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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतवजूद की लड़ाई लड़ते राज ठाकरे कभी मोदी के फ़ैन थे, अब कर रहे हैं सोनिया गांधी से मुलाक़ात

वजूद की लड़ाई लड़ते राज ठाकरे कभी मोदी के फ़ैन थे, अब कर रहे हैं सोनिया गांधी से मुलाक़ात

राज ठाकरे के पास विकल्प सीमित हैं. वह अपना अहंकार छोड़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन में शामिल हो सकते हैं, पर इसकी संभावना बहुत कम है.

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स्वरराज श्रीकांत ठाकरे, जिन्हें राज ठाकरे के नाम से अधिक जाना जाता है, सकारात्मक बातों की बजाय गलत कारणों से खबरों में रहना ज़्यादा पसंद आता है. इसलिए, अचरज नहीं कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से सोमवार की उनकी मुलाकात, एक दिन के लिए ही सही, सुर्खियों में रही.

2019 के लोकसभा चुनावों के सबसे महत्वपूर्ण प्रभावों में से एक है. कुछ नेताओं का पूरी तरह हाशिये पर धकेल दिया जाना. उत्तर में अखिलेश यादव, दक्षिण में टीटीवी दिनाकरन और पश्चिम में राज ठाकरे जैसे युवा नेताओं को दूसरी मोदी लहर बहा ले गई. और हां, कांग्रेस के कम-से-कम आधे दर्जन वंशानुगत नेता भी अनिश्चित भविष्य को निहार रहे हैं.

मोदी के प्रशंसक से बियाबान तक

हालांकि, महज पांच साल पहले कहानी कुछ और थी. राज ठाकरे 2014 में एक मंझे हुए नेता थे और बहुत से लोग उन्हें कट्टर हिंदुत्व का पोस्टर ब्वॉय मानते थे. तब वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्के प्रशंसक हुआ करते थे.

उससे भी पहले 2011 में वह मोदी के मेहमान के रूप में गुजरात गए थे और वापसी तक वह उनके समर्थक बन चुके थे. तब मोदी ने उनकी तारीफ की थी कि उन्होंने अपने अध्ययन दौरे के लिए स्विटज़रलैंड की जगह गुजरात को चुना. राज ठाकरे ने ‘अगले प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई’ के लिए 2014 के लोकसभा चुनावों में प्रचार भी किया था.

पर अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के साथ ही ये समीकरण बदल गया.

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भाजपा ने लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के बाद, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों में भी बहुत बढ़िया प्रदर्शन किया. भाजपा और लंबे समय तक इसकी सहयोगी रही शिवसेना ने चुनावों में अलग-अलग भाग लिया था और सर्वाधिक सफलता भाजपा को मिली थी.

भाजपा जहां 260 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 122 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं 282 सीटों पर लड़ने वाली शिवसेना को मात्र 63 सीटें ही मिली थीं. सबसे फिसड्डी साबित हुई राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) जिसने 219 उम्मीदवार उतारे थे, पर जीता सिर्फ एक. इसी के साथ महाराष्ट्र की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका निभाने का राज ठाकरे का सपना चकनाचूर हो गया था.


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उस चुनाव में भाजपा 288 सदस्यीय विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई. उसे सरकार बनाने के लिए शिवसेना के समर्थन की दरकार नहीं थी, क्योंकि शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने बाहर से समर्थन का प्रस्ताव किया था. इसके बावजूद पार्टी ने शिवसेना के साथ मिलकर सरकार के गठन का फैसला किया.

ऐसा करते हुए, भाजपा ने उद्धव ठाकरे की शिवसेना के राज ठाकरे के एमएनएस से अलगाव को पक्का कर दिया. शिवसेना-एमएनएस का साथ आगामी नगरपालिका चुनाव में भाजपा के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता था. दोनों पार्टियों के बीच दरार सुनिश्चित कर भाजपा राज्य में स्थानीय निकाय के चुनावों में एनसीपी, कांग्रेस और कुछ हद तक शिवसेना को विस्थापित करने में सफल रही.

राज ठाकरे और उनकी पार्टी राजनीतिक बियाबान की ओर धकेले जा चुके थे.

2019 और उससे आगे

राज ठाकरे को अब एक राजनीतिक गॉडफादर की सख्त ज़रूरत थी जो कि उन्हें प्रश्रय दे सके. बताया जाता है कि उनकी मदद के लिए महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज एनसीपी नेता शरद पवार सामने आए.

इस साल के लोकसभा चुनावों में ठाकरे ने पहले से अलग रणनीति अपनाई. उनकी पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ने, पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रचार करने का फैसला किया.

राज ठाकरे की चुनाव सभाओं में भारी भीड़ जमा हो रही थी. चाचा बालासाहेब ठाकरे जैसे चेहरे-मोहरे, हावभाव और भाषण कला ने उन्हें लोकप्रिय कर दिया.

पर लोकतंत्र में राजनीतिक भाग्य वोटों से निर्धारित होता है, भाषणों से नहीं.

यदि 2014 के विधानसभा चुनावों में राज ठाकरे को करारी हार मिली थी, तो 2019 के लोकसभा चुनावों में उनका सफाया हो गया. ना तो वह भाजपा-शिवसेना की संभावनाओं को कम कर पाए, ना ही शरद पवार की एनसीपी को अतिरिक्त सीटें दिला पाए.

23 मई के चुनावी नतीजे के बाद से भाजपा के अलावा तमाम पार्टियां अनिश्चितता की स्थिति में हैं. सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, बल्कि एनसीपी को भी अस्तित्व के संकट का सामना है. ऐसी अटकलें चल रही हैं कि एनसीपी के कई नेता बेहतर अवसरों की ताक में हैं.

राज ठाकरे के पास सीमित विकल्प हैं. एक विकल्प अपना अहंकार छोड़ भाजपा-शिवसेना गठबंधन से जुड़ने का हो सकता है, पर उनके ऐसा करने की संभावना बहुत कम है. या, वह एनसीपी के साथ काम करना जारी रख सकते हैं, पर लोकसभा में लगे झटके के बाद वह शायद उससे परे देखना चाहें. अगला विकल्प कांग्रेस के साथ गठजोड़ का हो सकता है.

नया गठबंधन?

कुछ महीने पहले तक कांग्रेस पार्टी एमएनएस के पास तक नहीं फटकना चाहती थी. पार्टी ने महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में राज ठाकरे की पार्टी के शामिल होने की संभावनाओं को बढ़-चढ़ कर खारिज किया था.

पर सोनिया गांधी और राज ठाकरे की मुलाकात के बाद अब स्थिति बदल सकती है.

क्या ये संभव है कि एनसीपी नेता शरद पवार ने अपनी खुद की पार्टी को फज़ीहत से बचाने के लिए राज ठाकरे की नई भूमिका का खाका तैयार किया हो, न कि अपने संरक्षण में आए इस युवा नेता की मदद के लिए?

फडणवीस सरकार को चुनौती देने और इसी साल बाद में राज्य में होने वाले चुनावों में पूर्ण पराजय से बचने के लिए गैर-भाजपा पार्टियों के समक्ष शायद एकमात्र विकल्प वृहतर राजनीतिक गठजोड़ (एनसीपी+कांग्रेस+एमएनएस) तैयार करने का ही है.


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अगले कुछ सप्ताहों में ये स्पष्ट हो सकता है कि पहले से ही डूब रही कांग्रेस अपने भावी राजनीतिक समीकरण में एमएनएस को भी शामिल करने के प्रति गंभीर है या नहीं.

पर ऐसा संभव हो, उसके लिए राज ठाकरे को गैर-मराठियों के बारे में अपने संकुचित विचारों और कट्टर हिंदुत्व संबंधी बयानबाज़ी से तौबा करनी होगी, जो कि उनके अनुसार उन्हें अपने चाचा से मिली हैं.

लेकिन तेंदुआ तो अपने धब्बे नहीं बदल सकता है, या फिर ये संभव है?

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

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