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Saturday, 20 April, 2024
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भारतीय अर्थव्यवस्था में त्योहारों के उत्साह का माहौल है, उम्मीद है यह कायम रहेगा

निरंतर तेज आर्थिक वृद्धि की जो उम्मीद वित्त मंत्री जता रही हैं वह कितनी वाजिब है? सरकारी कार्यक्रमों से कुछ गति आ सकती है लेकिन व्यापक अर्थव्यवस्था के आंकड़े बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं हैं

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ये त्योहारों के दिन हैं और शेयर बाज़ार की तेजी बाकी अर्थव्यवस्था के लिए नयी खबर लेकर आई है, या कह सकते हैं कि इसके विपरीत भी हो रहा है. निर्यात में उछाल बनी हुआ है, टैक्स से आमदनी में भी वृद्धि हो रही है, औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े आशा जगा रहे हैं, मुद्रास्फीति में गिरावट आ रही है, बैंकों में खराब कर्जों की तादाद घट रही है, कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ रहा है और यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या बढ़ रही है. इन सबने मिलकर वित्त मंत्री को यह घोषणा करने के लिए प्रोत्साहित किया है कि इस साल और अगले साल और आगे भविष्य में भी आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा दहाई वाले अंकों में रहेगा.

प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि उनकी सरकार की तरह कोई दूसरी सरकार सक्रिय नहीं रही है. कम-से-कम पिछले छह महीने तो इस दावे को सच ही साबित करते हैं. ताबड़तोड़ घोषणाएं की गई हैं—गति शक्ति, संपत्तियों का नकदीकरण, एअर इंडिया की बिक्री, टेलीकॉम को राहत, बिजली वाले वाहनों को प्रोत्साहन, अक्षय ऊर्जा के महत्वाकांक्षी लक्ष्य, पिछली तारीख से टैक्स वसूली, चुनिन्दा उद्योगों के लिए उत्पादकता से जुड़े प्रोत्साहनों का विस्तार आदि. इन घोषणाओं के साथ उपलब्धियों के दावे भी किए जा रहे हैं, मसलन सरकारी सहायता से 3 करोड़ मकानों का निर्माण. यह सब मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल के मध्य में आई पंगुता के विपरीत है.

नीति के मोर्चे पर कमजोरी जिस तरह बनी हुई है उसके कारण सरकार की सभी पहल सफल नहीं हो सकती. आर्थिक गतिविधियों में आई ज़्यादातर तेजी इसलिए प्रभावशाली दिखती है क्योंकि तुलना 2020 के निचले आधार से की जाती है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने ताजा आकलन में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021 और 2022 में फिर सबसे तेज प्रगति करेगी. लेकिन पिछले दो वर्षों का हिसाब लें तो भारत की जीडीपी में चार साल में 3.7 प्रतिशत से ज्यादा औसत वृद्धि नहीं हुई है, जबकि वैश्विक औसत 2.6 प्रतिशत का रहा है. विकासशील अर्थव्यवस्था को विकसित अर्थव्यवस्था से जिस तरह तेजी से आगे बढ़ने की उम्मीद की जाती उसके मद्देनजर इसका बहुत ढोल नहीं पीटा जा सकता है.

पिछले एक दशक में एशिया में बांग्लादेश, चीन, वियतनाम, और ताइवान ने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है जबकि थाईलैंड, फिलीपींस, और दक्षिण कोरिया ने काफी ऊंची आय स्तरों के बावजूद उसकी बराबरी की है.


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फिर भी, मूड काफी बदला हुआ हुआ है और यह गति बढ़ा सकता है क्योंकि लोग उपभोग पर खर्च करने और कंपनियां निवेश करने के मूड में हैं. सरकार की उत्साही घोषणाओं ने अप्रैल-मई की यादों को, मसलन ऑक्सीजन की कमी, नदी के किनारे दफनाए शवों की दुखद छवियों को धूमिल कर दिया है. टीकाकरण कार्यक्रम को धीमी शुरुआत के बाद सफल माना जा रहा है. कोविड की तीसरी लहर आ सकती है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि वह पिछली लहर जैसी मारक नहीं होगी.

बुरी खबरों के बावजूद सरकार का संयम प्रशंसनीय कहा जा सकता है. पेगासस जासूसी कांड से कानूनी प्रक्रिया के जरिए निबटने के कारण वह सुर्खियों से गायब हो गया है. नागरिक अधिकारों के उल्लंघन की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय आलोचना का जवाब पलटकर सवाल करने की चाल से या मानवाधिकारों के माओ शैली में उल्लंघन को जनकल्याण के उपायों से देने की कोशिश की जा रही है. वास्तव में, लद्दाख में चीन हमारे बड़े हिस्से पर जमा हुआ है लेकिन गृह मंत्री यह दावा कर रहे हैं कि कोई भी देश भारत की सीमा का अतिक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सकता.

साफ है कि तथ्यों को कोई महत्व नहीं दिया जाता, कभी-कभी उन्हें दबा दिया जाता है (मसलन उपभोग के ताजा सर्वे में दिखाया गया तथ्य कि उपभोग घटा है यानी गरीबों की संख्या बढ़ी है), या उनकी उपेक्षा कर दी जाती है (जैसे रोजगार के आंकड़े). फिर भी बुरी खबरें सामने आ ही जाती हैं और याद दिलाती हैं कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है, जैसे भूख की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत का नाम नीचे चला गया है.

मुख्य सवाल यह है कि निरंतर तेज आर्थिक वृद्धि की जो उम्मीद वित्त मंत्री जता रहे हैं वह कितनी वाजिब है. सरकार के कार्यक्रमों से कुछ गति तो आ सकती है लेकिन व्यापक अर्थव्यवस्था की आंकड़े उत्साहवर्द्धक नहीं हैं. अनुमान है कि 2021 में अर्थव्यवस्था में कुल निवेश 29.7 प्रतिशत ही रहेगा, जो एक दशक पहले 39.6 प्रतिशत था. केंद्र और राज्य सरकारों का कुल वित्तीय घाटा 2011 में 8.3 प्रतिशत से बढ़कर आज 11.3 प्रतिशत हो गया है. ऋण-जीडीपी अनुपात 68.6 प्रतिशत से बढ़कर 90.6 प्रतिशत पर पहुंच गया है.

एक दशक पहले जो संकेतक बेहतर हाल में थे वे आज वैसे नहीं हैं, आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है. अब यही उम्मीद की जा सकती है कि यह सब उलट जाएगा और आज की ऊर्जा और उम्मीद कायम रहेगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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