत सख्त कार्रवाई की मांग को ज़रूरी बना दिया है. इस तरह की घटनाएं जिस तरह बार-बार घट रही हैं, उन्होंने महिलाओं को सुरक्षा और न्याय उपलब्ध कराने की व्यवस्था की अहम खामियों को उजागर कर दिया है. संदेशखाली में घटी घटना और कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक युवा डॉक्टर के बलात्कार तथा कत्ल जैसी बड़ी घटना के विरोध में जनप्रदर्शन भी हुए हैं.

आरजी कर बलात्कार-हत्याकांड जैसा बर्बर अपराध ‘भालो मानुष के नगर कलकत्ता’ में भी हो सकता है, इस हकीकत ने वहां के निवासियों को भारी सदमा पहुंचाया है. उनके जोरदार विरोध प्रदर्शनों ने यौन हिंसा से निबटने में व्यवस्था की नाकामियों को उजागर कर दिया है और सीएम ममता बनर्जी नेतृत्व वाली सरकार पर निर्णायक कदम उठाने का दबाव बढ़ा दिया है.

यह बुराई सांस्कृतिक एवं सामाजिक नज़रिए के कारण पनपी है. इस नज़रिए में वह पुरुषवादी दृष्टिकोण भी शामिल है जो गहरी जड़ जमाए बैठा है और यौन हिंसा को बढ़ावा देता है. पश्चिम बंगाल ही नहीं, पूरे भारत के कई हिस्सों में स्त्री-पुरुष में भेदभाव के पारंपरिक मानदंड और स्त्री-द्वेषी दृष्टिकोण इस बुराई के मामले में चुप्पी ओढ़ने और भुक्तभोगी को ही दोषी ठहराने की प्रवृत्ति को मजबूत करता है.

इस तरह का दृष्टिकोण यौन हिंसा से प्रभावी रूप से निबटने और उसे रोकने के प्रयासों को कमजोर करता है. कुछ मामलों में तो यौन हिंसा को सामान्य बता दिया जाता है और पीड़ितों को ही अक्सर दोषी ठहराया जाता है. इन प्रवृत्तियों के कारण इन घटनाओं की खबरों को पूरी गंभीरता से नहीं प्रस्तुत किया जाता और पीड़ितों को पूरा समर्थन नहीं दिया जाता है.

न्याय में देरी, यानी अन्याय

यौन हिंसा से निबटने में कानून को लागू करवाने वाली एजेंसियों का रवैया कुल-मिलाकर ढुलमुल रहा है. अपर्याप्त प्रशिक्षण, अपर्याप्त संसाधन और पीड़िता के प्रति संवेदनशीलता की कमी अक्सर जांच और कानूनी कार्रवाई में बाधक बनती है. यौन हिंसा के मामलों से निबटने और उनकी जांच करने में पुलिस की उदासीनता या लापरवाही इस समस्या को और बढ़ाती ही है.

इन सबके ऊपर, सबूतों से छेड़छाड़ या उनकी सुरक्षा में विफलता के कारण ऐसे मामले अदालतों द्वारा आगे चलकर अक्सर खारिज कर दिए जाते हैं. इसके अलावा, मुकदमे के लंबे समय तक घिसटने और पीड़िता को विशेष समर्थन न मिलने के कारण वे कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से कतराती हैं. इस वजह से दोषियों को सज़ा मिलने की दर कम रहती है और इंसाफ न मिलने का एहसास पनपता है. पश्चिम बंगाल में भी न्यायिक व्यवस्था को इंसाफ में देरी और प्रक्रिया संबंधी कमजोरियों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

आर्थिक और सामाजिक कारण भी अपनी भूमिका निभाते हैं. कमजोर समुदायों और गरीब तथा उपेक्षित क्षेत्रों की महिलाओं के शोषण और उनके साथ दुर्व्यवहार का खतरा अक्सर ज्यादा होता है. अशिक्षा और यौन हिंसा, यौनाचार में सहमति, कानूनी अधिकारों आदि के बारे में जागरूकता की कमी भी महिलाओं के प्रति अपराधों को बढ़ावा देती है. स्त्री-पुरुष समानता और सम्मान की दृष्टि से शिक्षा का प्रसार महिलाओं के प्रति अपराध को रोकने के लिए ज़रूरी है.


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‘अपर्याप्त उपाय’

जनता की नज़र कोलकाता बलात्कार-हत्याकांड के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा की गई कार्रवाइयों पर केंद्रित रही है. सरकार ने महिला सुरक्षा के लिए कई कदम तो उठाए हैं, मसलन पुलिस गश्त बढ़ाई है और यौन हिंसा के खिलाफ बयान जारी किए हैं, लेकिन जनता के विरोध प्रदर्शनों के प्रति उसकी कार्रवाइयां विवाद का मुद्दा बनी हैं.

विरोध प्रदर्शन मसले की गंभीरता को उजागर करते हैं, लेकिन कानून लागू करने वालों और सरकार का रुख उनके प्रति सख्त और उपेक्षापूर्ण रहा है. लोगों की चिंताओं को दूर करने और उनका भरोसा बढ़ाने के लिए प्रदर्शनकारियों और सिविल सोसाइटी के साथ रचनात्मक बातचीत ज़रूरी है. जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए पारदर्शी संवाद और जवाबदेही बेहद ज़रूरी है. पश्चिम बंगाल सरकार को इस बात की पूरी व्यवस्था करनी चाहिए कि यौन हिंसा के मामलों की जांच गंभीरता से हो और उन्हें अंजाम देने वालों को दोषी ठहराया जाए.

ममता बनर्जी की सरकार ने ‘अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल अपराध कानून संशोधन) विधेयक-2024’ पेश किया है, जिसका लक्ष्य यौन हिंसा से निबटने के कानूनी ढांचे में सुधार लाना है.

लेकिन ऐसे सुधारों के मकसद उन्हें लागू करने में आने वाली समस्याओं के कारण अक्सर पूरे नहीं हो पाते. पीड़िताओं की मदद के लिए बनाई गईं परामर्श सेवाओं और हेल्पलाइन जैसे व्यवस्थाओं में सुधार लाना बेहद ज़रूरी है. बीते वर्षों में पश्चिम बंगाल सरकार ने यौन हिंसा की भुक्तभोगियों को मेडिकल, कानूनी तथा मानसिक मदद उपलब्ध कराने के लिए मानक प्रक्रियाएं तय की हैं, लेकिन इन सेवाओं के विस्तार और उनकी गुणवत्ता को लेकर संदेह कायम है.

खतरनाक प्रभाव

यौन हिंसा की समस्या केवल पश्चिम बंगाल में सीमित नहीं है. इसका प्रभाव केवल व्यक्तिगत मामलों तक सीमित नहीं रहता. यह सामाजिक एकता, जन विश्वास और नागरिकों की सुरक्षा तथा कुशलता को भी प्रभावित करता है. यौन हिंसा के बढ़ते मामले महिलाओं में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ाते हैं, खासकर अगर ऐसे मामले उनके कार्यस्थल में होते हैं. यह भय उनकी गतिविधियों की स्वतंत्रता, सार्वजनिक स्थलों और सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी को सीमित करता है.

इसके अलावा, लोगों को जब यह लगने लगता है कि सरकार, तथा कानून लागू करने वाली एजेंसियां समस्या का गंभीरता से समाधान नहीं कर रही हैं, तब उनमें भ्रम तथा हताशा फैलती है.

इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित बहु-आयामी कदम उठाए जा सकते हैं —

बेहतर प्रशिक्षण : यौन हिंसा के मामलों से संवेदनशील तथा प्रभावी तरीके से निबटने के लिए कानून लागू करने वाली एजेंसियों को विशेष प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है. यौन हिंसा के भुक्तभोगियों की मदद करने और हिंसा के मामलों की गहन जांच करने के लिए पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करना भी बेहद ज़रूरी है.

न्याय दिलाना : न्याय व्यवस्था को यौन हिंसा के मामलों की सुनवाइयों को आगे बढ़ाने और उनमें लगने वाले समय को कम करने के प्रयास करने चाहिए. यह विशेष अदालतों के जरिए और प्रक्रियाओं को दुरुस्त करके किया जा सकता है.

शिक्षण अभियान : लोगों को यौनाचार में सहमति, स्त्री सम्मान और कानूनी अधिकारों आदि के बारे में जागरूक करने के लिए जन जागरण अभियान चलाना ज़रूरी है. स्त्री-पुरुष समानता और हिंसा पर रोक लगाने के विचारों को बढ़ावा देने में स्कूल और सामुदायिक संगठन अहम भूमिका निभा सकते हैं.

सिविल सोसाइटी का सहयोग : नागरिक संगठनों और समूहों का सहयोग यौन हिंसा की समस्या के खिलाफ कदमों को मजबूती दे सकता है. ये संगठन भुक्तभोगियों को अक्सर मूल्यवान समर्थन और संसाधन उपलब्ध कराते हैं और नीतिगत परिवर्तन लाने में मदद कर सकते हैं.

विस्तृत समर्थन सेवाएं : मेडिकल केयर, परामर्श और कानूनी सहायता जैसी विस्तृत सेवाएं भुक्तभोगियों को संकट से उबारने और न्याय दिलाने के लिए काफी अहम हैं. ये सेवाएं उनकी पहुंच में हों और प्रभावी हों, यह बेहद ज़रूरी है.

भरोसा बढ़ाना : पीड़िताओं, समुदायों और संस्थाओं के बीच भरोसा पैदा करने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही, और शिकायतों का निबटारा करने की प्रतिबद्धता ज़रूरी है. पीड़िताओं और उनके पैरोकारों के साथ सार्थक संबंध अधिक अनुकूल वातावरण बनाने में मददगार साबित हो सकता है.

पश्चिम बंगाल में हुआ बलात्कार कांड देश को सावधान करता है और व्यवस्थागत परिवर्तन तथा सामूहिक पहल की सख्त ज़रूरत को रेखांकित करता है. आगे का रास्ता मसले की गंभीरता के एहसास, सार्थक सुधारों को लागू करने और जाति-नस्ल-समुदाय या धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर सबको सम्मान और न्याय देने की संस्कृति को बढ़ावा देने से ही निकल सकता है.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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