scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होममत-विमतमोदी सरकार पहली लहर की सफलता के मुगालते में रही, जबकि कोविड की दूसरी घातक लहर दस्तक दे रही थी

मोदी सरकार पहली लहर की सफलता के मुगालते में रही, जबकि कोविड की दूसरी घातक लहर दस्तक दे रही थी

दुनिया जब कयामत की भविष्यवाणियों को झूठा साबित करने की भारत की कामयाबी से हैरत में थी, तब जाहिर है कि मोदी गर्व से फूले नहीं समा रहे थे.

Text Size:

मेरी तरह अगर आप भी हैरत में हैं कि कोविड ने भारत पर दूसरा हमला कैसे कर दिया, तो मैं आपसे एक बात कहना चाहूंगी. इसकी वजह है आत्मतुष्टि. जी हां, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार आत्मतुष्ट हो गई और वह सब करने में जुट गई जिसमें वह माहिर है— चुनाव रैलियां करना और राज्यों में अपनी सरकार बनाना.

लेकिन इस लापरवाही का क्या नतीजा निकला? मोदी को वाहवाहियों ने मुगालते में डाल दिया. हम सब जानते हैं कि मोदी को दुनिया में वाहवाही लूटना कितना पसंद है. हर जगह वे इनके आभामंडल के साथ घूमते-फिरते हैं, मतदाताओं को वे यह यकीन दिलाते फिरते हैं कि असली विश्वगुरु भारत नहीं बल्कि वे खुद हैं. दुनिया भर के नेताओं से आगे बढ़कर गले लगते हुए, ‘समुंदर पर चर्चा’ की फोटो खिंचवाने के लिए विदेशी नेताओं के साथ समुद्रतट पर चहलकदमी करते हुए भी वे यही जताते रहे. इसलिए, जब वाशिंगटन पोस्ट, बीबीसी, एनपीआर, अल-जज़ीरा, और फॉर्चून ने तारीफ में लेख लिखने शुरू कर दिए कि भारत ने विशेषज्ञों को चमत्कृत और वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए कोविड संक्रमण पर किस तरह काबू पा लिया है, तो मोदी गर्व से फूले नहीं समाने लगे. इससे भी आगे बढ़कर वे दुनिया को वैक्सीन मुहैया कराने लगे. सरकार ‘झूठे आत्मविश्वास’ में फंस गई.

लेकिन इससे भी बुरी बात यह हुई कि उसी दौरान इस वायरस के नये रूप और इस महामारी की दूसरी लहर ने कई देशों को चपेट में लेना शुरू कर दिया था. तभी हमें तैयार हो जाना चाहिए था. हमें पता था कि यह लहर हमारे यहां भी आ सकती है. लेकिन हमें तो चुनाव जीतने थे, और वह भी एक राज्य में सात चरणों में मतदान करवा के.

इसलिए, हम नकारते रहे कि वायरस का नया रूप भारत में आएगा, या इसका ‘भारतीय’ रूप भी सामने आ सकता है.


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार ने कोविड संकट को मज़ाक बना दिया है, सही उपायों को अपनाने के लिए गंभीर होने का वक्त है


चुनाव, और वायरस की रैली

अब सदी का सवाल यह बना रहेगा कि भारत में इसे किसी ने आते हुए देखा या नहीं, या किसी ने इसे देखना नहीं चाहा? लेकिन इसके मामले में सरकार और तमाम लोगों ने दृष्टिहीनता का परिचय दिया, यह सचमुच दुखद है. और, इस दूसरी लहर में जब रोज दो लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो रहे हैं तब इससे निबटने के जो उपाय किए जा रहे हैं वे भी दुखद हैं. जरा याद कीजिए कि पिछली बार इसके मात्र 500 मामले हुए थे और पूरे भारत में सख्त लॉकडाउन लगा दिया गया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जनवरी 2021 आते-आते भारत ने प्रधानमंत्री मोदी की निर्णय क्षमता के बूते वायरस पर विजय पाने के दावे करने शुरू कर दिए. मौतें इसलिए कम नहीं हो रही थीं कि सरकारें (केंद्र तथा राज्यों की) अपनी मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं के बूते उनकी जान बचा रही थीं. भारत में कोरोना से मृत्यु दर आश्चर्यजनक रूप से काफी कम 1.5 प्रतिशत ही थी. भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता ने वायरस का डटकर सामना किया. इसलिए लोग बच गए. लेकिन दुनिया भर के महामारी विशेषज्ञ चर्चाएं कर रहे थे कि भारत ने कितनी घोर लापरवाही बरती है.

चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में अप्रैल में चुनाव करवाने का फैसला कर लिया. नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जे.पी. नड्डा की रोंगटे खड़ी कर देने वाली चुनाव रैलियों में भारी भीड़ होने लगी. रोंगटे खड़ी कर देने वाली इसलिए कि उनमें लाखों लोग बिना मास्क के जुटने लगे और लोग आपस में दूरी रखने का कोई ख्याल नहीं रख रहे थे. ऐसा लग रहा था कि भारत में कोविड महामारी कभी हुई ही नहीं.

और क्या? हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने खुद मास्क न पहनकर लोगों के लिए मिसाल पेश की. यहां ममता बनर्जी की रेलियों का जिक्र न करने पर इसे पक्षपात कहा जाएगा. लेकिन कोविड से लड़ने की कमान हमेशा केंद्र के हाथ में रही. वैक्सीन का वितरण पहले दिन से केंद्र के हाथ में रहा. देशभर में लॉकडाउन लगाने का फैसला पहले दिन से केंद्र के हाथ में रहा. हालांकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, केंद्र ने इस लड़ाई का नेतृत्व करने का फैसला कर रखा था. महामारी से लड़ाई का इससे ज्यादा केन्द्रीकरण नहीं हो सकता था. यही वजह है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पर सबसे ज्यादा नज़र थी कि वे कोविड के एहतियातों का कितना उल्लंघन कर रहे हैं. इस केन्द्रीकरण के कारण राज्यों के साथ निरंतर टकराव जैसा बना रहा; पंजाब, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली केंद्र पर आरोप लगाते रहे कि उन्हें पर्याप्त वैक्सीन नहीं दिया जा रहा. जवाब में मोदी सरकार ने इन गैर-भाजपा शासित राज्यों पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया.


यह भी पढ़ें: कोविड की ‘खतरनाक’ तस्वीर साफ है, कोई मोदी सरकार को आइना तो दिखाए


भारत में एंटी क्लाइमैक्स

ऐसा लगता है कि कोविड के खिलाफ भारत की लड़ाई एंटी क्लाइमैक्स पर पहुंच गई है. इसके लिए सरकार और हम लोग, दोनों जिम्मेदार हैं क्योंकि कोविड की कई लहरें झेलने वाले यूरोप, ब्राज़ील, अमेरिका जैसे देशों की हालत देखने के बावजूद हम मंदमति की तरह काम करते रहे. हमने महामारी विशेषज्ञों की चेतावनियों की अनदेखी की, जो ज़ोर देकर कह रहे थे कि भारत में कोविड की दूसरी मारक लहर आ सकती है.

सरकार ने कुम्भ मेले की इजाजत दे दी, मीडिया इसकी खुशनुमा तस्वीरें पेश करता रहा. इसके बाद सरकार ने विशाल रैलियों की भी इजाजत दे दी, इसके खतरों पर कोई विचार नहीं किया. समाचार चैनल आंकड़े उछालने लगे और सर्वेक्षणों के बूते विजेता की घोषणा करने लगे. हर कोई कोविड को भूल गया. अब कोविड ने सबके मुंह पर करारा तमाचा मार दिया है. देश के विभिन्न हिस्सों में जलती चिताओं की तस्वीरें आने लगीं तब जाकर लोगों को समझ में आया कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है. लखनऊ के श्मशान की तस्वीरें वायरल हो गईं. सरकारी अधिकारियों ने कोविड से निबटने की जगह श्मशान के आगे दीवार खड़ी करके उसे छिपाने की कोशिश की.

भारत आज दुनिया में कोविड से सबसे बुरी तरह प्रभावित दूसरा देश बन गया है. लेकिन हम सबसे उम्मीद की जाती है इसे भूल कर ‘परीक्षा पे चर्चा’ करें. हम कोरोना वायरस को भूलने की कोशिश कर रहे हैं, मानो उसे भारत में मिटा दिया गया है. हमारे नेता तर्क दे रहे हैं— हमने पहली बार इसे हराया है, और फिर से हरा देंगे.

लेकिन वे यह नहीं देख रहे कि भारत में वायरस कई रूपों में आ रहा है— ब्रिटेन वाले वायरस से लेकर दक्षिण अफ्रीका वाले वायरस तक. भारत में नया ‘डबल म्यूटेशन’ वाला वायरस भी फैल गया है. कोविड की दूसरी लहर पहली लहर जैसी नहीं है. इसकी वजह यह है कि जिन लोगों ने पहले संक्रमित हो जाने या वैक्सीन लेने के कारण अपने अंदर इम्यूनिटी पैदा कर ली है वे नये प्रकार के वायरस से संक्रमित हो सकते हैं.

सब कुछ ठीक नहीं है. लेकिन इसका उलटा मान कर आचरण करने से त्रासदी के सिवा कुछ नहीं हासिल होगा, जिसे निर्णायक योजना और कोविड संबंधी नीतियों के विकेन्द्रीकरण से टाला जा सकता था.

लेखिका राजनीतिक प्रेक्षक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.

(इस लेख को हिंदी में पढ़ने के ललिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कुंभ पर चुप्पी भारतीयों की इस सोच को उजागर करती है कि सिर्फ मुसलमान ही कोविड फैलाते हैं


 

share & View comments