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Friday, 29 March, 2024
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असमानता पर अध्ययन के लिए एलएसई में अमर्त्य सेन चेयर बनाए जाने का मतलब

एक भारतीय अर्थशास्त्री के नाम पर चेयर की स्थापना का ये भी मतलब है कि भारत इस समय असमानता पर चल रहे अध्ययन का महत्वपूर्ण सब्जेक्ट है. यहां की बढ़ती असमानता, गरीबी और मानव विकास सूचकांक पर बेहद नीचे होना, दुनिया भर के लिए चिंता का कारण है.

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लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक़्स एण्ड पॉलिटिकल साइंस (एलएसई), जहां से बाबा साहब अम्बेडकर ने अर्थशास्त्र में एमएससी और डीएससी की डिग्री हासिल की थी, में असमानता का अध्ययन करने के लिए एक नया चेयर स्थापित किया जा रहा है. एलएसई ने भारत के अर्थशास्त्री नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के सम्मान में इस चेयर यानी अध्ययन पीठ की स्थापना की है. इसके चेयर प्रोफ़ेसर एलएसई के इंटेरनेशनल इनइक्वलिटीज इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर ही होंगे. इस समय इस पद के लिए नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है.

बता दें कि दुनियाभर में बढ़ रही आर्थिक असमानता के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के लिए एलएसई ने 2015 में समाजशास्त्र विभाग के अंदर इंटरनेशनल इनइक्वलिटीज इंस्टीट्यूट नाम से एक अलग संस्थान खोला है, जिसमें आज कल दुनियाभर के अलग-अलग देशों से अलग-अलग विषयों के शोधार्थी और प्रोफ़ेसर असमानता पर शोध करने आते हैं.

असमानता की बढ़ती विभीषिका का अध्ययन करने के लिए बनाया गया ये संस्थान एमएससी इन इनइक्वालिटीज एंड सोशल साइंसेज़ नाम से एक मास्टर कोर्स भी आफ़र करता है. इसके अलावा यह संस्थान असमानता पर पीएचडी करने के लिए अलग से फ़ेलोशिप भी देता है. प्रोफ़ेसर माइक सैवेज अभी इस संस्थान के निदेशक हैं.

एलएसई से प्रोफेसर सेन का रहा है पुराना जुड़ाव

इस संस्थान को स्थापित करने में योगदान देने वालों में अमर्त्य सेन का भी नाम है. सेन अपने शुरुआती दिनों में एलएसई में प्रोफ़ेसर रहे. आज कल वो अमेरिका की हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स और फ़िलॉसफ़ी पढ़ाते हैं. अपने शोध और अध्यापन कैरिअर के शुरुआती दिनों में असमानता पर सेन द्वारा लिखी गयी किताब ऑन इकोनॉमिक इनइक्वालिटी (1973) असमानता को समझने के लिए आज कल दुनियाभर में पढ़ाई जा रही है.


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इसके अलावा 1992 में उनके द्वारा लिखी गयी दूसरी किताब इनइक्वलिटीज रीइक्जामिंड भी बढ़ती असमानता के समाधानों के सैद्धांतिक पक्ष को समझने में काफ़ी मददगार हो रही है. यह किताब भी आज कल बढ़ती असमानता पर दुनियाभर के विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे कोर्स में एक ज़रूरी पाठ है.

अकादमिक जगत में किसी व्यक्ति के नाम पर प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में चेयर स्थापित होना बहुत सम्मान की बात होती है. मेरी अपनी सीमित जानकारी के अनुसार अमर्त्य सेन के अलावा डॉ. जगदीश भगवती ही ऐसे दूसरे भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर हैं, जिनके नाम से पश्चिमी देश के किसी विश्वविद्यालय में चेयर है.

अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने 2004 में भगवती के सम्मान में इंडियन इकोनॉमी पर ऐसा ही एक चेयर स्थापित किया, जिस पर प्रोफ़ेसर अरविन्द पनगड़िया की नियुक्ति हुई. प्रोफ़ेसर पनगड़िया को नरेंद्र मोदी सरकार ने नीति आयोग का डिप्टी चेयरमैन भी बनाया था, जो कि बीच में ही अपने पद से इस्तीफ़ा देकर पढ़ाने के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी वापस चले गए.

क्यों मशहूर हैं अमर्त्य सेन और क्या है उनकी कैपेबिलिटी थ्योरी

एलएसई ने अमर्त्य सेन चेयर की स्थापना अपने पूर्व प्रोफ़ेसर को सम्मान देने के लिए की है, जिसके पीछे असमानता पर उनके द्वारा लिखी गयी किताबों की महत्ता को रेखांकित करना भी है. बता दें कि मानव विकास पर सिद्धांत विकसित करने के लिए अमर्त्य सेन को 1998 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके बाद भारत सरकार ने भी उनको 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया. आज हम संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए जाने वाले जिस मानव विकास सूचकांक को देखते हैं, उसको विकसित करने में अमर्त्य सेन का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

चूंकि सेन ने मानव विकास को अपनी कैपेबिलिटी थ्योरी के आधार पर विकसित किया था, इसलिए 1999 के बाद दुनियाभर में उनकी कैपेबिलिटी थ्योरी पर बहुत ही ज़्यादा बहस हुई. बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आज कल सेन अपनी उसी थ्योरी के लिए जाने जाते हैं.

सेन की कैपबिलिटी थ्योरी प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तू या एरेस्टोटल के चिंतन से प्रेरित है, जिनका मानना था कि राज्य (सरकार) को ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जहां सभी मनुष्य अपनी उच्च क्षमता को पहचान सकें और उसको अपने उच्चतम रूप में विकसित कर सकें.


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आधुनिक परिप्रेक्ष्य में इसको परिभाषित करते हुए सेन ने मानव विकास में सामाजिक विविधता और लैंगिक विविधता तथा न्याय को शामिल करने की वकालत की है. उन्होंने बताया कि एक आदर्श समाज बनाने की दिशा में नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताएं मसलन शिक्षा, स्वास्थ, रोज़गार आदि तो ज़रूरी हैं ही, लेकिन इसके साथ बोलने, खाने-पीने, विश्वास, धर्म आदि की स्वतंत्रता भी ज़रूरी है. इनके न रहने पर व्यक्ति अपनी उच्च क्षमता को न ही पहचान सकता है और न ही नहीं पा सकता. अपने इन्हीं विचारों के कारण सेन भारत में हिन्दुत्ववादी ताक़तों के आलोचक रहे हैं, क्योंकि सेन इन ताकतों को मनुष्य के क्षमता को विकसित करने में बाधा मानते हैं.

क्यों बनाया गया अमर्त्य सेन चेयर

एलएसई द्वारा इन इंटरनेशनल इनइक्वलिटीज इंस्टीट्यूट में सेन के नाम पर चेयर स्थापित करने का एक आशय यह भी है कि कैपबिलिटी थ्योरी के पहले के उनके शोध कार्यों को भी प्रकाश में लाया जाए. इसके अलावा इस चेयर के माध्यम से एलएसई अमर्त्य सेन की यादों को अपने संस्थान में संजोये रखना चाहती है, ताकि वो कभी-कभी यहां आते रहें.

एक भारतीय अर्थशास्त्री के नाम पर चेयर की स्थापना का यह भी मतलब है कि भारत इस समय़ असमानता पर चल रहे अध्ययन का महत्वपूर्ण सब्जेक्ट है. यहां की बढ़ती असमानता, गरीबी और मानव विकास सूचकांक पर बेहद नीचे होना, दुनिया भर के लिए चिंता का कारण है. भारत की असमानता, इस विषय पर शोध करने वाले दुनिया भर के शोधार्थियों को आकर्षित कर रही है.

अमर्त्य सेन के लिए निश्चित तौर पर इस चेयर की स्थापना बहुत ही सम्मान की बात है. यह भारतीयों के लिए भी बहुत सम्मान की बात है, क्योंकि भारत के एक इंटलेक्चुअल की लिखी किताबों से आज दुनिया 21वीं सदी की सबसे बड़ी विभीषिका को समझने की कोशिश कर रही है.

(अरविन्द कुमार बढ़ती आर्थिक असमानता पर लंदन विश्वविद्यालय के रायल हालवे से पीएचडी कर रहे हैं.)

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