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इमरान की बग़ावत को रोकने के बाद पाकिस्तानी फौज ने चोलीस्तान में 10 लाख एकड़ जमीन की मांग रखी

इमरान की पार्टी का बिखराव बताता है कि पाकिस्तानी फौज के लिए लोगों में हमदर्दी कायम है, जबकि वह आंदोलनकारियों के खिलाफ आर्मी एक्ट लागू करने और जय जवान, जय किसान को नया अर्थ देने की बात कर रही है.

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान | फोटो: Facebook/Imran Khan

पाकिस्तान में घटनाएं बहुत तेजी से घट रही हैं—कुछ उम्मीद के मुताबिक, तो कुछ थोड़ी हट कर. वहां से हमारे मतलब की कुछ बेहद दिलचस्प चीजें हैं, वास्तव में वहां की तीन महत्वपूर्ण बातें हैं इसीलिए आप देख रहे होंगे कि मैं अपने शो ‘कट द क्लटर’ में पाकिस्तान से संबंधित इस कड़ी को मुंबई के मरीन ड्राइव से रिकॉर्ड रहा हूं लेकिन कोई भी इस दृश्य और लोगों को मिस नहीं कर सकता. मुंबई के जज्बे की यही खूबसूरती है. इतने सारे लोग, सब अपने-अपने कामकाज में लगे हैं और कोई आपके काम में अड़चन नहीं डालता, कोई आगे आकर सेल्फी आदि लेने की कोशिश नहीं करता. वे जानते हैं कि कोई आदमी कैमरे से कुछ कर रहा है तो उसका किस तरह ख्याल रखा जाना चाहिए. यह महानगर यूं ही भारत के शोबिज़ की राजधानी नहीं मानी जाती.

अब, पाकिस्तान की तीन बातों का जिक्र, जैसा कि मैं ऊपर आपसे कह चुका हूं. तीसरी बात सबसे रसीली और दिलचस्प है. यह सबसे कम आश्चर्यजनक भी है लेकिन चूंकि यह रस भरी है इसलिए लोग बाकी दो चीजों के मुक़ाबले इसके बारे में कुछ तफसील से बात करते हैं और मैं इसे अंत में चर्चा के लिए रखता हूं. तो आगे बढ़ें! पहली बात, जैसा कि आपने सुर्खियों में देखा होगा कि इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ’ (पीटीआई) का बिखराव शुरू हो गया है. इमरान को आम जनता का जितना समर्थन हासिल था और उनके लोग जिस तरह बगावत पर उतार आए थे, आला फौजी ठिकानों से लेकर कोर कमांडर के घर और वायुसेना के अड्डों पर जिस तरह हमले कर रहे थे, उसे देखते हुए उनकी पार्टी का बिखराव मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा तेजी से हुआ है. मैं सोच सकता था कि इससे उनका जनाधार फिर से बड़ा होगा.

लेकिन वे कुछ कायर सिद्ध हुए हैं. उनकी आखिरी लंबी तकरीर, करीब 20 मिनट की, मैंने सुनी. वह ललकार की तकरीर नहीं थी. वह फौज के नाम थी कि देखो, तुम यह कैसे सोच सकते हो कि मैं तुम्हें कोई नुकसान पहुंचाना चाहता हूं. मैं तो तुम्हारा समर्थक हूं. दुनिया भर में मैं तुम्हारा बचाव करता रहा हूं. मैं एक विश्व नागरिक था. भले ही मैं तब सियासत में नहीं था मगर मैं फौज का बचाव कर रहा था वगैरह-वगैरह.

इस तरह, वे अपनी तकरीरों से फौज के नाम माफ़ीनामा लिख रहे हैं. वे कह रहे हैं कि मैंने तो आपको नुकसान पहुंचाने के बारे में कभी सोचा तक नहीं, आपके ठिकानों पर जो भी हमला करे उसे आप पकड़ लीजिए, आपके पास चेहरे से पहचान करने की तकनीक वगैरह है तो आप उन्हें पकड़िए. मेरे लोग कभी ऐसा नहीं करेंगे.

हकीकत यह है कि हजारों लोग गिरफ्तार किए गए हैं. उनमें कई लोग उनकी पार्टी के हैं. कई लोग सूबाई असेंबलियों के, नेशनल असेंबली के सदस्य हैं यानी विधायक और सांसद हैं. उनमें से कई लोगों ने फौज की कैद में कुछ ही दिन रहने के बाद कह दिया कि मैं तो सियासत से रिटायर हो रहा हूं.

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उनमें से कुछ लोगों को हम, जो पाकिस्तान या उससे संबंधित थिंक टैंक पर नजर रखते रहे हैं, लंबे समय से जानते हैं. मसलन जानी-मानी विद्वान शिरीन मज़ारी. वे इमरान की सरकार में मंत्री थीं. माना कि भारत के प्रति वे काफी नफरत से भरी हैं लेकिन लोग उनके विचारों को तवज्जो देते हैं और हम उन्हें जवाब दे सकते हैं. हम भारतीय लोग अपने हिसाब से बेशक उन्हें जवाब दे सकते हैं लेकिन वे एक बुद्धिजीवी हैं और एक सियासतदां भी. उनकी सेहत ठीक नहीं है लेकिन उन्हें गिरफ्तार किया गया और जब उन्हें अदालत के आदेश पर रिहा किया गया तब भी वे स्वस्थ नहीं थीं. उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.

कई लोगों की तरह उन्होंने भी कहा कि वे राजनीति से संन्यास ले रही हैं. इसलिए मैं उन लोगों की बात नहीं कर रहा हूं. इसकी एक वजह है कि यह बात लंबी खिंच जाएगी और दूसरी, भारत में हम इनमें से कई नामों से परिचित नहीं हैं. जो भी हो, यह एक तरह का बिखराव ही है क्योंकि करीब 30 लोगों ने इस तरह पल्ला झाड़ लिया है और उनमें से अधिकतर सांसद और विधायक हैं. यह बताता है कि इमरान की पार्टी टूट रही है कि उनकी पार्टी के नेता लोग अपनी हिम्मत नहीं दिखा रहे हैं. वे यह नहीं दिखा रहे हैं कि उनमें फौज से लड़ने का दमखम है. पहले दिन इसका दावा करना और भीड़ जुटा लेना और बात है, लेकिन जोश का यह दौर बीत जाने के बाद वे आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं. यही वजह है कि उनमें से कई लोग पल्ला झाड़ रहे हैं. उनमें जेल जाने का दम नहीं है.

आर्मी एक्ट लागू करने की धमकी

इससे पाकिस्तान की सियासत के बारे में दो बातें उजागर होती हैं. भीड़ गुस्से में भले ये नारे लगा सकती है कि ये जो दहशतगर्दी है, उसके पीछे वर्दी है, लेकिन व्यापक स्तर पर फौज के लिए हमदर्दी कायम है. इमरान को वास्तविक कार्रवाई करनी थी, पाकिस्तानी फौज के लिए खतरे की बात यह है कि उसके निचले तबके के फ़ौजी, युवा अफसर और उनमें अब बड़ी संख्या में इस्लामवादी (वे खुद न भी हों) पाकिस्तानी फौज के मौजूदा नेतृत्व और उसके कामों से सहमत नहीं दिखते.

लेकिन क्या इमरान इन सबको अपने साथ लेने की कोशिश करेंगे? ऐसा करने के लिए उन्हें खुद सड़कों पर उतरना होगा. और उनके समर्थक जब सड़कों पर हंगामा करेंगे तो वे अपना मज़ाक बना सकते हैं और जब फौज कार्रवाई करेगी तब उसके निचले तबकों में व्याप्त असंतोष या भावनाओं की परीक्षा हो जाएगी.

जाहिर है, इमरान ने यह न करने का फैसला कर लिया है और यहीं पर मैं कहूंगा कि वे कतरा कर निकल गए हैं. शुरू में तो उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई फौज के चीफ से है, मेरी लड़ाई ‘आईएसपीआर’ में फलाने-फलाने से है, ‘आईएसआई’ में फलाने-फलाने से है, उसके नंबर दो से है, उसके अंदर डीडीजी (आंतरिक राजनीति) या डीडीजी (काउंटर इंटेलिजेंस) है, जिनके बारे में इमरान ने कहा कि उन्होंने उनकी हत्या की तीन बार कोशिश की. अब वे पलट रहे हैं, फौज से अपील कर रहे हैं और चूंकि उन्होंने ऐसा किया है इसलिए उनकी अपनी फौज का मनोबल गिर गया है या गिर रहा है.

पाकिस्तान में दूसरी दिलचस्प बात यह हो रही है कि फौज ने कहा है कि जिन लोगों ने उसके ठिकानों पर हमले किए उनके या उनमें से कुछ के खिलाफ आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाएगा. अब, भारत में भी और तमाम दूसरे देशों में भी आर्मी एक्ट लागू है, जिसका इस्तेमाल केवल फ़ौजियों या फौज में काम करने वालों के लिए किया जाता है.

भारत में आर्मी एक्ट हममें से अधिकांश लोगों, मुझ पर या आपके ऊपर लागू नहीं होगा अगर आप सैनिक नहीं हैं. आज पाकिस्तान में फौज कह रही है कि वह उन असैनिक आंदोलनकारियों पर आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलाएगी जिन्होंने फ़ौजियों या फौज के ठिकानों को नुकसान पहुंचाया है. लेकिन अगर आप पाकिस्तान के आर्मी एक्ट को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि उसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि उसका इस्तेमाल पाकिस्तान के असैनिक नागरिकों के खिलाफ किया जा सकता है.

यह एक्ट केवल उस हालत में पाकिस्तान के असैनिक नागरिकों के खिलाफ इसके इस्तेमाल की इजाजत देता है जब कोई असैनिक पाकिस्तानी इस एक्ट के दायरे में आने वाले किसी शख्स को यानी आर्मी एक्ट के दायरे में आने वाले पाकिस्तानी फौजी को गुमराह करता है या इसकी कोशिश करता है. अगर कोई शख्स इस एक्ट के दायरे में आने वाले किसी शख्स को मुल्क या सरकार या अपने फर्ज से बेवफाई करने के लिए उससे बात करता है या उसे घूस देता है या अपने साथ जोड़ने या बगावत करने के लिए उकसाता है. यह शख्स चाहे असैनिक नागरिक ही क्यों न हो, उसके खिलाफ आर्मी एक्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है. पाकिस्तान में कानून बनाने वाले अब इसी प्रावधान का सीधे-सीधे इस्तेमाल करने का फैसला कर चुके हैं.

एक और प्रावधान यह भी है कि किसी असैनिक नागरिक के खिलाफ थल सेना, नौसेना, वायु सेना के ठिकानों आदि से संबंधित किसी अपराध के आरोप में आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलाय जा सकता है. यह बहुत जटिल नियम है इसलिए मैं इसे आपके सामने नहीं रख रहा हूं. मैं तो कहूंगा कि पाकिस्तान में चलने वाले कुछ क़ानूनों को इस तरह लिखा गया है कि मैं उन्हें काफी उलझाऊ पाता हूं. मुझे लगता है कि पाकिस्तानी नौकरशाही और खासकर फौजी नौकरशाही के जो लोग ये कानून लिखते हैं उन्हें कानून लिखने की बुनियादी कला फिर से सीखने के लिए किसी लॉ कॉलेज में फिर से पढ़ाई करनी चाहिए. यह कानून कहता है कि नागरिकों पर उन्हीं फौजी ठिकानों को नुकसान पहुंचाने के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है जो सरकारी गोपनीयता एक्ट 1923 के अंतर्गत आते हों.

अब, कोर कमांडर के निवास पर हमला करने या कुछ फर्नीचर आदि जलाने वाली भीड़ का नेतृत्व कर रहा कोई किसी शख्स या उस भीड़ में शामिल कोई शख्स सरकारी गोपनीयता एक्ट का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है लेकिन उसे अपने ऊपर आर्मी एक्ट के तहत फौजी अदालत में मुकदमा चलाए जाने का डर है, जिसने सर्वशक्तिमान का डर पैदा कर दिया है. पाकिस्तान के मामले में मैं सर्वशक्तिमान शब्द का किसी खास अर्थ में इस्तेमाल नहीं कर रहा हूं जो एक अकेला है लेकिन पाकिस्तान के मामले में यह फौज है. वही पाकिस्तान की सियासत में, इमरान के समर्थकों के दिमाग में और उनके प्रमुख सियासी नेताओं, उनकी पार्टी के प्रमुख नेताओं के दिमाग में सर्वशक्तिमान सत्ता है. अब, यह दूसरा बिंदु है.


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चोलिस्तान में लाखों एकड़ ज़मीन

तीसरी बात क्या है, जिसे मैंने सबसे रसदार कहा था? तीसरा तत्व, याद रहे कि मैंने इसे सबसे रसदार कहा लेकिन यह शायद ही हैरत में डालने वाला तत्व है. खबर यह आई है और यह वह मामला है जो लाहौर हाइकोर्ट में चल रहा है क्योंकि कुछ लोगों ने इसे चुनौती दी है और इस मामले की अगली सुनवाई 29 मई को होगी. पाकिस्तानी फौज ने अनुरोध किया है, मांग की है (आप जो कहें). उसने पाकिस्तान के पंजाब की सरकार से जमीन की मांग की है.

हम सब जानते हैं कि पाकिस्तानी फौज को जमीन, खासकर ‘अपनी’ जमीन से बहुत प्यार है. उसने कितनी जमीन की मांग की है? 10 लाख एकड़ की. आप उसे हेक्टेयर में बदल लें. 10 लाख एकड़ जमीन काफी बड़ी होती है. उदाहरण के लिए, अगर आप हरियाणा में खेती की कुल जमीन का हिसाब करें तो करीब एक करोड़ एकड़ होगी. यानी हरियाणा में खेती की कुल जमीन का दसवां हिस्सा.

पाकिस्तानी फौज को इतनी जमीन क्यों चाहिए? उसका कहना है कि हमें इतनी जमीन कॉर्पोरेट खेती के लिए चाहिए क्योंकि पाकिस्तान में खाद्य संकट है. वहां बिजली की भी कमी है, किसी को इसके लिए भी कुछ करना है, तो हमें जमीन दो. हम संयुक्त उपक्रम लगाएंगे, कॉर्पोरेट सेक्टर पंजाब सरकार के साथ मिलकर आदि-आदि. इसके बाद हम बिजनेस करेंगे. हम उस जमीन से पैसा उगाएंगे. खेती की इस जमीन से जो कमाई होगी उसका 20 फीसदी हिस्सा कृषि से संबंधित अनुसंधान पर खर्च किया जाएगा. बाकी मुनाफा पंजाब की सूबाई सरकार और फौज के बीच फिफ्टी-फिफ्टी बांट लिया जाएगा.

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी लोकतंत्र में सेना वैधानिक रूप से स्थापित सरकार से यह कहे कि तुम मुझे जमीन दो, हम तुम्हें मुनाफा देंगे? और यहां तो 10 लाख एकड़ जमीन की मांग की जा रही है. पाकिस्तान की फौज ने सरकार से यह भी कहा है कि जब तक आप 10 लाख एकड़ जमीन सौंपने की औपचारिकताएं पूरी करोगे तब तक शुरुआत करने के लिए कहीं और 45,000 एकड़ दे दो. पंजाब में ही दे दो ताकि हम कुछ पाइलट प्रोजेक्ट चला सकें. इमरान की पार्टी के उस्मान बुज़दार की सरकार ने वहां जमीन अलॉट कर दी. सेना आपसे कोई मांग करती है, कोई नौकरशाही नहीं है, आपको जहां कहा जाता है वहां दस्तखत कर देते हैं. बुज़दार ने जमीन तब अलॉट की थी जब वे कामचलाऊ मुख्यमंत्री थे. इसलिए लाहौर हाइकोर्ट ने यह कहते हुए उस पर रोक लगा दी कि आपकी सरकार कामचलाऊ सरकार थी इसलिए आपको यह अधिकार नहीं था.

अब यह मामला नई सरकार के सामने आया है. वह मामला 45,000 एकड़ जमीन के अलॉटमेंट का था, अब मामला 10 लाख एकड़ का है. जमीन की मांग जिस इलाके में की गई है वह भी दिलचस्प है. वह पूरी तरह बंजर इलाका है जहां कुछ भी उपजाया नहीं जा सकता. उसे पाकिस्तान का चोलीस्तान कहा जाता है.

अब इस चोली शब्द से कोई और मतलब मत निकालिए, तुर्क भाषा में इसका मतलब है रेत. तो, वह भारत की सीमा से लगा विशाल रेगिस्तानी इलाका है. पाकिस्तान के पंजाब सूबे के सुदूर दक्षिण में स्थित इस चोलीस्तान क्षेत्र में तीन जिले हैं— बहावल नगर, बहावलपुर और रहीम यार ख़ान. ये तीनों जिले भारत की सीमा से सटे हैं. सैन्य हलके में भारतीय सेना इसे भारत-पाक सीमा का दक्षिणी सेक्टर कहती है. इसी इलाके में ‘ब्रैसटैक्स’ जैसे सैन्य अभ्यास किए जाते हैं क्योंकि यह विशाल खुला रेगिस्तानी इलाका है. इसलिए यह टैंकों के अभ्यास के लिए भी आदर्श इलाका है. यहां सीमा रेखा के दोनों तरफ लगभग कुछ भी नहीं उगता है. पाकिस्तानी इलाके में तो और भी नहीं क्योंकि वह इलाका बिलकुल सूखा है. इसलिए पाकिस्तानी सेना वहां 10 लाख एकड़ जमीन चाहती है.

चोलीस्तान को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है— बड़ा चोलीस्तान, जो करीब 13,600 वर्ग किलोमीटर का है; छोटा चोलीस्तान, जो करीब 12,370 वर्ग किमी का है. बड़ा चोलीस्तान सूखा इलाका है, जहां रेत के टीले 100 मीटर तक ऊंचे हैं. यह इलाका भारत की सीमा से लगा है. यही वजह है कि मैंने कहा कि दोनों तरफ का यह इलाका टैंकों के लिए आदर्श है क्योंकि दोनों तरफ पानी से जुड़ी बाधा नगण्य (जो गणना करेन के योग्य न हो) है.

पानी के लिए उन्हें गड्ढे खोदने पड़ेंगे या नहर आदि बनाने पड़ेंगे. इसलिए दोनों देशों ने इस इलाके को ऊसर माना है. इसलिए जब पाकिस्तानी सेना ने वहां 10 लाख एकड़ जमीन की मांग की और कहा कि वह आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके उसे हरा-भरा बना देगी तब मैं सोचने लगा कि क्या वहां कहीं से पानी लाने की कोशिश तो नहीं की जाएगी, बगीचे लगाए जाएंगे? अगर वे इसे हरा-भरा इलाका बना दें तो बेशक यह बड़ी बात होगी. लेकिन इससे भारत को उस इलाके में आगे कभी कुछ करने में बाधा पेश आएगी. लेकिन वहां लोगों को बसाया जा सके, पेड़ लगाए जा सकें, खेती करके उसका आर्थिक मूल्य बढ़ाया जा सके तो अच्छी बात ही होगी. यह सब आपको सुरक्षा ही प्रदान करेगा. वीरान रेगिस्तान से तो यह बेहतर ही होगा. मैं कुछ कह नहीं सकता. लेकिन मुझे कहीं यह नहीं दिखा कि पाकिस्तानी सेना ने अदालत में प्रस्ताव दिया हो कि वह उतनी जमीन का वहां क्या करेगी. अदालत के सामने उसने सिर्फ इतना कहा है कि फौज अगर मुल्क की तरक्की में हाथ बंटाती है तो यह कोई नयी बात नहीं होगी.

फौजी उपक्रम

‘इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर)’ में मीडिया शाखा के डाइरेक्टर जनरल, मेजर जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पाकिस्तान में खाद्य सुरक्षा एक चुनौती है और “विकसित और विकासशील देशों में सरकारों ने अपनी कृषि में सुधार के लिए सेना का किसी-न-किसी रूप में इस्तेमाल किया ही है, तो हम क्यों नहीं कर सकते?” और पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने शुरुआती 45,000 एकड़ का अलॉटमेंट किस आधार पर किया? उसने चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर (सीपीईसी) की जरूरतों के लिए यह अलॉटमेंट किया. यह एक ऐसी छतरी नजर आती है जिसके नीची आप कुछ भी कर सकते हैं. 10 लाख एकड़ के अलावा पाकिस्तानी फौज ने शहीदों के परिवारों और विधवाओं के, जिन्हें वे ‘शुहादा’ कहते हैं, चोलीस्तान में अलग से 30,000 एकड़ जमीन की मांग की है.

यह बहुत बड़ी मांग है. फिलहाल जो स्थिति है, मामला वहां हाइकोर्ट में गया है. पाकिस्तान में अदालतों और सरकारी तंत्र के बीच किस तरह एक-दूसरे पर पल्ला झाड़ने का खेल चलता है, यह हमें मालूम है. इसलिए यह भी एक और दिलचस्प इम्तिहान है. लेकिन जरा इस पर विचार कीजिए.

एक देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार से सेना कृषि फार्मों, कॉर्पोरेट फार्मों के साथ संयुक्त उपक्रम के अंतर्गत खेती के लिए 10 लाख एकड़ जमीन की मांग कर रही है. बात इतनी सी है.

लेकिन अलविदा लेने से पहले मैं आपसे गुजारिश करूंगा कि आप आएशा सिद्दीक़ा की किताब ‘इनसाइड पाकिस्तान्स मिलिटरी इकोनॉमी’ जरूर पढ़ें और इसके साथ पॉल स्टानिलैंड, अदनान नसीमुल्लाह और एहसान बट्ट का वह शोधपत्र ‘पाकिस्तान्स मिलिटरी इलीट्स’ भी पढ़ें जो 2020 में किंग्स कॉलेज के ‘जर्नल ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज़’ में प्रकाशित हुआ था. यह शोधपत्र आपको बताएगा कि पाकिस्तान के कोर कमांडर रिटायर होने के बाद भी किस तरह मजे से रहते हैं.

उनमें से 23.4% यानी चार में एक, रिटायर होने के बाद फौजी द्वारा चलाए जा रहे फाउंडेशन या किसी कॉर्पोरेट संगठन के प्रमुख बन जाते हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सत्ता तंत्र में उसकी सेना को खास जगह हासिल है.

आएशा सिद्दीक़ा की किताब उन कंपनियों, फाउंडेशनों और संगठनों के बारे में बताती है जिन्हें फौजी चलाते हैं. सो आपको फौजी गैस, फाउंडेशन गैस, मारी गैस, फौजी कॉर्न कॉम्प्लेक्स (जहां शायद वे कॉर्नफ़्लेक्स बनाते हैं), फौजी चीनी मिल, फौजी खाद कारख़ाना, आदि मिल जाएंगे. खाद बनाने में काम आने वाला पोटाश मोरक्को से आयात करने के लिए एक संयुक्त उपक्रम भी है. फौजी फाउंडेशन एक्सपेरिमेंटल ऐंड सीड मल्टीप्लीकेशन फार्म, फौजी ऑइल डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी, फौजी फाउंडेशन यूनिवर्सिटी, और अस्करी घोड़ा अस्तबल भी!

घोड़ों के अस्तबल, चावल की मिलें, चीनी मिलें, मछ्ली तालाब, सीमेंट कारखाने, शॉपिंग प्लाज़ा. सेना कई शॉपिंग प्लाज़ा भी चला रही है. आर्मी वेल्फेयर ट्रस्ट भी हैं, जिनके अपने कमर्शियल प्लाज़ा हैं. इनके अलावा लीज़िंग बीमा बैंक और विमान सेवा कारोबार हैं, जिसमें वायुसेना अपने शाहीन फाउंडेशन के साथ शामिल है.

यह सब जान लेने के बाद आपको इस बात पर आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि पाकिस्तानी फौज अपने पंजाब सूबे में जमीन की मांग क्यों कर रही है. इस पर भी ज्यादा आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि वह 10 लाख एकड़ की मांग कर रही है. इसीलिए मैंने कहा कि यह एक रस भरी खबर है कि हम एक फौज हैं लेकिन हम खेती भी कर सकते हैं. जय जवान, जय किसान!. थोड़ी हेरफेर कीजिए, हम आपकी खातिर खेती भी कर देंगे.

लेकिन उन्होंने ऐसी मांग रख दी, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

यह दिप्रिंट के एडिटर इन चीफ़ शेखर गुप्ता के ‘कट दि क्लटर’ एपिसोड 1238 की ट्रांसक्रिप्ट है. विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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