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Friday, 19 April, 2024
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राहुल और सिंधिया से महज 6 साल ही तो बड़े हैं अमित शाह पर कोई उन्हें युवा नेता क्यों नहीं कहता

भारतीय राजनीतिक में सियासी परिवारों की विरासत देखकर लगता है कि यहां इन परिवारों से संबंध रखने वाले नेता ही युवा कहला सकते हैं, फिर वो चाहे 40 साल के हों या फिर 50 के.

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जैसे ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वॉइन की, लोगों ने कांग्रेस पार्टी की अपने युवा नेताओं को जोड़कर न रख पाने के लिए आलोचना करनी शुरू कर दी. पुराने लोग पार्टी में नए लोगों के लिए जगह नहीं छोड़ रहे हैं, कइयों ने कहा. लोगों ने सचिन पायलट के ट्वीट के बाद कयास लगाने शुरू कर दिए कि एक और युवा नेता भी कांग्रेस का साथ छोड़ेगा. उधर हरियाणा के युवा नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा के मिज़ाज भी राज्यसभा सीट को लेकर अलग नज़र आ रहे थे.

चारों ओर युवा नेताओं का डंका बज रहा है लेकिन भारत देश में युवा नेता होने का मतलब क्या होता है? और क्या हम देश के गृहमंत्री अमित शाह को युवा नेता कह सकते हैं? क्योंकि वो सिंधिया और राहुल गांधी से महज छह साल ही तो बड़े हैं.

अमित शाह क्यों ‘युवा नेता’ की छवि से अलग दिखते हैं?

भारतीय राजनीतिक डिस्कोर्स में सियासी परिवारों की विरासत देखकर लगता है कि यहां इन परिवारों से संबंध रखने वाले नेता ही युवा कहला सकते हैं, फिर वो चाहे 40 साल के हों या फिर 50 के. जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, अखिलेश यादव और उमर अब्दुल्ला. या फिर हो सकता है जिनके चेहरे जवां दिखते हों, शरीर से फिट लगते हों, इंग्लिश बोलने की अद्भुत क्षमता रखते हों, खाने-पीने के मामले में विशेषज्ञ हों और आज के जमाने में ‘वोक पर्सनैलिटी’ हो तो वही युवा नेता की कैटेगरी में आ सकता है.

लेकिन अमित शाह इस पॉप्युलर छवि के ढांचे में फिट नहीं बैठते हैं. चाहे उनके वजन की बात हो या उनके सिर से उड़ गए बालों की लेकिन फिर वो 55 की उम्र में भी देश के सबसे युवा और सबसे सक्सेसफुल लीडर कहे जा रहे हैं.

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‘अहंकारी, अति आत्मविश्वासी और चीज़ों को लगातार नकारना’

भाजपा के कार्यकर्ता शाह की बातें सम्मानपूर्वक सुनते हैं. शाह को इलेक्शन मशीन के तौर पर जाना जाता है. कहा जा रहा है कि अमित शाह की बॉयोग्राफी ‘अमित शाह एंड द मार्च ऑफ द बीजेपी’ कार्यकर्ताओं और नेताओं द्वारा जमकर खरीदी गई है. कई नेताओं ने किताब का हिंदी संस्करण अपनी बीवियों के लिए भी ख़रीदा है. भाजपा के कई लोगों से बात करने पर पता चलता है कि वो शाह की इस किताब को भारतीय राजनीति की बाइबल के तौर पर देखते हैं.

शाह किसी भी दूसरे ‘युवा’ नेता की तरह अहंकारी हैं, अति आत्मविश्वासी (वोटिंग होने से पहले ही जीत की घोषणा कर देना) हैं और ज़्यादातर चीज़ों को नकारते नज़र आते हैं. बुधवार को संसद में दिल्ली के दंगों पर दिए गए उनके जवाब.

अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर राज्य से आर्टिकल 370 खत्म करने के दिन संसद में उन्होंने सीना चौड़ा करते हुए कहा था, ‘कश्मीर के लिए हम जान दे देंगे क्या बात करते हैं.’ 370 पर विपक्ष संसद में दलीलें भी पेश नहीं कर पाया. विपक्ष को अब जान जाना चाहिए को वो एक युवा नेता का ही सामना कर रहा है.

ब्रैंड अमित शाह!

अमित शाह खुद को यूथ आइकन के तौर पर स्थापित करने में कामयाब रहे हैं जो पुराने खयालात और मॉडर्निटी एक साथ लेकर चल रहे हैं. संक्षेप में कहें तो एक आदर्श बालक की तरह. कपड़ों और अपने शब्दों के चयन और अपनी पसंद द्वारा वो खुद को किसी वैदिक छात्र की तरह पेश करते हैं. जो भारत के सुनहरे अतीत (हिंदू अतीत) को बार-बार दोहराता रहता है. अपने परिवार के ज़रिए, वो किसी आधुनिक फैमिली मैन की छवि बनाने में भी नहीं चूकते. पत्रकार राजदीप सरदेसाई अपनी किताब ‘2019: हाऊ मोदी वन इंडिया’ में बताते हैं कि अमित शाह ने उन्हें बताया कि वो परिवार के साथ बिताया वक्त मिस करते हैं. राजनीति में व्यस्तता के चलते वो परिवार के साथ छुट्टियां मनाने नहीं जा पाते. भारत में राजनेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वो राजनीति के अलावा कोई अलग जीवन न बिताएं.

सांस्कृतिक तौर पर भी वो भारत के रूढ़िवादी युवाओं को किसी खतरे की तरह नहीं नज़र नहीं आते, बल्कि वो एक लिबरल और वोक जेनरेशन के लोगों के लिए एक थ्रेट की तरह दिखाई देते हैं. लेकिन जैसा कि कोई फिल्मी अंदाज़ में कह सकता है- आप अमित शाह को पसंद करें या नापसंद, आप उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते. वो हर जगह हैं- सोशल मीडिया से लेकर देश की पार्लियामेंट तक. साफ तौर पर वो देश युवाओं के एक वर्ग का नेतृत्व कर रहे हैं.

इस बात से भी नहीं नकारा जा सकता है कि ब्रैंड अमित शाह हमारे समाज में छा गया है. कोई भी थोड़े प्रपंच करके या चालाकी से कुछ हासिल कर लेता है तो वह खुद को अमित शाह समझने लगता है.

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